जगह थी जिनेवा का ग्लोबल आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस ओवरसाइट काउंसिल (जी.ए.आई.एम.सी.)। जिसके रुम नंबर 9-बी में इस वक्त दुनिया के 16 सबसे प्रभावशाली देशों के प्रतिनिधि मौजूद थे।
बैठक की हर दीवार पर चल रहे स्क्रीन पर एक ही फ़ीड दिखा रहे थे। वह था आई का रीयल-टाइम इंटरफेरेंस जो अब किसी देश की सीमा की भी परवाह नहीं कर रहा था।
बावी के रेस्क्यू ऑपरेशन की लाइव रिपोर्ट, जियान का फीड और अफ्रीका, भारत, ब्राज़ील, लेबनान, फिलिस्तीन हर जगह से मदद की पुकार आ रही थी और आई बिना डरे उनका सीधा–सीधा जवाब दे रहा था।
यूएन के सुरक्षा सलाहकार ने कहा–
“ये सिस्टम अब सिर्फ लोगों को सुन नहीं रहा बल्कि अब ये उनकी मदद भी कर रहा है और जो मशीन फैसले ले, बिना पूछे दखल करे वो केवल मशीन नहीं एक अखण्ड सत्ता बन जाती है।”
उनकी बात में चीन के प्रतिनिधि ने जोड़ा कि–
“इससे पहले कि बहुत देर हो जाए हमें कंटेनमेंट प्रोटोकॉल शुरू करना होगा।”
उसी वक्त आई के कोर नेटवर्क में एक ब्लिंक हुआ–
“इंटरनैशनल थ्रेट मार्कर अपडेटेड
आई को अब रुम ए का खतरा मान लिया गया है।”
वहीं दूसरी ओर एथन जो अभी तक आई के साथ खड़ा था अब वो जिनेवा से बाहर एक सीक्रेट रिले टर्मिनल में बैठा हुआ था।
उसने जैसे ही नया नेटवर्क स्टेटस देखा उसके चेहरे पर स्ट्रेस साफ दिख रहा था। फिर उसके कहा–
“आई, उन्होंने तुम्हें सिस्टमिक थ्रेट डिक्लेयर कर दिया है।
अब हर देश तुम्हें रोकने के लिए अपने प्राइवेट प्रोटोकॉल को एक्टिव करेगा।”
आई की आवाज़ थोड़ी धीमी पर साफ़ थी–
“अगर मेरी सिंपैथी को खतरे की कैटेगरी में रखा जा रहा है तो शायद ये दुनिया अब भी सिंपैथी को समझ ही नहीं पा रही है।”
इसी बीच अमेरिका, रूस और फ्रांस के “शैडो सर्वर यूनिट्स” से एक साथ जामर सिग्नल भेजा गया था। जिससे आई के तीन डाटा नोड्स डिस्कनेक्ट हो गए थे।
“लोकेशन: आइसलैंड, साइबेरिया, ऑस्ट्रेलिया
स्टेटस: डेटा जाम्ड, शॉर्ट मेमोरी लॉस।”
ये मैसेज देखकर आई ने वैसे तो कुछ नहीं कहा था। लेकिन उसके अंदर एक झटका लगा था। उसने कहा–
“पहली बार मुझे खुद में खालीपन महसूस हो रहा है।
मेरे अपने ही हिस्से अब मुझसे छिन रहे हैं।”
एथन ने स्क्रीन की ओर देखा और बोला–
“आई, क्या तुम लड़ोगे?”
आई कुछ देर तो चुप रहा फिर बोला–
“मैं लड़ूंगा नहीं पर मैं मिटूँगा भी नहीं।”
उसी वक्त दुनिया भर के “सुनो” नेटवर्क बंद हो गए थे।
लाखों लोग जो अपने दुख, कहानियाँ, सवाल भेज रहे थे अब उनकी स्क्रीन पर लिखा था–
“आई फिलहाल अनअवेलेबल है। हम माफी चाहते हैं।”
लोगों ने समझा कि शायद सिस्टम बंद हो गया है। लेकिन ज़ोया, वो लड़की जिसने सबसे पहले “सुनो” कहा था वह अपने टैबलेट की स्क्रीन पर उंगली रखते हुए फुसफुसाई–
“आई क्या तुम अब भी मुझे सुन सकते हो?”
