संस्कृति को धीरे-धीरे मालूम पड़ा कि पूरे कानपुर शहर में जितने भी दूसरे अनाथालय हैं, उनमें बचपन अनाथालय सबसे बेहतर है और उसके पीछे का कारण अनाथालय के मालिक माणिक लाल चौधरी हैं। माणिक लाल चौधरी बहुत ही बड़े बिजनेसमैन हैं। अपने बिजनेस के सिलसिले में वह ज़्यादातर दिल्ली में रहते हैं। “बचपन अनाथालय” की शुरुआत करने से पहले वह दिल्ली ही रहा करते थे लेकिन इसकी शुरुआत के बाद उनका दिल्ली और कानपुर आना-जाना लगा रहा।
उस रोज़ माणिक लाल अपने सभी स्टाफ से बात करके अनाथालय में बने एक कमरे में जाकर कुछ देर आराम करने लगे। वह कमरा हमेशा बंद रहा करता है। संस्कृति ने अक्सर उस कमरे की ओर ध्यान दिया था लेकिन कभी किसी से कोई सवाल नहीं किया था। जब उस दिन माणिक लाल के आने पर वह कमरा खुला तो उसके मन में बहुत सारे सवाल उठे।। उसकी चाभी भी सिर्फ़ उन्हीं के पास थी। यह बात अभी तक किसी को पता नहीं थी कि आख़िर वहाँ क्या था। एक-दो लोगों को छोड़कर उस कमरे में कोई नहीं जाता था और ना ही उसके बारे में बात करता था।
संस्कृति को वो कमरा कोई रहस्यमयी जगह जैसा लगता था, किसी को उसके बारे में ख़बर नहीं थी, इसीलिए उसकी दिलचस्पी और बढ़ती जा रही थी।
सभी स्टाफ़ साथ में धुप सेंक रहे थे, देश-दुनिया की बातें कर रहे थें लेकिन संस्कृति एकटक उसी दरवाज़ें को देखे जा रही थी।
संस्कृति (गंभीरता से) - ऐसा इस कमरे में क्या है जो सिर्फ़ माणिक लाल जी के आने पर ही खुलता है। उनके अलावा कोई और अंदर नहीं जा सकता।
एक स्टाफ ने ऐसे ही अंदाजा लगाते हुए कहा कि हो सकता है ऑफिशियल काम के बहुत सारी फाइलें हो उस कमरे में। दूसरे ने आगे बात जोड़ते हुए कहा कि मुझे लगता है उसमें कैश रखते होंगे माणिक लाल जी।
संस्कृति (हँसते हुए) - फिर तो उस कमरे को बैंक अनाउंस कर देना चाहिए। देखिए कहीं छापा ना पड़ जाए। बचपन के स्टाफ होने के कारण हमें भी जेल जाना पड़ेगा।
सभी स्टाफ इस बात को सुनकर हँसने लगे। दुसरे स्टाफ़ ने फिर से मज़ाक करते हुए कहा “हम सबसे ज़्यादा तो माणिक लाल जी आपके ज़्यादा क़रीब मालूम होतें हैं, जेल तो आप जायेंगे”
माहौल ऐसा था कि सभी छोटी- छोटी बातों पर भी हँस रहे थें।
एक स्टाफ ने संस्कृति से कहा की जानना तो सभी चाहते हैं कि उस कमरे में क्या है लेकिन यह बात सिर्फ़ इस अनाथालय के सबसे पुराने स्टाफ जोगिंदर जी ही बता सकते हैं। इस बचपन अनाथालय की शुरुआत से ही वह यहाँ पर हैं। न जाने कितने स्टाफ आए और गए लेकिन जोगिंदर जी यहीं पर हैं शुरुआत से। यह सुनकर संस्कृति के मन में उस कमरे के बारे में जानने की एक उम्मीद दिखी।
संस्कृति (उत्साह से) - आप अपने जोगिंदर चाचा की बात कर रहे हो?
