"हर बच्चे का सपना होता है - एक सुरक्षित घर, प्यार भरा परिवार, और उज्ज्वल भविष्य।"

"लेकिन कभी-कभी, परिस्थितियाँ इतनी मुश्किल हो जाती हैं कि ये सपने टूट जाते हैं। बच्चे खो जाते हैं, अकेले पड़ जाते हैं, और उम्मीदें दम तोड़ने लगती हैं।"

"यहीं से 'नवजीवन' की शुरुआत होती है। हम उन बच्चों को सहारा देते हैं, जिन्होंने सब कुछ खो दिया है। हम उन्हें एक नया घर देते हैं, जहाँ वे सुरक्षित महसूस कर सकें। हम उन्हें शिक्षा देते हैं, ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें।"

"नवजीवन सिर्फ एक एनजीओ नहीं है, यह एक परिवार है। एक ऐसा परिवार जहाँ हर बच्चे को प्यार मिलता है, हर सपने को पंख मिलते हैं।"

"हम मानते हैं कि हर बच्चे में असीम क्षमता होती है। उन्हें बस एक मौका चाहिए, एक सही दिशा चाहिए।"

"एक नया सवेरा, एक नई उम्मीद... 'नवजीवन' के साथ।"

मेल्विन के सिंडिकेट के जाल में फँसने से कुछ समय पहले, शहर के दूसरे छोर पर, एक घनी आबादी वाली बस्ती के एक पुराने, ढके हुए गोदाम में, रघु अपने आदमियों के साथ बैठा था। व्हीलचेयर पर बैठा रघु, उसका चेहरा भले ही घावों से भरा था और एक हाथ प्लास्टर में था, पर उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी।

"रघु भाई, आप बिलकुल सही थे।" विशाल ने कहा, जो उसके बगल में खड़ा था। "वह मेल्विन सच में सिंडिकेट के चुंगुल में फँस गया।"

रघु ने अपनी व्हीलचेयर को थोड़ा आगे बढ़ाया, उसके चेहरे पर एक संतुष्टि भरी मुस्कान थी। "मैं जानता था। वह बेवकूफ। उसे लगा कि वह सिंडिकेट के साथ मिलकर मेरे खिलाफ़ खड़ा हो जाएगा। लेकिन वह यह नहीं समझा कि सिंडिकेट किसी को छोड़ता नहीं।" उसने एक गहरी साँस ली, जैसे कोई भारी बोझ उतर गया हो। "500 करोड़ गए, पर कम से कम हम उन कमबख्तों से बच तो गए।"

"हाँ भाई, यह तो चमत्कार ही हुआ कि हम लोग किसी तरह बच निकले।" रवि ने कहा, उसके चेहरे पर अभी भी डर की हल्की सी झलक थी। "मैं तो सोच भी नहीं सकता था कि हम उनके चंगुल से बाहर निकल पाएंगे।"

रघु ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "यह सब मेल्विन की मेहरबानी है। उसने ही मुझे उन कमीनों के हवाले किया था। उसने ही मुझे उस नर्क से गुज़ारा।" उसकी आवाज़ में कड़वाहट थी, पर अब उसमें पहले जैसी बेबसी नहीं थी। "लेकिन अब, पासा पलट गया है।"

"और माया इवानोवना का क्या, भाई?" विशाल ने पूछा। "हमने सुना है कि पुलिस उसे उसके परिवार के पास ले गई है।"

रघु ने सिर हिलाया। "हाँ, माया... उसके बारे में भी हमें पता चला है। वह कोई मामूली लड़की नहीं है। उसके तार बहुत दूर तक जुड़े हैं। वह उस इवानोवना फैमिली से जुड़ी हुई है, जिसका नाम मैंने जेल में सुना था। ये कोई आम लोग नहीं हैं, विशाल। ये बहुत बड़े खिलाड़ी हैं। और माया का इसमें शामिल होना, खेल को और भी पेचीदा बना देता है।"

