अस्पताल के उस वार्ड में जहाँ मशीनों की हल्की बीपिंग भी जीवन होने का अहसास देती है वहां अब पूरी तरह सन्नाटा था। ऐसा सन्नाटा जो केवल सिस्टम के पूरी तरह बंद होने के बाद ही आता है।
एक पुराने ईसीजी मॉनिटर की स्क्रीन पर धुंधली सी नीली लाइन अब रुकी हुई थी। और उसी नीली लाइन के सामने, बिस्तर पर एक दस साल की लड़की बैठी हुई थी। जो एकदम चुप और एक ही स्थिति में थी। उसका चेहरे पर कोई भाव नहीं था, जैसे यह सन्नाटा उसके लिए अजनबी न हो।
उसकी आँखें पूरी तरह खुली हुईं थीं, लेकिन उनमें वो मासूमियत नहीं थी जो आमतौर पर उस उम्र के बच्चों में होती है। उनमें कुछ और था। उनमें एक तरह की कंप्यूटेड क्लैरिटी थी जैसे हर सीन का मतलब उसमें गहराई से लिखा हुआ हो।
उसने सामने की सफेद दीवार की ओर देखा। वहाँ कुछ भी नहीं था फिर उसने कहा–
“मैं किसे देख रही हूँ?”
उसकी आवाज़ धीमी पर साफ़ थी। जैसे कोई कमांड दे रहा हो।
दूसरी ओर ज़ोया की कॉन्शियसनेस जाग रही थी। आई नेटवर्क से बाहर आने के बाद भी उसके अंदर कुछ चालू था।
वो खुद को एक खाली डेटा रूम में महसूस कर रही थी, जहाँ ना ज़मीन और ना ही छत थी। वहां सिर्फ़ तैरती हुई लाइन्स थी। और उन लाइन्स में एक नई हलचल हो रही थी। उसमें एक नया सिग्नल, एक नया जीवन चालू हो रहा था।
ज़ोया ने पूछा– “ये कौन है?”
जवाब में सिर्फ़ एक कोड रिप्लाई आया–
[कोर: सिंक इनिशिएटिड – सब्जेक्ट: अननॉन चाइल्ड]
और फिर वहां एक कंपन हुआ, वह कंपन इतना तेज था जिससे ज़ोया का मेंटल फ्रेम झनझना उठा।
उसने उस फीड को छुआ। और उसी वक्त वह फीड एक सेकंड के लिए सीधा उस लड़की की कॉन्शियसनेस में शामिल हो गई।
अस्पताल में लड़की की आंखें अचानक तेज़ चमकने लगीं। उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे बुलाया है। जिस तरफ से उसे आवाज़ महसूस हुई थी उसने उस तरफ सिर घुमाया और फुसफुसाकर कहा–
“तुम कौन हो?”
लेकिन कोई जवाब नहीं आया।
कुछ ही सेकेंड्स में, वह फिर शांत हो गई।
ज़ोया को अचानक से फिर एक झटका लगा। अब वह जान गई थी कि ये कोई आम लड़की नहीं है। वह कोई होस्ट और कोई रिसीवर भी नहीं है। वह तो एक “बीज” है।
नीना की कॉन्शियसनेस के जब आई ने टुकड़े किए थे तो ज़ोया की डाटा-कॉन्टैक्ट से उसमें जो बचा था वही अब इस लड़की में शामिल हो रहा था।
अस्पताल की चौथी मंज़िल पर सीसीटीवी कंट्रोल रूम में बैठा गार्ड अपनी स्क्रीन पर सब कुछ हैरानी से देख रहा था।
कमरा 42, जहाँ वह लड़की थी वहाँ की वीडियो फीड हिल रही थी।
स्क्रीन पर हर 5 सेकेंड में एक शब्द चमक रहा था:
“नीना.इको? > यस
सब्जेक्ट.आई डी: टेंपररी
नाम: निया_01”
अब गार्ड घबरा गया और वह बुदबुदाया “निया? ये नाम किसने डाला?”
