चमगादड़ों का घेरा और बवंडर देखने में इतना भयानक और दहशत भरा था कि समीर अपनी जगह से हिल भी नहीं पा रहा था। उन चमगादड़ों की आवाज़ उस पूरे घर में गूँज रही थी। समीर देख पा रहा था कि उस काले की परछाई छुपी हुई है।
चारों तरफ अंधेरा छाया था। समीर उस आईने को चमगादड़ों की तरफ दिखाता और एक तेज़ आवाज के साथ वो सभी वहाँ से भागने लगते हैं। समीर अपना सर नीचे झुकाए खुद को उनके हमले से बचाने की कोशिश करता है।
जब उसने आँख खोली तो देखा सारे चमगादड़ उस आँगन से उड़ गए थे। समीर ने चारों तरफ देखा तो उसे डॉक्टर रवि और अंजलि भी कहीं नहीं दिखे। वो भाग कर दरवाज़े पर गया और बाहर जा कर देखा तो वहाँ भी कोई नहीं था। वो जो सूत का धागा उस बिल्ली ने घर को बचाने के लिए बांधा था अब वो भी वहाँ नहीं था।
समीर दरवाजा बंद कर के वापस आँगन में आता है और जो देखता है उससे उसकी आँखे फटी की फटी रह जाती हैं। गलती से एक चमगादड़ उस के बनाए उस अनुष्ठान के गोल घेरे में चला गया था और अब भी वहीं एक जगह बैठा था। समीर उस गोले में घुस कर उसे उठाकर बाहर फेंकने के लिए जैसे ही बढ़ता है वो चमगादड़ जलकर राख बनकर जमीन पर बिखर जाता है। उस गोले ने चमगादड़ को जला कर राख बना दिया था। समीर को अब एहसास हो रहा था कि वो किस शक्ति का अनुष्ठान कर रहा है।
रात ज्यादा हो गयी थी और उसे सुबह के अनुष्ठान की तैयारी में भी लगना था। उसे याद आया कि आज बिल्ली उसके पास नहीं है इसलिए वो चुपचाप अपने कमरे में जाने लगा लेकिन उसे अपने पीछे फिर से किसी के होने का आभास हुआ। जैसे ही वो पलटा, उसके सामने डॉक्टर रवि और अंजली खड़े थे। उसने चौंकते हुए उनसे पूछा,
समीर - आप लोग अभी तक..
रवि - आपको ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी।
समीर - देखिये मैं ऐसी धमकियों से नहीं डरने वाला।
रवि - धमकी नहीं दे रहा बस आगाह कर रहा हूं। जिस दुश्मन से जीत पता ना मुमकिन हो उससे संधि कर लेना ही सबसे बड़ी जीत है।
समीर - मैं लड़ूँगा, अगर हार भी गया तो कम से कम मेरा ज़मीर जिंदा रहेगा। आप लोगों की तरह जीने से मैं मर जाना बेहतर समझता हूं।
रवि - मुझमे और आप में बस एक खून का फर्क़ है जिस दिन वो फर्क़ भी मिट गया ना उस दिन बात करेंगे।
समीर देखता है पीछे खड़ी अंजलि के हाथ में एक पुराना खंजर था और इससे पहले वो कुछ करती, समीर तुरंत पास के कमरे की तरफ दौड़ जाता है और कमरा बंद कर लेता है। अब उसके पास सिर्फ एक ही सुरक्षित जगह है वो कमरा जहां बिल्ली यानी कि वो बूढ़ी औरत अनुष्ठान करती थी।
उस औरत ने उस कमरे में सालों अनुष्ठान किए थे। समीर अपनी तसल्ली के लिए चारों तरफ देखता है कि कहीं कोई खतरा तो नहीं।
खाली कमरा होने की वजह से उसे ज़मीन पर ही लेटना पड़ता है। लेटे लेटे वो सोचता है कि क्या अंजलि उसे आज सच में जान से मारने वाली थी?
