सर्दी की शुरुआत हो चुकी थी। सभी ने हल्के गरम कपड़े पहनना शुरू कर दिया था। बिराना मोहल्ले की सुबह हर रोज की तरह ही थी। सुबह-सुबह उठकर सभी का पानी भरना, काम पर जाने के लिए तैयार होना। नौकरी लगने के बाद से संस्कृति इतनी सुबह उठती कि सबसे पहले पानी भर कर रख लेती थी। मोहल्ले की कुछ औरतें संस्कृति से बात करना चाहती थी मगर जब तक कि वह बात कर पाती संस्कृति पानी भरकर घर लौट जाती थी।
दशरथ भी रसोई में संस्कृति का हाथ बंटाता था। संस्कृति के लाख मना करने के बावजूद दशरथ रसोई से बाहर नहीं निकलता था।
दोनों ही तैयार होकर अपने-अपने काम पर निकल पड़े। सुबह के 9-00 बज चुके थे लेकिन अभी भी चारों तरफ़ हल्का कोहरा छाया हुआ था। जैसे ही संस्कृति अनाथालय पहुँची उसने देखा अनाथालय में हलचल मची है।
स्टाफ मेंबर तेज़-तेज़ कदमों से चलते हुए इधर-उधर काम में लगे हुए थे। सफाई हो रही थी, बच्चों के कमरे ठीक किए जा रहे थे, हॉल में विशेष तैयारी की जा रही थी। संस्कृति यह सब देखकर थोड़ी हैरान हुई। उसने एक स्टाफ़ को अपने पास बुलाया।
संस्कृति (हैरानी से) -आज इतनी तैयारी क्यों हो रही है? क्या कोई विशेष कार्यक्रम है?
उसने संस्कृति को जवाब दिया कि माणिक लाल साहब आ रहे हैं। जवाब सुनते ही उसे सब समझ में आ गया। वह जानती थी कि माणिक लाल चौधरी इस बचपन अनाथालय के मालिक हैं। उसने रूल बुक में माणिक लाल चौधरी के बारे में पढ़ा था। वह सभी स्टाफ को भाग-दौड़ करते हुए देखती रही।
संस्कृति (मुस्कुराते हुए, मन ही मन) - यह क्या बात हुई, अनाथालय के मालिक अपने अनाथालय को देखने आयेंगे तो ही चीज़ों को व्यवस्थित किया जाए।
कुछ लोगों का कहना था कि माणिक लाल चौधरी एक बहुत ही सख्त और अनुशासनप्रिय व्यक्ति हैं, तो कुछ उन्हें एक उदार और दिलदार इंसान बताते थे।
थोड़ी देर बाद, एक काली SUV गाड़ी अनाथालय के मेन गेट पर आकर रुकी। लगभग 50-55 वर्ष का एक व्यक्ति गाड़ी से उतरा, जिनके चेहरे पर एक सख्त लेकिन प्रभावशाली भाव था, यही थे माणिक लाल चौधरी। सभी स्टाफ ने उनका स्वागत किया, संस्कृति भी एक तरफ़ खड़ी थी लेकिन उसके मन में बाकियों जितनी घबराहट नहीं थी। माणिक लाल ने एक गहरी नज़र सभी पर डाली और फिर सीधे हॉल की तरफ़ बढ़ गए। उनके कदमों में आत्मविश्वास था और उनकी उपस्थिति से सभी को एक अनकहा दबाव महसूस हो रहा था। एक स्टॉफ ने उन्हें बच्चों की पढ़ाई के प्रोग्रेस के बारे में बताया। माणिक लाल ने ध्यान से सुना, सिर हिलाते रहे, इस बीच उनकी नज़र संस्कृति पर पड़ी।
माणिक लाल (गंभीर आवाज़ में)- तुम हमारी नई केयरटेकर हो, है ना?
