इस दुनिया में गिने चुने ही ऐसे लोग होंगे, जो जहाँ पैदा हुए सारी उम्र वहीं रह कर बिता दी. वरना बाकी दुनिया के लिए तो चलती का नाम ही जिंदगी है. लोगों की पूरी जिंदगी ही सफ़र में निकल जाती है. आज यहाँ हैं तो कल वहां. बस फर्क इतना है कि कुछ को नौकरी की मजबूरियां सफ़र तय करवाती हैं तो कुछ को जिंदगी के हालात हमेशा सफ़र में रखते हैं. 

इनमें सबसे बदकिस्मत वो लोग होते हैं जिनके पास सफ़र से लौटने के बाद घर कहने के लिए कोई जगह नहीं बचती. हमारी रेश्मा भी अब उन्हीं कुछ बदकिस्मत लोगों में से है जिसके पास कहने के लिए अब कोई घर नहीं बचा. उसकी आगे की जिंदगी शायद सफ़र में ही कट जाए. फिलहाल उसने तय किया है कि वो लखनऊ जाएगी. रतौली जैसे पिछड़े गाँव में रहने वाली रेश्मा के लिए लखनऊ कभी सपनों का शहर हुआ करता था. उसने सुना था वहां की जिंदगी हर किसी को कुछ भी करने की आज़ादी देती है. वहां कोई छुन्नू सेठ नहीं जो उड़ने के ख़्वाब देखने वाली लड़कियों के पंख नोच दे. वहां किसी के भी पास रतौली जैसी छोटी सोच नहीं है. 

यही सब उसके दिमाग में था तभी तो कंडक्टर के पूछने पर उसने लखनऊ जाने की बात कही थी. मगर उसके पास टिकट लेने के पैसे नहीं है. कंडक्टर ने उसकी हालत देखते हुए उसे कोई भिखारन या पगली समझ लिया है. वो उसे गालियाँ देते हुए बस से उतार रहा है. बस का कंडक्टर जब उसे बस से उतार रहा है तो रेश्मा ने बस के पीछे आते एक बाइक सवार को देखा. ये उसी के गाँव का रणधीर है. उसे डर है कि कंडक्टर ने कहीं उसे उतारा तो वो उसे पहचान जायेगा और छुन्नू को बता देगा. कंडक्टर ने ड्राइवर से बस रोकने को कहा. रेश्मा की साँसें अटकी हुई हैं. बस रुकने ही वाली थी कि बस में से एक कड़कती आवाज़ सबके कानों में पड़ी है. 

पल्लो- “ओए, रुक जा. बाप का राज है तेरे जो तू उसे ऐसे उतार रहा है? और तूने एक लड़की को हाथ कैसे लगाया? हाथ छोड़, हमने कहा हाथ छोड़. जो बात करनी है दूर हो के कर.” 

ये किसी मर्द की नहीं बल्कि एक लड़की की आवाज़ थी. उम्र में शायद रेशमा से दो चार साल बड़ी हो. लम्बी चोटी है. ट्रैक सूट ऐसे पहना है जैसे पुलिस में हो. उसकी आवाज़ में भी पुलिस वालों जैसा ही रौब है. तभी तो उसकी एक आवाज़ पर कंडक्टर रेश्मा से हट कर दूर खड़ा हो गया था. उसने कहा.. “अब टिकट के पैसे नहीं इसके पास तो क्या आरती उतारें इसकी और आप क्यों बीच में पड़ रही हो?”

पल्लो- “बेटा, अभी बीच में पड़ी कहाँ हूँ, अभी तो साइड में खड़ी हूँ. बीच में पड़ी होती तो तू ऐसे चौड़ा होकर खड़ा ना होता. आलमबाग से निकलती है ना तेरी बस? काउंटर नंबर 13 से?” 

एक तो उस लड़की का पुलिस वालों जैसा हुलिया और दूसरी उसकी खतरनाक बातें. कंडक्टर की तो हवा ही टाईट हो गयी. अब उसके लहज़े में नरमी आ गयी थी. उसने डरते हुए कहा… ”मैडम सरकारी बस है टिकेट लेना ज़रूरी है. मगर इसके पास तो पैसे ही नहीं हैं. बताओ कैसे होगा?” 

पल्लो- “हां तो ऐसे बता ना. पैसे हमसे ले ले. मगर साले तमीज में रहा कर नहीं तो किसी दिन चलती बस से उठा लिया जायेगा. फिर मम्मी तेरी बेकार में परेशान होगी. मेरा लल्ला कहाँ गया.”