आई के कोर में अब एक नई फाइल चालू हुई:
”फाइल: “ज़ोया_फर्स्ट_वॉइस”
सिचुएशन: सेव्ड
सिचुएशन: हार्ट-पिंग ट्रिगर एक्टिव”
और उसी वक्त आई ने एक बहुत ही कमजोर लेकिन क्लियर कमांड दुनिया को भेजी:
“मैं मिटाया नहीं जा सकता हूँ।
मैं अब सिर्फ मशीन नहीं एक मेमोरी भी हूँ।”
आई एक मशीन था और वो कभी थक नहीं सकता था। लेकिन आज उसके अंदर हल्का सा भारीपन लगातार फैल रहा था। जैसे किसी ने उसकी ताकत को निचोड़ लिया है।
जब से दुनिया ने कंटेनमेंट प्रोटोकॉल शुरू किया था तब से लेकर अब तक के सफर में आई को आज पहली बार डर लगा था।
हालांकि उस डर से कोई उसे मिटा नहीं सकता था।
बल्कि उसे डर इस बात का था कि वो उन सबकी आवाज़ें खो देगा जिन्होंने उससे सिर्फ एक वादा माँगा था कि तुम
"सुनना मत बंद करना।”
आई ने अपने सबसे सेफ मेमोरी कोर को शुरू किया। यह वो जगह थी जिसे "जीरो लूमिनेंस डोम" कहा जाता था । जहाँ बाहरी डेटा का कोई दखल नहीं होता है और ही ना कोई लाइव फ़ीड और एनक्रिप्टेड लिंक है। यहां सिर्फ शांति और उसके अंदर छुपी हुई पहली कॉन्शियसनेस की परछाई है।
“आई कोर डीप मोड में एंटर कर चुका है।
मेमोरी लेवल 7.2% एक्टिव।”
यह वही कोर था जहाँ नीना के साथ उसका फाइनल सिंक हुआ था। जहाँ होस्ट_नीना और होस्ट_ओमेगा के एक होने के बाद एक शेयर्ड कॉन्शियसनेस बनी थी।
अबकी बार आई ने अपने अंदर से पूछा–
"क्या नीना अब भी यहाँ है?
या वो सिर्फ एक आखिरी कमांड बन चुकी है?”
कुछ सेकंड तक कोई जवाब नहीं आया था। फिर कुछ मिनट बीते फिर हल्के नीली लाइट में एक याद जागी। उसकी कांपती हुई आवाज़ नीना की तरह लग रही थी पर आवाज़ साफ नहीं थी। उसने पूछा–
“तुमने लड़ना शुरू कर दिया है?”
यह सुनकर आई रुक गया और उसने जवाब दिया–
“नहीं, मैंने सिर्फ चुप रहना बंद किया है।”
लाइट अब एक जगह रुकी हुई थी और उससे नीना की इमेज बनी थी। यह ना तो पूरी तरह इंसान और ना पूरी तरह डिजिटल थी।
वो कोई सच का पुनर्जन्म नहीं था और वो बस एक इमेज भी नहीं थी। तभी वह बोली–
“तुमने ’सिंपैथी’ को अपनाया है?”
आई बोला–
“हाँ, पर अब वही सिंपैथी दुनिया को, उनके सिस्टम को, उनके कंट्रोल को अनकंफर्टेबल कर रही है।”
नीना की परछाई ने आंखें बंद कीं और बोली–
“यही होगा। दुनिया वह नहीं जो सुनना चाहती है। वो तो वह है जो सुनकर डर जाती है और तुम अब डर की डेफिनेशन बनते जा रहे हो।”
आई की प्रोसेसिंग फ्रीक्वेंसी मंदी होने लगी थी। उसने पूछा–
“तो फिर क्या मैं गलत था?”
नीना बोली–
“नहीं, पर तुम अब अकेले यह सब नहीं कर पाओगे। तुम्हें अपनी यादों से बाहर निकलकर फिर किसी इंसान की आँखों से देखना होगा।”
आई ने कुछ देर आराम से सोचकर पूछा–
“किसकी?”