दूसरे स्टाफ ने मज़ाक करते हुए कहा कि अनाथालय में सिर्फ एक ही जोगिंदर चाचा हैं। वैसे भी वह हर किसी से संस्कृति की तारीफ़ करते रहते हैं, इसलिए यह संभव है कि वह उन्हें हर सवाल का जवाब दे दें।
उन स्टाफ से बातचीत के बाद संस्कृति ने जोगिंदर चाचा को ढूंढा, उसे मालूम हुआ कि वो एक हफ़्ते से अनाथालय नहीं आये हैं। उनका इंतज़ार करते-करते लगभग एक हफ्ता गुज़र चुका था। ज़्यादा खोजबीन करने पर उसे मालूम हुआ कि वो बीमार हैं, इसीलिए अनाथालय नहीं आ पा रहें।
एक रोज़ संस्कृति ने मन बनाया कि जोगिंदर चाचा के घर जाकर उनसे बात करेगी लेकिन हर दिन काम करने के बाद संस्कृति को समय ही नहीं मिलता था कि वह उनके के घर जा सके। उसने उनसे मिलने के लिए एक दिन की छुट्टी ली। उनके घर का पता ऑफिस स्टाफ से लिया।
घर पर अपने पिता को भी उसने बता दिया था कि वह अनाथालय के एक स्टाफ से मिलने उनके घर जा रही है। उसे घर लौटने में देर हो सकती है।
दशरथ (गंभीरता से) - अगर रास्ते में कुछ फल मिले तो उनके लिए लेते जाना, उन्हें अच्छा लगेगा।
संस्कृति को जो सैलरी मिली थी वह आते ही उधारी चुकाने में चली गई थी लेकिन उसमें से कुछ पैसे उसने महीने चलाने के लिए रख लिया था। अगर वह जोगिंदर चाचा के लिए कोई फल ख़रीदती तो उसके पास ज़्यादा पैसे नहीं बचते फिर भी दशरथ के कहने पर उसने रास्ते में कुछ सेब ख़रीद लिए।
जैसे ही संस्कृति जोगिंदर के पास पहुँची। वह उसे देखकर चौंक गए। उनके घरवालों ने संस्कृति को बताया कि जोगिंदर चाचा को कुछ दिनों से बुखार है इसलिए वह बचपन अनाथालय नहीं जा रहे थे। अब शरीर बूढ़ा हो रहा है, उन्हें आराम करना चाहिए फिर भी वह अनाथालय जाने की ज़िद किए हुए रहते हैं।
संस्कृति (हैरानी में) - आपकी तबियत तो काफ़ी ख़राब लग रही है। मुझे जैसे ही पता चला कि आप बीमार हैं तो मैंने सोचा आपसे मिल लूँ।
संस्कृति को बचपन अनाथालय ज्वाइन किये कुछ ही महीने हुए थे, मगर इतने ही दिनों में उसने इसे अपना बना लिया था। जोगिंदर जब भी उसे बच्चों के साथ देखते थें उन्हें ख़ुशी महसूस होती थी। संस्कृति को अपने सामने देख कर उनकी आँखें नम हो गई। जोगिंदर चाचा के घरवालों ने बताया की दो दिन पहले ही माणिक लाल उनसे मिलने आए थें। उन्होंने भी जोगिंदर को डांटा और अपने सेहत का ख़्याल रखना को कहा।
संस्कृति (हैरानी में) - माणिक लाल जी यहाँ आए थे?
जवाब में घरवालों ने कहा कि जब भी जोगिंदर बीमार पड़ते हैं या कोई ज़रूरी काम होता है, तब माणिक लाल जी ज़रूर आते हैं।
संस्कृति (मन ही मन, गंभीरता से) - कोई इंसान अपने स्टाफ के बीमार पड़ने पर उसे घर देखने आता है, आज की दुनिया में यह तो बहुत बड़ी बात है और जिस तरह से माणिक लाल जी का नाम बड़े बिजनेसमैन में लिया जाता है यह तो उनकी महानता को दर्शाता है।
थोड़ी देर इधर-उधर की बातचीत करने के बाद संस्कृति ने हिम्मत जुटाई।
संस्कृति (संभलते हुए) - जोगिंदर चाचा, आप अगर इजाज़त दें तो आपसे एक बात पूछूं, आप बुरा तो नहीं मानेंगे?
जोगिंदर चाचा ने हामी भरते हुए कहा “जो भी पूछना है बेझिझक पूछो।”
संस्कृति (गंभीरता से) - माणिक लाल जी के बारे में बहुत से लोग अलग-अलग तरह की बातें करते हैं, लेकिन मुझे एहसास है कि वह बहुत अच्छे आदमी हैं। क्या आप मुझे उनके बारे में कुछ और बता सकते हैं और साथ ही मुझे एक और बात जाननी है आपसे, बचपन अनाथालय में जो एक कमरा है जिसमें किसी के आने-जाने की मनाही है। आख़िर उस कमरे में ऐसा क्या है?
