बड़ी पुरानी कहावत है कि खून के रिश्ते भगवान चुनता है, मगर दोस्ती का रिश्ता हम खुद चुनते हैं. इसलिए दोस्त कई बार हमारे लिए वो कर जाते हैं जो कभी कोई अपना सगा नहीं कर पाता. रेश्मा के पास ना तो कोई सगा बचा था और ना उसे किसी से अब उम्मीद थी. पल्लो अगर दबंग टाइप की लड़की ना होती तो रेश्मा उससे भी दोस्ती ना करती. पल्लो ने रेशमा की मदद की थी इसलिए वो उसे पसंद नहीं करती थी, बल्कि वो उसे उसकी हिम्मत के लिए पसंद करती थी. उसने उसकी तरह की लड़की पहले कभी नहीं देखी थी.
उसके गाँव में तो बताया गया था लड़कियां बस घर सम्भालने और अपने पतियों को खुश रखने के लिए बनी हैं. उसने अपनी माँ से लेकर गाँव की बाकी औरतों और लड़कियों को इसी तरह चुप चाप उम्र भर काम करते देखा था. पल्लो तो अकेली ही सबसे भिड़ जाने वाली लड़की थी. तभी तो पल्लो पर उसे एक ही दिन में इतना यकीन हो गया था कि बिना सोचे उसके साथ चल पड़ी. होने को तो ये भी हो सकता था कि पल्लो बॉलीवूड की फिल्मों की तरह रेश्मा को किसी कोठे पर ले जा के बेच देती मगर पल्लो वैसी नहीं थी उसने तो अब रेश्मा को एक घर और छोटा सा परिवार दे दिया था. जिसमें उसका भाई था, वो थी और बस्ती के उसके दोस्त थे.
पल्लो के दरवाजा पीटने पर उसके भाई सोनू ने दरवाजा खोला. वो रेश्मा को एक टक घूरे जा रहा था. हीरे की यही तो खासियत है कि वो चाहे लाख धूल में सना हो, मगर उसकी चमक नहीं कम होती. मैले कपड़ो और चेहरे पर आये चोट के कई निशान के बाद भी वो सोनू को किसी देवी से कम नहीं लग रही थी. पल्लो के टोकने के बाद उसकी नजर हटी थी रेश्मा से. उसने पल्लो से पूछा कि ये कौन है. ये सवाल उससे पहली बार किया गया था. बाजार में मिलने वाले लोगों ने अभी रेश्मा पर ध्यान नहीं दिया था इसलिए किसी ने कुछ नहीं पूछा था.
पल्लो ने भी नहीं सोचा था कि वो इसके बारे में सबको क्या बताएगी क्योंकि रेश्मा कोई आम लड़की नहीं थी जिसके बारे में वो कोई भी कहानी बना कर कह दे कि उसे नौकरी के लिए लायी है. उसने बिना ज्यादा सोचे कह दिया कि ये उनके दूर की मौसी की लड़की है. मकान गिरने की वजह से इसके माता पिता चल बसे, लेकिन ये बच गयी. उसके शरीर के जख्म देख कर ये कहानी थोड़ी बहुत सच्ची लग रही थी. उसने सोनू से कहा कि ये हमारी बहन है.
सोनू बहुत खुश था क्योंकि उसके यहाँ कभी कोई मेहमान नहीं आता था और ना ही उसे अपने किसी रिश्तेदार के बारे में पता था. वो बस्ती में जब किसी के यहाँ रिश्तेदार आते हुए देखता तो उसे बहुत दुःख होता था लेकिन अब उसके यहाँ उसकी एक ऐसी रिश्तेदार आई है जो अब उनके साथ ही रहने वाली है. वो इतना खुश है कि आज बिना चार बार कहे ही भाग के दूध लाया है और चाय बनाने लगा. उसको ऐसा करते देख पल्लो हैरान है. वो रेश्मा से कहती है..
पल्लो- “बहन कमाल है तू, आज पहली बार इसे किसी के लिए इतना भाग दौड़ करते देख रही हूँ. और चाय, वो तो मैं मरती भी रहूँ और इसे कहूँ कि तेरे चाय पिलाने से मैं जी जाउंगी. तब भी ये ना पिलाए. बेटा, सब समझ रही हूँ सुन्दर लड़की को इम्प्रेस करने के जुगाड़ भिड़ा रहा तू मगर कान खोल के फिर से सुन ले, ये बहन है तेरी. चांस मारने की सोचना भी मत.”
