समीर, डॉक्टर रवि के हिल हाउस के बाहर जड़ों में बंधा हुआ उल्टा लटका था। डॉक्टर रवि अब भी ऊपर वाले कमरे की खिड़की से उसे देख रहे थे।

समीर का चेहरा लाल पड़ चुका था। वो इतनी देर से उल्टा लटका हुआ था कि उसके शरीर में खून का प्रवाह रुक-सा गया था और वो लगभग बेहोशी की हालत में था। इंसान के आकार का दिखने वाला धुआं अब भी वहाँ था। तभी अचानक उन जड़ों से धुआं निकलने लगता है, जैसे वो अंदर से जल रही हों। जड़ें टूटती हैं और समीर ज़मीन पर गिरता है। वो गिरते ही होश में आ जाता है, लेकिन इतनी देर उल्टा लटके रहने की वजह से वो उठ नहीं पाता। लेटे-लेटे समीर सिर उठाकर देखता है, तो सामने उसे एक आदमी खड़ा दिखाई देता है जिसकी एक आँख नहीं थी। तभी जड़ें उस आदमी पर भी हमला करने लगती हैं, पर जैसे-जैसे वो उस आदमी की ओर बढ़ती हैं, वह आदमी पीछे हटने के बजाय डॉक्टर रवि के हिल हाउस की तरफ बढ़ता है। उसके ऐसा करते ही एक के बाद एक सारी जड़ें जल के राख होने लगती हैं।

अचानक वह आईना जो समीर अपने साथ लाया था, टूट जाता है। समीर हिम्मत जुटाकर खड़ा होता है और देखता है कि अब हिल हाउस आज़ाद है। वो इंसान जैसे आकार का धुआं एक तेज़ चीख के साथ सुरंग की ओर भागते हैं। समीर, उस एक-आंख वाले आदमी के पास जाकर खड़ा हो जाता है।

एक-आंख वाला आदमी उससे कहता है, “तुम्हें ज़िंदा रखने के लिए बहुत लोगों ने अपनी कुर्बानी दी है, और आगे भी देंगे लेकिन तुम्हें देखकर लगता है तुम्हें मौत से डर नहीं लगता।“

समीर: मेरा नाम समीर है, और पेशे से मैं डिटेक्टिव हूं। जब तक मेरे सवालों के जवाब मुझे नहीं मिलते, मुझे बेचैनी रहती है। मैं जानना चाहता हूं कि सच्चाई क्या है। लोगों के मन में जो डर है, वो क्यूँ हैं?

एक-आंख वाला आदमी बोला, “जब तुम यहाँ आए थे तब डिटेक्टिव थे, अब नहीं। अब तुम्हारी ज़िंदगी एक विशेष कार्य के लिए समर्पित हो चुकी है अगर तुम केवल डिटेक्टिव होते, तो अब तक तुम्हारी रूह उसके सामने घुटने टेक चुकी होती। तुम में अब कुछ अलग है जो उसे पसंद नहीं इसीलिए उसका ध्यान तुम पर रहता है।“

समीर: आप नहीं जानते मैंने क्या-क्या झेला है इस जगह में। मुझे हक है सच जानने का। मैं यहाँ से बिना सब कुछ ठीक किए जाने वाला नहीं हूँ। छैल ने मुझे बुलाया था और अब मैं खुद छैल को बचाना चाहता हूँ।

एक-आंख वाले आदमी ने कहा, “जानते तुम कुछ नहीं। अब तक तुम्हें ज़िंदा रखा है हमने अगर तुम अपने अनुष्ठान की जगह छोड़कर कहीं और गए, और ये अनुष्ठान टूटा, तो तुम्हारे शरीर के टुकड़े भी किसी को नहीं मिलेंगे। तुम बिना किसी दिव्य शक्ति के उससे लड़ रहे हो, जिससे हम जैसे दिव्य शक्तियों वाले भी छुपकर रहते हैं बरसों से।“

