गुस्से में लिए गए निर्णय कई बार ऐसा परिणाम दे जाते हैं, जिसके बाद इंसान के पास पछताने के अलावा और कुछ नहीं बचता। पर 7 साल का आरु इस बात को अभी समझ नहीं पाया था। जैसे-जैसे आरु का गुस्सा बढ़ता जा रहा था, वैसे-वैसे नदी का पानी भी बढ़ता जा रहा था, तेज़ हवा के साथ आसमान में घने काले बादल छा चुके थे।

श्रुति डर कर बस रोये जा रही थी, ऐसा लग रहा था मानो नदी का जल स्तर इतना बढ़ जायेगा के ये पूरा गाँव ही डूब जायेगा। पर इस बार फिर गाँव की रक्षा करने के लिए भीमा बाबा सामने आये, अपनी दिव्य शक्तियों के बल से वह जान चुके थे के गाँव में ये तूफान कैसे आया है। वह सीधा आरु के पास पहुँचे, पर आरु ऐसी स्थिति में नहीं था के उसके कानों में कोई बात जा सके।

इसलिए भीमा ने आरु के सर पर हाथ रखा और एक मंत्र का जाप किया, इस मंत्र की शक्ति से आरु की आँखों का वह लाल रंग गायब होना शुरू हो गया।

आसमान से वह डरावने काले बादल गायब हो गए थे, धीरे-धीरे नदी का जल स्तर पहले जैसे हो गया और हवा भी शांत हो गयी, अब गाँव सुरक्षित था।

आरु ने जैसे ही होश संभाला उसने रोते हुए भीमा से पूछा।

आरू-बाबा ये मेरे साथ क्या हुआ, अचानक मेरा गुस्सा बेकाबू हो गया और ये सब शुरू हो गया?

भीमा-पहले तो तुम दोनों बच्चे शांत हो जाओ, श्रुति बेटा घबराओ मत अब आरु ठीक है तुम अपने घर जाओ।

श्रुति को उसके घर भेजने के बाद भीमा आरु को अपने साथ कुटिया में ले जाते हैं और वहाँ आरु को पूजा स्थल वाले कमरे में बिठा कर यज्ञ कुण्ड से भस्म निकाल कर आरु के माथे पर लगाते हैं।

इस भस्म के स्पर्श से ही आरु की घबराहट दूर हो जाती है, और उसके पूरी तरह शांत होने के बाद भीमा उस से कहते हैं।

भीमा-आरु रात हो गयी है तुम खाना खा कर सो जाओ, कल हम कोई विद्या नहीं सीखेंगे, कल तुम्हें कुछ वह रहस्य बताने हैं जो तुम्हारे अतीत के साथ जुड़े हैं। इन बातों को बताना इस लिए ज़रूरी है कि तुम अपनी ताकत का सही इस्तेमाल कर सको और अपने क्रोध पर काबू पाना सिख सको।

भीमा की बात मान ने के बाद, आरु खाना खा कर अपने कमरे में सोने तो चला गया, पर उसे ये बात सोच कर नींद नहीं आ रही थी की भीमा उस को क्या बताने वाले हैं। नन्हा-सा बच्चा ज़्यादा देर जाग नहीं पाया और ख्यालों में खो जाने पर, उसे मालूम नहीं चला की कब उसकी नींद लग गयी।

सुबह हो चुकी थी और आरु ने जागते ही भीमा के कमरे में जाकर पूछा

आरू-भीमा बाबा बताओ मेरे अत्तीत के बारे में!

इस पर भीमा ने हंसते हुए उसे जवाब दिया।

भीमा-पहले स्नान कर लो कुछ खा लो, फिर हम चलेंगे मैदान में, वहाँ मैं तुम्हें बताऊंगा तुम्हारे अतीत के बारे में और तुम्हें ये भी पता चल जायेगा की आख़िर क्यों ये पेड़ पौधे और जीव जंतु तुम्हारे यहाँ आने पर खुश हैं।

कुछ देर बाद आरु और भीमा उस खाली मैदान में आ गए थे, जिसके बीचों बीच लगे एक बड़े पेड़ के नीचे आरु रोज़ भीमा से शिक्षा लेता था। भीमा ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा-

भीमा-आरु बेटा तुम इस गाँव में नए नहीं हो, ये गाँव तुम्हारा ही था!