रघु ने कुछ देर सोचा, उसकी आँखों में एक नया संकल्प चमक रहा था। "अब यह सिर्फ़ मेल्विन या डिकोस्टा का मामला नहीं रहा। अब यह फियास्को फैमिली के खिलाफ़ एक बड़ी लड़ाई है। और इस बार, हम दांव पर नहीं लगेंगे। हम खेल को अपने हिसाब से चलाएंगे।"

"क्या योजना है, भाई?" रवि ने उत्सुकता से पूछा।

"मेल्विन ने हमें एक मौका दिया है।" रघु ने कहा। "वह फियास्को फैमिली के जाल में फँस गया है। अब हम उसे वहीं रहने देंगे। उसे लगता है कि वह हीरो बन जाएगा, पर वह सिर्फ़ एक मोहरा है। और हम इस मोहरे का इस्तेमाल करेंगे।"

उसने अपनी व्हीलचेयर घुमाई, उसकी आँखों में एक खतरनाक चमक थी। "हमें अपनी रणनीति बदलनी होगी। अब सिर्फ़ डिकोस्टा को खत्म करना काफी नहीं है। अब हमें उस फियास्को फैमिली को भी सबक सिखाना होगा। और मेल्विन... वह अनजाने में ही सही, हमारे काम आएगा।"

"पर कैसे, भाई?" विशाल ने पूछा। 

"मुझे पता है कि फियास्को फैमिली तक कैसे पहुँचना है। और मेल्विन... वह अब उनके चंगुल में है, जिसका मतलब है कि हम उनके अंदरूनी खेल को जान सकते हैं। मेल्विन को हम मरने नहीं देंगे, कम से कम अभी तो नहीं। उसे ज़िंदा रहना होगा, ताकि वह हमारे लिए काम आ सके।"

रघु ने एक ठंडी मुस्कान के साथ कहा, "यह लड़ाई अब बड़ी हो गई है। और इस लड़ाई में, हम किसी को भी नहीं छोड़ेंगे, जो हमारे रास्ते में आएगा। न डिकोस्टा, न फियास्को फैमिली, और न ही मेल्विन... जब तक वह हमारे काम का है।" 

शहर के एक शांत कोने में, जहाँ शाम की उदास रौशनी धीरे-धीरे उतर रही थी, लक्ष्मण के छोटे से किराए के घर में एक अजीब सी खामोशी छाई हुई थी। यह वह जगह थी जहाँ अक्सर हल्की-फुल्की बातें और चाय की चुस्कियों के बीच दिन कट जाते थे, लेकिन आज माहौल बेहद तनावपूर्ण था। लक्ष्मण अपने पुराने दोस्त पीटर, डॉक्टर ओझा, और महेश के साथ बैठा था। हर चेहरा चिंता की गहरी लकीरों से ढका था। उनके बीच मेल्विन का ज़िक्र चल रहा था – पिछले कुछ दिनों में उसके साथ जो भी हुआ था, हर कोई उसे लेकर परेशान था। 

"मुझे समझ नहीं आ रहा, मेल्विन कहाँ गया होगा?" पीटर ने  हुए कहा। उसकी आवाज़ में एक हल्की सी घबराहट थी। "उसने मुझसे आख़िरी बार बात तब की थी जब वह उस रेस्टोरेंट की बात कर रहा था, जहाँ उसे डिकोस्टा के आदमी मिले थे। वह बहुत गुस्से में था, बदला लेने की बात कर रहा था।"

 

डॉक्टर ओझा, अपने स्वभाव के विपरीत, चुपचाप बैठे थे। उनके माथे पर सिकुड़न थी। "मुझे उसकी चिंता हो रही है। जिस तरह से वह सिंडिकेट के पीछे पड़ा है, वह बहुत खतरनाक है। यह कोई छोटी-मोटी गैंग नहीं है, यह एक बहुत बड़ा जाल है।" उन्होंने अपनी बात जारी रखी, "मेरा क्लिनिक बंद होने के बाद से मेरी और उसकी बात नहीं हुई है। वो लड़का पहले से ही बहुत अकेला है, उसे ऐसे हालात में अकेले नहीं छोड़ना चाहिए था।" 

