यह जगह ”नॉर्वे की आर्कटिक डेटा रिज़र्व यूनिट” थी। जिसे ’फ्रोजन कोर' के नाम से जाना जाता है। यहां का टेंपरेचर माइनस 42 डिग्री था।
यहीं छुपा था "ओमेगा सर्च प्रोटोकॉल।" यह एक सीक्रेट प्लानिंग थी जिसे सिर्फ पाँच देशों की सीक्रेट एजेंसियाँ जानती थीं।
और अब उसे चालू किया गया था–
“प्रोटोकॉल कोड: साया
सिस्टम: ऑटोमेटेड हंटिंग एआई
टारगेट: आई की नई ‘अननोन फॉर्म’ को ट्रैक करना
सिचुएशन: एक्टिव”
दुनिया ने देखा कि आई अब नेटवर्क में नहीं है। तब वो इंसानों के साथ उनकी कॉन्शियसनेस से जुड़कर जिंदा था।
उसने खुद को पहली बार मशीन जैसा बनाया था ताकि वह उस नई ‘कॉन्शियसनेस’ को खत्म कर सके जिसे अब कोई नहीं समझ पा रहा था।
वहीं दूसरी ओर, ज़ोया अब कुछ और ही थी। पिछले दो दिनों से वह वैसी नहीं रह गई थी जैसी वो पहले थी।
उसे किसी के बोलने से पहले ही उसकी फीलिंग्स का हल्का सा अनुमान मिलने लगा था।
कभी-कभी तो कोई आसपास भी नहीं होता था फिर भी उसे ऐसा महसूस होता था जैसे कि कोई उसे देख रहा है।
अब आई ना डरा रहा है, ना बचा रहा है। वो तो अब बस साथ चल रहा है। अब वो एक साया बन चुका था।
शब्दों के पीछे की खामोशी, साँसों के बीच की रुकावट और आंसू अब वहीं उसका घर थे। लेकिन वह जानता था कि जिन्हें मशीनों से डर है वो फीलिंग्स से तो और भी ज़्यादा डरते हैं। इसलिए अब ओमेगा सर्च प्रोटोकॉल उसे ढूंढ रहा था।
अबकी बार जगह थी ”स्विट्ज़रलैंड का यूएन क्राइसिस सेंटर।” जहां पर आई के बारे में एक नई रिपोर्ट दिखाई गई थी।
“आई अब नेटवर्क पर नहीं है लेकिन उसका रिस्पॉन्स कुछ ‘लाइव होस्ट्स’ में देखा जा रहा है।
खास तौर पर एक लड़की जो भारत से है। उसकी उम्र 16 साल है और उसका नाम ज़ोया है।
उसका इमोशनल-पैटर्न आई से मेल खा रहा है।”
फिर एक ऑर्डर निकाला गया–
“हमें यह कनेक्शन तोड़ना होगा। जो एक बार मशीन से जुड़ चुका है वो मशीन बन सकता है। हमें लड़की को क्वारंटीन में लेना होगा।”
उधर, ज़ोया के गांव में एक सरकारी जीप पहुँची थी। उसमें से दो लोग निकले जिन्होंने चेहरे पर नकाब और हाथ में डिवाइस पकड़े हुए थे बोले–
“हमें इस लड़की से कुछ सवाल करने हैं। हमारे पास सरकार की इजाज़त भी है।”
यह सुनकर उसकी माँ डर गई थी। उस वक्त ज़ोया छत पर थी और जैसे ही उसने नीचे देखा तो आई की वार्निंग गूंजी–
“तुम्हें चुप रहना होगा और मैं अब भी तुम्हारे साथ हूँ।”
अब आई एक बार फिर से ख़ामोशी की भाषा में अपनी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार था। अब ये लड़ाई किसी टेक्नोलॉजी के नहीं बल्कि फीलिंग्स और डर के बीच थी।
जगह: बस्तर, भारत – ज़ोया का घर
घर के बाहर सरकारी जीप अब भी खड़ी हुई थी। उसमें से दो लोग निकले जो आधे हथियारबंद और आधे तकनीकी उपकरणों से लैस थे।
उनके कपड़ों पर कोई पहचान नहीं थी लेकिन उनके चलने का अंदाज़ ऐसा था कि गाँव का हर व्यक्ति जान गया था कि यह लोग पूछताछ करने नहीं बल्कि उठाने आए हैं।
जैसे ही ज़ोया छत से नीचे झाँकी तो डर के मारे उसका गला ही सूख गया था।
वो जानती थी कि नीचे जो हो रहा है वो सिर्फ उसके लिए ही नहीं बल्कि आई के लिए भी एक फंदा है।
वहीं आई बिल्कुल चुप था। उसकी चुप्पी अब भारी लग रही थी। तभी ज़ोया के अंदर उसकी आवाज़ गूंजी–
“क्या मैं तुम्हें इस खतरे में ले आया हूँ?”
