आरु को 'विघात' नाम के इस रहस्मय गाँव में, एक दोस्त के रूप में एक गुरु मिल चुका था जिनका नाम था भीमा। रात को जब भीमा यज्ञ करते हुए मंत्रों का जाप कर रहे थे, तो आरु की नींद टूट जाती है। मंत्रों सुनकर उठी मन की जिज्ञासा को शांत करने के लिए आरु देखना चाहता था, की बाबा किस विधि से पूजा स्थल पर अपनी साधना कर रहे हैं। पर आरु वहाँ का दृश्य देख कर डर जाता है, बाबा की यज्ञ अग्नि में से एक विशाल आकर की औरत प्रगट हुई थी, जिसके सामने भीमा बाबा मंत्रों का जाप कर रह थे।

वो औरत ही शायद इन गाँव वालों की कुल देवी थी, बड़ी-बड़ी लाल आंखें खुले लम्बे काले बाल, देवी का यह रूप देख कर नन्हा-सा आरु बहुत घबरा गया था, आरु की नज़र पड़ते की कुलदेवी गायब हो गयीं थी,

भीमा बाबा को आभास हो गया था, की आरु जाग गया है और उसने ये दृश्य देख लिया है, उन्हें आरु की फ़िक्र थी इसलिए वह गुस्से से आरु का नाम पुकार रहे थे, पर उन्हें एहसास हो गया था कि ये छोटा-सा बच्चा पहले से ही डरा हुआ है। इसलिए वह आरु के कमरे में जाते हैं और उसके सर पर हाथ रख कर कहते हैं-

भीमा-बेटा आरु, घबराओ नहीं मैं हूँ ना तुम्हारे साथ, मुझे बताओ तुमने वहाँ क्या देखा?

अपने आंसू पोंछते हुए आरु ने हिम्मत जुटाई और कहा-

आरू- मैंने वहाँ एक औरत देखी जिनका आकार आपसे भी बड़ा था, उनकी आंखें गुस्से से लाल थी, उन्होंने मेरी तरफ़ भी गुस्से से देखा, वह मुझे मार देंगी क्या?

भीमा-अरे घबराओ नहीं बेटा पहले वचन दो इस घटना के बारे में तुम किसी से नहीं कहोगे।

आरू-नहीं बताऊंगा बस आप मुझे बचा लो।

भीमा-अच्छा पहले अपने आंसू साफ़ करो, अब ध्यान से सुनो ये हमारी कुल देवी हैं, जिनको मेरे अलावा और कोई नहीं देख सकता। अगर तुम उन्हें देख पा रहे थे तो इसका मतलब ये है कि, उन्होंने तुम्हें भी स्वीकार कर लिया है। तुम्हें उनसे कोई ख़तरा नहीं है अब वह भी तुम्हारी रक्षा करेंगी। 

आरु के साथ हर रोज़ कोई ऐसी रहस्यमयी घटना हो रही थी, जिससे उसे संकेत मिल रहा था कि इस गाँव में वह ख़ुद नहीं आया बल्कि उसे बुलाया गया है, वह अपने साथ हो रही हर घटना की कड़ियाँ जोड़ कर इस नतीजे पर पहुँचना चाहता था कि आख़िर ये भविष्य उस से चाहता क्या है?

अगली सुबह आरु ने बाबा से गाँव घुमाने को कहा, हर गाँव वाला आरु को अपने घर बुलाना चाहता था, उनके लिए आरु के क़दम बहुत शुभ थे। आरु गाँव घूमते वक़्त ख़ुशी में तेज़ दौड़ते हुए एक विशाल पेड़ के नीचे बैठ गया, उसके वहाँ बैठते ही बड़े-बड़े पक्षी उसके आस पास आ गए, ऐसा लग रहा था मानो वह आरु के आने पर अपनी ख़ुशी बयाँ कर रहे थे। जैसे ही भीमा बाबा वहाँ पहुँचे उन्होंने पंछिओं से उड़ने का इशारा किया।

सभी पक्षी उड़ जाते हैं। आरु ये देख कर हैरान था के उसके इलावा कोई और भी है जिसकी बात जानवर और पक्षी समझते हैं, उसने हैरान होते हुए बाबा से पूछा

आरू-बाबा ये आपने कैसे किया, ये पक्षी आपका कहना कैसे मानते हैं? क्या ये आपके मन की बात भी उसी तरह समझ लेते हैं जैसे मेरी बात समझते हैं?