महेश, जो हमेशा शांत और गंभीर रहता था, इस बार काफी बेचैन दिख रहा था। "जब उसने मुझे डिकोस्टा के साथ माया की डील के बारे में बताया था, तभी मुझे लगा था कि कुछ बहुत बड़ा होने वाला है। वह बहुत गहराई में घुस गया है। और अब यह 'फियास्को फैमिली' का नाम... मिस्टर कपूर ने जब से यह बताया है, मुझे रात को नींद नहीं आ रही।"

लक्ष्मण ने चाय का कप मेज़ पर रखा। "उसकी जान को खतरा है, यह तो साफ है। उसे सिंडिकेट से सीधी टक्कर नहीं लेनी चाहिए थी। वह अकेला पड़ गया है।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी हेल्पलेस थी। "मैं उसे बार-बार समझाता रहा कि सावधानी बरते, लेकिन वह नहीं माना।"

तभी, दरवाज़े पर हल्की दस्तक हुई। सबने एक साथ उधर देखा। दरवाज़ा खुला और मिस्टर कपूर अंदर आए। उनकी आँखें थकी हुई थीं और चेहरा उतरा हुआ था। उनके आते ही कमरे का माहौल और गंभीर हो गया।

"मिस्टर कपूर!" सबने लगभग एक साथ कहा।

मिस्टर कपूर ने अपनी सीट ली, उनके चेहरे पर चिंता साफ झलक रही थी। "मैं अभी मेल्विन को फोन कर रहा था... उसका फोन स्विच ऑफ आ रहा है।"

यह सुनते ही कमरे में जैसे सन्नाटा छा गया। पीटर के मुँह से हल्की सी चीख निकली। डॉक्टर ओझा ने अपनी आँखें बंद कर लीं, और महेश ने अपने होंठ भींच लिए। लक्ष्मण के चेहरे पर भी तनाव साफ दिख रहा था।

"क्या? स्विच ऑफ?" लक्ष्मण की आवाज़ काँप रही थी। "यह... यह ठीक नहीं है। वह कभी अपना फोन बंद नहीं करता।"

मिस्टर कपूर ने गहरी साँस ली। "मुझे भी यही डर था। कल रात जब उसने मुझे फोन किया था, वह बहुत उत्तेजित था। उसने सिंडिकेट के बॉस के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। उसने कहा कि वह उन्हें खत्म करेगा।"

"क्या?" महेश की आवाज़ में अविश्वास था। "उसने इतना बड़ा जोखिम लिया?"

"हाँ," मिस्टर कपूर ने सिर हिलाया। "उसने सीधे उन्हें चुनौती दी है। मैंने उसे समझाया था कि यह उसकी ज़िंदगी की सबसे बड़ी गलती हो सकती है, लेकिन वह नहीं माना। वह बदले की आग में जल रहा था।"

डॉक्टर ओझा ने अपनी आँखें खोलीं। "तो इसका मतलब है कि वह अब उनके निशाने पर है। हमें उसे ढूँढना होगा, जल्द से जल्द।"

 

पीटर अपने सीट से खड़ा हो गया। "लेकिन कहाँ ढूँढेंगे? हम नहीं जानते कि वह कहाँ गया है। और सिंडिकेट... वे हर जगह हैं।"

"हमें यह पता लगाना होगा कि वह किस रेस्टोरेंट में गया था, और उस वेटर के बारे में भी जानकारी जुटानी होगी," लक्ष्मण ने कहा, उसके दिमाग में योजनाएँ बनने लगी थीं। "हो सकता है कि वह वेटर ही सिंडिकेट तक पहुँचने का रास्ता हो।"

