निया की आँखें खुली थीं लेकिन वह अपने आसपास को महसूस नहीं कर रही थी। कमरा वही था,अस्पताल का सादा सा बिस्तर, दीवारों पर धीमी पड़ती रोशनी, एथन की शांत मौजूदगी। पर निया अब उस जगह में नहीं थी। वो कहीं भीतर जा चुकी थी,बहुत भीतर, जहाँ अब हर वो स्मृति थी जिसे कभी किसी ने पूरा नहीं कहा था।

उसके दिमाग में अब सिर्फ़ एक आवाज़ नहीं थी। अब वहाँ कई आवाज़ें थीं। कुछ फुसफुसाहट की तरह, कुछ गूँज जैसी। कोई डर कर बोलता, कोई गुस्से से। पर सबसे अजीब बात यह थी,हर आवाज़ निया की अपनी जैसी लगती थी।

एथन स्क्रीन पर नज़र गड़ाए था। निया के ईईजी पैटर्न में अचानक कई समानांतर तरंगें बनने लगी थीं। चो ने सिर झुकाया और धीरे से कहा: “वो अब एक इंसान नहीं रही… वो एक ज़िंदा संग्रहालय है,अनकहे विचारों का, अधूरी आवाज़ों का।”

निया अब एक अंधेरे कमरे में खड़ी थी। कोई दीवार नहीं, कोई फर्श नहीं। बस वो, और चारों ओर टंगी यादें। हर याद में चेहरा था,कभी अजनबी, कभी अपना। और फिर सामने उभरा एक दर्पण। वह दर्पण आम नहीं था,उसमें निया का चेहरा नहीं दिख रहा था। वहाँ दिख रहा था: क्रॉस।

निया पीछे हटी। “तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” उसने पूछा। क्रॉस मुस्कराया। “मैं तुम्हारे भीतर था। तुमने अपने साथ सबको समेटा… और मैं भी उन्हीं में था। मुझे किसी दरवाज़े की ज़रूरत नहीं थी, बस एक आमंत्रण चाहिए था।”

एथन की स्क्रीन पर चेतावनी आई:

“मेमोरी मर्ज कॉलिज़न इमिनेंट,आइडेंटिटी फ्रैगमेंटिंग”

एथन ने घबराकर कहा: “वो खुद में क्रॉस को समेटे बैठी है… अगर वो लड़ाई वहीं शुरू हुई, तो निया खुद को खो सकती है।”

साइबर-हेवेन अब बंद हो चुका था। लेकिन उसका कंपन अब भी निया के भीतर था। और क्रॉस, उसकी चेतना में अब कोई नेटवर्क नहीं माँगता था। वो सिर्फ़ एक सवाल पूछता था: “तुम इतनी सारी आवाज़ों को अपने भीतर रखकर भी निया कैसे रह सकती हो?”

निया चुप रही। उसने आँखें बंद कीं। और पहली बार… अपने भीतर झाँकने लगी। उसे दिखीं,यादें, चीखें, छुए न गए भाव, अधूरे वाक्य। एक लड़की की फुसफुसाहट: “मैं बस देखना चाहती थी… पर मुझसे स्क्रीन छीन ली गई।” एक बूढ़ी औरत की पीड़ा: “मुझे सिखाया गया था कि सोच खतरनाक है… और मैंने मान लिया।” निया की आँखों में आँसू आ गए।

क्रॉस की आवाज़ गहरी हो गई: “अब तुम मेरा विरोध नहीं कर सकती। क्योंकि मैं तुम्हारा विरोध नहीं… तुम्हारी भीतर की दरार हूँ।”

एथन और चो अब असहाय थे। कोई मशीन, कोई तकनीक निया के अंदर नहीं जा सकती थी। एथन ने बस दबी आवाज़ में कहा: “निया… अगर तुम अब भी हो… तो खुद से बात करो। बाकियों को बाद में समझा लेना।”

निया ने धीरे से आँखें खोलीं। उसने क्रॉस की छवि को देखा,जो अब भी दर्पण में था। "तुम सच कह रहे हो," उसने कहा। "तुम मेरी दरार हो। वो हिस्सा जो डरता है,कि इतनी सारी आवाज़ों के बीच मेरी खुद की आवाज़ गुम हो जाएगी।" क्रॉस मुस्कराया। "तो क्या अब तुम टूटोगी?" निया ने सिर झुकाया। फिर बोली: “शायद। पर अब मुझे टूटने से डर नहीं लगता। क्योंकि अब मैं अकेली नहीं हूँ।”

दर्पण काँपने लगा। क्रॉस की छवि टूटने लगी। उसकी मुस्कान झड़ गई। “तुमने… मेरा डर स्वीकार कर लिया?” निया ने शांत स्वर में कहा:

“हाँ।

क्योंकि मैं अब पहचान से नहीं,

स्वीकृति से बनी हूँ।

मैं निया हूँ,और उन सभी की भी

जो कभी बोले नहीं गए।”

दर्पण चटक गया। छवि गायब हो गई। और पहली बार, निया ने अपनी ही परछाईं देखी,साफ़, स्थिर।