क्या डॉक्टर रवि की कही बात का कुछ और मतलब भी हो सकता है? क्या डॉक्टर रवि ने किसी नयी पहेली के जरिए कोई नया संकेत देने की कोशिश की थी? ऐसा है तो फिर अंजलि के हाथ में वो खूनी खंजर क्यूँ था? उसे देखकर ऐसा लग रहा था कि वो किसी भी समय उस खंजर को उसके सीने के आर पार कर देती।
इन सभी सवालों के बारे में सोचते हुए समीर गहरी नींद में खो गया।
नींद में उसे कुछ अजीब स नज़र आने लगा। वो देखता है रात का समय, आसमान लाल और चारों तरफ सन्नाटा। उसे उस जगह किसी की सिसकियाँ सुनाई दे रही थीं।
फिर वो देखता है कि उसके सामने कुछ दूर पर डॉक्टर रवि और अंजलि बैठे हैं। अंजलि सिसक सिसक के रो रही थी। उसे देखकर लग रहा था मानो उसे भाऊत कुछ कहना हो लेकिन कह न पा रही हो।
समीर को अपने नीचे कुछ अजीब स महसूस हुआ। वो देखने की कोशिश करता है और लाल चाँद की रोशनी में उसे नज़र आती है अथर्व की लाश.. खून से लथपथ लाश, जिसके ऊपर ही बैठ था समीर।
धीरे धीरे उसके हाथ अथर्व के खून से लाल होने लगते हैं।
वो घबरा जाता है और अपने आसपास देखने लगता है। उसे शहर के और भी लोग नज़र आते हैं जो अपने घुटनों के बाल बैठे थे मानो किसी शक्ति को खुद को समर्पित कर रहे हों।
ये सब इतना डरावना था कि समीर की अचानक से नींद खुल गई। उसका चेहरा पसीने से भींग चुका था। वो सोच रहा था कि इस सपने का मतलब क्या है? क्या उसके हाथों अथर्व की मौत होनी है? या वो भी खुद को उस शक्ति को समर्पित कर देगा? .. पर ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि भविष्यवाणी तो कुछ और थी न?
समीर को फिर एक और ख्याल आया कि कहीं ये सब इस कमरे में सोने का असर तो नहीं है? कहीं ये किसी तरह का छलावा तो नहीं है? सच क्या है, ये बताने के लिए फिलहाल उसके पास कोई नहीं था अगर वो इसी समय कमरे से बाहर निकला तो खतरे में पड़ सकता है और अगर नहीं निकला बाहर तो उसके ख्याल उसे पागल कर देंगे।
कुछ देर उस कमरे में टहलने के बाद वो वापस से सोने की कोशिश करने लगा।
अगली सुबह शहर में ठंड बढ़ी हुई थी। लोग अपने अपने काम पर निकले थे।
समीर भी उठकर कमरे से बाहर निकलने का फैसला लेता है। उसे लग रहा था कि शायद डॉक्टर रवि और अंजली अभी भी बाहर खड़े उसका इंतज़ार कर रहे हों इसलिए वो एक हाथ में डंडा पकड़ लेता है जिससे कि वो अपना बचाव कर पाए। वो धीरे से दरवाज़ा खोलता है और देखता है कि उन दोनों में से कोई भी बाहर नहीं था।
वो सोच में पड़ जाता है क्योंकि घर का मेन दरवाज़ा तो अंदर से बंद है, फिर डॉक्टर रवि और अंजली बाहर गए कैसे? उसने पूरे घर में उन्हें ढूंढा लेकिन वो नहीं मिले। अब एक नया सवाल उसके मन में पैदा हो गया कि बीती रात डॉक्टर रवि और अंजली वहाँ थे भी या सिर्फ उसे भ्रम हुआ था? वो खुद से ही बड़बड़ाने लगता है,
समीर - डॉक्टर रवि और अंजलि का दरवाज़ा खटखटाना, मेरे ना खोलने पर इस पुरानी लकड़ी के बने घर की छत पर चढ़ कर डॉक्टर रवि और अंजलि का आँगन में कूदना, फिर मेरी बिल्ली को पकड़ कर उसे मारने की धमकी देकर मुझे अनुष्ठान से बाहर निकालने की कोशिश करना। शांति निवास वाली औरत का डाक्टर रवि और अंजलि को एक जगह बुत की तरह खड़ा कर देना और फिर काले के जाते ही मुझसे बातें करना, अंजलि का वो खंजर.. वो.. वो सब भ्रम तो नहीं हो सकता। वो सब सच में हुआ था न? मेन दरवाज़ा अगर अंदर से अभी टक बंद ही है, तो वो दोनों बाहर निकले कैसे?
