कुमार जीतेंद्र के ऊपर डंडे से वार करने ही वाला था कि अचानक से एक आवाज़ ने उसे रोक लिया। वो आवाज़ किसी और की नहीं बल्कि कुमार के बाबा की थी। जीतेंद्र असमंजस में पड़ गया कि वह दोनों यहां क्या कर रहे थे।  

जीतेंद्र ने चौंकते हुए पूछा, "आप दोनों यहां?"

जीतेंद्र ने इतना कहा ही था कि उसकी नजर कुमार के हाथ पर पड़ी, जिसमें उसने बांस का एक मोटा डंडा पकड़ा हुआ था।  

जीतेंद्र एक बार में सारा माजरा समझ गया। उसने एक नज़र कुमार के बाबा की ओर देखा, जो कि उसके सामने खड़े थे। उनको अंदर ही अंदर शर्म सी महसूस हो रही थी। जीतेंद्र ने कुमार से कहा,

जीतेंद्र (गुस्से से)- " मुझे तुमसे ये उम्मीद तो कभी नहीं थी, कुमार तुम एक crime करने जा रहे थे…..क्या यही सिखाया है तुम्हारे मां बाप ने?”

कुमार(बेबाक होकर) : “crime करने पर मजबूर तो तुमने किया है जीतेंद्र….एक बेकसूर को तुमने इतनी बड़ी सज़ा दिलवाई…..”

कुमार जीतेंद्र को जिस तरह से ज़वाब दे रहा था, जीतेंद्र का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था, क्योंकि जीतेंद्र इसलिए भी झल्लाया हुआ था कि उसके सामने एक 16 साल का लड़का था, जो उसे धमका रहा था। जीतेंद्र को समझाते हुए कुमार के बाबा ने कहा, “जीतेंद्र जी आप थोड़ा शांत हो जाइए, मैं इस बतदमीज को समझाऊंगा।"  

जीतेंद्र  गुस्से से)- "अरे आप क्या समझाएंगे... अगर आप ने इसे पहले ही समझाया होता तो आज ये नौबत नहीं आती। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि कैसे संस्कार दिए आपने अपने बेटे को……(pause)... आप ख़ुद सोचिए अगर आप सही वक्त पर नहीं आते तो ये अब तक मुझे डंडे से मार चुका होता।”  

कुमार के बाबा गुस्से से कुमार को घूर रहे थे। उनका चेहरा शर्म से झुका हुआ था मगर कुमार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा था।  

जीतेंद्र (जैसे राज खोल रहा हो)- "आप नहीं जानते की ये कितना बतमीज हो गया ...( Pause)... बड़ों से बात करने की तमीज नहीं है इसे।"

कुमार के बाबा का चेहरा देखकर कोई भी बता सकता था कि कुमार से जुड़ी उनकी सारी उम्मीदें टूट चुकी थी मगर ऐसा क्यों था, ये कुमार ही जानता था। वो इतना क्यों और कैसे बदला था?  

जीतेंद्र ने कहा, "इसकी इन्हीं हरकतों की वजह से इसे स्कूल से suspend कर दिया गया है…”

जीतेंद्र की बात से कुमार के बाबा को झटका लगा। कुमार इतना बिगड़ गया है उन्होंने कभी सोचा नहीं था। कुमार ने भी तभी ज़वाब दिया,

कुमार (गुस्से से)- "वो सब आपकी साजिश थी ना.........ताकि मैं मैथिली से….”

कुमार अपनी बात कहते कहते रुक गया। उसे नहीं पता था कि वह गुस्से में क्या बोले जा रहा था। जीतेंद्र ने उसकी तरफ देखते हुए कहा,

जीतेंद्र (मुस्कुराते हुए) - "सच में कुमार मैंने तुम जैसा बदतमीज़ और बेशर्म लड़का आज तक नहीं देखा...( Pause)... क्लास में झगड़ा करो तुम और जब पकड़े जाओ तो इल्ज़ाम किसी और पर डाल दो।"

कुमार के बाबा ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, "क्या तुमने क्लास में झगड़ा किया और तुम्हें स्कूल से suspend कर दिया गया ?"