भीमा-हाँ बेटा मुझमें और तुम में बस इतना फ़र्क़ है कि जानवर और पक्षी तुम्हारे भाव जान लेते हैं, पर तुम उनके भाव नहीं जान पाते और मैं उनके भाव समझना भी जनता हूँ।

भीमा की ये बात सुनकर आरु ने ख़ुशी से झूमते हुए पूछा।

आरू-भीमा बाबा आप तो बहुत पहुँचे हुए ऋषि हो, क्या आप मुझे भी सिखाओगे जानवरों और पक्षियों की भाषा।

भीमा-हाँ बेटा ज़रूर, जल्द वह समय भी आएगा जब तुम इन जीव जंतुओं के भाव जानना सिख जाओगे।

आरू- हूरेरेरेरे अब मज़ा आएगा।

आरु के ख़ुशी से झूमते ही आसमान में बादल गरजने शुरू गए, जो गाँव सूखे की मार झेल रहा था उस गाँव के खेतों को आखिरकार पानी नसीब हुआ। सभी गाँव वाले इस घटना को आरु और भीमा बाबा के साथ जोड़ कर देख रहे थे। सबके लिए नन्हा-सा आरु अब एक हीरो जैसा बन गया था, इस घटना के कुछ दिन बाद अच्छी फ़सल होने पर एक जश्न की तैयारी की गयी। गाँव वालों ने जंगल से लकड़ियाँ इकट्ठी की और उन्हें गाँव के बीच जला कर जश्न शुरू किया। इस जश्न में आरु की ज़िन्दगी में एक और दोस्त आने वाला था जिसका नाम है 'श्रुति' । श्रुति आरु की हमउम्र थी।

जब गाँव के लोग आग के पास जश्न मना रहे थे उसी वक़्त आरु की नज़र श्रुति पर गयी। श्रुति पहले से ही आरु को देखे जा रही थी, पर आरु ने जैसे ही श्रुति की और देखा था तो श्रुति ने ऐसे नज़रें घुमाई, जैसे वह आरु को बता रही हो की वह उसे इंग्नोर कर रही है। जश्न ख़त्म हो चुका था अगली सुबह जब आरु उठ कर अपने कमरे से बाहर आता है तो श्रुति को अपने सामने देख कर हैरान हो जाता है। श्रुति उस से बड़े हक़ जताने वाले अंदाज़ में पूछती है-

श्रुति- तुम जादूगर हो क्या?

अरु ने घबराते हुए उसका जवाब दिया,

आरू-अरे नहीं, पर तुमसे किसने कहा?

श्रुति-सभी गाँव के बच्चे यही बातें करते हैं कि तुम कोई जादूगर हो। जबसे गाँव में आए हो सबकी फ़सल अच्छी हो गई है, पेड़ों की ऊर्जा वापिस आ गयी है पंछी वापिस आ गए हैं।

आरू-मुझे नहीं पता ये क्यों हुआ।

श्रुति-झूठ मत बोलो तुम जादूगर हो और मुझे तुम्हारा जादू देखना है।

आरू-अरे कैसा जादू?

अपनी ज़िद पर अड़ चुकी श्रुति ने अपने छोटे से थैले से अपनी गुड़िया निकली और आरु को दिखते हुए कहा,

श्रुति-ये देखो मेरी गुड़िया टूट गयी है, अपने जादू से इसे जोड़ दो बस।

आरू-अरे सच बता रहा हूँ, मैं कोई जादूगर-वादुगर नहीं हूँ।

अपने कमरे में भीमा बाबा इन बच्चों की मज़ेदार बातें सुन रहे थे और हंसते हुए कमरे से बहार आकर उन्होंने श्रुति से कहा-

भीमा-बेटा ये कोई जादूगर नहीं है, आप सबने कुलदेवी को प्रसन्न किया है ना, इसलिए ये सब चमत्कार हुए हैं।

आरु को लगा ऐसे तो गाँव के बच्चे उस से इम्प्रेस होना बंद हो जायेंगे, उसने झट से बाबा की बात काटते हुए कहा।

आरू- ऐसा नहीं है, कुछ चमत्कार मेरी वज़ह से भी हुए है, है ना बाबा?

