रास्ते भर वैभव अमृता से बात करने के तरीके ढूंढता रहा। उसने उससे कई चीजें पूछी और अमृता ने कभी हिचककर तो कभी एक सांस में जवाब दे दिए। वैभव कहीं न कहीं समझ रहा था कि अमृता कुछ तो झूठ बोल रही थी पर वो ये भी जानता था कि सच पता करने के लिए उसे उसके साथ ज्यादा वक्त बिताना पड़ेगा। इसलिए वैभव ने अमृता से सीधा ही पूछ लिया,
वैभव – अमृता, मुझे मालूम है मां की हरकतों की वजह से बहुत कुछ अजीब हो गया है। इसलिए क्या हम अपने बीच चीज़ें ठीक कर सकते हैं?
अमृता ये सुन कर थोड़ी शांत रह गई। उसने वैभव की तरफ देखा तो उसने उसे बताया कि उसका कोई और इरादा नहीं है और शादी तो वो खुद भी नहीं करना चाहता। ये सुनते ही अमृता के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वैभव ने आगे उस से कहा,
वैभव – वो दरअसल, इतने सालों से बाहर था और अभी भोपाल में मेरे कोई दोस्त भी नहीं है। इसलिए बस मैंने ये सोचा कि अगर आपको ठीक लगे तो क्या हम दोस्त बन सकते हैं? पर ऐसी कोई जबरदस्ती नहीं है!
ये कहते ही जैसे ही वैभव ने अमृता की तरफ देखा, अचानक से सामने से एक गाड़ी आ गई। वैभव ने फौरन steering wheel को एक तरफ से पूरा 180° पर घुमाया और गाड़ी को सड़क के किनारे रोक दिया।
अमृता की आंखें हैरानी से चौड़ी हो गईं थीं और उसने डर के मारे वैभव का हाथ कस कर पकड़ लिया। उसके चेहरे पर डर और घबराहट साफ दिखाई दे रही थी।
वैभव ने अमृता को शांत करवाने की कोशिश करते हुए कहा,
वैभव – "अमृता, सब ठीक है, कुछ नहीं हुआ। तुम सेफ हो, डरो मत। आँखे खोलो!"
अमृता ने कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उस के लिए यह दुर्घटना छोटी सी नहीं थी बल्कि बहुत बड़ी थी। जब से उसने अपनी मां को एक कार हादसे में अपनी आंखों के सामने मरते देखा है तब से वो बहुत ज्यादा डरने लगी है और इस घटना ने अमृता को फिर से उस दर्दनाक पल में पहुंचा दिया था जब वो चाहते हुए भी अपनी मां की मदद नहीं कर पायी थी।
पांच मिनट हो गए थे और अमृता अभी भी वैभव के हाथों को बहुत जोर से पकड़े हुए थी। वैभव को कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए वो भी चुपचाप उसके नॉर्मल होने का इंतेज़ार करने लगा। उसे अजीब लग रहा था लेकिन अमृता को उस हालत में देख कर उसने उसके सिर पर हाथ रख दिया और कहा,
वैभव – अमृता! मैं हूँ यहां! please डरो मत!
ये सुनते ही अमृता ने वैभव की तरफ देखा और उसकी आंखों में आंसू आ गए।
अमृता (कंपन भरी आवाज़ से) – "मैं... मैं ठीक नहीं हूं वैभव।"
वैभव को ये सही तो नहीं लग रहा था पर अमृता जिस हालत में थी उसे कोई और रास्ता समझ भी नहीं आया। इसलिए वैभव ने उसको अपनी बाहों में ले लिया और उसे शांत करने की कोशिश करने लगा पर वैभव ने जिस तरह उसे अपनी बाहों में लिया था वो बहुत अलग था। उसके मन में अमृता के लिए कोई गलत भावना नहीं थी। वो तो जैसे एक दोस्त की तरह उसे शांत करवाने की कोशिश कर रहा था। उसने अपने एक हाथ को अमृता की पीठ पर रखा और दूसरे से वो अमृता के सिर पर हाथ फेरता रहा।
वैभव – “मैं तुम्हारे साथ हूं, अमृता। कुछ नहीं हुआ है। तुम बिल्कुल सेफ हो and i am sorry, मेरी वजह से तुम्हें.. i am really sorry!”