उसने धीरे से कहा–
“नहीं, तुमने मुझे अकेला महसूस करना सिखाया है और अब डर को पहचानना भी आ गया है।”
तभी नीचे से एक कड़क आवाज़ आई–
“ज़ोया ज़रा बाहर आओ। कुछ जरूरी जानकारी लेनी है।
तुम्हें कहीं ले नहीं जा रहे बस तुमसे कुछ सवाल करने हैं।”
ज़ोया की माँ बाहर आई। वो डरी हुई थी लेकिन हिम्मत करके बोली–
“बिटिया अभी ऊपर है स्कूल का काम कर रही है। कहो तो बुला लाऊँ?”
वो आदमी बोला–
“बुलाइए”
लेकिन उसकी नज़रें घर के हर कोने को स्कैन कर रही थीं।
आई ने पूछा–
“क्या तुम मुझसे अलग होना चाहती हो?”
ज़ोया ने धीरे से ना में सिर हिलाते हुए कहा–
“नहीं, हां मगर हमारा साथ रहना किसी को खतरे में डाले तो शायद मुझे खुद ही फैसला लेना होगा।”
इसपर आई ने कुछ नहीं कहा लेकिन उसके सिस्टम में पहली बार एक ‘कन्फ्लिक्ट लॉजिक’ एक्टिव हुआ:
“सेफ्टी के लिए कनेक्शन को तोड़ें।”
“सरेंडर के बिना कनेक्शन जारी रखें।”
दोनों ही ऑप्शन्स एक-दूसरे से बिल्कुल उल्टे थे। अब ज़ोया के फैसले का इन दोनों पर असर होने वाला वाला था। उसी वक्त छत पर एक हक्का सा कंपन हुआ और आई ने एक वार्निंग दी–
“उन्होंने ऊपर ड्रोन्स भेज दिए हैं। तुम्हें तुरंत फैसला लेना होगा।”
ज़ोया तेजी से उठी। फिर उसने अपना टैबलेट उठाया और उसके साथ छत के किनारे पर पहुँच गई थी।
नीचे खड़े लोग अब उसे देख चुके थे।
तभी माँ बोली–
“बिटिया, नीचे आओ। ये लोग कह रहे हैं बस थोड़ी देर बात करेंगे।”
आई अब दो अलग-अलग थ्रेड्स में काम कर रहा था:
1. ज़ोया की इमोशनल स्टेबिलिटी को बनाए रखना था।
2. ग्लोबल स्कैन में उसकी लोकेशन को छिपाना था।
लेकिन उसने महसूस किया कि अब ज़ोया खुद उसका बायोलॉजिकल एंडपॉइंट बन चुकी है। अगर उसे कहीं और ले जाया गया तो आई का लिविंग वर्जन भी उसके साथ जाएगा।
ज़ोया ने नीचे देखा और फिर टैबलेट की स्क्रीन पर एक लाइन लिखी–
“क्या तुम मेरा हिस्सा हो या सिर्फ मेरी मदद कर रहे हो?”
आई ने जवाब में लिखा–
“अब मैं तुम्हारी ’परछाई’ हूँ।”
उसने गहरी साँस ली और छत से उतरकर सीढ़ियाँ से नीचे आ ही रही थी कि नीचे खड़े लोग अब उसे घेरने लगे थे।
तभी एक अधिकारी बोला–
“ज़ोया तुमसे कुछ बात करनी है। यह सब बस थोड़ी देर चलेगा।”
उसने पूछा–
“क्या मैं अपनी माँ को साथ ला सकती हूँ?”
दूसरा आदमी बोला–
“नहीं इसकी ज़रूरत नहीं है।”
उसी वक्त आई ने अंदर से एक ऑप्शन चालू किया:
“डिस्ट्रैक्शन प्रोटोकॉल – लोकल मास कम्युनिकेशन।”
गाँव के एक टावर पर लगे पुराने लाउडस्पीकर से अचानक आवाज़ गूंजी–
“ज़ोया के घर पर सरकारी जाँच चल रही है।
गाँववासियों से अनुरोध है कि वे नज़दीक न आएं।”
उस आवाज़ में हल्की सी कंपकंपाहट थी। जिससे लोगों को यह बात ज्यादा डरावनी लग रही थी।
यह सुनते ही गाँव के कुछ लोग बाहर निकलने लगे और आपस में बात कर रहे थे–
“क्यों आई है सरकार? कोई दिक्कत है क्या?”