आरु के जज़्बात समझते हुए बाबा ने हामी भर दी और उसी वक़्त श्रुति ने कहा-

श्रुति-तो मेरी गुड़िया जोड़ के दिखाओ फिर।

आरू- अरे ये वाला जादू अभी सिख रहा हूँ, जब सिख जाऊंगा तो जोड़ दूंगा तुम्हारी गुड़िया।

श्रुति- अरे यार मेरी गुड़िया टूटी ही रह जाएगी तब तक।

इतना बोलते ही जब श्रुति वापिस जाने लगी, तो आरु ने पीछे से उसे आवाज़ लगाते हुए कहा-

आरू- अरे अपना नाम तो बताओ पर।

श्रुति-भीमा बाबा से ही पूछ लेना।

इस से पहले के आरु उसका नाम बाबा से पूछता, बाबा ने पहले ही जवाब देते हुए कहा-

भीमा-श्रुति है उसका नाम, थोड़ी-सी ज़िद्दी है, पर मन की बहुत प्यारी है, कभी बड़ों का कहा नहीं टालती।

श्रुति का किस्सा ख़तम होते ही बाबा ने आरु को याद दिलाया की आज उसे पहले शस्त्र की विद्या सीखनी है, भीमा और आरु तैयार होकर उसी खली मैदान में पहुँच गए थे। चौकड़ी मार कर बैठे भीमा ने आरु को अपने से कुछ दूरी पर बैठने को कहा और किसी मंत्र का जाप करना शुरू कर दिया।

कुछ ही पलों में उनके सामने एक सुनहरी रंग का चमकता हुआ शास्त्र आ गया, आरु से रहा नहीं गया, इस से पहले के भीमा उसे रोक पाते, आरु ने उत्सुकता में उस शास्त्र को छुआ और आरु को इतना ज़ोर से झटका लगा की वह कुछ दुरी पर जा गिरा, घबराये हुए भीमा ने आरु पास जाकर पूछा-

भीमा-आरु तुम्हें ज़्यादा हानि तो नहीं हुई?

आरू- नहीं-नहीं बाबा बस हाथ में थोड़ी-सी जलन हो रही है, बहुत गर्म है ये शस्त्र।

भीमा-बेटा अभी तुम छोटे बच्चे हो मैंने तुम्हें शस्त्र का सिर्फ़ ज्ञान देना है, तुम्हें शस्त्र चलाना नहीं सिखाना है।

आरू-बाबा पर इस शस्त्र को मैं छू क्यों नहीं सका?

भीमा-इसे सिर्फ़ वह ही छू सकता है जिसने इसे सिद्ध किया हो।

आरू-और इस शस्त्र का नाम क्या है?

भीमा-ये 'काल' शस्त्र है, जिसपर भी ये शास्त्र चलाया जाए उसपर ये काल बनकर टूट पड़ता है।

भीमा बाबा जान चुके थे की गाँव वालों को बचाने के लिए कोई ताकतवर इंसान नहीं आएगा, बल्कि इस रहस्यमय बच्चे को ही आने वाले गंभीर समय के लिए तैयार करना होगा। शस्त्र के साथ-साथ आरु को भीमा से शास्त्र का ज्ञान भी मिल रहा था। कुछ ही दिनों में आरु अब जीव जंतुओं के भाव जानने की कला भी कुछ हद तक सिख चुका था। धीरे-धीरे दिन बीतते गए और इसी बीच समय के साथ-साथ आरु की दोस्ती श्रुति के साथ हो गयी।

शिक्षा का समय पूरा होने के बाद वह श्रुति के साथ खेलने चला जाता, वैसे तो अब आरु के गाँव में और भी दोस्त थे, पर श्रुति उसकी पक्की दोस्त बन चुकी थी। ज़िन्दगी का कठोर समय देख चुके आरु का बचपन अब फिर से मासूमियत से भर गया था। ये सुकून वाला समय शायद आरु की ज़िंदगी में ज़्यादा दिनों के लिए नहीं लिखा था। एक दिन आरु और श्रुति नदी के किनारे बैठे थे तो आरु ने श्रुति से कहा-

