सभी बच्चों ने संस्कृति का बहुत ही प्यार से स्वागत किया। यह पहली बार था जब संस्कृति को अपने पिता और छोटी बहनों के अलावा किसी से इतना प्यार मिला हो। सभी बच्चों को पहले ही बता दिया गया था कि संस्कृति और मेघा अब से उनकी केयरटेकर है। बच्चों के रहने के दो हॉल थे, दोनों ही हॉल में बच्चे थे। इस समय दूसरे हॉल में मेघा का स्वागत हो रहा था। बच्चों ने उसका भी स्वागत बहुत प्यार से किया। उस कमरे की आवाज़ भी संस्कृति को सुनाई पड़ रही थी। बच्चों को उनके नाम तक पता है। जो बच्चे संस्कृति का नाम सही से नहीं ले पा रहे थे, वो उसे शक्ति दीदी कह रहे थे।

बच्चों की तोतली आवाज़ से अपना नाम सुनना संस्कृति को ख़ुशी दे रहा था। उस हॉल में पचास बेड लगे थे। संस्कृति के स्वागत के बाद एक-एक कर सभी बच्चे अपने बेड पर चले गए।

संस्कृति (संबोधित करते हुए) - आप सभी को मेरा नाम तो पहले से पता है, फिर भी मैं अपना इन्ट्रोडक्शन दूँगी। मेरा नाम संस्कृति है और मैं यहाँ से थोड़ी दूर बिराना मोहल्ले में अपने पापा के साथ रहती हूँ। आज से मैं आपकी केयरटेकर हूँ। आप में से कभी भी किसी को कोई परेशानी हो तो आप मुझसे कह सकते हैं।

संस्कृति का इतना कहना ही था कि कुछ बच्चों ने अपने दोस्तों के बारे में कंप्लेन करना शुरू कर दिया। किसी ने कहा उसके दोस्त ने उसे चिमटी काटी है। किसी ने कहना शुरू किया कि उसके दोस्त ने उसकी पेंसिल रख ली है। किसी ने कंप्लेन किया कि उसके दोस्त ने उसे थप्पड़ मारा है। ऐसे ही ढेर सारे कंप्लेन के साथ बच्चों के शोर से पूरा हॉल गूंजने लगा।

संस्कृति को समझ नहीं आया कि बच्चों को चुप करने के लिए क्या करें?

संस्कृति (तेज़ आवाज़ में) - शांत हो जाओ सभी। सब के सब एक साथ बोलोगे तो कैसे सुनूंगी मैं?

संस्कृति की तेज़ आवाज़ सुनकर बच्चे चुप हो गए। एक-एक कर अपने दोस्तों के बारे में कंप्लेंट करने लगें, थोड़ी देर बीता भी नहीं था कि बच्चे फिर से शोर करने लगें। वह कितनी भी कोशिश कर रही थी लेकिन बच्चे मान नहीं रहे थे। उसने कभी नहीं सोचा था कि वह बच्चों पर गुस्सा करेगी लेकिन उनके बार-बार शोर करने पर उसे अंदर ही अंदर गुस्सा आ रहा था।  

इससे पहले कि वह बच्चों से गुस्सा कर बात करती, अनाथालय का एक और स्टाफ हॉल में आया।

उसके आते ही बच्चे अपनी अपनी जगह बैठ गए और चुप हो गए।

उस स्टाफ ने संस्कृति को मुस्कुरा कर देखा और बच्चों को चुप रहने की हिदायत दी। उसने उन्हें समझाया कि वह संस्कृति को परेशान ना करें।

जैसे-तैसे संस्कृति ने सारे बच्चों का नाम एक पेपर पर लिखा और फिर वापस ऑफिस में चली गई। ऑफिस में पहुँचकर उसने राहत की साँस ली। कुछ और स्टाफ भी पहले से ऑफिस में मौजूद थे। वे सभी संस्कृति के चेहरे का उड़ा हुआ रंग देखकर मुस्कुराने लगें। उनमें से एक ने संस्कृति से कहा कि बच्चों को संभालना इतना आसान भी नहीं है।

थोड़ी देर बाद मेघा भी बच्चों से मिलकर वापस आई। वह भी बहुत परेशान दिखाई दे रही थी। उसे भी देखकर बाकी स्टाफ़ ने वही बात कही जो संस्कृति से कह रहे थे। संस्कृति के चेहरे को देखकर ऐसा लग रहा था मानों वह पहले ही दिन बच्चों से परेशान हो गई हो।