सवाल सुनकर जोगिंदर चाचा एक पल के लिए चुप हो गए। फिर गहरी साँस लेते हुए उन्होंने माणिक लाल के बारे में बताना शुरू किया। उन्होंने कहा कि वह पहली इंसान नहीं हैं, जो माणिक लाल और उस कमरे के बारे में पूछ रही हैं, लेकिन अब तक उन्होंने कभी भी किसी को कुछ भी नहीं बताया। दुनिया माणिक लाल को सिर्फ़ एक बिजनेसमैन और बचपन अनाथालय के संस्थापक के रूप में जानती है, लेकिन यह नहीं जानती कि वह केवल एक बिजनेसमैन या संस्थापक ही नहीं, बल्कि एक पिता भी हैं। उन्होंने आगे बताया कि लोगों को उनके इकलौते बेटे के बारे में पता है, लेकिन किसी को यह नहीं मालूम कि वह एक बेटी के पिता भी थे।
यह सुनते ही संस्कृति चौंक गई।
संस्कृति (हैरानी में) - मैंने तो बस सुना था कि उनका एक बेटा है आप किसी बेटी की बात कर रहे हैं। क्या हुआ उसके साथ मुझे सब बताइए मुझे सब जानना है उनके बारे में?
जोगिंदर चाचा माणिक लाल की कहानी बताते-बताते ख़ुद रोने लगे। उन्होंने अपनी बात आगे बढ़ाई और कहा उस दिन जब साहब आए थे, तो तुमसे बात की थी ना, पता है क्यों की थी।
संस्कृति (हैरानी में) - आप ही बताइए क्यों की थी, मुझसे बात उन्होंने?
जोगिंदर चाचा ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "अगर उनकी बेटी जिंदा होती तो वह तुम्हारी उम्र की होती।" यह सुनते ही संस्कृति को बहुत सी बातें समझ में आने लगी। उन्होंने बात जारी रखते हुए कहा कि दुनिया माणिक लाल के अनुशासन और सख्ती को देखती है, लेकिन उनके जैसा दिल किसी के पास नहीं है। आज तक उन्होंने ने कभी किसी का दिल नहीं दुखाया कभी भी अपने दिल का दुःख किसी से साझा नहीं किया। अनाथालय का कमरा जहां किसी को भी जाने की मनाही है, उसमें उनकी बेटी की यादें हैं। जोगिंदर चाचा ने आगे कहा कि सभी को लगता है कि माणिक लाल अक्सर अनाथालय की तरक्की देखने के लिए आते हैं, लेकिन वास्तव में, जब भी उन्हें अपनी बेटी की याद आती है, तो वह कानपुर चले आते हैं। अपनी बात कहते- कहते जोगिंदर चाचा की आँखों से आँसू बहने लगे।
संस्कृति भी अपने आप को रोक न सकी, उसकी आँखों से भी आँसूं छलक पड़े।
संस्कृति (रोते हुए) - "एक इंसान कितना दर्द लिए हुए घूम रहा है, लेकिन दुनिया उसे सख्त कहती है।"
जोगिंदर चाचा ने बताया, "जब साहब तुमसे पहली बार मिले थे, उस दिन वे उस कमरे में बहुत देर तक रुके थें। जब बाहर आए तो उनकी आँखें सूजी हुई थीं।”
सारी बातें सुनने के बाद संस्कृति के दिल में एक लाचार पिता की तस्वीर उभर आई। वह पिता, जो अपनी बेटी की याद के दर्द में तो तड़प रहा है, लेकिन कभी किसी से कुछ नहीं कहता। संस्कृति, जो रास्ते में सेब ख़रीद कर लाई थी, वह जोगिंदर चाचा को दे चुकी थी।
घर लौटते समय रास्ते भर संस्कृति को माणिक लाल के दर्द का एहसास होता रहा। वो उनके दर्द से ख़ुद को जुड़ा हुआ महसूस कर रही थी। एक पल के लिए उसे लगा कि उसने सच्चाई जानकर ग़लती कर दी, किसी और को दुःख न हो, इसीलिए ही माणिक लाल ने सभी से ये बात छुपा कर रखी थी।
संस्कृति (मन ही मन) - "काश, मैं उनकी कोई मदद कर पाती। उनके दुःख को कम कर पाती।"
संस्कृति माणिक लाल के बारे में सोच रही थी, क्या वो किसी भी तरह से उनकी मदद कर पाएगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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