“मां… अब तुम्हारी तबीयत कैसी है?” मेल्विन ने पूछा। उसकी मां की नींद अगले दिन सुबह खुली थी। बेड पर लेटी मिसेज फर्नांडिज के चारों ओर घर के मेंबर खड़े थे। 

“मेल्विन…!” मिसेज फर्नांडिज के मुंह से इतना ही निकला।

“मेल्विन, मुझे लगता है तुम्हारी मां को थोड़ा वक्त और चाहिए। वो अब भी बेहद कमजोर है।” मामाजी ने कहा, “मैं डॉक्टर को फिर बुला लेता हूं।”

मेल्विन अपनी मां को इस हालत में देखकर बहुत दुखी था। उसने मिस्टर कपूर की ओर उम्मीद भरी नजर से देखा। 

“मेल्विन, मुझे भी लगता है कि मिसेज फर्नांडिज को थोड़ा और आराम करने देना चाहिए।” मिस्टर कपूर ने इतना कहा और फिर मेल्विन के मामा से कहा, “और डॉक्टर को बुला लीजिए।”

जब तक डॉक्टर आता। मेल्विन की नजर उस बैग पर पड़ गई जो शायद उसकी मां घर से लेकर आई थी। 

“मामाजी, क्या मां यही बैग लेकर आई थी?”

“सुरेश, क्या यही वो बैग है जो तुम्हारी बुआ लेकर आई थी?” मामाजी ने अपने बेटे की ओर देखते हुए पूछा। 

“हां पापा!” उसने कहा, “लेकिन उस बैग में कुछ भी नहीं है।”

“क्या मतलब?” मेल्विन ने पूछा, “बैग खाली कैसे हो सकता है? कोई खाली बैग लेकर क्यों चलेगा? जरूर बैग में कुछ रहा होगा।”

मेल्विन ने उस बैग को चेक किया, लेकिन उसने सचमुच कुछ भी नहीं था।

“मुझे लगता है मिसेज फर्नांडिज ने सामान रास्ते में कहीं गिरा दिया। इनकी हालत देखकर लग रहा है कि इन्हें यहां आते वक्त होश नहीं था।” मिस्टर कपूर ने कहा, तभी उनके फोन की घंटी बज उठी थी। 

“एक्सक्यूज मी!” मिस्टर कपूर इतना कहकर कमरे से बाहर आ गया। उसने कॉल का जवाब देते हुए कहा, “हां बोलो, क्या बात है?” 

दूसरी तरफ से कुछ कहा गया जिसके जवाब में मिस्टर कपूर ने कहा, “ओके, मैं अभी वहां पहुंचता हूं। पार्टी को रोककर रखना।” 

कॉल कट करने के बाद मिस्टर कपूर के चेहरे पर टेंशन दिखने लगा था। 

“मेल्विन, मुझे मुंबई के लिए निकलना होगा। एक जरूरी काम जो काफी टाइम से अटका हुआ था, आज उसके पूरे होने की उम्मीद है।”

“ठीक है! आप जरूरी काम खत्म कीजिएगा।” मेल्विन ने कहा फिर वो अपनी मां को देखने लगा। 

“कोई भी नया अपडेट हो तो मुझे कॉल करना।” 

मिस्टर कपूर मेल्विन से इतना कहकर वहां से वापस चला गया।

मेल्विन अब भी इसी ख्यालों में अनुभव हुआ था कि आखिर वह डायरी इस वक्त है कहां? मेल्विन ने शक की निगाह से अपने मामा और सुरेश की ओर देखा। मेल्विन से नजर मिलते ही उन्होंने अपनी आंखें हटा ली। उसके पास अभी सिवाय इंतजार करने की और कोई रास्ता नहीं था। जल्दी ही वहां डॉक्टर भी आ गया।

“देखिए मिस्टर मेल्विन आपकी मां इस समय बेहद कमजोर है। सदमे और थकान की वजह से उनका शरीर पूरी तरह टूट चुका है।” डॉक्टर ने मेल्विन से कहा।

मेरी मां ठीक हो जाएगी ना डॉक्टर साहब? मेल्विन ने घबराते हुए पूछा।

“आपकी मां अगले 24 घंटे में बिल्कुल ठीक हो जाएगी मेल्विन। मैंने ड्रिप लगा दिया है। एक ग्लूकोज भी मैं इन्हें दूंगा। शरीर को ताकत मिलते ही ये पहले की तरह बातचीत करने लगेंगी। मैं एक नर्स यहां छोड़कर जाता हूं।”