ये सुनते ही अमृता ने वैभव की बाहों में अपना चेहरा छुपाया और रोने लगी।
वहीं घर पर रेणुका ने वैभव और अमृता को गाड़ी में एक साथ देखने के बाद उन दोनों के सात जन्मों के साथ के सपने बुनने शुरू कर दिए थे। एक तो रेणुका आज वैसे ही अमृता से काफी ज्यादा खुश हो गई थी जब उसने हवन के समय उसकी मदद की थी। वो उसकी विनम्रता, धार्मिक स्वभाव और सरलता से वैसे ही काफी impressed थी। जब वैभव और अमृता, दोनों हवन में साथ में पूजा कर रहे थे तो रेणुका को हवन की अग्नि, वैभव और अमृता की future में होने वाली शादी के फेरो की अग्नि जैसी नज़र आ रही थी। वो हवन की तैयारियों में busy थी लेकिन उसके imagination में वो वैभव की शादी की तैयारियों में busy महसूस कर रही थी।
रेणुका अकेले अपने कमरे में बैठी हुई थी और इन सब ख्यालों में मन ही मन बहुत खुश हो रही थी कि तभी अम्मा ने उस को अकेले मुस्कुराते हुए देख लिया। उन्होंने उसको आवाज़ लगाई पर जब उसने एक बार में अम्मा की बात नहीं सुनी तो अम्मा चिल्ला कर बोली,
अम्मा (चिल्लाते हुए) – रेणुका!!!! सठियाने के साथ साथ बहरी भी हो गई है क्या?
ये सुनते ही रेणुका अपने ख्यालों से बाहर आई और अम्मा को देख कर उसकी मुस्कुराहट छू मंतर हो गई। उसने अम्मा से पूछा,
रेणुका ( थोड़ी हैरान) – क्या हुआ अम्मा? क्यों चीख रही हो?
ये सुन कर अम्मा को गुस्सा आ गया,
अम्मा ( गुस्से में) – मैं चीख रही हूँ? अरे शुकर मना कि मैं बस चीख रही हूँ , तुझे पागलखाने नहीं भेजे दे रही हूँ। क्या पता किस बात के लिए अकेली बैठी बैठी मुस्कियाए जा रही थी?
रेणुका ने ये सुना तो उसने अम्मा को बताया कि वैभव अमृता को उसके घर छोड़ने गया है। ये सुनकर अम्मा भी बहुत खुश हो गई। थोड़ी देर वो भी अपने सपने सजाने में busy हो गई कि कैसे वो अमृता के साथ हर रोज़ मंदिर जाया करेंगी और घर में हर रोज़ उस के साथ meditation करेंगी। थोड़ी देर बाद अम्मा के दिमाग में कुछ आया, तो उन्होंने रेणुका से कहा कि उसको कोई तरकीब ढूंढनी चाहिए जिससे वैभव और अमृता को साथ समय बिताने के ऐसे ही मौके मिल सके। ये सुनते ही रेणुका आग बबूला हो गई और उसने अम्मा से कहा,
रेणुका( थोड़ा चिड़चिड़े हुए) – आज मैं इसलिए ही अमृता को आपके कमरे से लेने आई थी पर आपको तो उसे अपना शादी का एल्बम दिखाना था। अब दिखा लो एल्बम !
अम्मा को अपनी गलती समझ आई और उन्होंने धीरे से कहा,
अम्मा – ये तो मैंने सोचा ही नहीं! sorry sorry!
रेणुका ये सुनते ही मन ही मन बुदबुदाने लगी।
रेणुका ( मन में) – दिमाग के जो गधे सुस्ती से भर रहे हैं उन्हें दौड़ा लेती तो आज शायद वैभव और अमृता खुद आ कर शादी के लिए मुझसे कह देते। पर नहीं.. मुझे ताने मारती हैं, खुद से कुछ होता नहीं! हुँह!
अम्मा को रेणुका पर थोड़ा शक हुआ कि पक्का वो उनकी बुराई ही कर रही है पर जैसे ही उन्होंने रेणुका से पूछा तो उसने बात घूमाते हुए कहा,
रेणुका ( sarcasm में)– अरे अम्मा बस ये कह रही थी आप अपने सिर पर थोड़ा ठंडा पानी डाला करो, मैंने सुना है कि इस उम्र में ऐसा करना अच्छा होता है।
और रेणुका ने ये कहते हुए, मन में धीरे से अपनी बात पूरी करते हुए कहा,
रेणुका (मन में/ ड्रामा) – ताकि आपके दिमाग के सुस्त गधों में थोड़ी शक्ति आए।
अम्मा ने उसको घूरा, फिर बोलीं,
अम्मा – सब समझती हूँ मैं रेणुका! मुझे उल्लू बनाने की कोशिश मत किया कर। ये बाल धूप में सफेद नहीं किए है मैंने। तुझसे कहीं ज़्यादा तजुर्बा है मेरा!