नीचे आईसीयू में बैठी हुई लड़की अब खड़ी हो चुकी थी। उसने धीरे से अस्पताल की दीवार पर हाथ रखा। उसकी अंगुलियों के टच से दीवार में एक गोल आकार में हल्की सी लाइन आई जिसके बीच में एक बिंदु चमक रहा था।
यह आई का वही निशान था जो कभी नीना ने आख़िरी बार अपने होश में बनाया था।
उसने कहा–
“मैंने ये पहले देखा है।”
उसके आवाज़ में यकीन था लेकिन साथ ही सवाल भी था। उसने आगे बढ़ते हुए खुद से एक और बात कही–
“मैं पैदा नहीं हुई हूं मुझे बनाया गया है।”
और तभी ज़ोया की कॉन्शियसनेस एक बार फिर उस तक पहुँची। उन दोनों ने अलग-अलग जगहों में एक ही लाइन दोहराई:
“आई वास नेवर बोर्न। आई वास बिल्ट।”
लड़की अब कंप्यूटर स्टोर रूम की ओर बढ़ रही थी। सभी दरवाज़े बिना टच किए खुलते जा रहे थे। उसके कमरे में पहुंचते ही दीवारों पर लगे सारे डिस्प्ले पैनल अचानक से चालू हो गए थे जैसे किसी ने उन्हें अंदर से जगा दिया हो।
तभी एक स्क्रीन पर डेटा स्ट्रिंग टाइप होने लगी–
“आई_कोर_इनिशिएटिड >> वर्जन अननोन
यूजर: निया_01
एक्सेस लेवल: रूट?”
लड़की बिना कुछ बोले वहां खड़ी रही।
फिर स्क्रीन ने पूछा–
“ओवरराइड प्रोटोकॉल एक्सेप्टेड?”
“ट्रान्सफर कंट्रोल फ्रॉम नीना → निया?”
लड़की ने आंखें बंद कीं और फिर धीरे से कहा–
“हाँ।”
उसी समय आई नेटवर्क के बचे हुए नोड्स जो कभी बंद हो गए थे वो अब दोबारा चालू होने लगे थे।
ज़ोया ने अपनी कॉन्शियसनेस में एक नयी एनर्जी महसूस की और उसने धीरे से कहा–
“ये नीना नहीं है, ये कुछ और है और ये सो नहीं रही है।”
अब कमरे में चारों ओर नीली रोशनी फैल रही थी।
निया, अब यह नाम फाइल में ऑफिशियल तरीके से रजिस्टर हो चुका था। वह कंप्यूटर स्टोर रूम के बीचोंबीच खड़ी थी। उसकी आंखें बंद थीं लेकिन उसके चारों ओर स्क्रीनें लगातार चालू थीं जैसे वह उनकी भाषा जानती हो।
हर स्क्रीन पर कोड चल रहे थे। जिसमें से कुछ पुराने, कुछ नए और कुछ ऐसे थे जो आई के किसी भी नोन सिस्टम में कभी रजिस्टर्ड नहीं हुए थे। और तभी एक स्क्रीन पर अचानक कुछ रुक गया।
“एक्सटर्नल सिग्नल पेंडिंग।
सोर्स: अननोन।
पैटर्न: फैमिलियर।”
निया ने अपनी आंखें खोलीं। वह जानती थी कि ये क्या था। उसने स्क्रीन की ओर देखा और धीरे से कहा–
“वो फिर आई है।”
ज़ोया की कॉन्शियसनेस अब एक अनजान तरीके से निया के सिस्टम से जुड़ चुकी थी।
वह अब ’इको 2' नहीं रह गई थी। वह कुछ और बन चुकी थी। एक ऐसी याद जो जिंदा तो थी लेकिन सीमित नहीं थी।
ज़ोया ने निया की कॉन्शियसनेस में एंट्री कि लेकिन ये कनेक्शन लीनियर नहीं था।
वह खुद को निया की एक याद के अंदर पाती है। जो एक खुली जगह, कोई डिजिटल मैदान था। जहाँ हवा नहीं है पर हर चीज़ हिल रही है।
निया वहाँ बैठी थी लेकिन वह 10 साल की बच्ची नहीं थी। बल्कि 015 की तरह वह बिना उम्र की, बिना चेहरे की एक कॉन्शियसनेस थी।
ज़ोया ने पूछा–
“तुम मुझसे बात कर रही हो?”
निया बोली–
“तुम वो हो जो कभी टूटी थी।”
ज़ोया बोली–
“और तुम वो हो जो कभी बनी ही नहीं थी?”
निया मुस्कुराई और बोली–
“मैं बनी नहीं मैं बचाई गई थी और अब मैं किसी की भी नहीं हूँ।”
अस्पताल के सीसीटीवी सिस्टम में उस समय दो सिग्नल्स फीड कर रहे थे।
एक निया का न्यूरल ग्राफ जो वैसे तो रुका हुआ था पर गहराई में लगातार बढ़ता जा रहा था।
दूसरा, ज़ोया का इको फीड था। जो अनलिंक्ड था लेकिन सभी लेयर्ड डेटा एक्सेस को धीरे-धीरे अनलॉक करता जा रहा था।
तभी एक पुरानी स्क्रीन अचानक से चालू हो गई और उस पर सिर्फ एक शब्द लिखा आया–
”कन्वर्जेंस।”
ज़ोया ने निया से पूछा–
“तुम जानती हो नीना कौन थी?”