मिस्टर कपूर ने कहा, "मैंने उसे बताया था कि उस सिंडिकेट के बॉस ने मुझे भी निगरानी में रखा है। इसका मतलब है कि वे हर कदम पर उसकी निगरानी कर रहे थे। उन्होंने शायद उसे ट्रैप किया होगा।"

महेश ने अपनी मुट्ठी भींच ली। "हमें उसे बचाना होगा, किसी भी कीमत पर। वह अकेला नहीं है। हम सब उसके साथ हैं।"

"लेकिन कैसे?" डॉक्टर ओझा ने पूछा। "हमें पुलिस की मदद लेनी चाहिए?"

"नहीं!" मिस्टर कपूर ने तुरंत कहा। "पुलिस इसमें कुछ नहीं कर पाएगी। यह सिंडिकेट इतना शक्तिशाली है कि वे पुलिस को भी मैनेज कर सकते हैं। हमें अपने तरीके से काम करना होगा। और सबसे पहले, हमें यह जानना होगा कि मेल्विन किस मुसीबत में है।"

लक्ष्मण ने एक गहरी साँस ली। "हम पुलिस के भरोसे नहीं बैठ सकते। हमें अपनी जान की परवाह किए बिना उसे ढूँढना होगा।"

पीटर ने सहमति में सिर हिलाया। "मेरे कुछ पुराने कॉन्टैक्ट्स हैं, अंडरवर्ल्ड में। शायद वे कुछ जानकारी दे सकें। मुझे पता है कि यह खतरनाक है, लेकिन मेल्विन के लिए हम कुछ भी करेंगे।"

डॉक्टर ओझा ने कहा, "मैं अपने पुराने दोस्तों से संपर्क करूँगा, जो शहर के अलग-अलग हिस्सों में काम करते हैं। अगर मेल्विन को किसी तरह का मेडिकल अटेंशन मिला है, तो शायद कोई सुराग मिल जाए।"

महेश ने अपने फोन निकाला। "मैं अपने नेटवर्क का इस्तेमाल करूँगा। शहर में ऐसा कोई कोने नहीं है जहाँ मेरा आदमी न हो। अगर कोई अनजान वैन या कोई असामान्य गतिविधि देखी गई है, तो मुझे पता चल जाएगा।"

मिस्टर कपूर ने कहा, "मुझे फियास्को फैमिली के बारे में जितनी जानकारी है, मैं वह सब आपके साथ साझा करूँगा। यह लड़ाई सिर्फ मेल्विन की नहीं है, यह हम सबकी है। हम सब मिलकर उसे बचाएंगे।"

कमरे में एक नया संकल्प दिख रहा था। चिंता अभी भी थी, लेकिन अब उसके साथ दृढ़ता भी जुड़ गई थी। वे सब मेल्विन के लिए कुछ भी करने को तैयार थे। उन्होंने एक दूसरे की तरफ देखा, और उनके चेहरों पर एक अनकहा वादा था – मेल्विन को बचाना है। यह सिर्फ एक दोस्त को बचाने की बात नहीं थी, यह एक ऐसे दुष्ट सिंडिकेट के खिलाफ़ खड़े होने की बात थी, जिसने न जाने कितने लोगों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी थी। 

उनके सामने एक लंबी और खतरनाक रात थी। उन्हें नहीं पता था कि मेल्विन कहाँ है, या उसके साथ क्या हो रहा है। लेकिन एक बात तय थी – वे उसे अकेले नहीं छोड़ेंगे। वे उसे ढूँढेंगे, और इस लड़ाई में उसका साथ देंगे, चाहे परिणाम कुछ भी हो।

क्या वे मेल्विन को समय रहते ढूँढ पाएंगे, या सिंडिकेट उन्हें भी अपने जाल में फँसा लेगा?