संस्कृति (मुस्कुराते हुए) - जी, सर। मेरा नाम संस्कृति है। मैंने कुछ ही दिन पहले यहाँ जॉइन किया है।
माणिक लाल (गंभीर आवाज़ में) - अच्छा! तुम ही संस्कृति हो। बढ़िया, बहुत बढ़िया।
माणिक लाल ने उसे कुछ क्षणों तक देखा, जैसे उसकी आँखों में झांकते हुए उसकी सच्चाई को परखने की कोशिश कर रहे हों।
माणिक लाल - अच्छा, संस्कृति। उम्मीद है कि तुम यहाँ के नियम और बच्चों की ज़िम्मेदारी को समझती होगी। यहाँ काम करना उतना आसान नहीं है।
संस्कृति (विनम्रता से) - जी सर, मैं अपनी पूरी कोशिश कर रही हूँ।
अगले पल माणिक लाल बच्चों की ओर मुड़े, जो उनकी उपस्थिति से थोड़ा डरे हुए लग रहे थे। माणिक लाल ने बच्चों से कुछ सवाल पूछे, उनमें से कुछ ने डरते-डरते जवाब दिए। संस्कृति को यह देखकर अच्छा नहीं लगा कि बच्चे उनसे इतना ज़्यादा डरे हुए थे। उसे लग रहा था कि बच्चों के डरने से ज़्यादा ज़रूरी है कि बच्चें माणिक लाल को अपना दोस्त समझें लेकिन वह जानती थी कि यह कहना इतना आसान नहीं था। कुछ देर बाद, माणिक लाल ने सभी स्टाफ को हॉल में बुलाया। उन्होंने अनाथालय के भविष्य की योजनाओं और बच्चों के लिए नए कार्यक्रमों के बारे में बात की। उनके शब्दों में सख्ती तो थी, लेकिन एक गहरी सोच भी झलक रही थी। वे बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए परेशान थे और चाहते थे कि हर बच्चा यहाँ सुरक्षित और ख़ुश रहे। बहुत सारे स्टाफ इस तरीके का जवाब दे रहे थे जिससे माणिक लाल ख़ुश हो जाए। कुछ स्टाफ चुप भी थे जिनमें से संस्कृति भी एक थी। वह सभी की बातें ध्यान से सुन रही थी, लेकिन एक बार भी उसने अपनी बात नहीं रखी। मेघा भी बीच-बीच में कुछ सवाल पूछ लेती थी। थोड़ी बातचीत के बाद माणिक लाल की नज़र फिर से संस्कृति की तरफ़ गई।
माणिक लाल (उत्सुकता से) - संस्कृति, तुम यहाँ नई हो, लेकिन मैं जानना चाहता हूँ कि इन बच्चों के बारे में तुम क्या सोचती हो?
संस्कृति इस सवाल से चौंक गई। उसके साथ-साथ बाकी स्टाफ भी चौंक गए। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि माणिक लाल किसी की राय में इतनी रुचि लेंगे।
संस्कृति (सोचकर, गंभीरता से) - सर, मेरा मानना है कि बच्चों को प्यार और समझ की ज़्यादा ज़रूरत होती है। सख्ती भी ज़रूरी है, लेकिन कभी-कभी दोस्ती से भी बड़े बदलाव लाए जा सकते हैं।
संस्कृति के जवाब के बाद थोड़ी देर की चुप्पी रही।
माणिक लाल (गंभीरता से) - बचपन के बाकी सदस्यों को क्या लगता है, बाकी भी ऐसा ही सोचते हैं जैसा संस्कृत सोचती है?
किसी ने भी माणिक लाल के सवाल का जवाब नहीं दिया। वह थोड़ी देर इधर-उधर देखते रहें। संस्कृति की तरफ़ मुड़कर ध्यान से देखा। जैसे उन्होंने उसमें कुछ ख़ास देख लिया हो। थोड़ी देर की चुप्पी के बाद बिना कुछ कहे ही वे वहाँ से चले गयें। उनके जाते ही बाकी सभी स्टाफ संस्कृति की तरफ़ देखने लगें। सभी उसे ऐसे घूर रहे थे मानों संस्कृति ने कोई अपराध कर दिया हो। एक स्टाफ ने हिम्मत करके संस्कृति से कहा कि आज तक किसी स्टाफ ने माणिक लाल से अनाथालय के लिए बने नियम कानून पर किसी भी तरीके का सवाल नहीं किया था वह पहली इंसान है जिसने सीधे-सीधे अनाथालय के बने नियम पर सवाल खड़ा किया है और उसके बदलाव की बात की है।
संस्कृति (सहजता से) - मुझे यह समझ में नहीं आ रहा कि इस अनाथालय के हित जिस भी बदलाव की ज़रूरत पड़े उसकी बात क्यों ना की जाए? आख़िरकार इस अनाथालय की बेहतरी की ज़िम्मेदारी हम सब की है।
माणिक लाल के जाने के बाद पूरे अनाथालय में सिर्फ़ संस्कृति के बारे में चर्चा होती रही लेकिन उसके मन में कुछ और ही सवाल चल रहे थे।