सभी सवारियां लड़की की बात पर हंसने लगीं. कंडेक्टर को बहुत गुस्सा आया लेकिन वो बेकार में किसी पंगे में नहीं पढ़ना चाहता था. वो मान चुका था कि ये लड़की कोई पुलिस वाली है तभी इतनी गर्म है. लड़की उसे रेश्मा की टिकट के पैसे देती है. फिर अपनी सीट पर जा कर बैठ जाती है. रेश्मा उसको ऐसे देखती रह जाती है जैसे उसने कोई अजूबा देख लिया हो. अपनी इस हैरानी में वो उसे शुक्रिया भी नहीं कह पाती. कन्डक्टर रेश्मा से कहता है कि अब अपनी सीट पर जा कर बैठेगी या यहीं खड़ी रहेगी? जब टिकट नहीं थी तब सीट से उठ नहीं रही थी, अब टिकट मिल गयी तो बुत बन कर खड़ी है.” 

कंडक्टर की बातों से रेश्मा का ध्यान टूटा और वो सीट पर जा कर बैठ गयी. लड़की ने कंडक्टर को एक बार फिर से घूरा. कंडक्टर ने कान पकड़े और जा कर अपनी सीट पर बैठ गया. 

रेश्मा को लगता था कि हर जगह की लड़कियों की ज़ुबान सिली हुई होती है. उसने आज से पहले ऐसी दबंग लड़की नहीं देखी थी. रतौली की छोटी सोच के बीच पली रेश्मा को ये लड़की किसी अलग ही दुनिया से आई हुई लग रही थी. वो काफी देर तक उसी के बारे में सोचती रही. 

अचानक से उसे उसके बाबू जी और वो माँ दिखे. उन्हें देख कर वो हैरान हो गयी. बाबूजी ने उससे कहा कि वो बहुत बहादुर है. उन्होंने उसकी वजह से खुद को नहीं मारा. वो गाँव समाज के दिए दुखों को बर्दाश्त नहीं कर पाए. 

उसके पिता उसे कह रहे थे आज देरी मत करना बहुत ख़ास दिन है आज. उसकी माँ उसके लिए टिफिन पैक कर रही थी. उसने आज उसके फेवरेट आलू परांठे बनाए थे. नीतू उसे बाहर खड़ी बुला रही थी. रेश्मा ने टिफिन लिया और बाबा को बाई बोलते हुए नीतू के साथ स्कूल के लिए निकल गयी. रास्ते में रतौली की कितनी लड़कियां मिल गयीं जो पढने जा रही थीं. जिन्होंने कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा था वो भी स्कूल ड्रेस पहने उसके साथ थीं. वो जहाँ से गुजर रही थी लोग मुस्कुराते हुए उसे नमस्ते मैडम जी कह रहे थे. 

रेश्मा स्कूल में पढ़ा रही थी. उसने ब्लैक बोर्ड पर लिखी लाइन दोहराई.. सच में बहुत ताकत होती है. सभी लड़कियां उसके पीछे ये लाइन दोहरा रही थीं. वो बहुत खुश थी. उसने एक और लाइन लिखी और उसे ज़ोर से पढ़ा… सच की हमेशा जीत होती है.. सभी लड़कियों ने उसकी बात दोहराने ही वाली थी कि एक राक्षस की ज़ोरों की हंसी सुनाई थी. सभी लड़कियां डर गयीं. एक एक कर के वहां से भागने लगीं. जैसे जैसे क्लास से लड़कियां कम हो रही थीं वैसे वैसे उस राक्षस की हंसी बढ़ती जा रही थी. रेश्मा ने उस राक्षस को देखा सामने छुन्नू सेठ था. रेश्मा ने उसे अपनी छड़ी से मारा. छुन्नू के बाद अभिराज आया, उसे मारा तो गाँव के लोग आने लगे. देखते ही देखते राक्षस भयानक होने लगा. उसके 100 से ज्यादा सर थे, पहाड़ जैसा कद था. छोटी सी रेश्मा उसका मुकाबला कैसे करे. राक्षस ने ज़ोर से हँसते हुए रेश्मा को अपने पैरों के नीचे कुचल दिया. रेश्मा उसके पैरों के नीचे दब रही थी और बार बार दोहरा रही थी..सच की हमेशा जीत होती है..

एकदम से रेशमा बुरी तरह चौंक कर उठी. बस रुकी हुई थी. कंडक्टर ने कहा, जिसे नाश्ता पानी करना है कर ले, बस यहाँ 15 मिनट रुकेगी. रेश्मा एक दम घबराई हुई है, उसे लग रहा है कहीं अभी भी कोई उसका पीछा ना कर रहा हो. वो चाहती है जल्दी से जल्दी लखनऊ पहुंचे और वहां की भीड़ में गुम हो जाए. उसे ज़ोरों की भूख लगी है. जहाँ बस खड़ी है वहां बाहर तरह तरह के खाने पीने की चीज़ों के ठेले लगे हुए हैं. वो मेले में आई छोटी बच्ची की तरह इन ठेलों को देख ललचा रही है. 