संस्कृति (मन ही मन) - अब इन बच्चों को संभालने के लिए क्या करूँ मैं? ये तो ज़रा भी बात नहीं मानते।

एक स्टाफ ने संस्कृति को समझाया कि बच्चों को संभालने के लिए थोड़ा डांटना-डपटना ज़रूरी है। अगर बच्चों को डरा कर नहीं रखेंगे तो उन्हे संभालना मुश्किल हो जाएग। बच्चे इतने बदमाश है कि आपस में झगड़ने लगते हैं। बच्चों को डरा के रखने वाली बात तो संस्कृति को पसंद नहीं आई।

संस्कृति (समझाते हुए) - मैं यह मानती हूँ कि बच्चे बदमाश है और हमारी बात नहीं सुन रहे हैं, लेकिन उनको संभालने के लिए ज़रूरी तो नहीं कि उन्हें डराया जाए। अगर हम उन्हें डरा कर रखेंगे तो उनका स्वभाव और भी ज़्यादा वाइलन्ट हो सकता है। उनसे बात करने के लिए उनसे दोस्ती करने के लिए हमें थोड़ा-सा समय और चाहिए होगा और मुझे पक्का यक़ीन है कि बच्चे हमारी बात सुनेंगे। डर के बदले हमें उनसे प्यार से बात करनी होगी।

संस्कृति की बात सुनकर बाकी स्टाफ हँसने लगें। उनमें से एक ने उसे जवाब दिया कि चाहे वह कितनी भी कोशिश कर ले, उन बच्चों से कितना भी प्यार कर ले, वह बच्चे बिना डर के संभलने वाले नहीं हैं।

मेघा को भी लगा कि बच्चों को संभालने के लिए थोड़ा बहुत डराना-धमकाना तो ज़रूरी है। नहीं तो बच्चे अपनी मनमानी करके कुछ भी उटपटांग हरकतें कर सकते हैं।

संस्कृति (मन ही मन) - चाहे कुछ भी हो जाए, मैं बच्चों को डरा-धमका कर तो बात नहीं करूँगी। उन्हें प्यार से दोस्त बनाया जा सकता है।

फिर संस्कृति जब शाम में जब अपने घर लौट रही थी तब कुछ बच्चों ने दूर से ही हाथ हिलाते हुए बाय-बाय किया। यह वही बच्चे थे जो संस्कृति से मिलने पर शोरगुल मचा रहे थे।

संस्कृति (मन ही मन) - इन बच्चों को धमकाने की नहीं प्यार से बात करने की ज़रूरत है। कितने मासूम हैं ये बच्चे।

अनाथालय से निकलने के बाद घर पहुँचने तक, संस्कृती के मन में बच्चों से किस तरीके से बात की जाए, यही उधेड़बुन चलती रही। रात को खाते समय दशरथ ने पूरे दिन के बारे में संस्कृति से पूछा। उसने बच्चों के बारे में अपने पिता से सब कुछ बता दिया।

दशरथ (सोचते हुए) - संस्कृति, एक बात याद रखना, बच्चे वह नहीं करते जो आप उनसे करने के लिए कहते हैं, बच्चे वही करते हैं जो आपको करते हुए देखते हैं। अगर बच्चों ने आपको बुरा करते हुए देखा तो वह वही सीखेंगे अगर आपको अच्छा करते हुए देखेंगे तो बिना सिखाये ही वह अच्छा करना सीखेंगे। हमें बच्चों को सिखाने से ज़्यादा ज़रूरी है कि हम उनके सामने वही करें जो हम चाहते हैं कि वह करें।

यह सुनकर मानों संस्कृति को एक नई दिशा मिल गई हो, जैसे उसके काम को करने की कोई गुत्थी सुलझ गयी हो।

संस्कृति (ख़ुश होकर) - पापा! आज की बात से मैं बहुत परेशान हो गई थी लेकिन आपकी बात सुनकर मुझे एक नई उम्मीद मिल गई।

दशरथ - हाँ और यही ज़रूरी है। बच्चों से जितना प्यार करोगे वह उतनी ही तुम्हारी बात सुनेंगे। वैसे भी आज तो पहला ही दिन था तुम्हारा, इतनी जल्दी बच्चे थोड़ी-ना तुम्हारी बात सुनेंगे।

दशरथ (हँसते हुए) - बचपन में तुम चारों भी कहाँ मेरी बात सुनते थे। कितने प्यार से समझाने के बाद बात मानते थे। वैसे ही तुम भी बच्चों से प्यार से बात करना वह तुम्हारी ज़रूर सुनेंगे।