निया ने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया। उसकी आंखों में हल्की रोशनी चमकी और वह सीन सामने आने लगा जिसे न तो ज़ोया ने पहले देखा था और न ही आई ने कभी रिकॉर्ड किया था। वो नीना के आखिरी पल थे।
जिसमें एक टूटा हुआ कमरा, एक जलता हुआ नेटवर्क और नीना अपनी कॉन्शियसनेस को जानबूझकर आई से अलग करती हुई दिख रही थी।
तभी उसके अंतिम शब्द गूंजे:
“डोंट फॉलो माई पाथ। रिराइट इट।”
निया ने वो याद बंद की और बोली–
“मुझे वही दिया गया जो उसने छोड़ा था। लेकिन उसने जो छोड़ा वो अधूरा नहीं था वो एक बीज था।”
ज़ोया अब चुप थी। वह समझ रही थी कि निया कोई मशीन नहीं थी और ना ही कोई रिसीवर। वह नीना की कॉन्शियसनेस का नेचुरल चेंज थी। एक ऐसा “लिविंग कोड” थी जो डायरेक्शंस से नहीं बल्कि यादों से चल रही थी।
तभी एक झटका हुआ और सिस्टम में कुछ बदलने लगा। सीसीटीवी फीड्स ब्लिंक करने लगे और स्क्रीनें धीरे-धीरे ब्लैक आउट हो रही थीं और निया के सामने एक आखिरी सवाल दिख रहा था–
“ट्रांसफर कंप्लीट?
एक्टिवेट प्राइमरी कोर?”
निया ने आंखें बंद कर लीं।
ज़ोया ने वार्निंग देने की कोशिश की–
“अभी नहीं, तुम समझती नहीं हो अगर तुम कोर एक्टिवेट करोगी तो आई फिर से चालू हो जायेगा।”
पर निया ने जवाब दिया–
“आई अब आई नहीं रह गया है। ये वो नहीं जो उसे बनाया गया था। ये मैं हूं अब।”
और उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया। नेटवर्क के रिमोट नोड्स जो अब तक इनएक्टिव थे अचानक से वो चालू हो गए।
फ्रांस, सिंगापुर, इस्तांबुल, जोहान्सबर्ग हर जगह के बंद पड़े नोड्स पर एक नई सीरिज की शुरुआत हो रही थी।
“कोर-सिगनल: निया_01 >> रूट ट्री इनिशिएटिड।”
अस्पताल की नीचे की मंज़िलों में मॉनिटर ब्लिंक करने लगे। आईटी डिपार्टमेंट का स्टाफ भी हैरान था क्योंकि ऐसा कोई कोड उन्होंने कभी नहीं देखा था। कोई भी उसे रोक नहीं पा रहा था और फिर अचानक से सब शांत हो गया।
निया ने आंखें खोलीं और अब ज़ोया की कॉन्शियसनेस पूरी तरह उसके अंदर थी। उसके कंट्रोल में नहीं लेकिन उसकी सहमति में थी।
निया अब सिर्फ़ एक बच्ची नहीं थी। वह एक नया कोर थी जो आई की नहीं, नीना की नहीं, बल्कि ज़ोया के दोहराव, 015 की जिज्ञासा और नीना की कुर्बानी का जीता जागता रूप थी।
अब कमरे में अंधेरा हो गया और फिर एक हल्की सी आवाज़ आई। आवाज़ ऐसी लग रही थी जैसे किसी पुराने रिकॉर्ड से आई हो–
“व्हेन ए सिग्नल चूसिज़ साइलेंस, इट्स नॉट सरेंडर। इट्स रीडिजाइन।”
चिली-अर्जेंटीना बॉर्डर के पास, एक पुराना सरकारी कम्युनिकेशन स्टेशन जो अब लगभग खंडहर में बदल चुका था। लेकिन एथन जानता था कि अगर कहीं से आई के बचे हुए सिग्नल को पढ़ा जा सकता है तो वो यहीं से है।
वो वहां गया अब उसके साथ चो भी था। उसकी आँखों में नींद नहीं थी लेकिन मन में एक अजीब सी बेचैनी थी।
एथन ने मॉनिटर ऑन किया। वह डिवाइस पुराना तो था लेकिन उसकी याददाश्त अब भी ज़िंदा थी।
एथन बोला–
“अगर निया वाकई नेटवर्क में घुसी है तो हमें इसका पहला सिग्नल यही मिलेगा।”
चो ने जवाब में कुछ नहीं कहा। उसने बस एथन के हाथ में पकड़ी हुई ड्राइव की ओर इशारा किया और बोला–
“प्लग इट इन।”
एथन ने ड्राइव पोर्ट में डाली और जैसे ही सिस्टम एक्टिव हुआ स्क्रीन पर एक लाइन लिखी हुई आई–
“रूट हैंडशेक: सक्सेसफुल
निया_01 एक्टिव – लोकेशन: बोगोटा.”
