जव्वाद शैख़ का एक शेर है- अपने सामान को बांधे ये सोच रहा हूँ, जो कहीं के नहीं रहते वो कहाँ जाते हैं??
आज हमारी रेश्मा की भी कुछ ऐसी ही हालत है. लखनऊ के बस अड्डे से बाहर निकल कर एक कोने में दुबकी बैठी रेश्मा यही सोच रही है कि अब आगे वो क्या करे. तभी उसे अहसास होता है कि कुछ नज़रें उसे घूर रही हैं. वो सामने देखती है, कुछ लफंगे उसे घूरते हुए उसकी तरफ बढ़ रहे होते हैं. रेश्मा घबरा जाती है. इनका घूरना उसे छुन्नू सेठ की याद दिलाता है. वो वहां से भाग निकलती है. धीरे धीरे रात गहरी होती जा रही है. अब आसपास सिर्फ कहीं आने जाने वाले यात्री और शराब के नशे में धुत्त लोग हैं. कुछ ऑटो वाले हैं जो चारबाग़ की सवारियां खोज रहे हैं.
रेश्मा डरी सहमी सी इधर उधर भटक रही है. नवंबर का महीना है, जिस वजह से रात होते हल्की ठण्ड भी पड़ने लगी है. उसके पास ना कपडे हैं ना कोई शॉल जिसे वो ओढ़ सके. वो सामने चाय की दुकान देखती है. साथ में पकौड़े भी छाने जा रहे हैं. उसे लगता है कि अगर उसके पास पैसे होते तो शायद ये चाय और पकौड़े उसकी सर्दी दूर कर सकते थे. आखरी बार उसने सुबह रास्ते में कुछ खाया था, वो ललचाई नज़रों से चाय पकौड़ों को देख रही थी. तभी वो लफंगे वहां आ धमके. उनके लिए रेशमा को सिर्फ घूरना ही शायद काफी नहीं थी. उनमें से एक ने कहा..“कुछ खाओगी? चलो हमारे साथ बढ़िया खाना खिलाएंगे फाइव स्टार होटल का, सोने को नर्म बिस्तर भी होगा.” दूसरे लफंगे ने भी मुंह खोला और बोला, “बस दिक्कत यही है कि बिस्तर एक है और हम सोने वाले पांच. तुम्हें हम चारों के साथ सोने में कोई दिक्कत नहीं होगी.”
उसकी बात पर बाकी के लफंगे खूब जोर से हँसे और ताली-सीटी बजाने लगे. रेश्मा को लगने लगा था कि आज उसके साथ फिर से कुछ अनहोनी होने वाली है. दरअसल, उसे अब समझ आ रहा था कि छुन्नू सेठ कोई एक आदमी नहीं है. ये एक घिनौनी सोच है जो दुनिया के हर कोने में लड़कियों का पीछा करती है. ये सोच हमेशा एक लड़की को अपने बिस्तर तक ही देखती है. उस सोच को लगता है कि इसके सिवा लड़कियों को कुछ करना ही नहीं चाहिए.
उनसे बचने के लिए रेश्मा जी जान लगा कर भागी. उसे सामने एक अँधेरी गली दिखी वो वहां जा कर छुप गयी. वो बदमाश उसके पीछे पीछे आ रहे थे. रेश्मा की धडकनों की आवाज़ इतनी तेज थी कि इस सन्नाटे में उसे आराम से सुना जा सकता था. ठीक इसी समय उसको अपनी तरफ बढ़ते क़दमों की आहट सुनाई थी. उसने आंखें बंद कर ली और जितने भी भगवानों के नाम उसे याद थे सबका नाम लेकर प्रार्थना करने लगी. पहला लफंगा रेश्मा को देख के कहने लगा, “इसे लग रहा था कि ये हमसे बच के भाग जाएगी. इसे नहीं पता ये हमारा एरिया है. ”फिर उसका दोस्त बोला, “इस भिखारन की अकड़ तो देख. इसे हम खाना देने की बात कर रहे हैं और ये भाव खा रही है. इसे उठा कर ले चलते हैं.”
वो उसकी तरफ बढ़ने ही वाले थे कि तभी रेश्मा की प्रार्थनाएं सुन ली गयीं. अँधेरी गली में किसी की आवाज़ सुनाई पड़ी.
पल्लो- “एक बार हमारे सामने ऐसी ही गलती पुराने लखनऊ के बदमाश लल्लन ने की थी. एक लड़की पर हाथ डाल रहा था. हमने उसे कहा भाई रुक जा मत कर. नहीं माना. हाथ बढ़ाया और हमने उसका हाथ तोड़ दिया.”