अगले दिन संस्कृति जब अनाथालय पहुँची तो सबसे पहले लाइब्रेरी गई। वह लाइब्रेरी पहुँचकर बच्चों को गेम के ज़रिये पढ़ाने वाली किताब ढूंढने लगी। उसे एक पतली सी किताब मिली, उसमें से उसने बच्चों के साथ खेलने की कुछ खेल को नोट कर लिया और फिर वो वापस ऑफिस में आ गई, तब तक मेघा भी आ चुकी थी।

मेघा के चेहरे से बच्चों की परेशानी अभी भी नहीं उतरी थी। संस्कृति ने मेघा से ठीक वही बात कही जो उसके पिता ने रात को उससे कही थी। बच्चों से प्यार से बात करने की बात।

जैसे ही संस्कृति बच्चों के हॉल में पहुँची बच्चों ने गुड मॉर्निंग बोलने के साथ ही शोरगुल करना शुरू कर दिया।

इस बार संस्कृति ने बच्चों को डांटा नहीं। वह भी बच्चों के साथ शोरगुल करने लगी। उसे अपनी तरह शोरगुल करते देख बच्चे हँसने लगे। थोड़ी देर तक संस्कृती उन बच्चों के साथ खेलती रही। खेलने के बाद संस्कृति ने थकने का नाटक किया और बच्चों के साथ ही बैठ गई।

संस्कृति (समझाते हुए) - ऐसा करते हैं सभी लोग एक घेरा बनाते हैं, सभी एक गोल घेरे में बैठेंगे।

संस्कृति के कहते हैं बच्चे तुरंत ही घेरा बनाने लगें और देखते-देखते घेरा बन गया।

संस्कृति (मायूस होते हुए) - मैं कल से तुम लोगों से मिलने नहीं आऊंगी क्योंकि तुम लोग बहुत शोरगुल करते हो।

उसकी बात सुनते ही सारे बच्चे बोलने लगें “नहीं,नहीं हम शोरगुल नहीं करेंगे, आप प्लीज़ मत जाओ। ”

संस्कृति (उत्साहित होते हुए) - तुम लोग सच में चाहते हो कि मैं नहीं जाऊं तो मेरी बात सुननी पड़ेगी।

संस्कृति (समझाते हुए) - अच्छा ठीक है, तो अब से हम ऐसा करते हैं कि साथ में हल्ला भी करेंगे लेकिन बातें भी करेंगे। हम में से कोई भी अगर “सा रे गा मा” बोलता है तो बाक़ी एक साथ बोलेंगे “पा……..” और उसके बाद जिसको बोलने के लिए कहाँ जाए सिर्फ़ वहीं बोलेगा।

सभी बच्चों ने एक साथ संस्कृति की बात मान ली।

संस्कृति (ख़ुश होते हुए) - सा,रे,गा,मा

संस्कृति ने लाइब्रेरी में जो किताब पढ़ी थी उसमें बच्चों के लिए कुछ खेल थे। उसने वह खेल बच्चों के साथ खेले। बच्चों ने मस्ती के साथ सारे खेल खेलें। बाहर से देखने पर कोई कह ही नहीं सकता था कि यह वही बच्चे हैं जिन्होंने कल संस्कृति के नाक में दम कर दिया था। साथ में यह भी नहीं कह सकते थे की संस्कृति इन बच्चों से सिर्फ़ दूसरे दिन मिल रही है। बच्चों के साथ खेलने के बाद जब संस्कृति वापस ऑफिस में आई तो उसके चेहरे पर ख़ुशी झलक रही थी। जैसे कि वह अपने बचपन से अभी-अभी लौट कर आई थी। उसे देखते ही एक स्टाफ ने कहा कि आज हॉल से बच्चों के खेलने की आवाज़ आ रही थी।

संस्कृति (हँसते हुए) - सिर्फ़ बच्चों के खेलने की आवाज़ थोड़े ही न थी, मैं भी तो खेल रही थी।

उसकी बात सुनकर बाकी स्टाफ भी हँसने लगे। शाम को जब संस्कृति घर लौटने लगी तब बच्चों ने हाथ हिला कर बाय कहा। उसमें से एक बच्चे ने चिल्लाते हुए कहा “आप हमें छोड़कर तो नहीं जाओगे न?” और यह बात संस्कृति के कानों में पूरे रास्ते गूंजती रही।

संस्कृति अपनी तरफ़ से पूरी कोशिश कर रही है बच्चों को सँभालने की। क्या बच्चों से ज़्यादा जुड़ाव अनाथालय के नियम और क़ायदे को नुकसान पहुंचाएगा?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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