शुरुआत के दिनों में संस्कृति को अनाथालय के नियमों की उतनी जानकारी नहीं दी गई थी। ऑफिस से बस सलाह थी कि वह बच्चों से दोस्ती करें। उसे बताया गया था कि एक हफ़्ते के बाद अनाथालय के बाकी नियमों के बारे में पूरी जानकारी दे दी जाएगी। संस्कृति लगातार बच्चों से घुलने मिलने की कोशिश करती रही और इसमें वह सफल भी होती रही। बाकी लोग बच्चों को डराते-धमकाते थे, इसीलिए बच्चे उनके पास बहुत कम शिकायतें लेकर जाते थे। बहुत से बच्चे कितनी भी परेशानी होने पर भी किसी से उसके बारे में डर के कारण बात ही नहीं करते थें। संस्कृति सभी बच्चों से प्यार से बात करती थी इसलिए एक हफ़्ते में ही सारे बच्चे हर तरीके की शिकायतें लेकर उसके पास पहुँचने लगे थे। संस्कृति उनकी परेशानियों को दूर करने की बहुत कोशिश करती थी। उसे बच्चों की समस्या सुलझाते देख ऑफिस स्टाफ काफ़ी बार कह चुके थे कि इतने प्यार से बच्चों को हैंडल करना उसे आगे चलकर परेशानी में डालेगा। बच्चे जितना प्यार करेंगे उतनी ही मनमानी करेंगे। संस्कृति जवाब में सबसे कहती कि आगे की बातें आगे देखी जायेंगी। अभी तक तो किसी भी बच्चे ने ऐसी कोई भी हरकत नहीं की थी जिससे उसे अपने प्यार से बात करने के तरीके बदलने पड़े। एक हफ़्ता बीतने के बाद संस्कृति जब ऑफिस में पहुँची तब एक स्टाफ ने उसे एक बुकलेट दिया।  

संस्कृति (मन ही मन) - बचपन अनाथालय की रूल बुक, देखते हैं क्या है इसमें?

संस्कृति ने मुस्कुराते हुए उस स्टाफ को धन्यवाद दिया और उस बुकलेट को खोलकर पढ़ने लगी। उस बुकलेट में बचपन अनाथालय को स्थापित करने के उद्देश्य लिखे थे। अनाथालय के बनने से लेकर अब तक की उपलब्धियां लिखी थी। साथ में अनाथालय में काम करने के नियम कानून लिखे थे। बच्चों के पढ़ाने के तरीके, खाने की समय सारणी, हेल्थ चेकअप, एग्जाम्स, एजुकेशनल टूर, खेलने का समय, सभी के बारे में एक-एक कर विस्तार से लिखा हुआ था।

संस्कृति (गहरी साँस लेते हुए) - यह नियम कानून तो थोड़े से सख्त मालूम पड़ते हैं। बच्चों के लिए थोड़ी नरमी तो बरती जा सकती है। आख़िर बच्चे हैं कोई क़ैदी तो नहीं।

उसने बुकलेट साइड में रखा ही था कि एक बच्चा दौड़ते-दौड़ते ऑफिस में पहुँचा। उसने बताया कि दो बच्चे आपस में लड़ रहे हैं। संस्कृति दौड़कर उस बच्चे के साथ हॉल में पहुँची। उसने देखा कि सामने दो बच्चे आपस में लड़ाई कर रहे हैं। एक बच्चे ने दूसरे का बालों को जोर से पकड़ रखा है।

संस्कृति (गुस्सा करते हुए) - लड़ना बंद करो, यह क्या तरीका है?

संस्कृति के आने पर भी दोनों ने लड़ना बंद नहीं किया। वो उन दोनों का झगड़ा छुड़ाती रही।  कुछ बच्चों ने एक साथ मिलकर उन दोनों को अलग करने की कोशिश की फिर जाकर दोनों अलग हुए। तब तक ऑफिस से दो और स्टाफ भी उस हॉल में आ चुके थे। उनमें से एक स्टाफ ने बताया कि दोनों अनाथालय के सबसे बदमाश बच्चें हैं। यह दोनों किसी की नहीं सुनते और इन्हें बात- बात पर गुस्सा भी बहुत आता है।

संस्कृति (थोड़ा गुस्से में) - तुम सब बताओ, क्या यह दोनों हमेशा लड़ते रहते हैं?