अपनी उलझन को शांत करने के लिए कुछ देर बाद समीर उस पुराने आईने को लेकर डॉक्टर रवि के घर के लिए निकल जाता है। पूरे रास्ते वो सतर्क रहा, पीछे मुड़ कर बार बार देखता रहा कि कहीं कोई उसका पीछा तो नहीं कर रहा है।
कुछ दूर पर वो देखता है कि वो बौना आदमी एक दुकान के बाहर बैठा था मानो उसी का इंतज़ार कर रहा हो। उस बौने के हाथ में समीर की बिल्ली थी।
समीर - ये चल क्या रहा है? मेरे घर में कभी भी कोई भी घुस आता है। फिर अपने आप गायब भी हो जाता है। ये बिल्ली जो काल तक मेरे पास थी, वो कोई ले जाता है और अब ये आपके पास है। हो क्या रहा है?
बौने आदमी ने जवाब दिया, “धैर्य रखो। जीत तुम्हारी ही होगी।”
समीर - मैं देख रहा हूँ कुछ दिनों से आप लोग एक दूसरे से मिल रहे हो पर याद रखना अगर आप लोगों ने मेरी मदद अभी नहीं की तो मेरा अनुष्ठान टूट सकता है। मेरे सवाल मुझे अंदर से पागल कर देंगे।
बौना आदमी बोला, “धीरे बोलो और बस तुम आज का अपना काम खत्म करो क्यूंकि आज की रात होगा वो जो तुमने सोचा भी नहीं होगा।”
समीर - मतलब? क्या आप मेरी मदद..
बौने आदमी ने समीर की बात पूरी होने से पहले ही बोल दिया कि “हर ढलते दिन के साथ तुम्हारी मुश्किलें बढ़ती जाएंगी। अगला दिन पिछले दिन के मुकाबले ज्यादा मुश्किल होगा और तुम्हें तैयार रहना होगा। अब जाओ जहां जा रहे हो बस समय से वापस लौट जाना।”
बौने आदमी की कोई भी बात समीर को समझ नहीं आई। वो बिना दोबारा कोई सवाल किए ही डॉक्टर रवि के घर के लिए बढ़ गया।
उसकी नज़र फिर से उसी बोर्ड पर पड़ी जिसमें लिखा था, “सूरज ढलने के बाद कोटी जंगल की तरफ जाना वर्जित है। सैलानियों से निवेदन है कि खराब मौसम मे भी इस तरफ trekking या कैम्पिंग के लिए ना आयें।”
और हर बार की तरह ही समीर उस बोर्ड को अनदेखा करते हुए डॉक्टर रवि के हिल हाउस के पास पहुंच गया। उसने देखा कि डॉक्टर रवि के घर को अभी तक काली टहनियों ने जकड़ा हुआ था।
तभी उसकी नज़र हिल हाउस के उपर वाले फ्लोर पर गई जिसकी खिड़की से डॉक्टर रवि और अंजली समीर को ही देख रहे थे और वापस जाने का इशारा कर रहे थे।
डॉक्टर रवि और अंजलि को देखते ही समीर के दिमाग में वापस से वही सवाल दौड़ने लगा कि वो दोनों उसके घर से यहाँ तक आए कैसे?
समीर डॉक्टर रवि के घर को गौर से देखने लगा और सोचने लगा कि जिस टहनी ने उसे जकड़ा हुआ है, आखिर वो कहाँ से आ रही है और कहाँ को जा रही है? वो घर के और करीब जाता है कि तभी अचानक ही वो टहनी जीवित हो उठती है और समीर के हाथ से उस आईने को छीन लेती है।
समीर को समझ ही नहीं आया कि उसके साथ अभी अभी हुआ क्या? वो आईना वापस लेने के लिए आगे बढ़त है लेकिन पेड़ की कुछ जड़ें न जाने कहाँ से आती हैं और उसके पैरों को कस के जकड़ लेती हैं और उसी हिल हाउस के सामने उसे उल्टा लटका देती हैं।
वो पूरी ताकत से खुद को उन जड़ों से आज़ाद करवाने की कोशिश करता है लेकिन नाकामयाब रहता है। क्या समीर ने अपने ही पैर पे कुल्हाड़ी मार ली है? क्या सूरज ढलने से पहले वो यहाँ से बच के निकल पाएगा? कैसे कर पाएगा समीर दूसरे दिन का अनुष्ठान पूरा?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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