यहाँ वे मेलविन को बचाने के लोए अपनी कोशिशें कर रहे थे वहीं मेल्विन दर्द और बेबसी के दलदल में धँसा हुआ था। उसके हाथ-पैर बँधे थे, और उसकी आँखों के सामने वही 'नवजीवन' का विज्ञापन बार-बार चल रहा था। बच्चों की हँसी, और 'एक नया सवेरा, एक नई उम्मीद' के वादे... ये सब मेल्विन के दिल में छेद कर रहे थे। उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। क्या यह सब एक दिखावा था?

विज्ञापन एक बार खत्म होता, और फिर से शुरू हो जाता। "हर बच्चे का सपना होता है..." एक शांत, ममतामयी आवाज़ फिर गूँजती। मेल्विन ने खुद को हिलाने की कोशिश की, मुँह से टेप हटाने की कोशिश की, लेकिन सब बेकार। वह जानता था कि डिकोस्टा और वेटर उसे यह सब जानबूझकर दिखा रहे हैं, उसे और ज़्यादा तोड़ने के लिए।

"बंद करो इसे!" मेल्विन मन ही मन चिल्लाया। "मुझे उस बॉस से बात करनी है! यह सब बकवास है!"

उसकी आँखें गुस्से से लाल हो रही थीं, और उसका दिमाग तेज़ी से घूम रहा था। 'नवजीवन' के नाम पर यह कैसा धोखा था?

जैसे ही मेल्विन का गुस्सा चरम पर पहुँचा, और उसने खुद को आज़ाद करने की अंतिम कोशिश की, टीवी स्क्रीन पर अचानक हलचल हुई। 'नवजीवन' का विज्ञापन झिलमिलाया और गायब हो गया। मेल्विन की आँखें चौड़ी हो गईं। उसे लगा कि शायद उसकी बात सुन ली गई है।

लेकिन उसकी उम्मीदें पल भर में टूट गईं। स्क्रीन पर जो कुछ आया, उसने मेल्विन की रूह तक को कंपा दिया। 'नवजीवन' की जगह, एक नया विज्ञापन शुरू हुआ, जो किसी भयावह सपने से कम नहीं था। यह था अंगों की तस्करी का विज्ञापन। 

स्क्रीन पर भयानक तस्वीरें दिखाई देने लगीं। अँधेरे, गंदे कमरों में पड़े इंसानी अंग – गुर्दे, फेफड़े, आँखें... सब कुछ ठंडे, प्लास्टिक के डिब्बों में पैक किया हुआ। उन पर अजीब से नंबर और कोड लिखे थे। खून के धब्बे और सर्जरी के निशान साफ दिख रहे थे। एक भयावह, धीमी आवाज़ बैकग्राउंड में चल रही थी, जो किसी मशीनी रोबोट जैसी लग रही थी:

(मशीनी, बेजान आवाज़): "मानव अंग उपलब्ध हैं... सर्वोत्तम गुणवत्ता... तुरंत डिलीवरी..."

मेल्विन की साँसें अटक गईं। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। यह कैसा पाखंड था? एक तरफ बच्चों को जीवन देने का वादा करने वाला 'नवजीवन', और दूसरी तरफ मासूमों के अंगों को बेचने का यह घिनौना कारोबार!

(मशीनी, बेजान आवाज़): "ज़रूरत के अनुसार... रक्त समूह का मिलान... गोपनीय सेवा..."

मेल्विन को उल्टी जैसा महसूस हुआ। उसे याद आया कि डिकोस्टा ने क्या कहा था, "हमने उससे भी बड़ा खेल शुरू किया है।" क्या यही था उनका 'बड़ा खेल'? 'नवजीवन' के नाम पर बच्चों को इकट्ठा करना, और फिर उनके अंगों की तस्करी करना? उसके दिमाग में एक ठंडा डर छा गया। यह फियास्को फैमिली सिर्फ गुंडे नहीं थे, वे शैतान थे।

(मशीनी, बेजान आवाज़): "संपर्क करें... [अजीब सा कोड और नंबर]... त्वरित और कुशल सेवा...!"

 

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