उसके पूछने पर भी किसी बच्चे ने कुछ भी नहीं कहा। कुछ बच्चे भीड़ में ही जवाब देने से बचने के लिए छुपने लगे। संस्कृति ने उन बच्चों को डाँटते हुए फिर से दोनों बच्चों के बारे में पूछा लेकिन किसी ने कोई भी जवाब नहीं दिया। दोनों बच्चे लड़ने के बाद बहुत हाँफ रहे थें। संस्कृति को थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था लेकिन उसने अपने गुस्से को काबू किया और उन दोनों को लेकर ऑफिस में चली गई। दोनों अभी भी एक-दूसरे को घूर रहे थें।

संस्कृति (डाँटते हुए) - मेरी नज़र तुम दोनों पर ही है। अभी तुम दोनों को बताती हूँ, तुम लोगों से जितना प्यार करो उतना सिर पर चढ़ जाते हो।

संस्कृति को गुस्सा करते देख एक-दो स्टाफ मुस्कुराने लगें। आख़िरकार सभी ने उसे गुस्सा करते हुए देख लिया था। एक स्टाफ ने कहा “आपसे पहले ही कहा था ये बच्चे ऐसे मानने वाले नहीं है, इसीलिए तो हमारे अनाथालय के नियम कानून इतने सख्त बनाए गए हैं।” संस्कृति अभी उन दोनों बच्चों पर गुस्सा थी लेकिन जैसे ही उसने स्टाफ की बात सुनी, वो बच्चों की तरफ़ मुड़ गई।

संस्कृति (झुंझलाते हुए) - मैं मानती हूँ कि बच्चे बदमाश हैं, लेकिन इतने भी नहीं है कि उनके साथ क़ैदियों की तरह सुलूक किया जाए। बिना सज़ा दिए हुए भी इन्हें सुधारा जा सकता है।

थोड़ी देर बीतने के बाद संस्कृति ने ख़ुद को शांत किया और फिर से उन दोनों में से एक बच्चे के पास गई।

संस्कृति (प्यार से) - मुझे यह बताओ तुम दोनों क्यों लड़ाई कर रहे थे? लड़ाई करनी अच्छी बात है क्या? देखो कैसे सब तुम दोनों के बारे में बात कर रहे हैं, कह रहे हैं “यह दोनों बहुत बदमाश बच्चे हैं, कभी नहीं सुधर सकते।” मुझे तो लगता है कि तुम दोनों बहुत अच्छे बच्चे हो। बताओ क्या हुआ था? किसने लड़ाई शुरू की।

वह बच्चा गुस्से में अभी भी जोर-जोर की साँसेंं ले रहा था। संस्कृति ने उसके पीठ को सहलाया, थोड़ा-सा दुलार किया फिर पानी पिलाया। जब वह थोड़ा नॉर्मल हुआ तब उसने ख़ुद ही बताना शुरू किया कि दूसरे बच्चे ने उसके माँ-बाप को लेकर गंदी गाली दी थी। यह कहते- कहते वह बच्चा रोने लगा।

संस्कृति (दुलार करते हुए) - ऐसे नहीं रोते, मैं उसे समझाऊंगी वह तुम्हारे साथ कभी झगड़ा नहीं करेगा।

थोड़ी देर बाद संस्कृति दूसरे लड़के के पास गई।

संस्कृति (प्यार से) - तुम दोनों आपस में क्यों लड़ रहे थे? लड़ाई किसने शुरू की थी?

उस लड़के ने उसे कोई जवाब नहीं दिया। संस्कृत ने बहुत कोशिश की मगर उस लड़के ने बात नहीं की। फिर भी संस्कृति ने उन दोनों को एक-दूसरे से सॉरी बुलवाया, हाथ मिलवाया और आगे से झगड़ा ना करने का वादा लिया। उन दोनों बच्चों के जाने के बाद मेघा दूसरे हॉल से परेशान होकर वापस आई। उसके आते ही एक स्टाफ ने उसे दोनों बच्चों की लड़ाई के बारे में बता दिया। तब मेघा ने अपने हॉल के बच्चों के बदमाशी के बारे में संस्कृति को बताया। मेघा ने संस्कृति से अनाथालय के रूल बुक को पढ़ने के बारे में पूछा।

संस्कृति (उखड़े मन से) - हाँ, मैंने पढ़ तो लिया है सारे नियम। अब इतने सालों से यही नियम है तो मानना तो पड़ेगा। अगर हम थोडा सोचें तो कुछ नियम बदले जा सकते हैं। अब इन्होंने बच्चों के पनिशमेंट में लिखा है कि खाना न मिलने का डर दिखाओ, मार्क्स कम आयेंगे तो कोई उन्हें गोद नहीं लेगा..  कहीं नौकरी नहीं मिलेगी।