आरु ये बात सुनकर हैरान हो गया, पर आज वह बिना कोई सवाल किये सिर्फ़ भीमा की बात सुनना चाहता था। भीमा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा

भीमा-आरु ये सारा गाँव बहुत वर्षों पहले तुम्हारा ही था, मुझे आज भी याद है के 200 साल पहले तुम इस कबीले का हिस्सा पहली बार बने थे। जब तुम्हे तुम्हारी माँ ने जनम दिया था। मुझे आज भी याद है तुम्हारी पहली हंसी, तुम्हें पहली बार अपने हाथों में लेने का अनुभव। ऐसा लगा था मानों किसी अवतार ने ही जन्म लिया हो! ये कहते-कहते भीमा का गला भर आया था।

ये सुनते ही दुविधा में पड़ चुका आरु उसी वक़्त भीमा की बात को काटते हुए कहता है

आरू-ये 200 साल पहले की बात है? आप की उम्र तो 95 या 100 साल तक की लगती है।

आरु की बात सुनते ही हँसते हुए भीमा ने जवाब दिया।

भीमा-तुम्हें किसने कहा के मेरी उम्र 100 साल की है।

आरू-कहा तो किसी ने नहीं पर आप दीखते इतने सालों के ही हो।

भीमा-नहीं बेटा गाँव में मेरी उम्र कोई भी नहीं जानता और आज हम मेरी उम्र की नहीं बल्कि तुम्हारे अतीत की बात करेंगे।

आरु को चुप कराते हुए, भीमा ने अपनी बात को दोबारा शुरू करते हुए कहा।

भीमा-बेटा ये जब तुम्हारा जन्म हुआ, मैंने ही इस कबीले में तुम्हे भविष्य का सरदार बनाने की घोषणा की थी। ये पूरी प्रकृति तुम्हारा हिस्सा है और तुम इनका।

आरू-तो क्या ये पेड़ इतने साल पुराने हैं।

भीमा-हाँ बेटा और ये तुम्हें पहचानते हैं, तभी तो तुम्हारे गाँव में आते ही इन पेड़ों की जटाओं में ऊर्जा का संचार शुरू हो गया था, इस इलाके की धरती तुम्हारे कदमों को पहचानती है, इसलिए तुम जब यहाँ चले तो इस धरती में नमी आ गयी।

आरू-वाह ये कहानी तो बड़ी मज़ेदार है, मतलब मेरा कद भी आप लोगों जैसा बड़ा था।

भीमा-हाँ और सेहतमंद भी, बचपन से ही तुम इतने बलवान थे की कोई तुम्हारा मुकाबला नहीं कर सकता था। जैसे-जैसे तुम बड़े हो रहे थे कबीले की खुशहाली और बढ़ रही थी और ये पूरा कबीला एक परिवार की तरह तुम्हें पाल रहा था जैसे कि अभी।

आरू-मतलब इन गाँव वालों के पूर्वज, वही कबीले वाले हैं जहाँ मेरा जनम हुआ था।

भीमा-हाँ बेटा, तुम ही इस गाँव के भविष्य थे।

आरू-मतलब मेरा परिवार भी है यहाँ?

आरु की ये बात सुनकर भीमा कुछ देर के लिए चुप हो गए, उन्होंने आरु की ये बात टालते हुए कहा

भीमा-उनके बारे में हम कभी और बात करेंगे।

आरू-नहीं आज ही बताओ मुझे, देखना है अपने परिवार वालों को।

आरु की इस बात को फिर से टालते हुए भीमा ने कहा

भीमा-आरु जो ज़रूरी बातें हैं पहले सिर्फ़ वह सुनो।

भीमा शायद आरु के परिवार के बारे में कुछ छिपा रहा था, उसने बड़ी चालाकी से आरु को दूसरी बातों में उलझा दिया और अपनी बात रखते हुए बोले

भीमा-आरु तुम बहुत काबिल के सबसे मुख्य इंसान थे, तुमने मुझसे कई विद्याएँ बचपन में ही सिख ली थी।

आरू-मतलब आप मुझे जैसे अभी सिखाते हो, वैसे ही तब भी सिखाते थे?