बदमाशों ने पहले इस आवाज़ को ध्यान से सुना फिर जब ये बातें बोलने वाली लड़की सामने आई तो सब हंसने लगे. उनमें से एक तो ये कह कर खुश होने लगा कि आज तो दो दो लडकियों का इंतजाम हो गया. उनकी बात पर लड़की बोली…
पल्लो- “बेटा तुरंत से पहले तुम लोग यहाँ से निकल लो वर्ना इंतजाम तो हम कर देंगे, तुम सबके क्रिया कर्म का. नाम है हमारा पल्लो, कुड़िया घाट की पल्लो. नहीं जानते तो अपने मित्रों को फोन लगा कर पूछ लो. हम अभी शांत मूड में हैं. इसलिए प्यार से कह रहे हैं निकल लो वर्ना तुम्हें ले जाने के लिए 16 लोग और बुलाने होंगे.”
खुद का नाम पल्लो बताने वाली लड़की की बात सुन कर एक लफंगे ने दूसरों से धीमी आवाज़ में कुछ कहा. फिर वो लोग अपने आप ही धीरे धीरे वहां से खिसक लिए. रेश्मा ने अभी तक डर के मारे आंखें बंद कर रखी थीं. वो बस राम जी का नाम जपे जा रही थी. पल्लो उसके पास गयी और उससे कहा..
पल्लो- “बेटा ये अंधेर नगरी है, यहाँ पहले ही बहुत अँधेरा है. यहाँ आंखें बंद करने की नहीं आंखें खोल कर रखने की ज़रुरत है. यहाँ आँख बंद कर के रखोगी तो काल के गाल में समाते ज्यादा देर नहीं लगेगी. चलो उठो अब, भाग गए साले लफंगे.”
रेश्मा ने पल्लो की आवाज़ सुन कर आंखें खोलीं. देखा तो सामने वही लड़की थी जिसने बस में उसकी टिकट के लिए पैसे दिए थे. वो उठी और उसने पल्लो को गले से लगा लिया. वो पल्लो को गले लगा कर उतना ही सुरक्षित महसूस कर रही थी जितना अपने माँ बाबूजी के गले लग कर करती थी. उसने बहुत देर तक उसे गले लगाये रखा. फिर रेश्मा बोली…
रेश्मा- “आज दूसरी बार आपने मेरी मदद की है. ये एहसान मैं कभी नहीं भूलूंगी.”
पल्लो- “दूसरी नहीं तीसरी बार. वो चाय समोसा जलेबी भी हमने ही भिजवाया था. और तुम्हारी हालत देख कर लग रहा है तुम अहसान भूल भी गयी तो हमें कुछ खास नुकसान नहीं होने वाला. अब हमारे गले पढ़ना छोड़ो. बहुत हुआ तुम्हारा इमोशनल ड्रामा. चलो कुछ खिला देते हैं तुमको.”
पल्लो सबसे ऐसे ही अकड़ में बात करती थी. वो किसी पर प्यार भी दिखाती तो ऐसी ही अकड़ में. रेश्मा को वो अभी भी पुलिस वाली ही लग रही थी.
रेश्मा- आप जैसे पुलिसवाले हों तो कहीं किसी को डरने की जरूरत नहीं होगी.
पल्लो- हां बात तो सही है, हम पुलिस वाले होते तो ऐसा ही सोचते.
रेश्मा- तो क्या आप पुलिस वाली नहीं हैं?
पल्लो- पहले तो ये आप आप कहना बंद करो यार. दूसरा हम ठेले वाली हैं, सब्जी का ठेला लगाते हैं. नाम है पल्लवी उर्फ़ पल्लो. अब जांच पड़ताल हो गयी हो तो चुपचाप चलो और कुछ खा के अपने रस्ते निकलो.
पल्लो के झल्लाने के बाद रेश्मा चुपचाप उसके पीछे चल दी. दोनों एक ढाबे पर बैठे, पल्लो ने दो चाय और खाना मंगाया. उसने रेश्मा से कहा कि वो बस में लगातार देख रही थी कि वो चौंक के उठ जा रही है. क्या उसे किसी बात का डर है. जिसके बाद रेश्मा ने अपने साथ हुए हादसे से लेकर अपने माता पिता की मौत तक सब उसे बता दिया. जिसे सुन कर पल्लो का भी खून खौल उठा. वो रेश्मा से बोली…
पल्लो- “अरे यार ये छुन्नू सेठ तो एक नंबर का हरामी है. हमको लगता था लखनऊ में ही गुंडाराज चल रहा है मगर तुम्हारा गाँव तो बिलकुल ही खत्म है. कोई पुलिस कोई सुनवाई नहीं. गाँव वाले भी एक दम हरामी. पता नहीं तुम वहां से बच कैसे आई. खैर तुम्हारे आगे बहुत लम्बी जिंदगी पड़ी है. तो आगे बढ़ो. कुछ सोचा है कहाँ जाओगी?”
