जब बात अपने बच्चे को बचाने की हो तो माँ बाप किसी भी हद तक जा सकते हैं। डॉक्टर रवि और उनकी पत्नी अंजलि के चेहरे पर मानो खून सवार हो गया था। वो किसी भी कीमत पर समीर को अनुष्ठान करने से रोकना चाहते थे। चाहे उन्हें इसके लिए उस बिल्ली की जान ही क्यों ना लेनी पड़े। समीर अभी भी उस गोले में खड़ा इस इंतज़ार में था कि कब सूर्यास्त हो और उसका आज का अनुष्ठान पूरा हो। उसको पता था कि जिस बिल्ली को डॉक्टर रवि ने इस वक़्त अपने हाथों में पकड़ा हुआ है वो असल में कौन है। ये बात डॉक्टर रवि भी जानते हैं इसलिए वो उसे कभी नुकसान नहीं पहुंचाएंगे लेकिन अथर्व को बचाने के लिए डॉक्टर रवि और अंजलि इस बिल्ली को मार भी सकते हैं। समीर की नजर टिकी हुई थी डॉक्टर  रवि और अंजलि पर और इसी बीच एक बार फिर कोई घर का दरवाजा जोर जोर से खटखटाने लग जाता है। समीर सोच में पड़ जाता है कि जब डॉक्टर रवि और अंजलि यहां हैं तो फ़िर दरवाज़े पर कौन है? वो डॉक्टर की तरफ देखता। तभी अचानक से वो बिल्ली डॉक्टर रवि के हाथ से निकल कर दरवाजे की तरफ भाग जाती है।

डॉक्टर रवि भी उस बिल्ली के पीछे-पीछे भागते हुए दरवाजे तक पहुंचते हैं और अचानक रुक जाते हैं। वो बिल्ली दरवाजे के पास अचानक ही गिर गई और तड़पने लगी मानो किसी अदृश शक्ति ने उस पर भारी भरकम बोझ डाल दिया हो। समीर देखता है कि बिल्ली किसी भी पल मर सकती है।

वो घबरा कर उस गोल घेरे से बाहर आने की वाला होता है कि एक तेज़ आवाज़ के साथ उसके घर का दरवाज़ा खुलता है और वो हैरान हो जाता है।

वहाँ वो शांति निवासी वाली औरत खड़ी थी जिसके हाथ मे एक अनोखा आईना था जो शायद सैकड़ों साल पुराना था। वो औरत जैसे ही अंदर आती है, जमीन पर गिरी हुई बिल्ली एकदम से ठीक हो जाती है। उस औरत को वहाँ देख डॉक्टर रवि और अंजलि गुस्से से उसकी तरफ भागते हैं लेकिन उसी पल कुछ ऐसा होता है जो किसी ने न सोचा था। डॉक्टर रवि और उनकी पत्नी अंजलि जहां भी जिस भी अवस्था में थे, वैसे ही एकदम से जम से जाते हैं।

उनका शरीर बिल्कुल भी हिल नहीं पाता। शांति निवास वाली औरत आँगन की तरफ धीरे धीरे बढ़ती है लेकिन वहाँ हवा की गति बढ़ने लगती है जैसे अदृश्य शक्तियां पूरा जोर लगा रही हों। हवाओं का ज़ोर बवंडर का रोपप ले लेता है और एक ज़ोरदार आवाज के साथ उस घर से निकल जाता है।

समीर देखता है कि सूरज ढलने वाला है और उसी समय चांद भी आसमान में दिखने लगता है। इससे पहले समीर को कुछ समझ आये एक दिव्य रोशनी आसमान की तरफ से आती है जो सीधा समीर के बनाए उस गोल घेरे के इर्द-गिर्द चक्कर लगाने लग जाती है और कुछ ही देर बाद वो रोशनी उस छड़ी में कैद हो जाती है। वो छड़ी थोड़ी देर के लिए चमक उठती है। फिर एकदम आम छड़ी सी दिखने लगती है।

समीर का आज का अनुष्ठान पूरा हुआ। वो तुरंत उस गोल घेरे से बाहर निकल कर उस औरत के पास जाता है। वो औरत उससे कहती है, “ये पांच दिन तुम्हारे पूरे जीवन को बदल देने वाले साबित होंगे। मुझे पता है जो काम तुम करने जा रहे हो उसका तुम्हें अंदाजा भी नहीं है।”