भीमा-हाँ, तुम दिन बा दिन ताकतवर होते जा रहे थे। तुम्हारे बाने के बाद ही तो ये छोटा-सा कबीला एक बहुत सुंदर गाँव में बदल गया, जहाँ कभी खाली ज़मीन थी वहाँ अब लहराती हुई फसलें थी और हर तरफ़ हरयाली ही हरयाली थी। पर बस तुम्हारी एक ही कमज़ोरी थी।

आरू-मुझमे कमजोरी? नहीं हो ही नहीं सकती? आज अपने देखा था ना की मेरे गुस्से में कितनी ताकत है।

भीमा-हाँ आरु, पर में ताकत की नहीं कमजोरी की बात कर रहा हूँ। तुम्हारी ये कमज़ोरी थी, के तुम लोगों पर विशवास जल्दी कर लेते थे, पर इस जनम में तुम्हारे साथ कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं है, जिससे अब तुम आँख बंद करके सब पर यक़ीन नहीं करते।

भीमा की इस बात से आरु को राजन याद आ गया, उसने राजन पर आँख बंद करके भरोसा किया था और इसके बहुत भयंकर परिणाम आरु को भुगतने पड़े थे। आरु ने ख्यालों से बाहर आकर भीमा से पूछा।

आरू-तो क्या इसलिए राजन जैसा बुरा आदमी मेरी ज़िन्दगी में आया था, ताकी मुझे ये सीखा सके की, किसी पर जल्दी से विश्वास नहीं करना चाहिए।

भीमा-बेटा ये तो हमारी कुलदेवी ही जानें, शायद तुम्हारी बात सत्य ही है। ज़िन्दगी तुम्हें इस हिसाब से तैयार कर रही है के जो गलतियाँ तुमने अपने पूर्व जनम में की हैं, वह इस जनम में न हों, तुम सब पर यक़ीन कर लेते थे और तुम्हारे की कबीले का एक आदमी था जिसका नाम था 'चंद्रा' । तुम उसे अपना परिवार मानते थे, वह नहीं चाहता था कि तुम इस कबीले के कभी भी सरदार बनो। ये तय था कि इस कबीला का भर तुम्हें ही संभालना है क्योंकि तुम्हे नियति ने चुना था, हमें नहीं। पर फिर भी तुम्हारे नानाजी ने एक नयी पांच पंच और एक सरपंच की प्रथा शुरू की।

आरू-वो क्यों नहीं चाहता था में सरदार बनु?

भीमा-क्योंकि कबीले के सरदार यानी तुम्हारे नानाजी की बेटी, यानी तुम्हारी माँ ने उससे शादी के लिए मना कर दिया था और वह इस बात से नाराज़ था। इसलिए वह चाहता था कि वह तुम्हारे पूरे परिवार को ख़तम कर दे।

आरू-इतनी नफ़रत?

भीमा-पर जो विद्याएँ तुम्हें बचपन में मैंने सिखाई थी वह तुमने उसे अपने बचपने में दिखा दी, जिसके परिणाम बहुत ग़लत आये।

भीमा की बातें आरु के मन की जिज्ञासा को बढ़ा रही थी, ये पहली बार हो रहा था के आरु चुप चाप बिना कोई शरारत किये, भीमा की बातें सुन रहा था और भीमा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा।

भीमा-ये विद्या तुम्हें सिखाते हुए मैंने कहा था कि ये किसी और को माता बताना, पर तुमने 'चंद्रा' पर भरोसा करके उसे ये विद्या सीखा दी, तुम सबका भला सोचते थे। पर तुमने नादानी में 'चंद्रा' को जलवायु विद्या दिखा दी, जिससे तुम मौसम के संतुलन को बनाए रखते थे। अब तुमने ये विद्या चंद्रा को सीख दी थी।

आरू-बाबा ये बादल ये बारिश सब मेरी मर्ज़ी से होती थी?