उसकी बात सुन कर सोनू शर्मा जाता है. वो पल्लो की तरफ तकिया फेंकता है. रेश्मा हैरान है कि वो अपने भाई से कैसे बात कर रही है. उसकी भी हंसी छूट जाती है. रेश्मा चाय पीती है. पल्लो और सोनू उसको अपने किस्से सुनाने लगते हैं. रेश्मा का कोई भाई नहीं था, कभी किसी दूर ki रिश्तेदारी से भी कोई उससे राखी बंधवाने नहीं आया. गाँव में भी सबने उसे एक सुन्दर लड़की की तरह ही देखा, किसी ने कलाई आगे कर के नहीं कहा कि “दीदी राखी बांध दो.” उसे कभी भाई बहन की नोंक झोंक और प्यार वाला सुख मिला ही नहीं. पल्लो और सोनू को देखते हुए ऐसा लग रहा था जैसे कोई अपनी सबसे पसंदीदा फिल्म देख रहा हो और चाहता हो कि ये फिल्म खत्म ही ना हो. बीच बीच में उसका मन कर रहा था खूब रोए मगर वो किसी तरह का ड्रामा नहीं करना चाहती थी इसलिए वो बस हँसते मुस्कुराते दोनों की बातें सुनती रही.
बातों बातों में सोनू के स्कूल का टाइम भी बीत गया था. उसे पल्लो से इसके लिए बहुत डांट सुननी padi. अभी कुछ देर पहले तक उस पर जान लुटाने की बातें करने वाली पल्लो ने स्कूल की बात आते ही उसे बुरी तरह डांटना शुरू कर दिया. थोडा शांत होने के बाद उसने सोनू से कहा कि वो रामू की दूकान से नाश्ते के लिए गरम गरम कचौरी छोले और जलेबी ले आये. गुस्साई पल्लो को सोनू मना नहीं कर पाया. वो चला गया. उसके जाने के बाद पल्लो रेश्मा को उसके बारे में और बताने लगी.
पल्लो- “हम कभी अपने लिए कोई सपना नहीं देखे. बिना ब्याह के ही एक माँ की तरह हो गए हैं, जिसका अपने बच्चे को खुश देखने अलावा और कोई सपना नहीं. हम भी बस यही चाहते हैं कि ये पढ़ लिख कर इतनी अच्छी जिंदगी जिए कि यहाँ की जिंदगी उसे पिछले जन्म की बातें लगने लगें. ये पढने में इतना अच्छा है कि इसके लिए बड़ा अफसर बनना कोई मुश्किल बात नहीं मगर इसकी सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि ये स्कूल नहीं जाना चाहता. यहाँ के लोग बहुत अच्छे हैं लेकिन उनकी और उनके बच्चों की सोच इसी बस्ती तक है. कई बच्चे अभी से सिगरेट शराब पीने लगे हैं. इसे कैसे कहें कि उनके साथ मत घूम. इसका दाखिला शहर के अच्छे स्कूल में कराया, जिससे कि ये ज्यादा टाइम उधर ही बिज़ी रहे. अभी देखना तू, कचौरी लाने में बहुत से बहुत 15 मिनट का टाइम लगता है मगर ये एक घंटे तक लौटेगा. कहेगा बहुत भीड़ थी मगर ये बस्ती के लड़कों के साथ बातें बना रहा होगा. हमको इसकी फ़िक्र लगी रहती है. इस तरह हम कितना बचा पाएंगे इसको बुरी आदतों से.”
दुनिया के सामने डट कर खड़ी हो जाने वाली इस 23 साल की लड़की की आँखों में रेश्मा को वही फ़िक्र दिख रही थी जो उसे उसकी माँ सुजाता की नजरों में दिखती थी. वो सच में सोनू के लिए माँ ही थी. अब उसकी जिंदगी का बस एक ही मकसद था कि सोनू को एक अच्छा इंसान बना कर उसे एक अच्छी जिंदगी देना. सोनू नाश्ता लेकर आ गया था. उसने सच में देरी के लिए वही बहाना बनाया था जो अभी थोड़ी देर पहले पल्लो ने उसे कहा था. इस बात पर दोनों हँसे और सोनू उनका मुंह ही देखता रह गया.
पल्लो ने नाश्ते के बाद रेशमा को यहाँ रहने के कुछ कायदे क़ानून बताये. उसने कहा कि यहाँ हर घर में सिर्फ रहने की खोली और छोटा सा किचन मिलता है. बाक़ी हर वार्ड के लिए दो दो टॉयलेट और बाथरूम बने हैं. इस वार्ड के 20 खोली के लोग उन्हीं में नहाने जाते हैं. अगर आराम से हल्का होना है तो सुबह 5 बजे से पहले या दिन में 11 बजे के बाद जाना पडेगा. क्योंकि इस बीच बहुत लम्बी लाइन लगी रहती है और सबको 5-5 मिनट ही मिल पाते हैं. पीने के पानी के लिए नल में सुबह 6 से 8 पानी आता है. इस बीच पानी भर लिए तो ठीक नहीं तो फिर शाम को 6 बजे ही पानी आएगा.