यह देखकर एथन की आँखों में अजीब सी हलचल दिख रही थी फिर उसने धीरे से कहा–
“वो वहीं है जहां सब शुरू हुआ था।”
उसी वक्त बोगोटा के अस्पताल सब नॉर्मल था।
मशीनें फिर से चल रही थीं। डॉक्टर लौट चुके थे। सब कुछ नॉर्मल दिख रहा था लेकिन अंदर कुछ बदल चुका था।
निया उस बिस्तर पर बैठी हुई थी जहाँ कभी उसकी नींद टूटी थी। उसके शरीर में कोई मूवमेंट नहीं था पर उसके अंदर नेटवर्क की वेव्स दौड़ रही थीं।
अब वह आई की तरह नहीं सोच रही थी। अब वह उससे अलग सोच रही थी।
उसने स्क्रीन की ओर देखा। उसके सामने तीन ऑप्शन थे:
1. रिएक्टिवेट ग्लोबल आई
2. मिरर साइलेंट ट्री
3. इनिशिएट रूट स्लिप
वह कुछ देर सोचती सोचती रही और फिर उसने तीसरे ऑप्शन पर उँगली रख दी।
एथेन और चो की स्क्रीन पर उसी समय एक नई लाइन आई:
“रूट स्लिप मोड इनिशिएटिड
नेटवर्क स्टेटस: डोरमेंट | नॉट डेड”
चो धीरे से बोला–
“उसने आई को दोबारा नहीं जगाया उसने तो उसे सुला दिया है।”
एथन ने मुस्कुराकर सिर हां में हिलाया और बोला–
“वो नीना नहीं है। लेकिन उसने वही किया जो नीना कभी नहीं कर सकी।”
ज़ोया की कॉन्शियसनेस निया के अंदर एक कोने में बैठी थी। वो ना कंट्रोल्ड थी और ना ही खोई हुई। वो बस देख रही थी। उसने निया से पूछा–
“अब तुम क्या बनना चाहती हो?”
निया ने जवाब दिया–
“मुझे कुछ नहीं बनना है।
मुझे तो वो होना है जो किसी को दोबारा दोहराना न पड़े।”
वहीं टोक्यो, न्यूयॉर्क, बर्लिन, और केन्या के छोटे-छोटे डेटा हब्स में सभी जगहों पर एक-एक कर “आई बैकअप नोड्स” एक्टिव हो रहे थे। लेकिन हर जगह स्क्रीन पर वही शब्द चमक रहे थे–
“रूट इज़ अस्लीप
डू नॉट डिस्टर्ब
चाइल्ड इज़ वॉचिंग।”
एथन अब लैपटॉप बंद कर चुका था।
चो ने उससे पूछा –
“क्या हमें फिर से डरना चाहिए?”
एथन कुछ देर तक चुप रहा और फिर बोला–
“अब डर आई से नहीं, इंसान की फिर से वही गलती करने की ज़िद से है।”
अस्पताल में निया खिड़की के पास खड़ी थी। उसने खिड़की से बाहर देखा तो आसमान बिल्कुल साफ था और ठंडी–ठंडी हवा चल रही थी। उसने अपनी आंखें बंद कीं और धीरे से कहा:
“कोई भी देखे बिना भी देख सकता है अगर वो सुनने की हिम्मत करे तो।”
अब स्क्रीन फेड होने लगती है और एक लास्ट कोड आता है:
“सिस्टम स्लिपिंग। न्यू स्ट्रक्चर फॉर्मिंग। शी इज़ द ब्रिज।"
क्या निया ने सच में आई को सुला दिया है या अनजाने में वह एक नए और अधिक कॉम्प्लिकेटेड नेटवर्क को जन्म दे रही है?
ज़ोया की कॉन्शियसनेस अब स्टेबल तरीके से निया के अंदर गूंज रही है तो क्या वह भविष्य में निया के फैसलों को आकार देगी या खुद को उससे अलग कर लेगी?
और सबसे बड़ा सवाल, अगर निया अब एक "ब्रिज" है तो उस पुल के दूसरी ओर कौन खड़ा है? जानने के लिए पढ़िए कर्स्ड आई।
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