किरायेदार के आने की तैयारी के लिए, हरि और सुषमा ऊपर के कमरे की सफाई करने चले गए। कमरा खोला तो उसमें जाले ही जाले भरे हुए थे। हरि ने आगे बढ़कर, जैसे ही मकड़ी के जालों को हटाना शुरू किया, पीछे आ रही सुषमा ज़ोर से चिल्लाई। उसके चिल्लाने की आवाज़ सुनकर हरि चौंक कर पलटा तो उसने सुषमा को ज़मीन पर गिर पाया।
हरि : (चिंता भरे स्वर में) तुम ठीक तो हो ना सुषमा।
हरि अपनी पत्नी को ज़मीन पर गिरे देख कर परेशान हो गया। थोड़े समय के लिए उसकी समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन फिर दिमाग लगाया तो उसकी समझ में आया कि जिस तरह दरवाज़ा खोलते ही जंगली कबूतर वहां से निकले थे, ज़रूर सुषमा उन्हीं से टकराई होगी और उससे वह एक दम घबराकर गिर गई होगी। हरि ने उसकी तरफ़ देखते हुए कहा:
हरि : (चिंता भरे स्वर में) थोड़ा देख लेती तो शायद उन कबूतरों से बच जाती।
यह कहकर वह उस के पास गया। सुषमा ने अपने हाथों से अपने चेहरे को ढका हुआ था। हरि ने सोचा शायद चोट लग गयी है। उसने उसके हाथों को हटाने की कोशिश की मगर वह अपने हटाने को तैयार ही नहीं थी। तभी उसने कहा:
हरि : (चिंता भरे स्वर में) जब तक तुम अपने हाथों को चेहरे से हटाओगी नहीं, मुझे मालूम कैसे होगा कि चोट कहां लगी है।
सुषमा दरवाजा खुलने पर अचानक कबूतरों के निकलने से बुरी तरह डर गयी थी, अपने पति की आवाज़ सुनकर उसका डर थोड़ा दूर हुआ। हरि ने जैसे ही उसके हाथों को चेहरे से हटाया तो वह चौंक गया, उसकी ज़बान से निकला:
हरि : (घबराहट के साथ) खू खू ख़ून।
जैसे ही सुषमा ने हरि के मुँह से ख़ून शब्द सुना, वह परेशान हो गयी। उसे अंदाज़ा नहीं था कि कबूतर के पंजे इतनी ज़ोर से लगेंगे कि ख़ून निकल आएगा, दोनों चिंता में पड़ गए। उधर अपने घर पर रोहन, प्रिया के साथ घर का सामान रखने में मदद कर रहा था, तभी प्रिया ने कहा, ‘’आप रहने दो, मैं सारा सामान पैक कर लूंगी।''
रोहन : (खुश) समय बचाने के लिए मुझे तुम्हारा हाथ बँटाना होगा। एक बार बबलू टेम्पो लेकर आ गया तो टाइम नहीं रहेगा।
दोनों एक दूसरे की मदद से घर के सामान को एक एक करके पैक कर रहे थे कि तभी दरवाज़े की बेल बजने की आवाज़ आई। बेल सिर्फ एक ही बार बजी थी, इसका मतलब यह था कि दरवाज़े पर इस बार बबलू नहीं, बल्कि कोई और था। दोनों ने सोचा, कहीं किसी बच्चे ने बेल को खेल-खेल में तो नहीं बजा दिया मगर तभी एक बार और बेल बजने की आवाज़ आयी।
इस बार बेल की आवाज़ पर दोनों ने एक दूसरे की तरफ देखा। आखिर इस समय दरवाज़े पर कौन हो सकता है, यह सवाल दोनों के ही मन में आया। रोहन ने अपने मन की बात को ज़बान पर लाते हुए कहा, ‘’मैं जाकर देखता हूँ, आखिर दरवाज़े पर कौन है।''
रोहन के हाथ में जो काम था, उसे छोड़ वह दरवाज़े की तरफ़ चला गया। दरवाज़ा खोला तो चौंक गया, आखिर कौन था वह आदमी जिसे देख कर रोहन चौंक गया था। इधर थोड़ी देर तक रोहन उस आदमी को देखता रहा तो उधर अपर्णा के घर में सुषमा और हरि के जाने के बाद अपर्णा सीधे किचन की तरफ़ चली गयी थी। किचन में एप्रन को पहनते हुए उसने कहा, ‘’आज मैं अपने हाथों से खाना बनाती हूँ। जब तक वह लोग आएंगे, खाना तैयार हो जायेगा। सारा सामान एक जगह इकट्ठा कर लेती हूँ, ताकि आसानी रहे।''
आज दाल मखनी बनने की तैयारी थी, रात को ही सुषमा ने उड़द की डाल और राजमा भिगो कर रख दिए थे। पहले तो जिस जिस सामान की ज़रुरत थी, उसे अपने सामने रख लिया । फिर कुकर में भीगे हुए दाल और राजमा में पानी डाल कर बोलीं, ‘’अब इसमें नमक और अदरक डाल देती हूँ, एक बार यह मुलायम हो जाये तो पैन में निकाल लूंगी।''
जैसे ही थोड़ी देर बाद कुकर ने सीटी मारी तो उसकी आवाज़ से घर के ऊपर वाले हिस्से में सफाई कर रही सुषमा के चेहरे पर ख़ुशी आ गयी। वह अपने दर्द से साथ उस खून को भी भूल गई जिसकी वजह, सुषमा के गाल पर कबूतरों के पंजो से आयी हलकी सी खरोंच थी। सुषमा ने हरि की तरफ देखा और मुस्कुरा दी। इससे पहले वह उस ख़ुशी के भाव को शब्दों का जामा पहनाती, हरि ने तुरंत सवाल किया, ‘’क्या बात है, तुम मुस्कुरा क्यों रही हो?''