समीर - जी मैं तो सिर्फ इस मुसीबत से लोगों को बचाने को कोशिश कर रहा हूं।

औरत कहती है, “तुम्हें क्या लगता है किसी और ने ये कोशिश नहीं की होगी? ना जाने कितनों ने इस कोशिश में अपनी जान गंवाई और कितनों ने अपने परिवार को खोया यहां तक कि कुछ लोगों ने तो अपना वजूद भी खो दिया।”

समीर - तो आप ये कहना चाहती हैं कि इसमे मेरी जान भी जा सकती है? अगर हाँ तो मुझे परवाह नहीं।

औरत ने जवाब दिया, “जान का चले जाना बहुत खुशकिस्मत वालों के नसीब में होता है बेटा। इस अनुष्ठान के प्रभाव से बहुत कुछ बदल जाता है। बस तुम ये प्रण करो की किसी भी कीमत पर इस अनुष्ठान को नहीं रोकोगे।”

समीर - जी मैं ये प्रण लेता हूं अपनी आखिरी साँस तक इस अनुष्ठान को पूरा करूंगा।

औरत ने फिर आगे कहा, “ये डॉक्टर जो बुत बना तुम्हारे सामने खड़ा है, इस पर तरस भी आता है और गुस्सा भी। आज इस शहर के हालात के पीछे कोई एक शख्स जिम्मेदार नहीं है बल्कि न जाने कितने लोगों की लालच ने इस धरती को नरक बना दिया है।”

समीर - मेरा ऐसा कोई इरादा…

औरत समीर को टोकते हुए बोली,  “मैं सब जानती हूँ। तुम्हारे निस्वार्थ भाव की वजह से हम सब की उम्मीदें तुम पर टिकी हैं। हम तुम्हारे साथ है।”

समीर  समझ गया कि इस औरत का हम से मतलब उस गुप्त समूह से है जो साये को वापस उस किताब में बंद कर देना चाहता है पर समीर को एक बात समझ नहीं आई की ये गुप्त समूह के लोग जो सारे के डर से कभी समीर की खुल के मदद नहीं कर पा रहे थे आज साये के कमजोर होते ही सामने से आ कर उसकी मदद कर रहे हैं। क्या इन्हें काला यानी करोड़ी लाल के उस काले रूप का डर नहीं है ऐसा कैसे?

उस दिन डॉक्टर रवि के घर के बाहर वो बौना आदमी काले का सामना कर रहा था और आज ये औरत जिसने पता नहीं किस शक्ति से दरवाजा खोला और काले को इस घर से भगाया और यही नहीं इस औरत ने डॉक्टर रवि और उनकी पत्नी को मूर्ति सा स्थिर भी बना दिया। इतने सारे सवाल जिनके जवाब समीर को ये औरत शायद दे सकती थी पर ऐसा हुआ नहीं।

उस औरत ने एक तरफ देखा और वो बिल्ली भागती हुई उस औरत के पास चली आयी। समीर ने देखा डॉक्टर रवि और अंजलि की भी पलकें अब झपकने लगी थी जैसे कि वो भी अब सामान्य हो रहे हो।

बिल्ली को अपनी गोद में उठाए वो औरत समीर की तरफ देखती है और उस बिल्ली को लेकर  वहाँ से चली जाती है।

समीर बस एक जगह खड़ा होकर उस औरत को देख रहा था क्यूंकि उसे भी मन ही मन ये लगने लगा था कि वो बिल्ली अब यहां सुरक्षित नही है।

धीरे धीरे डॉक्टर रवि और अंजलि दोनों एकदम समान्य हो जाते हैं। समीर अब ये सोच कर घबरा रहा है कि डॉक्टर रवि का बर्ताव कैसा होगा। डॉक्टर रवि समझ गए की अनुष्ठान पूरा हो गया है। वो समीर से बोले,

रवि - आप अपना फ़र्ज़ निभा रहे हो और हम अपना।

समीर - क्या फ़र्ज़ है आपका डॉक्टर साहब? मासूम, बेकसूरों की जान का सौदा करना? वो भी उस साये के लिए?

