विक्रम: "हमें कोई दूसरा रास्ता ढूंढ़ना होगा...इस तरफ़ हम नहीं जा पाएंगे!"
अर्जुन की टीम उन गिरती हुई दीवारों और बिखरते हुए महल से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी। अचानक डॉक्टर मीरा का पैर भागते हुए एक दरार में फंस गया, विक्रम उसकी मदद करने के लिए झुका तो उसे कमरे के कॉर्नर में एक छोटा-सा एक दरवाज़ा दिखाई दिया। मीरा को दरार में से निकालने के बाद, उसने अर्जुन को वह दरवाज़ा दिखाया।
विक्रम: मास्टर। देखों उस तरफ़ एक छोटा दरवाज़ा है।
अर्जुन ने बिना समय बर्बाद किए टीम को उस रास्ते की ओर मोड़ दिया। महल के ख़तरे अब भी उनके पीछे थे। गिरते हुए पत्थरों के बीच से निकलते हुए वह सभी दरवाज़े तक पहुँच गए। उसके बाद टीम सभी रुकावटों को पार करते हुए, महल के पिछले दरवाजे से बाहर निकलने में कामयाब हो गयी। उनके वहाँ से निकलते ही पूरा महल पत्थरों के ढेर में बदल गया।
सब बाहर निकलकर आसमान में सूरज को ढलता हुआ देख रहे थे। अँधेरा धीरे-धीरे घना हो रहा था। सभी की सांसें तेज चल रही थीं, लेकिन उन्होंने जादुई दर्पण ' की पहेली को हल कर लिया था।
अर्जुन: "हमने इसे कर दिखाया। अब हमारे पास शिलालेख का एक और टुकड़ा है, जो एक और मैप की तरह दिख रहा हैं।"
अब टीम अर्जुन के पास एक और संकेत था, लेकिन इसका मतलब था कि उन्हें और ख़तरों का सामना करना पड़ेगा। जादुई दर्पण महज़ एक चुनौती थी—आगे की राह और भी कठिन और रहस्यमयी थी। टीम अर्जुन उस सुरंग वाले दरवाज़े से गुज़रते हुए वापस उस जगह पहुँच गई, जहाँ उन्हें वह धुंध वाला चेहरा मिला था।
दूसरी तरफ़ राजवीर के साथ कर्नल बैठा हुआ था। कर्नल अपने आदमियों के क़ातिल से बदला लेने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। तभी वहाँ मानसिंह और उसके दो लोग एक आदमी को पकड़ कर ले आए। उस आदमी के हाथ बंधे थे और उसके चेहरे पर कपड़ा ढँक हुआ था। कर्नल ने मानसिंह से पूछा "क्या यही है वो, जिसने मेरे आदमी मारे थे।" मानसिंह ने जवाब देते हुए हाँ में सर हिलाया।
मानसिंह ने उसके चेहरे पर से कपड़ा हटाया, ये आदमी कोई और नहीं बल्कि राहुल था। उसके मुँह पर अब भी एक कपड़ा बंधा था, राहुल गुस्से से मानसिंह और राजवीर को देख रहा था। ऐसा लग रहा था, वह मानसिंह को दोस्ती का नाटक करने के लिए गालियाँ दे रहा हो। कर्नल ने उसके मुँह पर से पट्टी निकालने को कहा, तो राजवीर के माथे पर टेंशन की लकीरें साफ़ दिखने लगी। कर्नल राहुल से बात करता तो उनका राज़ खुल जाता और मानसिंह भी फंस जाता।
कर्नल कि बात मानकर उन्हें उसका मुँह खोलना ही पड़ा। राहुल का मुँह खोलते ही राजवीर की जान में जान आ गई। राहुल की जीभ मानसिंह पहले ही काट चुका था। वह कुछ बोल नहीं पा रहा था। कर्नल ये देखकर हैरान रह गया उसने मानसिंह से पूछा "किसने किया ये सब।" मानसिंह ने कर्नल से कहा कि "जब वह इसे पकड़ रहे थे तब इसने ख़ुद अपनी जीभ काट ली, ताकि कोई इसका मुंह नहीं खुलवा सके। ये उस अर्जुन का वफादार लगता है।"
कर्नल के सर पर खून सवार था, उसने गुस्से में अपना चाकू निकाला और राहुल के अंदर घुसा दिया। कुछ देर में उसकी जान निकल गयी। स्नेहा कि आँखों से आंसू बह रहे थे, वह झाड़ियों पीछे से ये सब देख रही थी। उसने ठान लिया कि वह राहुल की मौत का बदला कर्नल से ज़रूर लेगी।