कुमार (हल्की आवाज में)- "बाबा पहले class के लड़कों ने मुझे चिढ़ाया था तब मैंने उन पर हाथ उठाया था।"

"कुमार हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे कि तुम इतने बदमाश हो जाओगे...( Pause)... कभी कभी मुझे लगता है कि मेरे घर में एक गुंडा पैदा हुआ है…. काश उस दिन तुम्हारी जगह मेरा वो…..” कुमार के बाबा कह ही रहे थे कि अचानक से कुमार ने उन्हें चुप करा दिया। आख़िर वो क्या बात थी, जिसे कुमार ने अपने बाबा को कहने से इनकार किया था? तभी जीतेंद्र ने बीच में कहा,

जीतेंद्र(चिढ़ते हुए) : " मैं आपसे हाथ जोड़कर कहता हूं कि आप इसे लेकर चले जाईए…ये मेरी आंखों के सामने जब तक रहेगा, मेरा गुस्सा शांत नहीं होने वाला है।”

कुमार(चिल्लाते हुए) : "तमाशा तुमने किया है मुझे जानबूझ कर suspend करवा कर…. मैं तुम्हें छोडूंगा नहीं इतना याद रखना…. और हां मैथिली कभी तुम्हारी नहीं होगी….मेरे रहते हुए तो बिल्कुल भी नहीं…”

कुमार के बाबा उसे ले जाने की कोशिश कर रहे थे पर कुमार हिलने का नाम तक नहीं ले रहा था। कुमार जीतेंद्र को गुस्से से घूरे जा रहा था, आख़िर में कुमार की एक नहीं चली, उसके बाबा उसे खींचते हुए वहां से ले गए।

घर पहुंचकर उसके बाबा ने उसे अंदर धक्का दिया, कुमार जमीन पर जा गिरा। मगर उसके बाबा का गुस्सा अब भी शांत नहीं हुआ था। उन्होंने ठान लिया था कि आज वो अपने बेटे को सबक सिखा कर रहेंगे।  

अगले ही पल कुमार के बाबा एक मोटा सा डंडा लेकर आए और कुमार की तरफ़ बढ़ने लगे। उन्होंने देखा कुमार के ऊपर कोई फ़र्क नहीं पड़ रहा था।  

“उस दिन मैंने ख़ुद को सज़ा देने की बात कही थी मगर सज़ा के हकदार तुम हो कुमार…” कहते हुए कुमार के बाबा उस पर डंडा चलाने लगे।  

थोड़ी ही देर बाद उनको हैरानी का सामना करना पड़ा, जब उन्होंने देखा कि इतनी मार खाने के बाद भी कुमार के मुंह से उफ्फ तक नहीं निकली। अचानक ही उसकी आंखों के सामने कुछ पुरानी यादें ताजी हो गई। कुमार को अपनी ही चीख ज़ोर ज़ोर से सुनाई देने लगी,

“बचाओ…बचाओ…मुझे छोड़ दो…. मैं बाबा को कह दूंगा….”  

तभी कुमार ने अपनी आंखें खोल दी, उससे वो दृश्य नहीं देखे गए। उसने अपने बाबा को हांफते हुए देखकर कहा,  

कुमार(बेख़ौफ़ होकर) : “क्या हुआ बाबा…थक गए…सांस फूलने लगी है….कोई बात नहीं थोड़ा आराम कर लीजिए….”

कुमार की ये बात सुनते ही उसके बाबा झल्लाकर वापस से कुमार की पीठ पर डंडा मारने लगे। कुमार मगर अब भी ख़ामोश था, ठीक उसी वक्त कुमार की मां दौड़ते हुए कमरे में आई और अपने पति को रोकने की कोशिश करने लगी।  

कुमार के बाबा ने उसकी मां को side रहने को कहा और कुमार के बाल पकड़ लिए।  कुमार इतनी मार खाने के बाद भी शांत था। उसके बाबा ने देखा कुमार के चेहरे पर अब भी एक मुस्कान बनी हुई है। जिसके बाद वो हिम्मत हार गए, उन्होंने अपना सिर पकड़ते हुए कहा, "मुझे शर्म आने लगी है, तुम्हे अपना बेटा कहते हुए।"  

कुमार(मन में) : “बाबा शर्म तो आनी चाहिए आपको…. क्योंकि जब मुझे आपकी ज़रूरत थी…आपने मुझे बेसहारा छोड़ दिया…. और तो और आप आज सोच रहे होंगे, इतनी मार खाने के बाद भी मेरे चेहरे पर मुस्कान कैसे….(Pause).... बचपन में जो दर्द मुझे दिया गया है…. उसके सामने डंडे की मार कुछ भी नहीं है….कुछ भी नहीं।”  

कुमार को चुपचाप खड़ा देख, उसके बाबा को एक बार फिर गुस्सा आ गया। उसके बाबा उसे जोर का थप्पड़ मारते हुए बोले, “कितना बदतमीज और बेशर्म हो गया है तू...( Pause)... काश तेरे पैदा होते ही तुझे मार देता तो आज ये दिन तो ना देखना पड़ता।"

“आप ये क्या कर रहे हैं, बच्चा है वो अभी, 16 साल ही तो उम्र है उसकी….” कुमार की मां ने रोते हुए कहा।, जिसके जवाब में उसके पति ने कहा, “ये अब बच्चा नहीं रहा, गुंडा बन गया है...( Pause)... तुम जानती भी हो इसने आज स्कूल में लड़कों से झगड़ा किया ।"  