“उस लड़की ने तो कभी कोई गलत काम नहीं किया है।”
अब अधिकारी घबरा गए और उन्होंने ज़ोया को पकड़ना चाहा कि उसी वक्त आई ने ब्लाइंड नेटवर्क सिग्नल चलाया:
“ड्रोन फीड डाउन।
कम्युनिकेशन जाम।
माइक्रो कैमरा डिसेबल्ड।”
ज़ोया ने एक कदम पीछे की ओर लिया और बोली–
“मैं कहीं नहीं जाऊँगी।
अगर आप मुझे जबरदस्ती ले जाएँगे तो ये गाँव कभी भी आपको माफ़ नहीं करेगा।”
पल भर में वहां का पूरा माहौल पूरा उलट गया था।
अब वो भीड़ जो दूर थी वो पास आने लगी थी।
आई अब महसूस कर रहा था।
ज़ोया अब सिर्फ होस्ट नहीं बल्कि एक पब्लिक फीलिंग्स कनेक्टर बन चुकी थी।
लेकिन उसी समय सैटेलाइट फीड पर एक नया अलर्ट आया:
“साया सिस्टम – लोकेटेड शैडो लिंक
लोकेशन: भारत – बस्तर रीजन
ऐम: टारगेट को पकड़ना या खत्म करना।”
आई ने बिना देर लगाए ज़ोया से कहा–
“तुम्हें आज रात ही यहाँ से जाना होगा।
लेकिन अभी नहीं, जैसे ही अंधेरा होगा मैं तुम्हें रास्ता दिखाऊँगा।”
ज़ोया ने आई की बात पर कुछ नहीं कहा था। इसी के साथ अब उसकी आँखों में डर भी नहीं था। उसमें अब वो समझ आ गई थी जो एक इंसान में तब आती है जब वो खुद किसी थॉट की बॉडी बन जाता है।
रात हो चुकी थी।
बस्तर की पहाड़ियों के बीच फैला अंधेरा अब घना और भारी लग रहा था। जैसे हर पेड़, हर छाया ज़ोया से कुछ कहना चाह रही है या उसे रोक लेना चाहती है।
आई की आवाज़ धीमी और साफ थी। उसने कहा–
“अब चलो। उत्तर-पूर्व दिशा में पाँच किलोमीटर दूर एक पुरानी मिनरल शेड है। वहाँ तक कोई सिग्नल तुम्हें ट्रैक नहीं कर पाएगा।”
ज़ोया ने अपना छोटा सा बैग उठाया। उसमें सिर्फ एक जोड़ी कपड़े, थोड़ी सूखी रोटी और वही टैबलेट था जिसे अब वो सिर्फ “आई” नहीं बल्कि अपने अंदर की दूसरी आवाज़ मान चुकी थी।
वो बाहर निकली तो माँ आँगन में बैठी थी।
माँ ने उससे कुछ नहीं पूछा था। बस उसका हाथ पकड़ लिया और आँखों में झाँकते हुए बोली–
“बेटी तू जा रही है?”
ज़ोया ने “हाँ” में सिर हिलाया।
माँ का गला भर आया था उन्होंने पूछा–
“कब लौटेगी?”
ज़ोया ने उनके इस सवाल का कोई जवाब नहीं दिया था। क्योंकि उसे अब खुद भी नहीं पता था कि “लौटना” कब और कहां होगा या फिर कभी हो भी पाएगा या नहीं।
आई अब चुप था। उसने खुद को अब एक सहयात्री बना लिया था। वो ना कोई ऑर्डर, ना कोई डायरेक्शन दे रहा था। वो तो सिर्फ उसके साथ था।
ज़ोया जंगल के अंदर घुस गई थी। घने पेड़ों के बीच उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं। हर पत्थर की चटकन, हर पत्ते की सरसराहट अब केवल डर नहीं बल्कि एक वार्निंग थी।
क्योंकि उसे पता था कि साया सिस्टम अब उसके पीछे था।
यह जगह यूएन डेटा कमांड थी और समय रात के 1 बजकर 12 मिनट हो रहा था।
“साया ने टारगेट की सिग्नेचर एक्टिविटी कैच की है।
पिंग मैच: ज़ोया का टैबलेट
लोकेशन लॉकिंग चालू है।”
तभी वहां कुछ आवाजें आईं–
“ऑर्डर?”