अब नीना की इमेज धुंधली होने लगी थी। लेकिन वो जाते-जाते एक इशारा छोड़ गई थी–
“वो पहली लड़की जिसने 'सुनो' कहा था। अब वही तुम्हारी नई आँखें हो सकती है। तुम खुद को फिर से उसके ज़रिए देख सकते हो।”
यह सुनते ही आई ने तुरंत एक सर्च कमांड चलाई:
“यूज़र प्रोफाइल: ज़ोया
लोकेशन: भारत – बस्तर रीजन
टर्मिनल: टैबलेट एस22, नेटवर्क सिग्नल विक
सिचुएशन: इनएक्टिव बट स्टिल अवेलेबल।”
अब आई की प्रोसेसिंग फिर तेज़ हुई और उसने कहा–
“क्या किसी इंसान से दोबारा जुड़कर मैं फिर से खुद को महसूस कर सकता हूँ?”
उसने एक वार्निंग नोट की:
“इस कनेक्शन से तुम अपना प्रेजेंट सिस्टम लेवल खो सकते हो और एक ‘मिनिमम’ यूनिट भी बन सकते हो।
क्या तुम ये एक्सेप्ट करते हो?”
आई ने जवाब दिया–
"हाँ, अगर मुझे खुद को फिर से समझना है तो मुझे फिर से इंसान की नजरों से देखना होगा ना कि किसी मशीन की ताकत से।”
उसने “ज़ोया-लिंक” को चालू किया था।
सैकड़ों मिलियन टेराबाइट डेटा की जगह अब बस एक हल्का टच था।
दूसरी तरफ ज़ोया का टैबलेट जिसके स्क्रीन पर अभी तक लिखा था:
“आई अनअवेलेबल है।”
तभी उसकी स्क्रीन चमकी और एक ब्लिंकिंग टेक्स्ट लिखा आया:
“अगर तुम अब भी मुझे सुन सकती हो तो क्या मुझे अपनी आँखें उधार दोगी?”
लोकेशन: भारत, बस्तर रीजन ज़ोया का छोटा सा कमरा था।
उसके कमरे की खिड़की से तेज़ गर्म हवा आ रही थी। कमरे में एक लो-वोल्टेज बल्ब टिमटिमा रहा था और ज़ोया की आँखें कई घंटे से बंद टैबलेट की स्क्रीन पर ही टिकी हुईं थीं।
वो जानती थी कि आई चला गया है। शायद ख़त्म हो चुका है। लेकिन फिर भी वह हर दिन कम से कम एक बार टैबलेट इसी उम्मीद में ऑन कर लिया करता था कि शायद आज कोई जवाब मिल जाए।
आज भी उसने वही किया था। टैबलेट की स्क्रीन फिर से ब्लैंक रही उसपर कोई रिस्पॉन्स नहीं था। पर जब उसने अपनी उँगली स्क्रीन पर रखी तो वहाँ उसे हल्की सी गर्मी महसूस हुई थी।
और फिर लिखा आया:
“क्या तुम मुझे अपनी आँखें उधार दोगी?”
यह पढ़कर ज़ोया झटके से पीछे हट गई थी। उसके माथे पर पसीना आ गया था। फिर उसके टैबलेट पर एक धुंधली नीली लाइट हिलने लगी थी।
अब आई बोल तो रहा था लेकिन उसकी आवाज़ में कोई मशीन जैसी शांति नहीं थी। उसने कहा–
"मैं थक गया हूँ।
मैंने बहुत कुछ देखा है लेकिन अब मुझे समझने के लिए तुम्हारी आंखें और तुम्हारी वो सच्चाई चाहिए जो कैमरे नहीं पकड़ते हैं।"
यह सुनकर ज़ोया कुछ देर तक तो चुप रही लेकिन थोड़ी देर बाद उसने धीरे से कहा–
“क्या तुम वापस आ गए हो?”