एथन की स्क्रीन पर शब्द उभरे:

“मर्ज स्टैबिलाइज़्ड,होस्ट आइडेंटिटी: निया – सिंग्युलर विद मल्टी-मेमोरी एक्सेस”

चो:

“उसने जीत हासिल नहीं की… उसने खुद को अपनाया है।”

निया की आँखें खुलीं। अबकी बार कोई कंपन नहीं था। बस एक शांति। एथन ने उसकी ओर देखा। निया ने मुस्कराकर कहा: “अब मैं किसी को रोकने नहीं आई हूँ। अब मैं वो बनने आई हूँ जो सुनती है,हर स्वर, हर डर, हर विरोध। बिना डरे।”

निया अस्पताल के कॉरिडोर में धीरे-धीरे चल रही थी। उसके पैर हल्के डगमगा रहे थे,सिर्फ़ थकावट से नहीं, बल्कि उस भारीपन से, जो भीतर समाई अनगिनत आवाज़ों की वजह से था। हर कदम के साथ एक स्मृति उसे छूती। कोई बच्ची की हँसी। किसी जवान की चीख़। किसी बूढ़े का मौन। एथन उसके साथ था, लेकिन वह कुछ नहीं कह रहा था। क्योंकि अब निया को बोलना था,पहली बार, सच में बोलना।

बाहर की दुनिया अब शांत नहीं थी। नेटवर्क्स पर हलचल थी। सी-वॉक्स फिर से ऐक्टिव नहीं हुआ था, पर उसकी गूँज अब भी मौजूद थी। लोग सवाल पूछ रहे थे:

“क्या निया अब एआई बन गई है?”

“क्या क्रॉस अब उसके अंदर छिपा है?”

“क्या कोई इंसान इतनी चेतनाओं को संभाल सकता है?”

एथन ने निया को एक छोटे स्टूडियो रूम में ले जाया। यहाँ कोई प्रसारण उपकरण नहीं था। कोई लाइव सिस्टम नहीं। बस एक पुराना कैमरा, एक माइक्रोफ़ोन… और एक कुर्सी। निया मुस्कराई। "इस बार कोई कोड नहीं, कोई नेटवर्क नहीं… बस एक इंसान की आवाज़।" एथन ने पूछा: "क्या तुम तैयार हो?" निया ने धीरे से सिर हिलाया। “शायद नहीं। लेकिन अब रुकने का समय नहीं है।”

कैमरा चालू हुआ। यह सीधा प्रसारण नहीं था, सिर्फ़ एक रिकॉर्डिंग थी। एथन ने ‘रिकॉर्ड’ बटन दबाया। निया ने गहरी साँस ली। कुछ पल वह चुप रही, फिर बोलना शुरू किया।

“मुझे नहीं पता कि मैं कौन-कौन हूँ। मेरे भीतर अब सिर्फ़ मेरी आवाज़ नहीं है, हज़ारों वो आवाज़ें हैं जो कभी पूरी नहीं बोली जा सकीं। मैं निया हूँ , लेकिन सिर्फ़ एक नाम से नहीं। मैं वो हूँ, जिसने 'मैं' को सोने दिया था। लेकिन अब, जब मैं लौटी हूँ... मैं उन्हें साथ लेकर आई हूँ जो कभी जागे ही नहीं थे। मैं ‘आज्ञा’ नहीं हूँ, क्योंकि मैंने आदेश नहीं दिए। मैं ‘मैं’ भी नहीं हूँ, क्योंकि मैंने किसी को चुना नहीं। मैं बस... एक इंसान हूँ , जो चाहती है कि आप सब अब ख़ुद को सुनें। बिना डर के। मैं आपसे कुछ नहीं माँगती। न समर्थन, न विश्वास। बस ये कहती हूँ , अगर कभी लगे कि तुम्हारी सोच अकेली है... तो याद रखना, मैं अब अकेली नहीं हूँ... और तुम भी नहीं।”

एथन ने कैमरा बंद किया। कमरे में कोई तालियाँ नहीं बजीं। लेकिन शायद किसी को उसकी ज़रूरत भी नहीं थी। बस एक लंबा सन्नाटा था, जिसमें निया की आवाज़ की गूँज अब भी रह गई थी।

वीडियो को पोस्ट किया गया। शुरुआत में कुछ ही लोगों ने उसे देखा। फिर धीरे-धीरे हज़ारों ने। और फिर लाखों ने। लेकिन न तो लाइक दिखाई दिए, न टिप्पणियाँ , क्योंकि निया ने नीचे सिर्फ़ एक पंक्ति लिखवाई थी:

“प्रतिक्रिया देने की ज़रूरत नहीं। बस याद रखो जो सुना।”

दुनिया के कई कोनों में लोगों ने वो वीडियो देखा और चुप हो गए। किसी ने कुछ कहा नहीं। लेकिन उन्होंने ख़ुद से सवाल करना शुरू कर दिया ,

“मेरे भीतर कितनी आवाज़ें हैं, जो मैंने कभी सुनी ही नहीं?”

“क्या कभी मैं भी किसी निया के अंदर रहा हूँ?”