कुमार(हंसते हुए)- "मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता है बाबा।"

कुमार बस पागलों की तरह यही बात दोहरा रहा था। कुमार के बाबा ने गुस्से में उसका कॉलर पकड़ा और घर से बाहर निकाल दिया, “निकल जा मेरे घर से…”

कुमार की मां ने अपने पति को रोकने की कोशिश की मगर कुमार के बाबा ने ये शर्त रख दी कि अगर कुमार घर में रहेगा तो वो ख़ुद घर से बाहर चले जाएंगे, जिसके बाद कुमार की मां अपने पति का साथ देने पर मजबूर हो गई। कुमार को घूरते हुए उसके बाबा ने कहा, “एक दिन बाहर रहेगा तो तेरी अकल ठिकाने आ जाएगी….”

इतना कहते हुए उन्होंने घर का दरवाज़ा बंद कर दिया। गांव के लोग ये तमाशा देख रहे थे और सोच रहे थे कि कुमार आखिर इतना कैसे बदल गया। कुमार ने एक बार अपने घर की तरफ देखा और फिर गुस्से में वहां से चला गया।

शाम के करीब 4 बज रहे थे। कुमार बाज़ार में इधर उधर भटक रहा था। तभी उसे एहसास हुआ कि ये वक्त मैथिली के बाज़ार आने का हो गया है। वो एक दूकान के पास बैठा मैथिली के बारे में ही सोचने लगा। उसने खुद से कहा,

कुमार (निराशा से)- "मैथिली आज तुम जब मेरी हालत देखोगी तो तुम्हें पता चलेगा कि जीतेंद्र ने मेरे साथ कितना ग़लत किया….तुम्हें एहसास होगा कि वो सच में एक बुरा इंसान है।”

कुमार ये सब सोच ही रहा था कि उसकी नजर एक जाने पहचाने चेहरे पर पड़ी, जिसे देखकर वह खुशी से मुस्कुराने लगा। कुमार के सामने कोई और नहीं बल्कि मैथिली थी, जो अभी अभी बाज़ार आई थी।

कुमार ने देखा कि मैथिली उसे जानबूझकर ignore कर रही थी। वो आज अकेली आई थी, ये देख कर कुमार ने एक दो बार उसका नाम पुकारा मगर मैथिली ने ऐसे react किया मानो वो कुमार को जानती ही नहीं है। कुमार को अंदर से बुरा लगा, वो उसके पीछे जाते हुए बोला,

कुमार(आवाज लगाते हुए) : "मैथिली... मैथिली... रुको मेरी बात तो सुनो, आज तुम्हें मेरी बात सुननी होगी…”  

कुमार चिल्लाए जा रहा था, मगर मैथिली जल्दी जल्दी वहां से निकलने लगी। मैथिली बचते बचाते कुमार की आंखों से ओझल एक दूकान के पीछे छिप गई मगर कुमार ने उसे देख लिया था। कुमार ने मन ही मन सोचते हुए कहा, “मैथिली आज भले ही तुम मुझसे कितना भी भाग लो, मैं तुम्हें सच्चाई बताकर ही रहूंगा।”

कुमार मैथिली के करीब पहुंच गया, मैथिली वहां से जाती कि इससे पहले ही कुमार ने कहना शुरू किया,  

कुमार(हकलाते हुए)- "श..श..मैथिली मेरी बात तो सुनो, बहुत ज़रूरी बात है….(Pause)... तुम्हें पता है, जीतेंद्र ने मेरे साथ बहुत गलत किया, उसने मुझे जानबूझकर स्कूल से suspend करवाया।"

मैथिली ( गुस्से से)- "कुमार मैं इस बारे में कुछ नहीं जानती हूं और न ही जानना चाहती हूं।"  

कुमार ने उदासी से कहा, "मैथिली मुझे लगा कि तुम मुझे समझोगी,  मेरा साथ दोगी। तुम्ही बताओ, क्या जीतेंद्र ने जो किया, वो सही था।”

मैथिली (तपाक से)- " तुम्हें क्यों समझूं, आखिर मैं तुम्हारा साथ क्यों दूं क्या तुमने कभी मुझे समझा है, क्या तुम जानते भी हो कि तुम्हारी वजह से मेरी जिन्दगी में कितनी मुश्किलें आ गई हैं...( Pause)... तुम्हें पता भी है तुम्हारी वजह से मुझे क्या - क्या face करना पड़ा है।”

कुमार मैथिली की बात सुनकर चुप हो गया। उसके पास उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था। मैथिली की आवाज गुस्से से कांप रही थी, उसने देखा आस पास के लोग उन दोनों को देख कर ही खुसुर फुसुर कर रहे हैं। मैथिली जानती थी कि लोग उसके बारे में गलत सोच रहे होंगे और ये बात पूरे गांव में फ़ैल जाएगी, इसलिए उसने कुमार को अपने पीछे ना आने को कहा और वहां से जाने लगी।  

