कई बार बिन मांगे ही वो सब मिलने लगता है जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की होती. रेश्मा के आने से पहले पल्लो दुकान और सोनू के बीच में पिस जाती थी. वो दूकान पर ध्यान देती तो सोनू पढ़ाई नहीं करता और सोनू की पढ़ाई पर ध्यान देती तो काम सही से नहीं चल पाता लेकिन आज दूकान से लौटने पर पल्लो ने जो नज़ारा देखा उससे उसे लगा कि भगवान ने बिन मांगे ही उसकी सुन ली हो. 

रेशमा 10वीं में पढ़ रहे सोनू को गणित के सवाल समझा रही थी. मज़े की बात थी कि सोनू चुप चाप बैठा बड़े अच्छे से समझ भी पा रहा था. पल्लो को हैरानी हुई ये जान कर कि रेश्मा इतनी पढ़ी लिखी है कि उसके दसवीं में पढ़ रहे भाई को भी पढ़ा रही है. वो कुछ देर दोनों को चुपचाप देखती रही. फिर वो किचन की तरफ बढ़ी ये सोच कर की खाना बना ले मगर उसे डबल हैरानी हुई क्योंकि खाना बन कर तैयार था. रेशमा ने बताया कि उसने और सोनू ने मिल कर खाना बना लिया था. पल्लो को पिछली बार इतनी ख़ुशी तब हुई थी जब सोनू उसके जन्मदिन पर अपने जमा किए हुए पैसों से एक घडी लेकर आया था. खाना खाते हुए पल्लो ने रेशमा से उसकी पढ़ाई के बारे में पूछा. उसने कहा..

पल्लो- हमको नहीं पता था तुम इतना पढ़ी हो कि सोनू को पढ़ा लो. हम समझे हमारी ही तरह पाँचवीं छठवीं ही पास होगी. वैसे कौन क्लास तक पढ़ी हो तुम? 

रेश्मा- इंटर किए हैं. इंटर में जिला टॉप किए थे. कलेक्टर साहब से इनाम भी मिला था और उसी दिन से…

रेशमा इससे आगे कुछ बोलना चाहती थी मगर सोनू को सामने देख चुप हो गयी. पल्लो और सोनू दोनों हैरान रह गए. पल्लो ये जान कर हैरान थी कि जिस गाँव में लड़कियों के पढ़ने पर पाबंदी थी. वहां से रेशमा ने जिला टॉप कैसे किया होगा. रेशमा ने ये भी बताया कि उसका सपना था कि वो टीचर बने. पल्लो रेश्मा के बारे में उतना ही जानती है जितना उसने अभी तक बताया है. 

पल्लो- वाह यार हम तो तुमको बहुत हलके में ले रहे थे लेकिन तुम तो एक दम बवाल चीज हो. ए सुनो ना, तुम ट्यूशन लेना क्यों नहीं शुरू कर देती? यहाँ के कुछ बच्चे हैं जो पढ़ना चाहते हैं मगर कोई अच्छा पढ़ाने वाला ही नहीं. जो हैं भी तो वो बहुत पैसा लेते हैं. 

रेश्मा- पढ़ा सकते हैं मगर पैसा नहीं लेंगे. पैसा ले कर ज्ञान बेचने वाला काम नहीं करेंगे.  

पल्लो- और टीचर बन जाती तो क्या मुफ्त में पढ़ाती? देखो हम तो यही जानते हैं कि मुफ्त में किया हुआ कोई भी काम बहुत आम बन जाता है. लोग उसे सीरियस नहीं लेते. हम कहाँ कह रहे तुम हजार दो हजार महीना लो बच्चों से. 100-50 जिससे जितना बन पड़े दे. फीस का बोलना ही मत कहना जितना हो पाए दीजिये. जब माँ बाप पैसा खर्च करेंगे तो बच्चों को भी टाईट करेंगे. बच्चे सीरियस हो कर पढेंगे. 

रेशमा को पल्लो की बात जची. उसे लगा इसी बहाने वो पल्लो का घर चलाने में कुछ हाथ बंटा पाएगी. पल्लो ने उसके बनाए खाने की भी खूब तारीफ की. सोनू ने मजाक में कह दिया कि उसने इतना अच्छा खाना पहले कभी नहीं खाया. जिस पर पल्लो चिढ़ गयी और कहने लगी कि अब वो सब चीजें रेश्मा से ही मांगे. वो उसे अब कुछ नहीं देगी ना उसका कोई काम करेगी. जिसके बाद सोनू उसे मनाने में लग गया. इधर रेशमा दोनों भाई बहनों की मीठी नोंक झोंक देखते हुए पता नहीं कब नींद में खो गयी. पल्लो ने भी उसे नहीं जगाया. वो जानती थी रेश्मा बहुत थकी हुई है. रेश्मा की आँख लगते ही उसे दिखता है कि, सुजाता रेश्मा की चोटी बना रही है. हरिया कह रहा है कि रेश्मा पूरी क्लास में फर्स्ट आई है. सब उसके घर बधाई देने आ रहे हैं. हरिया बहुत खुश है. वो छोटी रेश्मा को कंधे पर बिठाए हुए पूरे गाँव में घूम रहा है. रेशमा अपने हाथों से हरिया को लड्डू खिला रही है. हरिया लड्डू खाता है. धीरे धीरे रेश्मा बड़ी हो रही है. हरिया की खेती हर साल बढ़ती जा रही है. उनके घर अनाज के ढेर लगे हुए हैं. हरिया और सुजाता ने नए कपड़े पहने हुए हैं. रेश्मा ने भी बड़ी सुन्दर फ़्रोक पहनी हुई है. वो बिना किसी डर के पूरे गाँव में घूम रही है. रेश्मा बहुत खुश है, उसकी माँ उसे स्कूल जाने के लिए जगा रही है. रेश्मा उठ, स्कूल के लिए देर हो जाएगी. रेश्मा उठ स्कूल के लिए देर हो जाएगी….