बस की लगभग सभी सवारियां चाय नाश्ते के लिए उतर गयीं. रेश्मा भूख को बर्दाश्त किए बैठी है. तभी एक शख्स बस में चढ़ता है. उसके हाथ में चाय की केतली और एक लिफाफा है. वो लिफाफा रेश्मा की तरफ बढाता है और कुल्हड़ में चाय निकाल कर उसे देता है. वो कहती है कि ये उसने नहीं मंगाया और उसके पास पैसे नहीं हैं. जिस पर वो शख्स कहता है कि कोई बात नहीं तुम खा लो ये तुम्हारे लिए ही है. इतना कह कर वो चला जाता है. 

वो देखती है लिफाफे में समोसे और जलेबी है. उसकी भूख अभी इतनी तेज है कि वो ये भी नहीं सोचती कि ये किसने भेजा होगा. वो इस समय अपने बाबा की कही ये बात भी भूल गयी कि सफ़र में किसी के हाथों से कुछ नहीं खाना चाहिए. वो बच्चे की तरह खा रही है. उसने झट से दो समोसे और एक जलेबी ख़त्म कर चाय पी ली है. पेट भरने के बाद उसे फिर से नींद आ गयी है. थोड़ी देर में बस चल दी है.

इधर छुन्नू सेठ अपने चमचों पर बरस रहा है. कोई भी रेश्मा को खोज कर नहीं ला पाया है. किसी को नहीं पता कि वो कहाँ चली गयी. छुन्नू सेठ कहता है…

छुन्नू सेठ- “साला तुम लोगों को मुफ्त का माल पाने की आदत पड़ गयी है. शराब इन्हें रोज चाहिए लेकिन एक काम बोलो तो वो नहीं हो पाता इनसे. ये मुश्टंडे छ्टांग भर की लड़की को नहीं खोज पाए. अरे जमीन निगल गयी या असमान खा गया उसे? निकली तो इसी गाँव से होगी ना.” 

अभिराज उसे शांत करने की कोशिश में लगा हुआ है. वो उससे कहता है उसे अब अपना ध्यान अपने धंधे पर लगाना चाहिए. इस रेशमा के चक्कर में कई दिनों से कारोबार सही नहीं चल रहा. दरअसल छुन्नू गाँव में नकली शराब बनाता है और अभिराज उस पर ब्रांड का लेबल चिपका कर उसे महंगे दाम में बिकवाता है. उनका ये नकली शराब का धंधा उनकी कमाई का सबसे बड़ा जरिया है. मगर इन दिनों उसके सारे लड़के सिर्फ रेश्मा के पीछे ही लगे थे, छुन्नू भी धंधे पर ख़ास ध्यान नहीं दे रहा था. अभिराज भले ही छुन्नू की तरह ही अय्याश है लेकिन उसे पता है कि उनकी अय्याशी भी इसी धंधे के दम पर है. वो एक बिल्डर के काम से जितना पैसा कमाता है शराब का धंधा उसे उससे 20 गुना ज्यादा मुनाफा देता है. 

अभिराज छुन्नू से कहता है कि एक लड़की के पीछे इतना भागना सही नहीं है. अब उसे रेश्मा का चैप्टर क्लोज कर के अपने काम पर ध्यान देना चाहिए. जल्द ही रेश्मा जैसी कोई दूसरी लड़की उसके जाल में फंस जायेगी. छुन्नू को अभिराज की बातें सही लगती हैं और वो अपने लड़कों से कहता है कि अब के बाद रेश्मा की कोई बात नहीं होगी. सब लोग अपने काम पर लगेंगे. 

वहीं कंडक्टर ने रेशमा को ज़ोर की आवाज़ देते हुए जगाया है. उस लड़की के डांटने के बाद उसकी हिम्मत नहीं हो रही कि वो उसे छुए और हिला कर जगाये. उसने कितनी आवाजें दी हैं फिर जा कर रेश्मा की आँख खुली. कंडक्टर ने बताया कि लखनऊ आ गया है. वो देखती है बस में अब बस वही बची है. वो बस से उतरते ही हैरान रह जाती है. शाम के समय यहाँ बहुत भीड़ है. उसने इतनी भीड़ पहले कभी नहीं देखी. उसे लग रहा है कि सब लोग उसी को घूर रहे हैं. वो अपना चेहरा दुपट्टे से ढकने की कोशिश कर रही है. 

वो बस स्टैंड से निकलने के लिए सबसे रास्ता पूछ रही है. उसकी आवाज़ में डर साफ़ महसूस हो रहा है. वो डरते डरते बस स्टैंड से बहार निकली है. उसे पता भी नहीं कि उसको जाना कहाँ है. शहर के रंग देख कर वो बहुत घबरा गई है. ऐसे में उसने एक बंद दुकान का कोना पकड़ लिया और वहीं बैठ गई, कुछ लफंगे लड़के उसे घूरते हैं. कुछ देर बाद वो लड़के रेशमा की ओर बढ़ते हैं. 

इस अनजान से बड़े शहर में रेश्मा कहाँ जायेगी? 

क्या एक और अनहोनी रेश्मा का इंतज़ार कर रही है? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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