उधर जादूई दर्पण पहेली हल करने के बाद अर्जुन और उसकी टीम के पास शिलालेख का नया टुकड़ा था। हवा में एक अजीब-सी ठंडक महसूस हो रही थी और चारों तरफ़ घना जंगल था। उस रात साफ़ आसमान में पूरा चाँद निकला हुआ था, जिसकी रौशनी जंगल में फैली थी, फिर भी जंगल कि ख़ामोशी डरवानी लग रही थी। अर्जुन के चेहरे पर कॉन्फिडेंस था, लेकिन भीतर एक अनजाना डर भी था।
टीम के सभी सदस्य अपनी-अपनी सोच में डूबे हुए थे। अर्जुन बार-बार शिलालेख को देख रहे थे, मानो उसमें छिपे रहस्यों को समझने की कोशिश कर रहे हो।
आइशा: “मास्टर, ये शिलालेख बहुत ज़रूरी लगता है, लेकिन क्या आप इसे सही से समझ गए हैं? "
अर्जुन: "मुझे लगता तो यही है कि मैंने इसे सही-सही समझ लिया है... टीम आज रात हमें यहीं रुकना होगा। आगे सुरक्षित जगह देखकर हम टेंट्स लगाएंगे"
टीम चाँद कि रोशनी में आगे बढ़ रही थी। कुछ ही दूर जाकर उन्हें चट्टानों से घिरी हुई खाली जगह दिखी। सबने अपने बैग उतारे और उस जगह बैठ गए। उस जगह बैठें-बैठें अर्जुन कि नज़र उन पत्थरों के पीछे किसी साये पर पड़ी। अर्जुन अपनी जगह से डर के साथ उठे और आहिस्ता-आहिस्ता उस तरफ़ बढ़ने लगे। हर क़दम के साथ उनकी धड़कने तेज हो रही थी।
चट्टानों के पीछे से उन्होंने देखा, सामने एक बड़े बाल वाला एक आदमी बैठा हुआ था। उसका चेहरा दूसरी तरफ़ था, उसकी पीठ अर्जुन कि तरफ़ थी। उसके भारी भरकम शक्तिशाली शरीर को देखकर एक पल के लिए अर्जुन काँप गए। धीरे-धीरे वह उसके सामने पहुँचे तो देखा उसकी आँखें बंद थी, लेकिन उन्होंने इसके साथ ऐसा भी कुछ देखा, जिसने उनके होश उड़ा दिए। अर्जुन घबरा कर वापस टीम की तरफ़ भागे।
विक्रम: मास्टर क्या हुआ आप घबरा क्यों रहे है और कहाँ से भागे आ रहे है।
अर्जुन: वहाँ पर। वहाँ पर एक बहुत बड़ा आदमी है...और उसके माथे से खून की धार लगातार निकल रही है, वह फिर भी आँखें बंद करके बैठा है... मैंने आज तक इतना बड़ा आदमी नहीं देखा है। विक्रम...उसकी लम्बाई बारह फ़ीट के आसपास होगी...उसके पूरे शरीर पर ज़ख़्मों के निशान है।
सभी लोग मास्टर की बात सुनकर हैरान थे, मास्टर का घबराना कोई आम बात नहीं थी, वह कम ही मौक़ों पर ऐसे घबराते थे। सभी ने वहाँ जाकर देखने का फ़ैसला किया और उस आदमी के पास पहुँचे। उसकी आँखें बंद थी, लेकिन उसके ज़ख़्म देखकर लगता था, उस पर किसी ख़ूँख़ार जानवर ने हमला किया होगा।
टीम को उसकी हालत देखकर झटका लगा—उसके माथे के बीचो-बीच से खून लगातार बह रहा था।
आइशा: "ये आदमी कौन है? इसे बहुत चोट लगी है!"
विक्रम: "हमें इसकी मदद करनी चाहिए।"
अर्जुन ने धीरे-धीरे उस घायल व्यक्ति की ओर क़दम बढ़ाए। उस आदमी ने अचानक आँखें खोली। उसकी लाल आँखों में अजीब-सा गुस्सा और दर्द था। एक पल को सब उसकी आँखें देखकर डर से कांप उठे। अर्जुन ने हिम्मत करते हुए उससे पूछा।
अर्जुन: आप कौन है और इस जंगल में क्या कर रहे है?। और आपको चोट कैसे लगी?
उस आदमी ने अपनी भारी भरकम आवाज़ में जवाब दिया-मैं तो इस जंगल में सदियों से हूँ और अब यही मेरा घर है। तुम बताओ तुम लोग मेरे घर में क्या कर रहे हो?