सुषमा : (खुश होते हुए) तुमने कुकर की सीटी की आवाज़ सुनी? इसका मतलब समझते हो, आज हमें दीदी के हाथ का खाना खाने को मिलेगा।
यह सुनकर हरि के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई। सुषमा दीदी के खाने की तारीफ करने में कभी नहीं चूकती थी मगर हरि, वह अपने सकुचाने वाले स्वभाव की वजह से कुछ बोल नहीं पाता था, लेकिन दीदी के खाने का स्वाद तो उसके भी सर चढ़ कर बोलता था। यूँ तो सुषमा हमेशा यही कोशिश करती थी कि दीदी को किचन में ना जाने दिया जाये मगर कई बार उसका भी मन होता था कि वह उनके हाथ का बना हुआ खाना खाये। आज उसकी मनोकामना पूरी होने वाली थी। उसने अपनी आँखों को बंद करके, लंबी साँस भरते हुए कहा, ‘’खुशबू से ही मुँह में पानी आना शुरू हो गया।''
हरि : (ख़ुशी से) हाँ, उनके हाथों की बनी दाल का अलग ही मज़ा होता है।
दोनों अपर्णा के हाथ के खाने की बात करके आनंद ले रहे थे कि तभी अचानक से सुषमा को अपने पैर पर किसी के चलने का आभास हुआ। जैसे ही उसकी नज़र अपने पैर पर गयी वह ज़ोर से चिल्लाते हुए हरि से जाकर चिपक गयी। आखिर ऐसा क्या था जिसे देख कर वह डर गयी थी। यूँ तो वह हरि की पत्नी थी मगर इस समय उसका यूँ चिपटना हरि को बड़ा अजीब सा लग रहा था, वह असहज हो गया। उधर 7 सीटियों के बाद अपर्णा ने गैस को बंद कर दिया और पूरी तरह से प्रेशर निकल जाने के लिए छोड़ दिया ताकि उतनी देर में भी पकना चालू रहे। जितना समय प्रेशर कम होने में लगा, उतने समय में अपर्णा ने गैस के दूसरे चूल्हे पर पैन को रख दिया था। उसने पैन में मक्खन के साथ साथ जीरा डाला, तुरंत चटकने की आवाज़ आयी।
उन्होंने समझदारी यह की थी कि चटकने से पहले ही अपने चेहरे को पीछे कर लिया था। अगर वह ऐसा ना करती तो शायद मक्खन की छींटे उनके चेहरे पर या हाथ पर आ जाती और जलने के निशान पड़ जाते। जब जीरा हल्का भूरा हो गया तो उसमें हरी मिर्च, दालचीनी, लौंग, इलायची और प्याज़ डाल कर, प्याज़ के हल्का भूरा हो जाने तक भूना। फिर खुद से कहा, ‘इसमें यह अदरक - लहसुन का पेस्ट, लाल मिर्च, हल्दी और टमाटर प्यूरी, के साथ थोड़ी सी चीनी डाल कर मद्धम आंच पर भुनने के लिए रख देती हूँ, जब तक तेल ना छोड़ दे।’
यह कहकर उन्होंने पैन में सारी सामग्री को डाल दिया था। जिस तरह की धीमी धीमी सी खुशबू आ रही थी, उसे सूंघ कर अपर्णा का मन भी प्रफुल्लित हो रहा था। आज वह खाना बनाते हुए बहुत खुश थी। उन्होंने कुकर के ढक्कन को खोलते हुए कहा, ‘’दाल ना ज़्यादा गाढ़ी है, ना ही ज़्यादा पतली.. बिल्कुल वैसी ही गली है जैसा मैं चाहती थी।''
मथनी से उन्होंने दाल को फेंट दिया। जैसे ही पैन में तेल ऊपर दिखने लगा तो उन्होंने कुकर की दाल को पैन में पलट दिया। नमक चख कर adjust किया, थोड़ा पानी डाला और दाल को बिना ढके, बिल्कुल धीमी आंच पर गैस पर रखे रहने दिया। इधर उनके चेहरे की मुस्कान बता रही थी कि आज दाल मखनी बहुत अच्छी बनेगी, उधर ऊपर के कमरे में सुषमा जिस तरीके से अचानक हरि को जाकर चिपकी थी वह उसे थोड़ा अजीब सा लगा था। उस ने तुरंत अपने को दूर करते हुए कहा, ‘’यह क्या कर रही हो सुषमा, कोई देखेगा तो क्या कहेगा?''
यह सुनते ही सुषमा छिटक कर हरि से दूर जा खड़ी हुई, उसके चेहरे पर आए गुस्से के भाव से लग रहा था कि वह अभी उस पर बरस पड़ेगी।
क्या सच में सुषमा और हरि के बीच झगड़ा शुरू हो जायेगा?
आखिर किस वजह से सुषमा अपने पति से चिपटी थी?
उधर रोहन ने दरवाज़े पर किसे देख लिया था जिससे उसके चेहरे के भाव बदल गए थे?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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