भीमा ने आरु को उसके अतीत के बारे में कुछ बातें बताई थी, आरु अब जान चुका था कि आखिर क्यों उसे गुस्सा आने पर मौसम बदल गया था, गाँव के जीव जंतुओं और इन पेड़ों और फसलों के साथ वो अपने पुराने रिश्ते के बारे में भी जान चुका था. पर उसके मन में एक बेचैनी थी के ‘चंद्रा’ सिर्फ भागा था पर उसे मारा नहीं गया था. इसका मतलब था कि ये सम्भावना भी हो सकती है ‘चंद्रा’ का भी कोई परिवार हो. आरु किसी एक नतीजे पर पहुंच नहीं पा रहा था, क्योंकि उसने आवाज़ सुनी थी के भीमा ने सिर्फ आधा सच बताया है, आधा अभी भी जानना बाकी था। 

अपने ख्यालों से बाहर आने के बाद आरु श्रुति के घर उस से मिलने जाता है, वो श्रुति को उसके घर के बाहर खड़ा होकर आवाज़ लगाते हुए कहता है 

आरू-  श्रुति … श्रुति …. तुम घर हो क्या, बाहर आना। 

आरु की आवाज़ सुनकर श्रुति घर से बाहर आती है, और आरु उसे देख कर मुस्कुराते हुए कहता है । 

आरू- मुझे माफ़ कर दो श्रुति , मेरी वजह से तुम बहुत डर गई थी . 

श्रुति, आरू की तरफ दबी और घबराई हुई मुस्कुराहट के साथ देखती है और कहती है 

श्रुति- नहीं आरु गलती मेरी थी, मुझे तुम्हें ऐसे चिढ़ाना नहीं चाहिए था, मैंने मज़ाक मज़ाक में ऐसी बातें बोली थीं कि तुम्हें गुस्सा आ गया 

आरू- चलो फिर ऐसा करते हैं हम एक दूसरे को माफ़ कर देते हैं और नई दोस्ती की शुरु करते है

श्रुति- हाँ चलो आज से नई शुरु करते है  

आज की सुबह कुछ ख़ास होने वाली थी, उस बेलगाम मौसम वाली घटना को आज एक साल हो चुका था, आरू ने उम्र का एक और पड़ाव पर कर लिया था, अब उसकी उम्र 8 साल हो चुकी थी। गांव में रहने के सभी तोर तरीके सीख चुका आरु ,अब गांव की हर गली हर मौसम और हर त्यौहार से परिचित हो चुका था. पिछले एक साल तक आरु का जीवन आराम दायक रहा, गांव के वातावरण और गांव के ही खाने की बदौलत, आरु का कद गांव के बच्चों के समान ही तेज़ी से बढ़ रहा था. पिछले साल से अब तक उसे किसी भी अप्रिय घटना का सामना नहीं करना पड़ा था। इसी समय के दौरान आरु को भीमा ने बहुत सी शक्तियों से परिचित करवाया था . आरू भी मन पर संयम रखने की कला में निपुण हो रहा था, पर कोई तो ऐसी शक्ति थी जिस से सामना करने के लिए आरु को इतना सब कुछ सिखाया जा रहा था। 

आरु के लिए अब वो समय करीब आ रहा था , जब हर रहस्य की परत धीरे धीरे खुलनी शुरू होने वाली थी. श्रुति और आरु के साथ गांव के कुछ बच्चे सुबह की सैर करने निकले थे. वे सब उस जगह पहुंच जाते हैं, जहां आरु गाँव वालों को मिला था. आरु को उस जगह से कुछ दूरी पर एक जंगल नज़र आय और उसने बच्चों से कहा - 

आरू-  दोस्तों उस जंगल में चलें, देखो कितना खूबसूरत लग रहा है .

ये बात सुनते ही श्रुति आरु से कहती है. 

श्रुति- नहीं नहीं आरू वहाँ गांव का कोई भी इंसान नहीं जाता, भीमा बाबा ने सब को वहां जाने से मना किया हुआ है . 

आरू- ठीक है नहीं जाऊंगा . 

आरु उस वक़्त तो बच्चों की बात मान गया था, पर उसे वो जंगल इतना पसंद आया था , कि उसने मन बना लिया कि किसी दिन वो उस जंगल में ज़रूर जायेगा। कुछ दिनों बाद भीमा बाबा की कक्षा खत्म होने के बाद , आरु चुपके से जंगल की ओर रवाना हो गया.  गांव से बाहर निकलते ही वो तेज़ी से भागने लगा, जंगल के करीब पहुँच कर उसने देखा के जंगल और गांव के बीच में ज़मीन पर एक बहुत लम्बी रेखा थी. जो लाल रंग के धागों से बनी थी, ऐसा लग रहा था मानो ये गांव और जंगल के बीच का एक बॉर्डर था. आरु बिना देर किये इसे पार कर गया, और शायद ये आरु की बड़ी गलती साबित होने वाली थी। आरु जंगल के बड़े बड़े पेड़ों को देख रहा था, पर इन पेड़ों पर लिपटी जटा काले रंग की थी, 