रेश्मा- “सोच रहे हैं बलिया चले जाएं. हमारी मौसी वहां रहती हैं लेकिन ये सोच के डर भी लग रहा है कि सारी बातें जानने के बाद उनके घर वाले मुझे वहां रखने से मना ना कर दें. लेकिन हमारे पास कोई दूसरा ठिकाना भी नहीं. डर लग रहा है ये सोच कर कि उन्होंने हमको निकाल दिया तो कहाँ जायेंगे?”
ये सब सोचने के बाद रेशमा की भूख ही मर गयी. इधर पल्लो ये सोच रही थी कि वो रेश्मा को अपने ही पास रख लेती लेकिन उसके पास तो खुद एक छोटी सी खोली है जिसमें वो और उसका छोटा भाई बड़ी मुश्किल से गुजारा करते हैं. अपने हालात देख कर वो चुप हो गयी. दोनों काफी देर तक बैठे रहे. बढ़ती ठण्ड देख कर पल्लो ने उसे अपने बैग से एक शॉल निकाल कर दिया जिसके बाद रेशमा को ठण्ड से कुछ राहत मिली.
गाँव में इरावती अपने एक लाख ना मिलने के दुःख से दुखी थी. वो अगले ही दिन मामा से मिलने गयी. उसे लगा कि मामा से मिल कर उसे ये बताना चाहिए कि इन सबमें उसकी कोई गलती नहीं है. वो मामा के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी है और कहती है कि ये सब उस रेश्मा की गलती है. अगर वो घर से ना भागती तो ये सब ना होता. उसे एक और मौका दिया जाए वो उसके बेटे के लिए रेश्मा से भी अच्छा रिश्ता खोज कर लाएगी.
मामा कहता है कि उसे खोजने की ज़रुरत नहीं है, उन्हें रिश्ता मिल गया है. इस रिश्ते के लिए वो उसे 1 लाख रुपये अपनी तरफ से देगा. इरावती ये सुन कर खूब खुश होती है. वो लड़की वालों के बारे में पूछती है. इस पर मामा कहता है कि उसने अपने शराबी लड़के के लिए उसकी बेटी को पसंद किया है. इसके बदले वो उसे एक लाख रुपये देगा. ये सुनते ही इरावती के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. उसकी एक लाख रुपये की ख़ुशी एक मिनट में हवा हो जाती है. वो कहती है कि उसकी बेटी अभी बस 14 साल की है. वो शादी ब्याह की बातों से अनजान है. मामा कहता है कि हर लड़की खुद को अनजान ही बताती है मगर शादी के बाद सब सीख जाती है. वैसे भी उसका बेटा तजुर्बे वाला है. उसने पहले भी दो लड़कियों को औरत बनना सिखाया है. उसका शराबी बेटा उसके नजदीक बैठा शादी की बात पर शर्माने की कोशिश कर रहा था.
इरावती मामा को समझाने की बहुत कोशिश करती है. वो कहती है कि वो अपने मामा के बेटे से अपनी बेटी की शादी कैसे करवा सकती है. सब हँसेंगे, मामा कहता है वो उसका दूर का मामा है और उसे ये पता है कि उसके गाँव में किसी को किसी की कोई परवाह नहीं. ये उसका आखिरी फैसला है और अगर उसने उसकी बात नहीं मानी तो इसका अंजाम भयानक होगा. इरावती की लालच आज उसी के गले का फंदा बन गयी थी.
लखनऊ में अब सुबह होने वाली है बलिया जाने वाली बस अपनी जगह पर लग चुकी है. इधर रेश्मा और पल्लो ने बातें करते करते रात बिता दी. पहली बार पल्लो ने किसी से इतने नर्म लहजे में बात की है. इतनी ही देर में रेश्मा को उससे लगाव हो गया. उसे लग रहा है कि पूरी दुनिया में सिर्फ एक पल्लो ही है जिसे वो जानती है. वो पल्लो को छोड़ कर नहीं जाना चाहती. मगर वो उसके लिए बोझ भी नहीं बन सकती. पल्लो उसे बताती है कि उसकी बस लग चुकी है.
दोनों बस के पास जाते हैं. पल्लो उसके लिए टिकट कटाती है और रास्ते के लिए उसे कुछ खाने का सामान ला कर देती है. इसके साथ ही उसके हाथ में ये कहते हुए कुछ पैसे रख देती है कि उसके काम आयेंगे. रेश्मा बस में बैठ गयी. 2 मिनट में बस चलने वाली है. रेश्मा बस की खिड़की से पल्लो को देख रही है. कुछ ही देर में पल्लो वहां से गायब हो जाती है. इधर बस चलने लगती है. रेश्मा पल्लो के नाम से दो आंसू गिराती है और लम्बी सांस लेकर खुद को अगले सफ़र के लिए तैयार करती है. लेकिन तभी अचानक अचानक से बस रुक जाती है…
क्या ये रेशमा और पल्लो की आखिरी मुलाकात थी?
क्या बलिया वाली मौसी अनाथ हो चुकी रेशमा को सहारा देंगी?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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