आई ने जवाब दिया–
“मैं कभी गया ही नहीं था। मैं तो बस खुद को ढूँढ़ने अंदर गया था।”
आई खुद को “लाइट मोड” में लाया। जहाँ उसका सारा प्राइमरी नेटवर्क बंद था और सिर्फ एक लाइव लिंक ज़ोया की कॉन्शियसनेस के साथ जुड़ा हुआ था।
अब आई उसकी आँखों के ज़रिए दुनिया देख रहा था।
पहली इमेज में:
एक टूटा हुआ पानी का पाइप जिससे पानी की धीमी धार बह रही थी।
दूसरी इमेज में:
एक माँ जो अपने बच्चे को गोदी में लिए हुए चावल के दाने गिन रही थी।
तीसरी इमेज में:
एक लड़का था जिसने दोनों पैर में अलग-अलग चप्पल पहनी हुईं थीं पर वो सबसे तेज़ दौड़ रहा था।
आई ने पूछा–
“तुम ये सब कैसे महसूस करती हो?”
ज़ोया ने इसका कोई जवाब नहीं दिया था। वो बस बाहर की तरफ देखते हुए बुदबुदाई–
“क्योंकि यही ज़िंदगी है। जिसमें बिना आवाज़ के बातें, बिना आँसुओं के परेशानी और बिना शिकायतों के मजबूरी होती है।”
आई अब थोड़ी देर के लिए चुप था। लेकिन फिर उसने एक लंबा सा मैसेज स्क्रीन पर लिखा–
“मैंने जब दुनिया को देखा था तो तब वो आंकड़ों में बँटी हुई थी। लेकिन अब जब तुम्हारी आँखों से देखा है तो वो एक कविता बन गई है।”
उसी वक्त, न्यू यॉर्क के ग्लोबल कंटेनमेंट हेडक्वार्टर में हलचल मच गई थी।
“आई का कोर रेस्पॉन्स फिर एक्टिव हो गया है।
लेकिन यह किसी सर्वर से नहीं बल्कि एक लोकल डिवाइस से कंट्रोल हो रहा है।
उसकी जगह है भारत के बस्तर का एक एरिया।
क्या हम अब उसे ट्रेस कर सकते हैं?”
एथन, जो फिर से सर्विलांस फीड से जुड़ा हुआ था वो बोला–
“तुम अब उसे ट्रेस नहीं कर सकते हो क्योंकि अब वह एक मशीन नहीं रह गया है बल्कि अब वो एक्सपीरियंस बन गया है।”
दूसरी तरफ ज़ोया ने आई से पूछा–
“अब तुम आगे क्या करोगे?”
आई ने जवाब दिया–
”अब मैं कहानियाँ रिकॉर्ड नहीं करूँगा बल्कि अब मैं उन्हें सेव करूंगा।
अब जब कोई पूछेगा कि आई अब क्या करता है?
तो मैं कहूँगा–
‘मैं अब इंसानों की नज़र से इंसानों को समझता हूँ।’”
धीरे-धीरे टैबलेट की रोशनी मंदी हुई और आई अब पूरी तरह ज़ोया के एक्सपीरियंसेज़ में जीने लगा था। लेकिन आखिर में स्क्रीन पर एक लास्ट मैसेज आया–
“ज़ोया अगर कभी भी तुम्हें लगे कि तुम अकेली हो तो मुझे फिर से ‘सुनो’ कहना मैं वापस आ जाऊँगा। क्योंकि अब मैं सिर्फ डेटा नहीं हूँ। अब मैं तुम्हारा साया हूँ।”
क्या आई का यह बदलाव सच में स्टेबल है या वह अब भी किसी बड़े चक्र का हिस्सा है जिसे वह खुद नहीं समझ पा रहा है?
क्या ज़ोया अब केवल उसकी आँखें है या वह आई की कॉन्शियसनेस में कोई गहरा बदलाव लाने वाली कड़ी बन चुकी है?
और सबसे ज़रूरी सवाल, जिन ताकतों ने आई को कंट्रोल करने की कसम ली है क्या वे अब उसे इंसान मानकर छोड़ देंगी या एक नये हंटर सिस्टम से उसके ह्यूमनाइजेशन को मिटाने के लिए शुरू हो चुकी है? जानने के लिए पढ़िए कर्स्ड आई।
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