बस की खिड़की से रेश्मा की नजरें पल्लो को ढूंढ रही हैं, वो चाहती है कि आखिरी बार वो पल्लो को देख ले. उसने जब पल्लो से कहा था कि उसने पहले कभी उस जैसी दबंग लड़की नहीं देखी तो पल्लो ने जवाब दिया था, “हालात मोम को भी फौलाद बना देते हैं. रेशमा भी एक दिन फौलाद बन जाएगी.” रेशमा के दिमाग में उसकी ये बात घूम रही है. बस चल पड़ी है. बस स्टैंड से निकलने वाली है. रेश्मा और पल्लो का साथ और लखनऊ का ये सफ़र यहीं ख़त्म होने जा रहा है. तभी बस का ड्राइवर अचानक ब्रेक मरता है. सभी सवारियां पूरी तरह हिल जाती हैं. लग रहा है जैसे कोई बस के नीचे आ गया हो. 

कंडक्टर चिल्लाने लगता है की, “बस के आगे अचानक से कोई आ कर खड़ा हो गया है.” पल्लो से मिलने के बाद जिस डर को रेश्मा भूल चुकी थी, पल्लो से बिछड़ते ही वो डर उस पर फिर से हावी हो गया.. उसे लग रहा था कि कहीं छुन्नू के आदमियों ने उसे खोज तो नहीं लिया. तभी कंडक्टर से बहस करते हुए एक लड़की बस में चढ़ती है, रेशमा की तरफ बढ़ती है. उसे कुछ देर देखती है और उसकी कलाई पकड़ कर उसे नीचे उतारने लगती है. ये पल्लो है, जिसने बस रोकी और रेशमा को नीचे उतार लिया. रेश्मा समझ नहीं पा रही कि ये हो क्या रहा है. 

नीचे उतरने के बाद उसे याद आता है कि टिकट के पैसे भी वापस लेने हैं. वो रेश्मा के हाथ से टिकट ले कर कंडक्टर को देती है मगर कंडक्टर कटा हुआ टिकट वापस लेने से मना कर देता है. इस पर पल्लो उसे धमकाते हुए कहती है…

पल्लो- “पैसे तो बेटा हम तुमसे ले ही लेंगे भले यहाँ दो या फिर रास्ते में. बस तो कुड़िया घाट हो के ही जाएगी ना?” 

कुड़िया घाट का नाम सुनते ही कंडक्टर टिकट वापस लेकर पैसे दे देता है. वो पल्लो को घूरता है और पल्लो जाते जाते भी उसे दो गालियाँ सुना देती है. रेश्मा अभी भी नहीं समझ पा रही कि ये सब क्या हो रहा है. पल्लो कंडक्टर से निपट कर रेश्मा की तरफ देखती है. रेश्मा की आंखों में उसे सवाल दिखता है. वो उसे फिर से उसी ढाबे पर ले जाती है. दो कप चाय मांगती है. अपने ठंडे हाथों को मलते हुए रेशमा से कहती है..

पल्लो- “यार मैं सोच रही थी कि रिश्तेदार तो सही समय पर सगे नहीं होते और अभी तुझ पर तो दुखों का पहाड़ टूटा है. अगर तेरी मौसी ने तुझे अपने पास रखने से मना कर दिया तो तू क्या करेगी? यही सब सोच के हमने फैसला किया कि तू यहीं हमारे पास लखनऊ में रह ले.” 

पल्लो की इस बात पर रेशमा उसको शुक्रिया बोलती है लेकिन कहती है कि वो उस पर बोझ नहीं बनना चाहती. रेशमा के मुताबिक उसकी किस्मत ऐसी है कि वो जिसको अपना करीबी मानती है. उन सब पर मुसीबत का साया मंडराने लगता है. 

पल्लो- “देख बहन अपना सबसे पहला उसूल है किसी पर भी एहसान मत करो. एहसान इंसान को कमज़ोर बना देता है और हम कभी नहीं चाहे कि कोई हमारे आसपास का बंदा कभी कमज़ोर फील करे. इसलिए जिसके लिए जो भी करते हैं, वो फ्री फ़ोकट नहीं होता. बात ऐसी है कि हमारी एक सब्जी की दुकान है. बहुत बड़ी नहीं है लेकिन फिर भी हमारे अकेले से नहीं सम्भाली जाती. कोई ना कोई काम आ जाता है तो दुकान बंद करनी पड़ती है, धंधे पर असर पड़ता है. हमको उसके लिए चाहिए एक हेल्पर. अब पता नहीं कौन कैसा हो. पता चले जितना कमाई नहीं उतना वो गल्ले से गायब कर दे. तुम हमको जच रही हो ऊपर से मुसीबत की मार खा कर आई हो. इमानदार हो तभी तो इतना दुःख सह रही हो. तुमको काम, रहने का ठिकाना और पेट भर खाना तीनों मिलेगा, हमको एक ईमानदार साथी मिल जाएगी. अब बताओ क्या ये किसी पर बोझ बनना हुआ? बाकि तुम्हारी मर्जी, बलिया के लिए दूसरी बस भी लग ही गयी है. इतना ही मन हो मौसी से मिलने का तो शौक से जाओ.” 