डॉक्टर मेल्विन को कुछ और सजेशंस देते हुए वहां से चला गया।

उधर बैंक में मोहन से रामस्वरूप जी इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे।

“इंसानी अंगों के तस्करी वाला केस मैंने थोड़ा–बहुत पढ़ा है। जितने लोग भी मारे गए थे, उनकी पहचान कभी नहीं हो पाई थी।” मोहन ने रामस्वरूप जी को बताया, “तो क्या मेल्विन को लगता है कि इसके मास्टरमाइंड उसके पिता थे?”

“हां। अब तक की जानकारी के अनुसार अंदाजा यही लगाया गया है। लेकिन आपने इस केस के बारे में कहां पढ़ लिया?”

“ये बहुत पुरानी बात है।” मोहन ने बताया, “तब मैं शायद दसवीं में था। एग्जाम के लिए हमें एक प्रोजेक्ट पर काम करना था। एक ऐसे प्रोजेक्ट पर जिसके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी हो। मेरी नजर से ये वाला केस घूम गया था। मुझे पहली ही नजर में इस केस से जुड़ाव महसूस हो गया। तब मैंने इस पर खूब रिसर्च करके लिखा था। अब तो मुझे याद भी नहीं। बस इतना पता है कि वो हिंदुस्तान के इतिहास का सबसे खतरनाक केस था। बहुत जल्द इस केस को बंद कर दिया गया क्योंकि शायद उसके सभी मुजरिम मारे गए थे और कोई भी राज खुलकर बाहर नहीं आ पाया था।”

रामस्वरूप जी ने जब मोहन के मुंह से यह इस कहानी के बारे में सुना तो वह शॉक्ड रह गए।

“तुम बरसों से मेरे करीब रहे, इस केस को तो मैं पिछले 5–6 महीने से जानता ही हूं, लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि तुम्हें इस केस के बारे में इतनी जानकारी है। मोहन, क्या तुम मुझे अपने हाईस्कूल का वो प्रॉजेक्ट लाकर दे सकते हो। क्या वो तुम्हारे पास अब भी है?”

“नहीं। ये क्या बात कर रहे हैं आप!” मोहन ने कहा, “40 साल पुरानी बात है। तब ये केस खुद 10 साल पुराना हो चुका था। वो एक किशोर उम्र का जुनून था जो मैंने इतनी मेहनत करके ऐसा प्रोजेक्ट बनाया था। तब तो लोगों ने ये भी कहा था कि ये काल्पनिक केस है। लेकिन काल्पनिक केस क्या अखबार में छपते हैं? पुलिस स्टेशन के फाइल में उसके बारे में रिपोर्ट बनाए जाते हैं। नहीं। मैंने जोश–जोश में कितनी भाग–दौड़ करके जानकारी इकट्ठी की थी वो सिर्फ मैं ही जानता हूं।”

“बस अब थोड़ी भाग–दौड़ और कर लो मोहन। मुझे वो प्रोजेक्ट चाहिए। मुझे वो प्रोजेक्ट हर हाल में चाहिए।” रामस्वरूप ने बच्चों की तरह जिद करते हुए कहा, “कहां है वो प्रोजेक्ट इस वक्त?”

“स्कूल में हम जो भी प्रोजेक्ट बनाते थे वो स्कूल प्रशासन अपने पास रख लेता था। फाइनल ईयर के एग्जाम के बाद उन लोगों ने मेरा वो प्रोजेक्ट रख लिया। अब उसके पीछे पड़ना बेवकूफी होगी रामस्वरूप जी। ये कोई फिल्म नहीं चल रहा है जो हम 40 साल पुराने प्रोजेक्ट को कहीं से भी तलाश करके आपके सामने ले आए। ये असल जिंदगी है। ये तो बस एक संयोग था कि जिसके उसके बारे में आप मुझे बता रहे थे उस केस से मेरा पाला पहले भी पड़ चुका है। इस बात को अब यहीं खत्म कर दीजिए।”