समीर: मैं अभी जा रहा हूँ। सूरज ढलने में अभी समय है। मुझे हर हाल में अनुष्ठान पूरा करना है। मैं उसे ऐसे ही जीतने नहीं दे सकता । अब ये सवाल इंसानियत का है।

एक-आंख वाले आदमी ने कहा, “तुम्हारी परीक्षा हर रोज़ होगी, इसके लिए तैयार रहो। जो भी हो जाए, इस कोटी पहाड़ी और सुरंग के बीच अनुष्ठान के दौरान कभी मत आना।“

समीर वहाँ से सीधा घर पहुँचता है, जहाँ वो आज के अनुष्ठान की विधि किताब में पढ़ने लगता है। विधि के अनुसार आज के अनुष्ठान के लिए उसे सिर्फ एक तांबे की छोटी कटोरी, जिसमें आधा पानी भरकर छड़ी के पास रखना है। समीर कुछ देर सोचता है कि उसे ये सब कहाँ से मिलेगा फिर वो सीधा उस कमरे में जाता है जहाँ बूढ़ी औरत अनुष्ठान करती थी। वैसे तो वो कमरा पूरा खाली था लेकिन समीर को एक कोने में कुछ चमकता स नज़र आया। वो कोने की तरफ बढ़ा और वहाँ मिली उसे तांबे की वही कटोरी जिसकी उसे ज़रूरत थी। समीर ने कटोरी उठाई और वापस अनुष्ठान वाली जगह पर आ गया। उसका आतमविश्वास हर चुनौती के लिए भरपूर था।

वो अनुष्ठान के लिए अपने बनाए घेरे में जा ही रहा होता है कि तभी कोई दरवाज़ा जोर-जोर से खटखटाता है। समीर बिना रुके गोले में प्रवेश कर जाता है। दरवाज़े पर तब भी आवाज़ हो रही थी, जैसे कई लोग बाहर खड़े हों।

एक बार को समीर के मन ने उससे कहा कि दरवाज़े पर देख आए कि कौन खड़ा है.. लेकिन उसके दिमाग ने उसको समझाया कि ये छल भी हो सकता है। जब समीर घेरे से बाहर नहीं निकला तो आसमान को फिर से काले बादलों ने घेरना शुरू कर दिया और पलक झपकते ही चमगादड़ों का एक झुंड आकर उस घर के आँगन में एक सिंहासन जैसी आकृति बनाने लगा। बादलों की गरज के साथ इंसान जैसे आकार का धुआं, जो दरअसल काला था, आँगन में प्रवेश कर सिंहासन पर बैठ गया।

समीर परेशान होने लगा। काला वहीं था— जैसे समीर को मोहलत दे रहा हो कि वह आज का अनुष्ठान पूरा कर ले, फिर उसे खत्म कर देगा।

फिर अचानक से दरवाज़ा तेज़ आवाज़ के साथ खुलता है और शांति निवास की वह औरत अंदर आई। समीर समझ गया कि अब काले के जाने का समय हो गया है। वो औरत अनुष्ठान के बीच आने वाली हर रुकावट से लड़ेगी। तभी दरवाज़ा फिर ज़ोर की आवाज़ से बंद होता है। औरत पीछे मुड़कर देखती है, जैसे उसने दरवाज़ा बंद नहीं किया।

अपनी जान की परवाह किए बिना ही वो औरत आँगन की तरफ बढ़ने लगी और जैसे ही वह औरत आँगन में आई, उसके पाँव के नीचे एक चमगादड़ आ गया जिसकी वजह से वो गिर पड़ी। गिरते ही उसका हाथ एक पत्थर से टकराता है और उसके हाथ में पहना कांच का कंगन टूट जाता है। वह औरत फिर से खड़ी होती है और काले की तरफ देखती है, लेकिन उसी पल चमगादड़ों का झुंड उस पर टूट पड़ता है।

कुछ ही पल में वे उसके शरीर को खाकर उड़ जाते हैं — अब बस उसकी हड्डियाँ बची हैं और वे दो हथेलियाँ जिनसे वो जादू करती थी।