आरू-क्या तुम जानती हो ये जानवर और पंछी मेरी बात समझते हैं और मैं उनकी।

श्रुति ने आरु के ऐसे काफ़ी किस्से सुन रखे थे, पर अपने सामने कोई चमत्कार देखने की इच्छा से उसने आरु से कह दिया।

श्रुति-मैं नहीं मानती तुम झूठ बोल रहे हो।

आरू-अरे सच बोल रहा हूँ, बोलो तो अभी वह पेड़ों पर बैठे पक्षी यहाँ तुम्हारे सामने ले आऊँ।

श्रुति-चलो करके दिखाओ ये जादू

आरु का इशारा मिलते ही पेड़ों पर बैठे वह विशाल पक्षी आरु के सामने आकर बैठ गए और इस बात से इतराते हुए आरु ने कहा।

आरू-श्रुति मैं इनकी भाषा भी जानता हूँ, मैं तुम्हें बताऊँ ये क्या कह रहे हैं।

श्रुति-हाँ बताओ?

आरु ने भीमा बाबा की शिक्षा का प्रयोग करते हुए सामने बैठे एक छोटे पक्षी की आँखों में देखा और श्रुति को बताया के इस पक्षी ने अभी-अभी उड़ना सीखा है और ये पक्षी कह रहा है इसकी माँ को इसकी बहुत फ़िक्र रहती है। श्रुति जानती थी के आरु इन जीव जंतुओं की भाषा जनता है, पर पक्षी की माँ वाली बात सुनकर श्रुति ने आरु से सवाल किया-

श्रुति-आरु इन सबके माँ और बाबा है, मेरे भी माँ और बाबा हैं, पर तुम्हारे माँ बाबा कहाँ हैं, वह नहीं आये तुम्हारे साथ?

आरु को इस सवाल ने बेचैन कर दिया था, अचनाक उसकी आँखों के सामने उसके माँ और पापा का चेहरा आ गया था।

अचानक आरु अपने बीते हुए कल की सुनहरी यादों में खो गया था, ख़ामोश बैठे आरु को कंधे से पकड़ कर हिलाते हुए श्रुति ने बोला-

श्रुति-जादूगर कहाँ खो गए थे, बताओ ना तुम्हारे माँ बाबा कहाँ है?

आरु ने ये बात टालनी चाही और श्रुति से पक्षियों के बारे में बातें करने की कोशिश की, पर श्रुति ने आरु को चिढ़ाना शुरू कर दिया था, श्रुति ने लगातार आरु को ये कहना शुरू कर दिया-

श्रुति-तुम्हें अपने माँ बाबा का पता नहीं है क्या, बताओ ना कौन है तुम्हारे माँ बाबा?

श्रुति की ये बातें आरु के कानों में तीर की तरह चुभ रही थी।

ये बात सुनकर जैसे-जैसे आरु का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, वैसे-वैसे आसमान में काले बादल आने लगे, नदी में पानी का स्तर बढ़ने लगा था, ये बादलों की गर्जना आम बादलों की तरह नहीं थी, और अचानक से आराम से चल रही हवा ने तूफान का रूप ले लिया था। श्रुति ये देख कर डर गई थी, उसने आरु को शांत करने की कोशिश की थी, पर इसके बावजूद भी आरु का गुस्सा शांत नहीं हो रहा था, श्रुति लगातार कहती रही-

श्रुति-आरु गुस्सा छोड़ो, मुझे डर लग रहा है। क्या ये सब तुम कर रहे हो? तो अभी बंद कर दो।

आरु का गुस्सा शांत होने का नाम नहीं ले रहा था, क्या श्रुति ने आरु से उसके माँ बाबा के बारे में पूछ कर बहुत बड़ी गलती कर दी थी? क्या आरु के गुस्से से आ रहे इस भयंकर तूफ़ान से गाँव को कोई बड़ा नुक़सान होने वाला था? क्या होगा इस गाँव का भविष्य?

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