“नहीं मोहन, ये बात खत्म होने के लिए नहीं उठी है। ये सिर्फ संयोग नहीं हो सकता। अगर संयोग होना ही होता तो एक संयोग होता। एक साथ इतने सारे संयोग कैसे हो सकते हैं। पहले तुम्हारा उस प्रोजेक्ट पर काम करना। फिर इतनी भाग–दौड़ करके तुम्हारा एक ऐसे केस पर मेहनत करना जिसे सब काल्पनिक कहते थे। एक ऐसे केस के बारे में तुमने छानबीन की है जिसके बारे में आज कोई रत्ती भर भी नहीं जानता। मेरा दोस्त पिछले 6 महीने से इस केस के पीछे पागल है। वो समझ नहीं पता कि इस केस के पीछे कितना पड़े और कितना नहीं। कई बार तो उसने इसे छोड़ भी दिया था लेकिन नियति उसे नहीं छोड़ रही है। अब इसमें सिर्फ तुम मेरे दोस्त की मदद कर सकते हो मोहन।”

“ये तो अप मुझे फंसा रहे हो रामस्वरूप जी। मैं सही कहता हूं। इस केस के पीछे पड़ना छोड़ दीजिए। बाहर निकल आओ इस मायाजाल से। मैं उस उम्र में बहुत बावला हो गया था इसे लेकर। उस प्रोजेक्ट को न सिर्फ काल्पनिक कहा गया था बल्कि उसे साबित करके मेरे प्रोजेक्ट को भी कम नंबर दे दिया गया था। मैंने कितनी मेहनत उस प्रोजेक्ट पर की थी, मुझे उतने ही कम नंबर दिए गए थे। ये केस न सिर्फ मनहूस है बल्कि पनौती भी है। शायद यही वजह है कि आपका दोस्त पिछले 6 महीने से कुछ भी हासिल नहीं कर पाया।”

“अगर तुम इस तरह हार मान जाओगे मोहन तो कैसे चलेगा। क्या पता 40 साल पहले की गई तुम्हारी मेहनत आज रंग ला दे। प्लीज एक बार मेरी मदद करने की कोशिश तो करो। स्कूल प्रशासन के पास पुरानी चीजें पड़ी होती हैं। क्या तुम मुझे अपने स्कूल का पता भी नहीं दे सकते?” रामस्वरूप जी ने रिक्वेस्ट करते हुए पूछा।

“लगता है आप ऐसे नहीं मानेंगे रामस्वरूप जी। ठीक है, अगर आपको इतनी ही जिद है तो सुनिए। मेरा स्कूल मध्य प्रदेश के छोटे से गांव में है। सरकारी स्कूल है। अब तो काफी बदल चुका है। क्या आप इस अजीब से केस के लिए मध्य प्रदेश तक जाएंगे। उपर से मेरे प्रोजेक्ट का वहां मिलने का चांस न के बराबर है।”

“न के बराबर ही सही मोहन लेकिन है तो सही। मुझे अपने स्कूल का नाम और एड्रेस लिख कर दो। मैं इसे मेल्विन को बताकर देखता हूं। अगर ये उसके काम आ गया तो फिर उसकी बहुत मदद हो जाएगी।” रामस्वरूप जी ने कहा तो मोहन ने अपने स्कूल का नाम और पता लिखकर उनको दे दिया।

मेल्विन जब ठाणे में अपनी मां की होश में आने का इंतजार कर रहा था तब उसे रामस्वरूप जी का कॉल मिला।

“हेलो मेल्विन, तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है।” रामस्वरूप जी ने मेल्विन की फोन उठाते ही कहा।

“खुशखबरी! कैसी खुशखबरी रामस्वरूप जी?” मेल्विन ने पूछा। उसकी आवाज कमजोर थी।

“यहां बैंक में मेरा एक कलीग है। मोहन श्रीवास्तव नाम है उसका। वो कह रहा है कि जिस केस के बारे में तुम जानना चाहते हो उस पर उसने स्कूल टाइम में एक प्रोजेक्ट बनाया था। उस प्रोजेक्ट के लिए उसने काफी जानकारी इकट्ठी की थी। उसके बारे में अब मोहन को ज्यादा कुछ याद तो नहीं लेकिन उम्मीद है कि वो फाइल तुम्हें भोपाल के सरकारी स्कूल में मिल जाएगी। मैं तुम्हें उस स्कूल का एड्रेस और नाम भेज रहा हूं। अगर तुम्हें लगे तो इस केस के बारे में और जानने के लिए तुम भोपाल जा सकते हो।”