रवि - शापित परिवार का मतलब समझते हो समीर? जब तक ये शरीर है तब तक उस शक्ति की रक्षा करने का प्रण और जब शरीर नष्ट हो जाए तो अमर आत्मा भी उसी शक्ति को समर्पित होती है।

समीर - फिर तो और भी अच्छा है। आपके पास शरीर है। आज आप रक्षा कर रहे हैं कल आपका बेटा करेगा ये तो चलता ही रहेगा ना डॉक्टर साहब? अब सवाल ये है कि आपका बेटा अपना लिया हुआ प्रण शरीर के साथ पूरा करेगा या शरीर के बिना? आप क्या चाहते हैं?

अंजलि - देखिये आप ऐसी बात मत करिए। आप नहीं जानते हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। इस शुक्रवार मैं अपनी जान दे दूंगी पर अपने बच्चे को कुछ होने नहीं दूंगी। देव से आपको भी डरना पड़ेगा क्यूंकि हमारी जिंदगी उनके रहम पर है जिन्हें आप जानते भी नहीं हैं।

समीर समझ जाता है की इस समय डॉक्टर रवि और उनकी पत्नी उसकी कोई मदद नहीं कर सकते बल्कि वो दोनों समीर के अनुष्ठान को रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे।

समीर, डॉक्टर रवि और अंजलि तीनों वहीं खड़े थे कि अचानक से आसमान में कुछ अलग सी चीज़ चमकती है जैसे बादलों के टकराव से पैदा हुई बिजली। वो बिजली जो लाल रंग की थी  जिसने रात के अंधेरे को लाल सा कर दिया।

डॉक्टर रवि और अंजलि भाग कर आँगन की तरफ जाते हैं और देखते हैं कि आसमान में न जाने कहाँ से कई सारे चमगादड़ घेरे में उड़ रहे थे। धीरे धीरे उनके एक झुंड ने उस घर के आँगन को पूरी तरह से ढक दिया। कुछ देर बाद वहाँ धुआं इंसानी शरीर का रूप लेने लगता है। ऐसा होते देख डॉक्टर रवि और अंजलि अपने घुटनों पर बैठ जाते हैं जैसे खुद को उस शक्ति के हवाले कर रहे हों। समीर ये सब देख रहा था और समझने की कोशिश कर रहा था कि ये काला अभी तो उसके साथ कुछ नहीं कर सकता या शायद कुछ बात करना चाहता होगा।

फिर वही धुएँ की आकृति डॉक्टर रवि के करीब जाती है मानो कुछ कहना चाहती हो।

कुछ देर वहाँ शांति रही, फिर डॉक्टर रवि उठ कर समीर के पास आए और बोले,

रवि - अपनी इच्छा बताओ। क्या चाहिए तुम्हें? इस सौदे में तुम्हें वो सब-कुछ मिलेगा जो तुम्हें चाहिए।

समीर -  सौदे का छलावा और आत्मा की गुलामी ये सब मेरे साथ नहीं चलेगा, करोड़ी लाल।

रवि (गुस्से में) - तुम अपनी सीमा मत लांघो समीर। तुम्हें जो चाहिए मिलेगा और इस शहर, इस जगह से वापस चले जाने का मौका भी मिलेगा। शर्त इतनी सी है कि तुम्हें अपने घुटने टेकने होंगे और माफी भी माँगनी होगी।

तभी समीर की नजर पड़ती है उस अनोखे आईने पर जो वो शांति निवास वाली औरत ले कर आयी थी। बस उसने उस आईने को उल्टा कर के रखा था। समीर भाग कर उस आईने को उठाता है और बोलता है -

समीर - तुम्हारे और उस साये की कैद है मेरी इच्छा।

 

समीर के हाथ में वो आईना उठाते ही वो चमगादड़ एकदम से चारो तरफ भागने लग जाते हैं और एक बड़ा बवंडर सा बना लेते हैं जिसमें वो धुआं छुप जाता है।

क्या होगा समीर के इस दिलेरी का अंजाम? क्या डॉक्टर रवि और अंजलि रोक पाएंगे उसको?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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