समीर ये सब देख कर अंदर से कांप जाता है लेकिन उसने प्रण लिया था कि अनुष्ठान पूरा हुए बिना वह घेरे से बाहर नहीं जाएगा। सूरज ढल चुका था और चाँद आकाश में था। उसी समय एक रोशनी आकर समीर के घेरे के पास चक्कर लगाने लगती है। वह रोशनी तांबे की कटोरी के पानी को छूती है, समीर की अंगूठी को छूती है और फिर छड़ी में समा जाती है, जिससे पूरी छड़ी चमक उठती है। समीर की अंगूठी का पत्थर भी चमकने लगता है।

छड़ी का चमकना बंद होते ही समीर देखता है कि काला अब भी वहीं मौजूद था। वो थोड़ी देर उस औरत के कंकाल को देखता है और फिर हिम्मत जुटाकर घेरे से बाहर निकलता है।

चमगादड़ों का झुंड फिर हमला करने आता है लेकिन जैसे ही वे समीर के पास पहुँचते हैं, रुक जाते हैं। समीर की अंगूठी से निकलती रोशनी देखकर वे डरकर उड़ जाते हैं।

समीर को समझ आ जाता है कि अब उसके पास भी कोई दिव्य शक्ति है। वह बिना डरे काले के सामने खड़ा हो जाता है, जिससे सिंहासन हिलने लगा। सारे चमगादड़ उड़ जाते हैं और समीर अब काले के ठीक सामने खड़ा था।

समीर: तुझे अब भी लगता है कि तू उस साए को बचा पाएगा? तू इतना लालची है कि अपने पूरे परिवार को इस नरक में धकेल दिया! क्या मिल गया तुझे अमरत्व? एक शरीर भी नहीं बचा और ना जाने कितनों की जान ले ली। मैं तुझे उसी नर्क में वापस भेजूँगा जहाँ से तू आया है।

समीर, उस औरत की मौत से इतना गुस्से में था कि जैसे आज ही काले को खत्म कर देगा। वह औरत के कंकाल की ओर देखता है और गुस्से में अपना हाथ काले की तरफ़ बढ़ाता है, तभी अचानक आँगन के एक खंभे से चुंबकीय ऊर्जा उत्पन्न होती है और समीर तेज़ी से पीछे खिंचता चला जाता है, जैसे कोई उसे खींच रहा हो।

वह भावनाओं में बह गया और भूल गया कि आज काला पूरी तैयारी के साथ आया था। समीर उसके जाल में फँस चुका था। उसका शरीर खंभे से चिपक गया और उसकी हड्डियाँ टूटने जैसी हालत में हो गईं।

तभी बिल्ली की आवाज़ आती है। वही बिल्ली जिसे शांति निवास की औरत ले गई थी, अब उसकी मौत के बाद वापस आ गई है। गुस्से में बिल्ली आँगन में आती है और टूटे हुए शीशे का एक टुकड़ा लेकर काले की तरफ दिखाती है। काला थोड़ा पीछे हटता है और तभी बिल्ली के हाथ से शीशा टूटकर बिखर जाता है।

बिल्ली समीर को देखती है, वह दर्द से कराह रहा था। बिल्ली गुस्से में काले की परछाईं पर झपट पड़ती है, लेकिन हवा में ही उसे झटका लगता है और वह एक और खंभे से जा टकराती है। अब बिल्ली भी खंभे से चिपकी हुई तड़प रही थी।

समीर और बिल्ली दोनों असहनीय दर्द में थे अगर कुछ देर और ऐसा रहा तो दोनों की जान जा सकती है। चुंबकीय शक्ति के असर से शांति निवास की औरत का कंकाल भी कई टुकड़ों में बिखर गया।

क्या अब कोई समीर या बिल्ली को इस काले से बचा पाएगा? या इनमें से किसी एक की मौत तय है? क्या समीर का ये अनुष्ठान पूरा हो पाएगा? अगर नहीं, तो इसके बीच में टूटने का अंजाम क्या होगा? 

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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