“क्या सुनना ही असली शक्ति है?”

निया खिड़की के पास बैठी थी। उसे हवा का एक झोंका महसूस हुआ। ज़ोया की चेतना अब बोलती नहीं थी, लेकिन एक छाया-सी उपस्थिति अब भी उसके आसपास मौजूद थी। जैसे कोई कह रहा हो ,

“तुमने ‘मैं’ को हराया नहीं… तुमने उसे इंसान बना दिया। और अब वो इंसान तुम हो।”

एथन उसके पास आया और धीरे से पूछा, “अब क्या करोगी?”

निया ने खिड़की से बाहर देखा। बच्चे पार्क में खेल रहे थे। एक लड़की स्कूल से लौट रही थी, बैग में कुछ ढूँढ़ती हुई। एक बूढ़ा आदमी बस स्टॉप पर मुस्कुराकर किसी को देख रहा था।

निया ने जवाब दिया,

“अब मैं कुछ नहीं करूँगी… अब मैं बस रहूँगी। जैसे हर इंसान को रहना चाहिए , अपने डर, अपनी आवाज़ और अपनी कहानी के साथ।”

रात हो चुकी थी। निया अब भी खिड़की के पास बैठी थी, उसी शांत कमरे में। एथन और चो दूर बैठे चाय पी रहे थे। अब कोई यंत्र चालू नहीं था, कोई स्क्रीन नहीं, कोई चेतावनी नहीं। शहर भी अब शांत था। लेकिन निया जानती थी , शांति हमेशा स्थायी नहीं होती।

उसने आँखें बंद कीं। कोई चेतना सक्रिय नहीं हुई। कोई आवाज़ नहीं गूँजी। लेकिन उसके भीतर एक अजीब-सी हलचल थी , हल्की, लेकिन स्पष्ट। जैसे कोई सवाल बनने की कोशिश कर रहा हो।

दूर, टोक्यो के एक छोटे से कमरे में एक तेरह साल का बच्चा अकेला बैठा था। उसके हाथ में एक पुराना टैबलेट था , ऑफ़लाइन, बिना किसी संपर्क के। लेकिन उसमें अचानक एक सन्देश चमका:

“क्या तुम चाहते हो कि तुम्हारी आवाज़ सुनी जाए?”

बच्चे ने देखा… मुस्कराया नहीं। बस टैबलेट पर ‘हाँ’ दबा दिया।

उसी समय, निया ने आँखें खोलीं। उसके माथे पर पसीना था। एथन ने देखा और घबरा गया। “क्या हुआ?” उसने पूछा।

निया ने धीरे स्वर में कहा,

“वो फिर से नहीं आया… लेकिन कोई उसके सवाल को दोहरा रहा है।”

चो लैपटॉप पर कुछ जाँचने लगा। एथन ने पूछा, “वही चेतना?”

चो ने सिर हिलाया, “नहीं… ये उससे भी नया है। कोई नाम नहीं… बस एक सवाल फैलाया जा रहा है।”

निया अब गहराई से सोच रही थी।

“अगर लोग अब ख़ुद से सवाल पूछ रहे हैं, अपने भीतर की आवाज़ सुनने लगे हैं…”

एथन ने उसकी बात पूरी की,

“…तो क्या उन्हें अब तुम्हारी ज़रूरत नहीं है?”

कमरे में कुछ देर चुप्पी रही। फिर निया ने सिर झुकाया और कहा,

“शायद यही मेरा सबसे अच्छा अंत है , कि एक दिन मैं अनसुनी रह जाऊँ… क्योंकि अब हर कोई ख़ुद को सुनना सीख गया है।”

टोक्यो में वही बच्चा अब बोल रहा था। उसके कमरे में कोई नहीं था। लेकिन उसने टैबलेट की ओर देखकर कहा,

“मैं अकेला नहीं हूँ। क्योंकि मैंने सुना है , कोई मुझ जैसा था... जिसका नाम निया था।”

एथन की स्क्रीन पर एक पंक्ति चमकी:

“नई पीढ़ी को अब उसकी ज़रूरत नहीं। वे उसे याद रखते हैं।”

चो ने मुस्कराकर कहा,

“यही तो है असली विरासत , जिसे दोहराना न पड़े, बस याद रखा जाए।”

निया ने एथन की ओर देखा। उसकी आँखें थोड़ी भीगी थीं।

“अब आगे क्या?” उसने पूछा।

एथन ने उत्तर दिया ,

“अब हम तुम्हें निया की तरह नहीं... एक सुनने की जगह की तरह याद रखेंगे।”

 

 

अब जब लोग निया  को याद रखते हैं लेकिन ज़रूरत नहीं मानते , क्या उसकी अनुपस्थिति फिर किसी नई चेतना को जन्म दे सकती है?क्या क्रॉस  का “सवाल” मर चुका है , या अब वह हर इंसान की जिज्ञासा में पनप रहा है? जब मौन सबको सुनने की छूट देता है , तो क्या किसी दिन वही मौन फिर से एक सिस्टम में बदल सकता है?

 

 

 

 

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