रेशमा की आँख खुल जाती है. वो देखती है पल्लो सोनू को जगा रही है. सोनू उठ, स्कूल के लिए देर हो जाएगी. रेशमा मुस्कुराती है और फिर से आंखें बंद कर लेती है. रेश्मा को कभी भी अपने घर के अलावा कहीं और नींद नहीं आती थी. लेकिन आज एक अनजान शहर में एक अनजान घर के अनजान बिस्तर पर भी वो कई दिनों बाद चैन की नींद सोयी थी. उसे समझ आ रहा था कि एक लड़की के लिए सोने के नर्म बिस्तर से ज्यादा ज़रूरी है सुरक्षित जगह. जहाँ वो सुरक्षित महसूस करती है वहां वो ज़मीन पर भी चैन से सो सकती है. 

पल्लो ने बस में रेशमा को सोते देखा था, वो बार बार चौंक कर उठ जा रही थी, जैसे सपने में कोई भूत उसका पीछा कर रहा हो मगर आज वो चैन से सो रही थी. इसलिए उसने उसे नहीं जगाया. उसने रात ही बता दिया था कि वो लेट भी उठेगी तो चलेगा. वो ताई को लेकर टॉयलेट जा सकती है. घर में पानी रखा होगा उससे नहा सकती है और नाश्ता बना कर रखा होगा उसे खा ले. सोनू स्कूल चला गया था. पल्लो दुकान पर चली गयी. 

रेशमा की आँख जब खुली तो सामने दिवार पर टंगी घड़ी में 11 बज रहे थे. वो इतनी देर तक कभी नहीं सोयी थी. उसे लगा जैसे उसके देर तक सोने की वजह से पूरी दुनिया का काम रुक गया होगा. वो जल्दी से उठी और तैयार होने में लग गयी. वो आज पल्लो के साथ जा कर दुकान का काम सीखना चाहती थी. अब उसे हड़बड़ी में सब करना पड़ रहा है क्योंकि पल्लो तो पहले ही जा चुकी थी. 

उधर गाँव में आज छुन्नू सेठ काम से बाहर गया हुआ है. वो शाम तक लौटने वाला नहीं. उसके जाने के बाद टेकराम हवेली पर आया है. वो उसके रहते हुए अपनी बेटी से मिलने नहीं जाता. वो खुद को उसका गुनहगार मानता है. आज बहुत दिनों बाद वो अपनी बेटी का हाल चाल पूछने की हिम्मत जुटा पाया है. उसे पता है कि छुन्नू आज हवेली पर नहीं है. वो जब जाता है तो उसकी बेटी हवेली के एक कोने में बने मंदिर में बैठी पूजा कर रही thi. उसके पास पूरी हवेली में यही एक जगह थी जहाँ वो अपनी मन की बात बोल कर रो सकती थी. उसे लगता था कि भगवान उसकी सुनते भी हैं और उसका जवाब भी देते हैं. टेकराम मंदिर के अंदर जा कर एक कोने में बैठ गया. उसकी बेटी जान गई कि उसके टेकरम आये हैं फिर भी वो कुछ नहीं बोलती. टेकराम कहते हैं..

टेकराम- तेरा हाल चाल पूछने आये थे लेकिन वो तो हम पहले ही जानते हैं. लंका में मंदोदरी भी तुझसे ज्यादा खुश थी क्योंकि कम से कम उसका पति बस एक राक्षस था, हैवान दरिंदा नहीं. यहाँ तेरे ऊपर एक एक पल क्या बीतता है हम सब जानते हैं लेकिन इतने बेबस हो गए हैं कि कुछ कर नहीं सकते. ये सब हमारी ही तो ज़िद का नतीजा है. अगर हमने चाहा होता तो इस दरिन्दे से तेरी शादी ना होने देते मगर हमारी आँखों पर पट्टी बंधी थी. हमें माफ़ कर दे बेटी…