कुमार को लगा था कि मैथिली को जब पता चलेगा कि उसे school से suspend कर दिया है तो वो उसका साथ देगी, क्योंकि पिछली बार भी ऐसा ही हुआ था मगर इस बार मैथिली का बदला अंदाज़ देख कुमार को काफ़ी दुख हुआ।

“मैथिली तुम बदल गई हो।" कहते हुए कुमार मैथिली के पीछे जाने लगा। जाते जाते उसने आगे कहा,

कुमार(जल्दबाजी में) : “मैथिली जीतेंद्र ने मेरे साथ गलत किया…..(pause)....मैथिली तुम मेरी बात सुन क्यों नहीं रही हो, उस जीतेंद्र ने मेरे साथ गलत किया और तो और उसकी वजह से मेरे बाबा ने मुझे घर से भी निकाल दिया, मैं कहां जाऊंगा मैथिली…आज रात को कहां रहूंगा…क्या तुम्हें मुझ पर तरस नहीं आ रहा….”  

मैथिली कुमार की बात सुनकर एक पल रुकी और मुड़कर उसे देखते हुए कहा, "तुम्हारी हरकतें ही ऐसी हैं, तुम्हें कोई पसंद कर ही नहीं सकता।"  

कुमार (झल्लाते हुए)- "मैथिली तुम जीतेंद्र के साथ रहकर उसकी तरह हो गई हो ।"  

मैथिली (गुस्से से )- "तुम्हे जो लगता है, सब ठीक…मैं तुम्हें कोई सफ़ाई नहीं देने वाली…. और अब मुझे भी लगने लगा है कि जीतेंद्र ने तुम्हें सही सबका सिखाया…. मगर इसके बाद भी तुम सुधरने का नाम नहीं ले रहे हो…”

मैथिली अभी कह ही रही थी कि अचानक से मंदिर के पंडित जी वहां आ गए, उन्होंने तपाक से पूछा, “क्या हुआ बेटी…. काफ़ी परेशान लग रही हो…ये लड़का तुम्हें परेशान कर रहा है क्या….”  

पंडित जी को देख कुमार और झल्ला गया, उसे गुस्सा आ रहा था कि उसके और मैथिली के बीच पंडित जी क्यों आ गए। मैथिली ने पंडित जी को बताया कि वैसी कोई बात नहीं है, पंडित जी ने तभी कुमार के माथे में कुछ देखा, उसके माथे की लकीर देख पंडित जी घबरा गए। उनको पसीना पसीना होता देख मैथिली ने पूछा,

मैथिली(हैरानी से) : “क्या बात है पंडित जी…. आप अचानक से घबरा क्यों गए, कुछ बात है क्या?”

पंडित जी ने मैथिली के माथे पर हाथ रखते हुए कहा, “बेटी इस लड़के से सावधान रहो…मुझे इसकी माथे की लकीर बता रही है कि ये तुम्हारे लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है…”

पंडित जी इतना कह कर वहां से जाने लगे। उनकी बात सुनते ही कुमार गुस्से से लाल हो गया। उसने देखा, मैथिली उसे नफ़रत भरी निगाहों से देख रही है। कुमार कुछ कहता इससे पहले ही मैथिली वहां से जाने लगी। उसे अब पंडित जी की बातों ने सोचने पर मजबुर कर दिया था। कहीं ना कहीं मैथिली को पता चल गया था कि उसे अब कैसे भी करके कुमार से दूरी बना कर रखना है।  मैथिली आगे बढ़ी ही थी कि अचानक ही बीच बाज़ार में कुमार ने उसका हाथ पकड़ लिया। वो कुछ कहने ही वाला था इतने में मैथिली ने उसे एक ज़ोरदार थप्पड़ मारते हुए कहा,

मैथिली(गुस्से से) : “आइंदा मेरे सामने आने की हिम्मत भी मत करना….नही तो अंज़ाम बहुत बुरा होगा…. पहले भी मैंने तुम्हें समझाया था…मगर बच्चा समझ कर छोड़ दिया करती थी….पर अब नहीं….”

कहते हुए मैथिली वहां से पैर पटकते हुए चली गई। कुमार ने देखा, आसपास के लोग उसे ही देख रहे हैं। उसने गुस्से से फ़ैसला करते हुए कहा,

कुमार : “ठीक है मैथिली…. अब और नहीं…जब घी सीधी उंगली से नहीं निकलता है तो उंगली टेढ़ी करनी पड़ती है….”

क्या करने वाला है कुमार आगे? कैसे लेगा वो इस थप्पड़ और बेइज्ज़ती का बदला? जानने के लिए सुनते रहिए।

जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।

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