अम्मा ने जैसे ही ये बोला रेणुका चुप हो गई। आज भी उसकी ज़ुबान को काटने की कैंची अम्मा के पास ही है। वो अच्छे से जानती हैं कि कब कैसे उन्हें रेणुका को चुप करवाना है।
इधर रेणुका और अम्मा की तू तू मैं मैं लगी हुई थी और उधर वैभव और अमृता की कहानी एक अलग ही मोड़ पर आ गई थी।
अमृता अभी भी वैभव के गले लगी हुई थी। थोड़ी देर बाद जब उसको थोड़ा समझ आया कि ये बस एक छोटी सी दुर्घटना थी तो वो वैभव की बाहों से बाहर निकल कर वापस अपनी सीट पर टिक गई। जब वो वैभव से खुद को दूर कर रही थी तो वैभव ने भी अपने हाथों को पीछे कर लिया। अमृता का चेहरा डर के मारे अभी भी काला पड़ रहा था। वो जैसे ही अपनी सीट पर टिकी उसने वैभव की तरफ देखा और उससे पूछा,
अमृता ( डरी आवाज में) – तुम ठीक हो ना वैभव?
ये सुनते ही वैभव को ऐसा लगा जैसा अमृता नहीं Elsie उससे बात कर रही हो। अमृता इतनी ज्यादा डरी हुई थी पर उसके बाद भी वो वैभव से उसका हाल पूछ रही थी। वो ये सुनते ही चुप रह गया और बस उसे एक टक देखता रहा। वैभव की आंखों में हल्की नमी नज़र आने लगी और उसने हल्के से मुस्कुराकर अमृता से कहा ,
वैभव ( इमोशनल होकर )– मैं ठीक हूँ अमृता! तुम ठीक हो?
इस पर अमृता ने हां में सिर हिला दिया। वैभव वैसे तो अमृता को अपनी बाहों में नहीं लेना चाहता था क्योंकि उसे ऐसा करने से ये लग रहा था कि वो Elsie को धोखा दे रहा है पर जब अमृता उसकी बाहों में थी, न जाने क्यों वो अमृता को जाने नहीं देना चाहता था। उसे एक तरह का सुकून महसूस हो रहा था जो उसे पता नहीं कितने समय से महसूस नहीं हुआ था।
जैसे ही अमृता थोड़ी शांत दिखी, वैभव ने उस से पूछा कि वो इतना ज्यादा डर क्यों गई थी? इस पर पहले तो अमृता ने बात को थोड़ा छुपाने की कोशिश की पर वो अभी जिस स्थिति में थी वो चाहकर भी वैभव से झूठ नहीं बोल पाई।
उसने आँखों में आँसू भरे हुए वैभव से कहा,
अमृता ( हल्की रोती हुई आवाज में)– “साढ़े तीन साल पहले, मैं अपनी मां के साथ एक प्रोग्राम में जा रही थी। मैं गाड़ी चला रही थी, और मां बगल की सीट पर बैठी हुई थीं। हम दोनों बहुत खुश थे, उस दिन की यादें अभी भी मेरे दिल में बसी हुई हैं।”
अमृता ने एक पल के लिए रुककर अपनी सांसें संभालीं और फिर आगे बोली,
अमृता (रोती हुई आवाज में)– "रास्ते में अचानक एक ट्रक ने हमारी गाड़ी को पीछे से टक्कर मार दी। टक्कर एक तरफ इतनी जोरदार थी कि गाड़ी का सिर्फ एक हिस्से पर ज्यादा प्रेशर पड़ गया। मैं गाड़ी के शीशे से बाहर की तरफ उछाल गई, लेकिन मां... मां मेरी सीट की तरफ कार के door से टकरा गई।
ये बताते बताते अमृता की आवाज़ टूटने लगी। उसने गहरी सांसे ली और बिलख-बिलख कर रोने लगी। वैभव ये सब सुन कर दंग रह गया। उसकी बातें सुन कर वैभव की आंखों में भी आंसू भर गए लेकिन उसने खुद को संभाला और अमृता का हाथ पकड़ लिया।
अमृता ने आगे बताया कि वो गाड़ी के शीशे से बाहर गिर कर बेहोश हो गई थी, और जब उसे होश आया, तो उस ने देखा कि गाड़ी में आग लग चुकी थी।
अमृता ( रोते हुए) – मां... मां जल रही थीं वैभव। मुझे जैसे ही होश आया मैं उन्हें बचाने के लिए गाड़ी की तरफ भागी, लेकिन... लेकिन मैं उन्हें नहीं बचा पाई।"
अमृता के आंसू वैभव के हाथ पर लगातार गिर रहे थे, और वह उसके दर्द को महसूस कर पा रहा था।
आखिर, वैभव अमृता को अपनी बाहों से क्यों नहीं जाने देना चाहता था? क्या अमृता का दर्द देख कर वैभव Elsie को भूल जायेगा और करने लगेगा अमृता से प्यार?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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