इन सारी बातों के बावजूद संस्कृति ने एक बार फिर रुल बुक पढ़ा। हर चीज़ का समय पर होना ही सबसे पहली शर्त थी। चाहे फिर वह स्टाफ का अनाथालय में आना या बच्चों के सोने का समय। स्टाफ के छुट्टियों की बात भी लिखी थी। महीने में कम से कम 24 दिन की अटेंडेंस होनी ही चाहिए थी। अगर आपको किसी दिन छुट्टी चाहिए तो बाकी बचे इन्हीं 6 दिनों में से आप छुट्टी ले सकते हैं। संस्कृति सभी नियमों को समझने के बाद उनके बारे में सोचती रही। फिर उसने सारी चीज़ों को हटाकर बच्चों के बारे में सोचना शुरू किया। उसे अभी भी उस बच्चे की बात याद आ रही थी जिसने अपने दोस्त से गाली देने की वज़ह से मारपीट की थी।

संस्कृति (मन ही मन) - बिना माँ-बाप के बच्चों पर क्या बितती होगी? हमें जो ज़िम्मेदारी दी गई है हम इसे अच्छी तरह से निभा भी लें फिर भी इनके माँ-बाप की कमी को तो पूरा नहीं कर सकतें। वह कैसे माँ-बाप होते हैं जो अपने बच्चों को ऐसे अनाथ छोड़ देते हैं, ज़रा-सी भी दया नहीं आती? अपने बच्चों को ऐसे लावारिस छोड़ते समय उनकी ममता कहाँ चली जाती है?

ऐसे ना जाने कितने सवाल संस्कृति के मन में चलते रहे। जब वह घर लौटी तो उसके चेहरे पर थोड़ी-सी उदासी थी। दशरथ हर दिन की तरह संस्कृति से पहले घर वापस आ चुका था।

दशरथ (हैरानी में) - क्या हुआ बच्चे, इतने परेशान हो? अनाथालय में कुछ हुआ क्या, किसी ने कुछ कहा तुम्हें?

संस्कृति (उदासी से) - नहीं, पापा! किसी ने कुछ कहा तो नहीं, बस मैं अनाथालय के सभी बच्चों के बारे में सोच रही थी। उनके माँ-बाप कितने निर्दयी होते हैं, जो अपने बच्चों को ऐसे लावारिस छोड़ देते हैं?  उनका दिल भी कैसा होता होगा जो अपने जिगर के टुकड़े को ऐसे छोड़ देता है?

इस सवाल को सुनकर दशरथ थोड़ी देर के लिए चुप हो गया। ऐसा लगा मानों दशरथ के दिल पर किसी बात का बोझ पड़ा हो।

दशरथ (संभालते हुए) - अनाथालय में एक ही तरह के बच्चे थोड़े ही ना होते हैं, कुछ ऐसे भी बच्चे होते हैं जिनके माता-पिता किसी एक्सीडेंट में गुज़र गए हो। ऐसे भी बच्चे होते हैं जिनके माता-पिता सक्षम ना हो उनकी पढ़ाई के लिए और…

दशरथ अपनी बात कहते-कहते फिर से रुक गया। संस्कृति उसकी तरफ़ एकटक देखती रही।

दशरथ (काँपती आवाज़ में) - ऐसे भी बच्चे होते हैं जो किसी भीड़ में गुम हो गए हो, तुमने कभी सुना नहीं कुंभ के मेले में तो बहुत सारे बच्चे अपने माँ-बाप से बिछड़ जाते हैं और फिर कभी वापस मिल नहीं पाते, ऐसे खोये बच्चे भी तो अनाथालय में होते हैं।

उस रात संस्कृति सभी बच्चों के माता-पिता के बारे में सोचती रही। उस रात उसे कई सपने आए। उस सपने में कभी किसी माँ-बाप को सबकी नज़र बचाते हुए अपने बच्चों को सड़क पर छोड़ते देखा। किसी माँ-बाप को उसके बच्चे से कुंभ के मेले में बिछड़ते देखा। किसी माँ-बाप को किसी एक्सीडेंट में दम तोड़ते देखा। किसी बच्चे को किसी भीड़ में पापा-पापा चिल्लाते हुए देखा। सपने में वो बहुत डरी हुई थी और जब डर के मारे उसकी नींद खुली तो वो पसीने से तर-बतर थी। उसके बाद उसे उस रात नींद नहीं आई।

संस्कृति ने अपने काम को बेहतर ढंग से करना शुरू कर दिया था। उसे उसका काम किस ओर ले जायेगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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