रेशमा ने उसकी बातों पर गौर से सोचा, उसे ये बातें जम रही थीं. वैसे भी उसे पल्लो पसंद आ गयी थी. वो उसके साथ रहे और काम भी करे इससे बेहतर क्या ही हो सकता है. उसने पल्लो की बात ,मान ली. पल्लो भी मुस्कुरा दी और चैन से चाय की चुस्कियां लेने लगी. 

पल्लो आगे-आगे चल पड़ी, रेशमा उसके पीछे पीछे है. उसकी जिंदगी का बिलकुल नया और फ्रेश चेप्टर शुरू होने जा रहा है. यहाँ उसके लिए दोस्त नया है, माहौल नया है. उसके पास पहने हुए कपड़ो के सिवा पिछली जिंदगी का कुछ नहीं. वैसे तो लोगों को पूर्व जन्म का कुछ याद नहीं रहता लेकिन रेश्मा को उसके पूर्व जन्म का सब याद है, वो रतौली गाँव, वहां के लोग, छुन्नू सेठ और उसके साथी, अपने साथ हुई ज्यादती, उसके मरे हुए माँ बाप, वो कुछ नहीं भूली है. उसने अपने अंदर एक आग जला ली है और इन सबके चेहरे उस आग को धीरे धीरे भड़का रहे हैं. फ़िलहाल वो अपनी इस नयी जिंदगी की तरफ ध्यान दे रही है. पल्लो ने उसे ऑटो में बिठा लिया है और पूरे लखनऊ की सैर कराते हुए उसे कुड़िया घाट ले जा रही है. 

जिस तरह से रेश्मा लखनऊ की सड़कें, सड़कों पर दौड़ती गाड़ियाँ, किनारों पर लगे बड़े बड़े नेताओं के बड़े बड़े बैनर ये सब देख रही है, उससे पल्लो को साफ़ पता चल रहा है कि आज से पहले उसने कभी कोई बड़ा शहर नहीं देखा. वो उसे देख कर मुस्कुरा देती है और सोच रही है कि इतनी प्यारी लड़की ने उस रतौली जैसे नर्क में इतने साल कैसे काटे होंगे. 

ऑटो में रेश्मा पल्लो से उसके परिवार के बारे में पूछती है. वो पहले कुछ भी बताना नहीं चाहती थी मगर जब रेश्मा कहती है कि दोस्तों को एक दुसरे के बारे में सब पता होना चाहिए तब वो अपनी कहानी बताती है ki उसके माँ बाबा उसे एक छोटे से गाँव से सबको साथ लेकर लखनऊ आये थे. तब पल्लो 10 साल की और उसका भाई 2 साल का था. वो इस नए शहर में आ कर बहुत खुश थी. उसने पहली बार मोटर गाडी देखी, इतनी बड़ी इमारतें देखीं. उसे ये सपनों की नगरी लगती थी. उसके बाबा यहाँ सब्जी का ठेला लगाने लगे. पूरे दिन की मेहनत के बाद वो परिवार के खाने, पहनने लायक कम लेते थे. वो लोग अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थे. 

पल्लो का भी बस्ती के स्कूल में दाखिला हो गया था. तीन साल तक सब ठीक रहा, उसके बाबा का काम भी पहले से अच्छा चलने लगा था. मगर फिर एक दिन उनकी खुशियों को किसी की नज़र लग गयी. पल्लो हर शाम अपनी माँ के साथ बाबा के ठेले पर जाया करती थी. वहां उसे रोज़ कुछ ना कुछ मजेदार खाने को मिल जाता था. वो इसी लालच में वहां जाया करती थी. रात को वो सब साथ में ठेला लेकर लौटते. उस रात भी वो सब लौट रहे थे. बारिश के दिन थे इसलिए काफी सब्जियां बच गयी थीं. सब हंसी मजाक करते हुए चले आ रहे थे. तभी किसी अमीरजादे ने नशे की हालत में ठेले को ठोकर मार दी. 

