ऊपर कमरे की सफाई करते वक्त अचानक सुषमा, अपने पति, हरि से चिपट गई तो वो असहज हो गया था और यह बोल पड़ा। उसके यह कहते ही वह छिटक कर उस से दूर जा खड़ी हुई, उसके चेहरे पर आए गुस्से के भाव से लग रहा था कि वह अभी उस पर बरस पड़ेगी और वही हुआ।
सुषमा : (चिढ़ते हुए) मुझे तुमसे चिपटने का कोई शौक़ नहीं है। वह तो चूहा मेरे पैर पर चढ़ गया था, जिससे मैं डर गयी थी।
हरि : (असहजता से) सुषमा, मेरे कहने का यह मतलब नहीं था।
भले ही हरि के कहने की मंशा कुछ और रही हो मगर सुषमा ने उसकी बात का मतलब कुछ और ही निकाल लिया था। हरि उसे समझाने की बहुत कोशिश कर रहा था मगर वह मानने का नाम ही नहीं ले रही थी। उसके चेहरे पर गुस्सा अभी भी साफ़ नज़र आ रहा था। उस के गुस्से को देख कर हरि नरम हो गया। तभी सुषमा ने कहा, ‘’हम दोनों के अलावा यहाँ कोई नहीं है। अगर मैं तुमसे लिपट गई तो क्या हुआ? आखिर तुम मेरे पति हो, क्या पत्नी होने के नाते मैं यह नहीं कर सकती। बोलो, बोलो, अब चुप क्यों हो?''
हरि के साथ विडंबना यह थी कि अगर वह कुछ बोलता तो सुषमा कहती कि बहुत बोल रहे हो, और अगर चुप रहता तो उसे खामोशी का ताना मिलता। अभी भी वही हो रहा था—वह शांत बैठा था, लेकिन सुषमा उसे जबरदस्ती बुलवाने की कोशिश कर रही थी। उसे अच्छी तरह पता था कि अगर वह अब भी चुप रहा, तो सुषमा को और ज़्यादा गुस्सा आएगा और बात और बिगड़ जाएगी। उसने एक गहरी सांस ली, अपनी आवाज़ को जितना हो सके शांत और सहज बनाया, और नरम लहजे में कहा, ‘’हाँ, तुम सही कह रही हो।''
अपने पक्ष की बात सुनकर सुषमा के चेहरे पर जो गुस्सा था, वह थोड़ा कम हो गया। उसके माथे की सिलवटें हल्की पड़ गईं, उसने थोड़ी देर तक हरि को देखा, जैसे उसके शब्दों का मतलब समझने की कोशिश कर रही हो। इस बार उसकी नज़रें पहले जैसी कठोर नहीं थीं, उनमें एक नरमी थी, एक अपनापन था।
हरि को महसूस हुआ कि सुषमा का गुस्सा पूरी तरह से नहीं गया था, लेकिन अब उसमें वो तीखी तल्ख़ी नहीं थी जो कुछ देर पहले थी। जैसे-जैसे पल बीत रहे थे, सुषमा का गुस्सा धीरे-धीरे पिघलने लगा।
एक गहरी सांस लेते हुए उसने अपनी चुप्पी तोड़ी। उसकी आवाज़ में अब पहले जैसी तेज़ी नहीं थी, बल्कि एक हल्की कोमलता झलक रही थी। उसने धीरे से कहा, ‘’आप क्यों मुझे गुस्सा दिलाते हो? और मैं भी ना, पता नहीं, आपको क्या क्या बोल देती हूँ।''
यह कहकर सुषमा ने राहत की सांस ली। पहले ही दोनों, आपस के झगड़े में काफी समय ख़राब कर चुके था। हरि ने तुरंत कहा, ‘’अब हमें जल्दी से कमरें की सफाई कर लेनी चाहिए। समय निकलता जा रहा है।''
यह कहकर दोनों कमरे की सफाई में लग गए।
उधर, दरवाज़ा खुलने के बाद रोहन ने जब घर के मालिक, मटरू को देखा, तो उसके चेहरे पर हैरानी नज़र आने लगी। उसके अचानक इस तरह आ जाने से उसे चिंता होने लगी, वह सोच में पड़ गया कि अब मटरू यहां क्यों आया है।
कुछ पलों तक दरवाज़े की ओर से कोई आवाज़ नहीं आई, घर के अंदर मौजूद प्रिया को यह अजीब लगा। हल्की चिंता के साथ, उसने घर के अंदर से ही आवाज़ दी, ‘’कौन है, दरवाज़े पर?''