संस्कृति (मन ही मन) - उन्हें मेरे बारे में मालूम था। इससे तो यह साबित होता है कि वह अपने अनाथालय के सभी स्टाफ के बारे में ख़बर रखते हैं। अगर वह सारी ख़बर रखते हैं तो अनाथालय के रखरखाव की ख़बर भी उन्हें होती ही होगी। लोग जिस तरीके की बातें उनके बारे में कहते रहते हैं वैसा तो कुछ भी मालूम नहीं पड़ा आज।
आज माणिक लाल के आने की वज़ह से सभी बच्चों को अच्छे से तैयार किया गया था सभी ने अच्छे ढंग से कपड़े पहन रखे थे। लंच में भी अच्छे पकवान बने थे। संस्कृति ने जब यह बदलाव देखा तो उसे और हैरानी हुई।
संस्कृति (मन ही मन) - अगर आज उनके आने की वज़ह से खाने में भी बदलाव है, इसका मतलब है कि हर दिन इतना ही अच्छा खाना बच्चों को दिया जा सकता है, मगर दिया नहीं जाता है।
संस्कृति को सोच में पड़ा देख, एक स्टाफ ने उसे खाने के लिए पूछा। एक पल के लिए उसने सोचा कि उस स्टाफ से ही पूछ ले कि आख़िर हर दिन ऐसा खाना क्यों नहीं बनता है, लेकिन उसने इस बात को जाने दिया। उसने बस उस स्टाफ की तरफ़ एक नज़र देखा। वह स्टाफ संस्कृति से नज़रें नहीं मिला पाया। शायद उसे यह समझ में आ गया कि संस्कृति खाने को देखकर कुछ सोच रही है। संस्कृति ने जब से माणिक लाल से सीधे-सीधे बात की थी, तब से हर स्टाफ उससे थोड़ा-सा डरने लगा था। स्टाफ ने बाद में संस्कृति से कहा कि आज खाना इसलिए अच्छा बना है क्योंकि हो सकता था कि माणिक लाल साहब बच्चों के साथ ही खाना खाते। अब हर दिन तो इतने अच्छे पकवान बनाने के पैसे नहीं मिलते हैं, लेकिन उनके सामने अगर हर दिन के जैसा खाना मिलता तो उन्हें बुरा लगता। वैसे भी, हर दिन का नॉर्मल खाना भी तो पौष्टिक ही होता है बच्चों के लिए। संस्कृति ने उस स्टाफ को कोई जवाब नहीं दिया, बस चुपचाप खाना खाना शुरू कर दिया और मन ही मन बहुत सी बातें सोचती रही। उसके साथ-साथ बाकी स्टाफ ने भी खाना खाया और फिर ऑफिस में लौट गए। दोपहर के बाद, जब बच्चे खेलने के लिए मैदान में आए, तो वे बहुत ख़ुश नज़र आ रहे थे। संस्कृति बेंच पर बैठकर उन्हें खेलते हुए देख रही थी। उन्हें ख़ुश देखकर वह भी मुस्कुराने लगी। एक छोटा बच्चा खेल छोड़कर दौड़ते हुए उसके पास आया और अपने साथ खेलने के लिए ज़िद करने लगा। बच्चों ने बड़ी मासूमियत से संस्कृति से कहा कि अगर वह उनके साथ खेलेगी, तो अगली बार जब उसे खाने में एक गुलाब जामुन मिलेगा, तो वह उसे दे देगा। यह सुनकर संस्कृति की आँखों में आँसूं आ गए, लेकिन उसने अपने आप को रोक लिया। बच्चों के पीछे-पीछे बाकी बच्चे भी आ गए और सब ने संस्कृति का हाथ पकड़कर उसे खेलने के लिए कहा। संस्कृति बच्चों के ज़िद के आगे हार गई और वह उनके साथ खेलने लगी।
खेलने के बाद, जब वह घर लौटने लगी, तो फिर से सभी बच्चों ने उसे बाय किया। एक तरफ़, जहाँ बच्चे अच्छे खाने से ख़ुश थे, वहीं दूसरी तरफ़ अनाथालय के बाकी स्टाफ न जाने क्यों संस्कृति से डरे हुए मालूम पड़ रहे थे। संस्कृति को बाकी स्टाफ के व्यवहार से यह समझ में आ रहा था कि सुबह जिस तरीके से सभी उससे मिल रहे थे, इस समय उसमें बदलाव आ चुका है।
घर लौटकर, संस्कृति ने अनाथालय में हुई सारी बातें दशरथ को बताई।
दशरथ (समझाते हुए) - संस्कृति, यह दुनिया बेईमानों से भरी पड़ी है लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं है कि हम अपनी ईमानदारी छोड़ दें। जो जैसा करते हैं, उन्हें वैसा करने दो। तुम्हारे हाथ में जो है, उसे बड़ी ईमानदारी से निभाना।
संस्कृति अपने पिता को ध्यान से सुनती रही। वो भी अपने काम को अच्छी तरह से करने के लिए तैयार थी। क्या उसकी ईमानदारी उसे अनाथालय में टिकने में मदद करेगी या बाक़ियों के किसी साजिश का हिस्सा बन जाएगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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