भीमा-हाँ बेटा तुम इस कला में निपुण थे पर कुदरत के भी कुछ नियम होते हैं, हर ऋतू का एक समय होता था। जब कभी ये समय का समीकरण खराब होता था, उस वक़्त तुम इन शक्तियों से मौसम बदल कर गाँव को सूखे जैसी भयंकर आपदा से बचाते थे। इसलिए आज मैं तुम्हें ये रहस्य बता रहा हूँ, तुम बेशक ये शक्तियाँ भूल चुके हो, पर यहाँ का जलवायु आज भी तुम्हारे साथ जुड़ी हुई है। इसलिए तुम्हारे गुस्सा हो जाने पर यहाँ का मौसम भयंकर हो गया था।

भीमा की ये बात सुनकर आरु को इस बात का अफ़सोस हो रहा था, की उसे गुस्सा नहीं करना चाहिए था। उसे लगा कि उसकी इस गलती से आज गाँव में तबाही आ सकती थी, आरू ने भीमा को आश्वासन देते हुए कहा।

आरू-बाबा अब मैं समझ गया की मेरी छोटी-सी गलती, इस गाँव को बड़ा नुक़सान पहुँचता सकती है, मैं आज से गुस्सा नहीं करूंगा।

आरु की मासूमियत भरी बात सुनकर भीमा ने उसे समझाते हुए कहा

भीमा-आरु हम इंसान है हमें कभी भी गुस्सा आ सकता है ऐसा ज़रूरी नहीं की, तुम हमेशा अपने गुस्से पर काबू पा सको पर हाँ, मैं तुम्हें ऐसी विद्या सीखा दूंगा, जिससे तुम्हारे स्वभाव के साथ इस मौसम में कोई बदलाव ना आए।

आरू-ठीक है, पर क्या आप बताओगे उस 'चंद्रा' ने उन शक्तियों का ग़लत इस्तेमाल करना शुरु कर दिया था क्या?

भीमा-हाँ उसने तुमसे शक्तियों का इस्तेमाल सीख कर, उन शक्तियों से तुम पर ही वार करके, तुम्हें इस गाँव से कहीं दूर भेज दिया था, तुम फिर कभी गाँव में लोट कर नहीं आये।

आरू-तो उसके बाद उस 'चंद्रा' का क्या हुआ, उसके भी वंशज आज गाँव में ही होंगे, क्या अब वह किसी को परेशान तो नहीं करते?

भीमा-नहीं बेटा जब मुझे ये बात पता चली तो मैं गाँव में आया और मैंने उस 'चंद्रा' को भगा दिया, पर मैं तुम्हें कभी वापस नहीं ला पाया और सुनो आज के लिए इतनी जानकारी काफ़ी है। बाक़ी तुम अब मेरी बताई बातों पर ग़ौर करना और अपने मन पर काबू पाने की कोशिश करना।

भीमा ने अभी अपनी बात ख़त्म की ही थी, जिस पेड़ के निचे भीमा और आरु बैठे थे, उस पेड़ के आस पास एक हलकी-सी गूंजती हुई आवाज़ आती है जो आरु से कहती है

आज तुम्हें अपने अतीत का सिर्फ़ आधा सच पता चला है, पर तुम्हारा भूतकाल और भी कई रहस्य अपने अंदर छुपाए बैठा है, आने वाले खतरों से सावधान रहना।

आरु ये आवाज़ सुन कर घबरा जाता है और वह भीमा से कहता है।

आरू-बाबा ऐसी आवाज़ तो मैंने वहाँ के जंगल में भी सुनी थी, जहाँ से मैं आया हूँ। कौन है ये और मुझे किस खतरे के बारे में सावधान कर रहा है?

आरु को समझाते हुए भीमा कहते हैं, बेटा डरो मत मैं हूँ तुम्हारे साथ, विशवास रखो तुम्हें मैं कुछ नहीं होने दूंगा, चलो अब कुटिया में चलें, तुम भी आराम कर लो और हाँ बस एक बात याद रखना, तुम्हारी ज़िन्दगी में बहुत बदलाव आने वाले हैं।

भीमा की इस बात ने आरु की बेचैनी को बढ़ा दिया था, आरु ये तो जान गया था कि उसका इस गाँव से क्या नाता है। पर उसे ये मालूम नहीं चला था कि पिछले जन्म में उसके साथ क्या हुआ था? क्या आरु का भी कोई परिवार था? और अगर था तो अब वह परिवार कहाँ है,  ये किसकी आवाज़ थी जो आरु को सावधान कर रही थी? क्या आरु के साथ हो रही घटनाओं का संबंध ‘चंद्रा’ के साथ तो नहीं है? 

 

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