अर्जुन: हम यहाँ से गुजर रहे थे लेकिन आपकी चोट को देखकर हमें लगा, आपको इलाज़ की ज़रूरत है। हमें आपकी मदद करने दीजिए आपके माथे से खून बह रहा है।
उस आदमी ने चिढ़ाते हुए कहा-मुझे किसी की ज़रूरत नहीं और ये खून सदियों से बह रहा है। दो लोगों की वज़ह से मेरी ये हालत हुई थी। जब तुम पैदा भी नहीं हुए थे तब से मेरा यही हाल है। “जल्दी बताओ तुम कौन हो?”
अर्जुन: मेरा नाम अर्जुन है और ये मेरी टीम है?
"अर्जुन? तुम अर्जुन हो? नहीं! ये नहीं हो सकता! तुम वापस क्यों आए हो?" अर्जुन का नाम सुनकर वह भड़क गया। उस व्यक्ति की बातें सुनकर अर्जुन और उसकी टीम चौंक गई। उसकी आवाज़ में गुस्सा और दर्द था। अर्जुन को यह समझ नहीं आ रहा था कि यह आदमी कौन है और उसे अर्जुन से इतनी नफ़रत क्यों है।
अर्जुन: "लेकिन मैं तुम्हें नहीं जानता और तुमसे पहली बार मिला हूँ...मैं बस तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ।"
उस आदमी की आंखों में अचानक पागलपन झलकने लगा। अर्जुन को महसूस हुआ कि यह कोई आम आदमी नहीं था।
"अर्जुन! तुम्हारे कारण मैं श्रापित हूँ! मैंने कई सदियों से यह असहनीय दर्द वहन किया है... और अब तुम मेरे सामने हो!" तुम और तुम्हारे उस मित्र के कारण मेरी ये हालत है। "
अर्जुन को समझ में नहीं आ रहा था कि ये कौन-सा अजीब व्यक्ति है और इतना गुस्से में क्यों है। अचानक वह आदमी गुस्से में हमला करने के लिए बढ़ा। उसकी तेज रफ़्तार किसी आम इंसान की तरह नहीं थी—वह बिजली की तरह अर्जुन की ओर झपटा। अर्जुन ने तुरंत ख़ुद को बचाने की कोशिश की, लेकिन उसकी ताकत अर्जुन और उसकी पूरी टीम से कई गुना थी।
उसने अर्जुन को एक ही झटके में ज़मीन पर गिरा दिया। टीम के सभी लोग अर्जुन को संभालने के लिए भागे। सब अर्जुन को उठाने लगे।
अर्जुन: "ये आदमी, इतना ज़ख्मी होने के बाद भी, इतना शक्तिशाली कैसे है?"
अर्जुन की टीम ने तुरंत उसे बचाने की कोशिश की। सम्राट, आइशा और विक्रम सभी ने उस शख़्स पर हमला किया, लेकिन वह हर बार उनके वार को हवा की तरह चकमा दे रहा था। उसकी आंखों में एक पागलपन था, जो उसे और भी खतरनाक बना रहा था।
विक्रम: "ये आम इंसान नहीं है! हमें कुछ और सोचना होगा!"
वह व्यक्ति और भी दिव्य बल दिखने लगता है। अचानक उसके आसपास की हवा भारी हो जाती है और एक अजीब-सी शक्ति महसूस होने लगती है। अर्जुन की टीम समझ नहीं पा रही थी कि ये हो क्या रहा है।
तुम मुझे इस बार नहीं हरा सकते, क्योंकि तुम्हारे साथ तुम्हारा वह पाखंडी मित्र नहीं है? उसी ने मुझे इस कलयुग में पहुँचाया है... मैं कई सदियों से इस धरती पर भटक रहा हूँ। दर्द और इस श्राप के साथ ये नर्क भोग रहा हूँ। सिर्फ़ और सिर्फ़ अर्जुन की वज़ह से। "
आइशा: "ये... ये तो इंपॉसिबल है! ये कोई इंसान नहीं है... सदियों तक कोई इंसान ज़िंदा नहीं रह सकता।"
पूरी टीम घबराहट और डर के मारे कांप रही थी, ये अजीब आदमी पाँच हज़ार सालों से ज़िंदा था।
अर्जुन: आख़िर कौन हो तुम? मैंने क्या बिगाड़ा है तुम्हारा?
मैं महाभारत का वह वीर योद्धा हूँ, जिसे कृष्ण नहीं हरा पाया, अर्जुन को जिसने टक्कर दी, मैं ही हूँ वह परम शक्तिशाली द्रोणाचार्य का पुत्र अश्वत्थामा।
क्या अश्वत्थामा सदियों पहले महाभारत में हारने का बदला अब अर्जुन से लेंगे? आगे अर्जुन और उसकी टीम का सफ़र क्या मोड़ लेगा? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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