“एक मिनट रामस्वरूप जी, मैं समझा नहीं। इस केस पर आपके कलीग ने कैसे काम किया था? जबकि इस केस के बारे में कहीं भी कोई जानकारी नहीं मिलती। मैं खुद पुलिस स्टेशन में पूछताछ की थी।” मेल्विन ने कन्फ्यूज होते हुए पूछा।

“ये बात आज से 40 साल पुरानी है मेल्विन। तब इस केस के बारे में जानना इतना मुश्किल नहीं था। जानकारी हर तरफ थी। बाद में इस केस को पूरी तरह से छुपा दिया गया। हालांकि 40 साल पहले भी इस केस को काल्पनिक कहा जाता था। जितनी मेहनत मेरे कॉलीग ने इस केस पर किया था उतने ही कम नंबर उसे एग्जाम में मिले थे। कुछ साजिश थी जिसकी वजह से इस केस को पूरी तरीके से रिकॉर्ड से हटा दिया गया है।”

“इस जानकारी के लिए आपका बहुत-बहुत शुक्रिया राम स्वरूप की। मैं इस समय ठाणे में हूं। अपनी मां से मिलने आया हूं। वो डायरी जिसके बाकी के पन्नों की तलाश मैं कर रहा था वो मां को मिल चुकी है। लेकिन मां इस समय बीमार है और ये बताने की हालत में नहीं है कि वो डायरी उन्होंने कहां रखी है। जैसे ही उनकी तबीयत थोड़ी संभलेगी मैं उनसे वो डायरी ले लूंगा। शायद मुझे भोपाल तक जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी रामस्वरूप जी।”

“फिर तो ये और भी अच्छी बात है। बस तुम्हारा काम हो जाना चाहिए मेल्विन। मैं तुम्हें पिछले 6 महीने से इस केस को लेकर परेशान देख रहा हूं। आखिर इसका अंत तो होना चाहिए।” रामस्वरूप जी ने कहा, “उम्मीद है तुम्हें अब और भागदौड़ नहीं करनी पड़ेगी।”

“जी रामस्वरूप जी! मैं भी उम्मीद करता हूं कि अब मुझे अपने पिता के बारे में कुछ तो जानने को मिलेगा। शायद मैं ये भी जान सकूं कि वे इस देश के हीरो थे या फिर विलेन।”

“इससे भी खास ये जानना जरूरी है कि वो 500 करोड़ कहां है जिसे छुपाने और पाने की हर कोई कोशिश कर रहा है। जिसके लिए तुम अजनबी लोगों से लगातार घिरते जा रहे हो।” रामस्वरूप जी ने कहा, “मुझे यकीन है उस 500 करोड़ रुपए के बारे में तुम्हारे पिता को जानकारी थी।”

“जो भी है, सच्चाई अब बहुत जल्द हमारे सामने आ जाएगी।”

इतना कहकर मेल्विन ने फोन कट कर दिया था। फोन कट करने के कुछ सेकेंड बाद उसे व्हाट्सएप पर एक मैसेज मिला। ये मैसेज राम स्वरूप जी का था।  उस मैसेज में भोपाल के सरकारी स्कूल का एड्रेस और नाम था।

मेल्विन अब अपने आप से बातें करते हुए बोला, “जाने क्यों मुझे लग रहा है कि वो डायरी अब मां के पास नहीं है। मुझे मेरे आस-पास के सभी लोग मेरे दुश्मन दिखाई देने लगे हैं। वो डायरी मामा जी भी गायब कर सकते हैं। या फिर रास्ते में मां से कहीं गिर गया हो। ये भी हो सकता है कि उन गुंडों ने ही मां से वो डायरी छीन ली हो। मां के होश में आने से पहले मुझे सिर्फ इंतजार करना होगा। अगर यहां बात नहीं बने तो फिर मुझे एक बार भोपाल जाना ही होगा। अब ये केस मेरे लिए पेचीदा होता जा रहा है।”

क्या मेल्विन की मां के पास वो डायरी अभी मौजूद थी? क्या डायरी न मिलने की स्थिति में मेल्विन की मां डायरी में लिखी बात मेल्विन को सुना पाएगी? आखिरी वे चारों गुंडे कौन थे जो मेल्विन की मां से डायरी लेने आए थे? रघु इस समय कहां था? जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग। 

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