इतना कह कर टेकराम की आँखों से माफ़ी के आंसू बहने लगते हैं. वो हाथ जोड़े हुए रोता रहता है. उसकी बेटी उसकी तरफ मुड़ती है. उसका चेहरा जो कभी हरियाली मैदान जैसे खिला हुआ रहता था, आज अकाल की जमीन की तरह सूख चुका है. उसकी आँखों में अब पानी नहीं बचा. वो अब किसी भी सूरत में हंसती नहीं. वो अपने पिता के सामने आ कर बैठ गयी. उसने बिना कुछ बोले चरणामृत और प्रसाद दिया. टेकराम ने भी रोते हुए ही हाथ आगे बढ़ा दिया. बेटी का ये बंजर जमीन जैसा सूखा चेहरा देख उनका कलेजा फट रहा था. उनको रोता देख उनकी बेटी कहती है…

उन्नति- “बाबा आपकी गलती नहीं है. हम सब इस दुनिया में किसी ना किसी बहाने अपना पाप काटते हैं. आपने गरीबों से मोटा ब्याज खाया, एक उम्र तक उनके खून पसीने की कमाई से अपना साम्राज्य खड़ा किया. भले ही आपने किसी को अपने हाथों से कष्ट ना दिया हो लेकिन आपके ब्याज ने बहुत से घर बर्बाद कर दिए. उनके आंसुओं के प्रकोप से एक ऐसी अनदेखी बाढ़ आई कि आपका साम्राज्य बह कर एक हैवान के हाथों में आ गया. मुझे इस बात की सजा मिली क्योंकि अनजाने में मैंने भी वही अन्न खाया जो गरीबों के खून में सना हुआ था. सोचिये जब अनजाने में पाप कर के हम इतना भोग रहे हैं तो जो खुलेआम पाप कर रहा है उसकी क्या हालत होगी. महादेव ने हमें इशारा दिया है. उसका अंत हर पल के साथ उनके नजदीक आता जा रहा है. हम दोनों को अपने पापों का प्रायश्चित करने का मौका मिलेगा. आप मेरी चिंता छोड़ कर खुद को मजबूत बनाइये.” 

ये सब कहते हुए उसकी आँखों में रत्ती भर डर नहीं था. उसकी आवाज़ में एक ऐसी हिम्मत थी जिसने टेकराम जैसे बूढ़े की हड्डियों में भी जोश भर दिया. उसे अपनी बेटी की कही बातों पर यकीन होने लगा. 

‘उन्नति’ जैसा नाम वैसे ही लक्षण. टेकराम के घर जब उन्नति ने जन्म लिया उसके बाद उसकी बरकत और बढ़ने लगी थी. वो सरपंच बना. भर भर के पैसा घर आने लगा. उन दिनों छुन्नू उसके यहां काम करने वाला एक साधारण नौकर था. छल कपट में उसका दिमाग बहुत तेज था. धीरे धीरे उसने अपना विश्वास जमाया. खुद से हमले करवा कर टेकराम को बचाया और उसका सबसे ख़ास आदमी बन गया. छुन्नू उसी की बिरादरी का था उसके लिए भरोसेमंद था. वक्त के साथ पूरे गाँव में उसकी पकड़ भी बन रही थी. उसने तब तक अपने कैरेक्टर को भी साफ़ रखा था. टेकराम ने सोचा उसे उसकी बेटी के लिए उससे अच्छा लड़का नहीं मिलेगा. उन्नति अपनी सहेलियों से छुन्नू की बुरी नजर के बारे में जान गयी थी. उसने अपनी माँ से भी कहा लेकिन उसकी नहीं सुनी गयी. टेकराम ने अपना फरमान सुना दिया था और दोनों की शादी करवा दी थी. उन्नति से शादी करने के बाद धीरे धीरे उसने टेकराम से सब छीन लिया और उसके पूरे साम्राज्य पर खुद राज करने लगा. अब टेकराम गाँव का एक साधारण पंच है और छुन्नू के दिए मुआवजे से अपना पेट पाल रहा है. टेकराम को अपनी दौलत खोने से ज्यादा अपनी बेटी के लिए दुःख लगता है. 

इधर रेश्मा नहाने जा रही है. तभी किसी ने ऐसे दरवाजा खटखटाया, जैसे वो इसे तोड़ देगा. सामने वाला कोई नाम नहीं पुकार रहा था, बस दरवाजा खटकाये जा रहा था. दरवाजे पर हुई इस अनजान दस्तक रेशमा के दिमाग में बहुत सी बातें चलने लगी. उसने अनहोनी के डर से कोने में पड़ी लाठी उठा ली. उसने अंदर से कुंडी खोली ही थी कि एक गुंडे जैसे दिखने वाले लड़के ने अंदर कदम रखा. जैसे ही उसने कदम रखा, वैसे ही रेश्मा ने उस पर आँख बंद कर के लाठी चला दी.      

क्या छुन्नू के गुंडे रेश्मा को खोजते हुए लखनऊ की इस बस्ती तक आ गए थे? 

क्या रेश्मा खुद को उस गुंडे से बचाने में कामयाब हो पाएगी? 

जानेंगे अगले चैप्टर में!

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