कुछ पक्षी भी अब पेड़ों पर आ गए थे, ये पक्षी भी गांव के पक्षीयों की तरह रंग बिरंगे नहीं थे, सब पक्षियों का रंग भूरा और काला था. आरु को ये पक्षी बहुत सुन्दर लगे, उसने उन पक्षियों को अपनी तरफ बुलाया, पर उन पक्षियों ने आरु की बात नहीं मानी. ये आरु की ज़िन्दगी में पहली बार हुआ था, की किसी पक्षी ने उसकी बात ना मानी हो. इन पक्षियों पर भीमा की सिखाई कोई भी कला असर नहीं कर रही थी. इसी समय आरु ने ध्यान दिया की दूर से एक बच्चा उसकी तरफ घूर कर देख रहा है,

वो बच्चा इतनी तेज़ी से भागा की देखते ही देखते वो आरु के करीब आ गया, 

उसने आरु से बिना बात किये इतनी ज़ोर से धक्का दिया की आरु जंगल से बाहर की ओर उस लाल रेखा को पार करता हुआ गांव वाले इलाके में आ गया।

भीमा की दी हुई शक्तियों की वजह से आरु को कोई चोट तो नहीं आयी, पर उसने गांव में पहली बार अपने जितनी ताकत वाला बच्चा देखा था. ये ऐसा बच्चा था जिसके सर पर एक भी बाल नहीं थे ऑंखें लाल और हलकी सूजी हुई थीं, दिखने में ये बच्चा मासूम नहीं बल्कि डरावना लग रहा था।

आरु इसे देख कर घबराया नहीं बल्कि उसने खड़े होकर गुस्से से बोला . 

आरू- ओये..... कौन हो तुम… क्या तुम्हें इतनी भी तमीज़ नहीं की किसी से बेवजह लड़ना नहीं चाहिए . 

प्रेताल-  मुझे बेवजह लड़ना ही सिखाया गया है. 

आरू-  बहुत बतमीज़ हो तुम, नाम क्या है तुम्हारा . 

प्रेताल- मेरा नाम है प्रेताल

आरू- प्रेताल? भला ये कैसा नाम हुआ ? 

प्रेताल- अपने सरपंच और भीमा बाबा से कहना के आज तुम प्रेताल से मिले थे, वो तुम्हें बता देंगे मैं कौन हूँ ? 

आरू- रुक ये जो तूने मुझे धक्का मारा है, इसका हिसाब तो कर लूं!

आरु इतना कहते ही जैसे ही उस लाल डोर से फिरसे आगे बढ़ता है, जंगल का एक काला सा पक्षी आरु को पकड़ कर उस लाल डोर से वापिस गांव की और फेंक देता है. आरु अपना गुस्सा शांत रखते हुए उस पक्षी पर कोई शास्त्र नहीं चलता। वो इतना जानता था की ये कोई दूसरी शक्ति वाला इलाका है , जहां के जीव जंतु भी आरु की बात नहीं मानते। प्रेताल गुस्से से आरु को बोलता है-

प्रेताल- चला जा अपने बाबा के पास, और हाँ मेरे भेजे हुए उस काले साये से तो बच गया तू , पर अब नहीं बचेगा। 

आरु इस बात से हैरान था , कि जो काला साया आरु के पीछे पड़ा था वो प्रेताल ने भेजा था. पर ये समय अब सवाल जवाब का नहीं था. आरु को सब सवालों के जवाब भीमा से चाहिए थे।

उसने गुस्से से प्रेताल की और देखा और गाँव की और वापस चला गया. आरु उस लड़के से डरा नहीं था, वो तो बस उस पक्षी को नुकसान नहीं पहुंचना चाहता था और प्रेताल भी आरु की तरह 8 साल का बच्चा था, इस लिए आरु ने उसके साथ झगड़ने की जगह शांति का रास्ता चुना। रात हो चुकी थी, भीमा बाबा अपनी पूजा ख़त्म करके अपने कमरे में आराम कर रहे थे, आरु बाबा के पास जाकर उनसे पूछता है 

आरू- भीमा बाबा आपसे एक बात पूछनी थी। 

भीमा- हाँ पूछो बेटा।

आरू- ये प्रेताल कौन है? 

आरु की ज़ुबान से ये नाम सुनकर बाबा हैरान हो जाते हैं, और अपने बिस्तरे से उठकर आरु से पूछते हैं- 

भीमा- बेटा वो तुम्हें कहां मिला था, वो इस गांव में तो आ नहीं सकता, क्या तू आज जंगल की ओर गया था? 

आरू- हाँ मैं आज उस तरफ ही गया था। 

भीमा- हे भगवान, तुम्हें मैंने बताया था की उस तरफ कभी नहीं जाना है, क्या तुमने उस लाल धागों वाली लकीर को तो पार किया था? 

आरू- आप डांटना मत, पर सच बताऊं मैंने उसको भी पार कर लिया था। 

भीमा- ये क्या किया तुमने, अब क्या होगा इस गांव का! 

आरू- क्या मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है? 