यही एक चीज़ थी जो रेशमा को अपने गाँव से भी बुरी लग रही थी. उनके यहाँ हर घर में जुगाडू बाथरूम था. उन्हें बाहर नहीं जाना पड़ता था. वो थोड़ी सी घबराई हुई दिखी. पल्लो उसकी घबराहट समझ गयी. उसकी टेंशन को थोडा कम करने के लिए उसने कहा कि वो उसके नहाने का जुगाड़ तो कर सकती है. हल्का होने के लिए उसे पब्लिक टॉयलेट ही यूज़ करना होगा. वो उसके लिए थोडा ज्यादा पानी ला देगी, जिससे वो सोनू के जाने के बाद खोली में ही नहा लिया करे. रेश्मा के पास और कोई चारा भी नहीं था. पल्लो ने सोनू को किसी काम से बाहर भेज दिया और रेशमा के नहाने का इंतजाम कर दिया.
रेशमा को लग रहा था जैसे वो ज़माने बाद नहा रही है. वो अपने बदन से अपनी पुरानी घिनौनी यादें उतार फैंकना चाहती है. वो अपने शरीर को पागलों की तरह नोचने लगी. चिल्लाते चिल्लाते उसने पूरी बाल्टी अपने ऊपर डाल ली. रेश्मा कुछ देर वहीं बैठी रोती रही.
शाम को पल्लो उसे अपने साथ उस बाजार में ले जाने लगी, जहाँ उसकी सब्जी की दूकान है. पल्लो ने रेशमा को अपना पुराना सूट सलवार दिया है जिसमें वो बहुत सुन्दर लग रही थी. कोई पहचान ही नहीं पा रहा था कि ये वही लड़की है जो सुबह पल्लो के साथ थी. हर कोई रेशमा को देख रहा है. पल्लो को जानने वाले उससे रेशमा के बारे में पूछ रहे हैं. पल्लो सबको बता रही है कि ये उसकी मौसी की बेटी है. हर कोई रेशमा की तारीफ कर रहा था. कोई उसके साथ हुए हादसे के लिए अफ़सोस जाता रहा था.
सभी लोग उससे ऐसे मिल रहे थे जैसे उसे बहुत पहले से जानते थे. बगल वाली खोली में रहने वाली ताई ने कहा कि उसे अगर किसी भी चीज़ की ज़रुरत हो तो उससे कह दिया करे. पल्लो के कहने पर रेशमा ने बगल में फल बेचने वाले किशोरी चाचा को नमस्ते किया. उसने बताया कि माँ बाबा की मौत के बाद उन्होंने ने ही उसकी मदद की, जिस वजह से वो दुकान चलाना सीख पाई. चाचा ने भी रेशमा को आशीर्वाद दिया और कहा कि वो दोनों मिल कर काम करें और खूब तरक्की करें.
रेश्मा सोच रही थी कि जिस गाँव में वो पैदा hui, वहाँ के हर मर्द को उसने दिल से चाचा-बाबा माना, हर औरत को माँ की तरह इज्जत दी, लेकिन वहां उसे कभी ऐसा अपनाप- प्यार और हिम्मत नहीं मिली. वहां सबने उसके पढने को लेकर हमेशा उसे ताने मारे थे. उसकी सुंदरता को हमेशा एक अभिशाप की तरह देखा, यहाँ तक कि उसके साथ गलत होने पर भी उसे ही गलत बताया. सबने खड़े हो कर उसकी बर्बादी का तमाशा देखा उसे डायन और कुलक्षणी कह कर उस पर पत्थर बरसाए. मगर यहाँ तो पहली बार मिलने पर ही उसे कितना प्यार मिल रहा है.
सोनू भी अपने बस्ती के दोस्तों को दुकान पर ले आया था. ये वो दोस्त थे जिन्हें पल्लो अच्छा मानती थी. वो सबको बता रहा था कि रेशमा उसकी दीदी है. उनमें कुछ लड़कियां भी थीं जो कह रही थीं, “सोनू तेरी दीदी कितनी सुन्दर है, बिलकुल गुडिया जैसी.” रेश्मा ने हमेशा अपनी सुंदरता की तारीफ़ सुनी थी लेकिन उस तारीफ में वासना की झलक दिखती थी मगर आज उसने पहली बार खुद की इतनी सुन्दर तारीफ सुनी थी. उसे खुश देख पल्लो ने सभी बच्चों को ब्रेड ऑमलेट की पार्टी दे दी थी.
पल्लो ने रेशमा को सोनू के साथ घर भेज दिया था. उसने सोचा कि वो थकी होगी. आज जल्दी सो जायेगी मगर जब वो घर पहुंची तो उसने देखा कि रेश्मा सोनू को पढ़ा रही थी. उसे नहीं पता था कि रेश्मा पढ़ना लिखना भी जानती है. सोनू को ऐसे पढ़ता देख उसका मन खुश हो गया. आज ये छोटी सी खोली भरे पूरे परिवार जैसी लग रही थी.
क्या रेश्मा ने जो प्यार आज बस्ती वालों की आँखों में देखा वो बरकरार रहेगा?
क्या उसे लखनऊ रास आएगा?
क्या वो अपने पुराने जख्म भूल जाएगी?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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