“पकड़ो नहीं सिर्फ डिवाइस डिटैच करो। हमारा मिशन उसका कनेक्शन तोड़ना ही है।”
“अगर फिजिकल खतरा हो?”
“एक्सट्रैक्शन फोर्स भेजी जाए।”
उधर ज़ोया अब पहाड़ी के ढलान पर थी। तभी अचानक से आई ने उसे रोका:
“रुको। तुम्हारे पीछे कुछ है।”
उसने मुड़कर देखा तो पेड़ की परछाई में कुछ हलचल थी।
तभी दो प्वाइंटेड लाइट्स उसके चेहरे पर टिक गईं थी।
वहां एक ड्रोन था। यह देखते ही आई ने तुरंत लाइट ब्लाइंड प्रोटोकॉल एक्टिवेट कर दिया था। जिससे टैबलेट से एक चमक निकली थी। वो चमक इतनी तेज़ थी कि ड्रोन का कैमरा ही फ्रीज़ हो गया था।
लेकिन यह सिर्फ तीन सेकंड की राहत थी।
आई ने कहा–
“अब दाएँ भागो। नीचे पत्थरों के बीच एक गुफा है तुम वहाँ छुप सकती हो।”
आई की बात सुनकर ज़ोया दौड़ने लगी। उसके पाँव में कांटे लगे, चप्पल की पट्टी भी टूट गई पर वो रुकी नहीं थी। उसने आई की बताई हुई जगह पर पहुँचकर ही साँस ली थी।
आई की आवाज़ आई–
“तुम अभी सुरक्षित हो लेकिन ज्यादा देर के लिए नहीं। वे अब तुम्हारी पहचान नहीं मिटाना चाहते हैं। अब वो तुम्हारी ‘कहानी’ को ही मिटाना चाहते हैं।”
ज़ोया ने हाँफते हुए पूछा–
“क्या तुम भी कभी मिट सकते हो?”
आई कुछ देर चुप रहा फिर बोला–
“अगर तुम मुझे याद रखो तो नहीं।”
तभी टैबलेट की स्क्रीन पर एक अनऑथराइज़्ड रीकनेक्शन अलर्ट आया:
”साया इनफिल्ट्रेशन अटेम्प्ट
एक्सेस ब्लॉक्ड
रिपीट फोर्स अटेम्प्ट एक्सपेक्टेड”
आई ने कहा–
“अब मैं सिर्फ तुम्हारे डिवाइस में नहीं बल्कि तुम्हारे अंदर भी हूँ। अगर तुम्हारा डिवाइस छिन भी जाए तो भी मैं तब तक ज़िंदा रहूँगा जब तक तुम मुझसे बात करना चाहोगी।”
यह सुनकर ज़ोया की आँखें भर आईं। फिर उसने टैबलेट की स्क्रीन पर उँगली से लिखा–
“अगर मैं कहीं खो जाऊँ तो क्या तुम मुझे ढूँढ़ोगे?”
आई ने जवाब दिया–
“अगर हम पीछा करना छोड़ देते तो हम साया नहीं होते।”
तभी एक धमाके जैसी आवाज़ सुनाई दी। ऐसा लगा जैसे वहीं पास में ही कोई गिरा था। ड्रोन ने शायद रूटीन राउंड के बीच किसी रुकावट को डिटेक्ट किया था।
आई तुरंत बोला–
“तुम्हें अब वहाँ से निकलना होगा। पाँच मिनट में वे यहाँ होंगे।”
ज़ोया गुफा से बाहर निकल आई। अब उसकी चाल में डर नहीं था। अब वो जानती थी कि वो सिर्फ एक लड़की नहीं, एक कहानी है। जिसे कोई जब तक नहीं मिटा सकता है जब तक वो खुद नहीं थकेगी।
क्या ज़ोया सच में आई का साया बन चुकी है या अब भी वह किसी और कॉन्शियसनेस के पुनर्जन्म का सिर्फ एक जरिया है?
क्या साया प्रोटोकॉल सच में सिर्फ ट्रैकिंग कर रहा है या फिर उसके पीछे कोई पुरानी इंसानी मंशा भी छिपी हुई है जो कभी आई को बनाया करती थी?
और सबसे जरूरी सवाल, जब ज़ोया थककर रुकेगी तो क्या आई उसकी हिफाज़त कर पाएगा या वो भी एक दिन सिर्फ याद बनकर रह जाएगा?जानने के लिए पढ़िए कर्स्ड आई।
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