सारी सब्जियां कीचड़ में गिर गयीं. बाबा ने जब उससे कहा कि उनका इतना नुकसान हो गया है तो वो गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगा. गाड़ी में से दो लोग निकले और पल्लो के बाबा को मारने लगे. पल्लो को गुस्सा आया और उसने एक पत्थर उठा कर मार दिया. पत्थर उनमें से एक की आँख के पास लगा और खून निकलने लगा. वो दोनों आग बबूला हो गए. उनमें से एक ने गाडी चला रहे अपने दोस्त को पल्लो के ऊपर गाडी चढ़ा देने के लिए कहा. पल्लो और उसका भाई गाडी के सामने खड़े थे. गाडी उनकी तरफ बढ़ी आ रही थी. पल्लो और उसके भाई को बचाने के लिए उसके माँ बाबा गाड़ी के सामने आ गए और भाई बहन को दूर धक्का दे दिया. गाडी उनको कुचलती हुई चली गयी. 

ये सब देख बाहर खड़े दोनों साथी घबरा गए और जल्दी से गाडी में बैठ वहां से भाग गए. उन कमीनों ने जाते हुए भी पल्लो के बाबा और माँ पर गाडी चढ़ा दी और मौके पर ही दोनों की मौत हो गयी. पल्लो और उसके भाई को बचाने के लिए उनके माँ बाप ने जान दे दी. पल्लो और उसका भाई इस दुनिया में अकेले रह गए. भाई को पालने के लिए पल्लो ने किताबें छोड़ काम करना शुरू कर दिया. उसे देखते देखते काफी हद तक अपने बाबा का काम समझ आ गया था. बाकी बस्ती वालों ने भी उसकी मदद की. उस दिन के बाद उसे हर अमीरजादे से नफरत सी हो गयी. उसने अपने माँ बाप के कातिलों को खोजने की भी कोशिश की लेकिन वो उसे फिर कभी नहीं दिखे. 

अपनी कहानी सुनाते सुनाते पल्लो रो पड़ी थी. उसे याद भी नहीं था कि आखिरी बार वो किसी के सामने कब रोई थी. रेशमा ने उसे गले लगा लिया. वो सोच रही थी कि दुनिया के हर गरीब को किसी ना किसी छुन्नू ने हमेशा रुलाया है. काश की वो दुनिया के हर एक छुन्नू को ख़त्म कर पाती. पल्लो ने उसे बताया कि बाबा और माँ की मौत के बाद वो खूब रोई, फिर उसने अपने भाई की तरफ देखा और खुद से वादा किया कि वो अब कभी नहीं रोएगी और उसका खुद से ज़्यादा ख्याल रखेगी. उस दिन के बाद पल्लो दुनिया से लड़ना और अपना हक़ लेना सीख गयी. वक्त वक्त पर उसकी मदद के लिए मसीहा बन कर कुछ लोग भी आते रहे. 

पल्लो की बातें ख़त्म होते होते कुड़िया घाट की बस्ती आ गयी थी. तंग गलियों में ऑटो का जाना मुश्किल था इसलिए वहां से उन्हें पैदल ही जाना पड़ा. रास्ते में पल्लो ने उसे अपनी छोटी सी दुकान दिखाई जो अभी बंद थी. उसके बाज़ार में आते ही कई लोग हाथ उठा कर उसे दुआ सलाम करने लगे. कितनों ने उसका हाल पूछा, कितनों से उसने हाल चाल लिया. उसे देख कर ही पता चल रहा था कि इस बस्ती में पल्लो के नाम का सिक्का चलता है. वो थी भी तो ऐसी ही, एक दम निडर. उसे देख कर रेश्मा सोच रही थी कि उसे भी ऐसा ही बनना है. उसे अब सबसे डरना छोड़ना होगा. उसके पास अब खोने को है ही क्या! 

सबसे मिलते जुलते कुछ देर चलने के बाद पल्लो की खोली भी आ गयी थी. पल्लो के घर की इमारत सैकड़ों साल पुरानी लग रही थी. पुरानी इंटों से बना ये मकान बता रहा था कि वो हर 50 साल बाद होने वाली मरम्मत के दम पर खड़ा है वर्ना उसमें खड़े रहने की अब हिम्मत नहीं बची. मकान का दरवाजा मकान से भी पुराना लग रहा था. उस पर लगी सांकल डोर बेल का काम करती थी. पल्लो ने जब सांकल को दरवाजे पर पीटा तो अंदर से एक दुबले पतले लड़के ने दरवाजा खोला. 

14 साल का ये लड़का पल्लो का भाई है. जिसका नाम सोनू है. उसने रेश्मा को देखा और काफी देर तक ये जानने की कोशिश करता रहा कि ये कौन हो सकती है. अंदर घुसते हुए पल्लो ने कहा…

पल्लो- दीदी है, घूरना बंद कर और नमस्ते कर..

क्या पल्लो से रेशमा की दोस्ती उसके ज़ख्मों को भर पायेगी? 

क्या पल्लो की इस छोटी मगर खुशहाल दुनिया में रेश्मा के अंदर की आग बुझ जाएगी?  

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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