रोहन : (गंभीरता भरे स्वर में) मटरू अंकल है।
यह सुनकर प्रिया दरवाज़े की तरफ़ चली, तब तक रोहन ने बड़े ही आदर के साथ मटरू को अंदर आने दिया। मटरू की उम्र तकरीबन पचास साल की थी। उसका पेट इतना आगे निकला हुआ था कि उस पर चाय के कप को भी आसानी से रखा जा सकता था।
कुछ हो ना हो, मटरू के मुँह में पान हमेशा रहता था। उसने जैसे ही घर के अंदर सामान को इधर से उधर पड़ा हुआ देखा तो समझ गया कि जाने की तैयारी हो रही है। उसने अपने दिल की बात को ज़बान पर लाते हुए कहा(पान खाते हुए अंदाज़ में), “अच्छा तो यहां से जाने की पूरी तैयारी हो गई है, सामान भी सब पैक कर लिया”।
मुंह में पान होने की वजह से वह आधे शब्दों को खा गया था। उसकी बातें भले ही समझ में ना आ रही हो मगर उसका अर्थ दोनों समझ गए थे। रोहन ने खुद से बात करते हुए कहा, ‘’अब आपने मकान खाली करने को बोला दिया है तो सामान तो पैक करना ही पड़ेगा।''
यह सुनकर मटरू ने जैसे ही रोहन के चेहरे की तरफ़ देखा तो उसे लगा, जैसे वह आगे कुछ और भी कहना चाहता है। उसने तुरंत कहा, (पान खाते हुए अंदाज़ में) “अरे बेटा कुछ कहना चाहते हो तो बोल दो, मन में बात रहती है तो बोझ रहता है”।
मटरू की बात सुनकर रोहन चौंक गया। उसे एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे मटरू ने रोहन के मन की बात सुन ली हो। इस बार वह खामोश रहा मगर प्रिया चुप रहने वाली नहीं थी। उसने तुरंत जवाब देते हुए कहा, ‘’बोलना क्या है अंकल, हमने आपके घर में कितने साल गुज़ारे, और आपने एक पल में बोल दिया कि घर को खाली कर दो।''
रोहन : (प्रिया की बात में बात मिलाते हुए) आपका घर है, आपका पूरा हक़ है मगर हमें थोड़ा समय तो मिलना चाहिए था, शायद आप नहीं जानते कि एक घर से दूसरे घर में शिफ्ट करना कितना मुश्किल होता है।
मटरू ने दोनों की बात को सुना, तुरंत वाश बेसिन की तरफ गया और पान के पीक को थूक दिया। था वह बिल्कुल चंट आदमी, जानता था कि पान के साथ वह शब्दों का उच्चारण ठीक से नहीं कर पाएगा। उसने अपने चेहरे के भाव को ऐसे बदल लिया, जैसे गिरगिट अपना रंग बदल देता है। इससे पहले वह कुछ कह पाता, प्रिया ने तुरंत कहा, ‘’अंकल आप चिंता ना करे, हमें घर मिल गया है, हम आज ही आपका घर खाली कर देंगे।''
मटरू ने तुरंत कहा, “ना बेटा ना, तुम्हें घर खाली करने की ज़रुरत नहीं है”। दोनों यह सुनकर चौंक गए। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि कल तक जो मटरू घर को जल्द से जल्द खाली करवाने पर ज़ोर दे रहा था, वह आज अचानक मना क्यों कर रहा है। रोहन ने कहा, ‘’हम लोग तो अपने नए मकान के लिए ज़बान दे चुके है।''
तभी मटरू ने कहा, “ज़बान ही तो दी है, पैसे तो नहीं दिए ना, पैसे देते तो समझ में आता, ज़बान का क्या है, वह तो बदलती रहती है”। जिस तरह की बात मटरू कर रहा था, उससे साफ़ पता चल रहा था कि उसकी नज़र में ज़बान की तुलना में पैसे की एहमियत ज़्यादा है।
उसने दोनों को लालच देते हुए कहा, “तुम चाहो तो मैं तुम्हारा किराया भी कम कर देता हूँ”। यह सुनकर दोनों, बुरी तरह चौंक गए थे। इतना ही नहीं, मटरू ने दोनों से, जब तक मन करे, तब तक रहने की बात भी कही।
यह कहकर उसने अपनी जेब से पान निकाला और उसे मुँह में डालते हुए कहा, “अगर तुम्हें किसी चीज़ की ज़रुरत हो तो मुझे बे-झिझक बताना। आखिर मैं तुम्हारा अंकल हूँ”। यह बात कहकर मटरू पान चबाता हुआ घर से बाहर चला गया।
वह चला तो गया था मगर उसने दोनों को बड़ी दुविधा में डाल दिया था। दोनों बिना कुछ बोले एक दूसरे के चेहरे को देख रहे थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे। तभी प्रिया ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘’क्या इस आदमी पर भरोसा किया जा सकता है?''
रोहन : (जवाब देते हुए) अब कह रहा है तो कुछ सोच समझ कर ही कह रहा होगा।
जिस तरह से बबलू ने उसके किरदार के बारे में बताया था, प्रिया को उस पर ज़रा सा भी भरोसा नहीं था। रोहन ने उसकी बात का समर्थन किया, लेकिन उसे यह मटरू की कोई नयी चाल लग रही थी। तभी रोहन ने कहा, ‘’अगर हम उसकी बात को मानते है, तो यह जो हमें नए घर में शिफ्ट होने की परेशानी है, उससे बच जायेगे।''
प्रिया : (जवाब देते हुए) और अगर यह थोड़े दिन बाद अपनी बात से पलट गया तो? तब क्या करेंगे, रोहन?
मटरू के जाने के बाद दोनों में काफी देर तक बातें हुई। तभी दरवाज़े की बेल सुनाई दी, एक बार फिर दोनों का ध्यान दरवाज़े की तरफ़ गया। दोनों ने एक बार फिर अपनी नज़रों को आपस में मिलाया। रोहन ने कहा, ‘’मैं जाकर देखता हूँ, हो सकता है मटरू अंकल को कुछ और भी बात करनी हो।''
उसने जैसे ही दरवाज़े को खोला तो उसके सामने मटरू अंकल नहीं बल्कि कोई और था। उसे देख कर रोहन थोड़ा असहज गया। उसके मुँह से शब्द ही नहीं निकल रहे थे।
आखिर दरवाज़े पर इस बार कौन आया था जिसे देख कर रोहन असहज हो गया था?
रोहन और प्रिया क्या फैसला लेंगे?
क्या वह मटरू की बात पर विश्वास करके अपर्णा के यहाँ शिफ्ट होने से मना कर देंगे?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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