भीमा- गलती तो कर दी है तुमने, पर गलती मेरी ही है , कि मैंने तुम्हें सारी बातें अभी तक नहीं बताई हैं. पर मेरी भी विवश हूँ, की तुम्हारी छोटी उम्र की वजह से , मैं तुम्हें हर रहस्य नहीं बता सकता। 

आरू- पर आप उस प्रेताल के बारे में तो बता ही सकते हो, हो सकता है की मैं ही उस मुसीबत से गांव वालों को बचा लूँ, आप ही तो कहते हो न मैं इस गांव का रक्षक हूँ। 

भीमा- हां बेटा, तुम रक्षक हो पर हर चीज़ का एक समय होता है, तुम्हारा वहां जाने का समय अभी आया नहीं था।

आरू- पर बाबा अब तो मैं वहां से होकर आ गया हूँ, अगर आप मुझे उसके बारे में बताओगे, तो मुझे आने वाले खतरों से सावधान रहने में मदद मिलेगी। 

आरु के बार बार कहने पर भीमा उस को प्रेताल के बारे में बताना शुरु करते हैं ? 

भीमा- प्रेताल एक ऐसा बच्चा है, जिसके नाम से ही उसकी शक्तियों और उसके स्वाभाव का अंदाज़ा लगाया जा सकता है, वो प्रेतों का भी काल है, हर प्रेत उस से डरता है और वो कभी किसी पर दया नहीं करता। 

आरू- मतलब पृथ्वी पर जो साया मेरे पीछे था, वो प्रेताल के कहने पर आया था? 

भीमा- हाँ बेटा, पर जैसे उसके लिए नकरात्मक शक्तियां काम कर रही थीं , वैसे ही तुम्हें बचाने के लिए भी कुछ अच्छी शक्तियां तुम्हारे साथ हैं, पर अब प्रेताल और तुमने एक दूसरे को आमने सामने देख लिया है, तुम ज़्यादा सावधान रहना। 

आरू- वैसे आप अभी कह रहे थे की वो किसी पर दया नहीं करता , तो उसने मुझ पर दया करके मुझे नुकसान क्यों नहीं पहुंचाया?

भीमा- उसने तुम पर दया नहीं की, उसे ये मालूम था की तुम्हारे पास भी मेरे दिए हुए कुछ शस्त्र हैं. इसलिए वो लड़ाई में तुमसे जीत नहीं सकता, पर उसने तुम्हें आने वाले समय के लिए सावधान कर दिया है. वो सब को अपना गुलाम बनाना चाहता है. 

आरू- बाबा वो अगर इतना शक्तिशाली है, तो उसके माँ बाबा भी बहुत शक्तिशाली होंगे, अगर वो सबको गुलाम बनना चाहता है, तो उसने आज तक गांव पर हमला क्यों नहीं किया? 

भीमा- वो इसलिए क्योंकि मैंने मंत्र जाप और तपो बल से उस लाल धागों वाली डोर से, उनको उसी जंगल में बंधा हुआ है, उनकी शक्तियां सिर्फ जंगल तक सीमित हैं. वो कभी उस लाल धागे को पार नहीं कर सकते थे, पर तुमने उस धागे को पार करके उनके लिए नए द्वार खोल दिए हैं.

भीमा की ये बातें सुनकर आरु को बहुत दुख हुआ, उसे लगा की उसकी इस बचकाना ज़िद की वजह से, पूरे गांव पर अब मुसीबत आने वाली है. आरु ने घबराते हुए बाबा से पूछा

आरू- बाबा अब क्या वो गांव पर हमला कर देगा? 

भीमा- नहीं बेटा पर अब तुम्हारे उस रेखा को पार करने की वजह से, उनके लिए कुछ नकारात्मक शक्तियां यहाँ भेजने का रास्ता खुल गया है, तुम्हें अब सावधान रहना होगा। 

आरु इस चेतावनी से सावधान तो हो चुका था पर , प्रेताल के बारे में और जानने के लिए आरू सवाल पूछते हुए बाबा से कहता है

आरू- बाबा इस प्रेताल के साथ और कौन कौन रहता है जंगल में?

भीमा- बेटा ये वो लोग हैं जो कभी इस गाँव में रहते थे, पर जहाँ अच्छे लोग होते हैं , वहां बुरे लोग भी होते है। इन्होंने आसानी से शक्तियां पाने के लिए देवताओं की जगह राक्षसों को पूजना शुरू कर दिया था. इसलिए इन्हें गांव से वर्षों पहले नीकाल दिया गया था. आरु अभी में तुम्हें इससे ज़्यादा और कुछ नहीं बता सकता। रात बहुत हो गयी है, तुम सो जाओ और हाँ कल से सावधान रहना।

बाबा की बातों से बेचैन आरु अपने कमरे में चला जाता है ,पर ये प्रेताल अब क्या करेगा, क्या आरु की गलती की सज़ा पुरे गांव को मिलेगी, भीमा आखिर प्रेताल की पूरी सच्चाई आरु को क्यों नहीं बता रहे थे, आगे क्या होगा इस गांव में?

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