कुमार उसी जगह पर खड़ा था, उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैथिली ने उसे भरे बाज़ार में सबके सामने थप्पड़ मार दिया। कुमार ने मन ही मन एक बहुत बड़ा फ़ैसला कर तो लिया था मगर कहीं ना कहीं उसके दिल में एक अजीब सा एहसास हो रहा था।
वो समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर क्या उसने जो सोचा है, वो सही है या नहीं। तभी कुमार को किसी के हंसने की आवाज़ सुनाई पड़ी, वो आवाज़ जानी पहचानी आवाज़ थी।
कुमार ने मुड़कर देखा, उसकी आंखों में हैरानी की जगह गुस्सा आ गया। सामने कोई और नहीं बल्कि जीतेंद्र था, जो कुमार पर हंसे जा रहा था। उसने हंसते हुए कहा,
जीतेंद्र(हंसते हुए) : “बेचारा कुमार बहुत बुरा हुआ तुम्हारे साथ। तुम इसी के लायक थे….(Pause with anger tone).... तो कुमार अब मुझे लगता है कि तुम्हारे सिर से प्यार का भूत उतर गया होगा…. आज के बाद मैथिली के आस पास दोबारा दिखना भी मत।”
कुमार(घूरते हुए) : “तुम मुझे मजबुर कर रहे हो जीतेंद्र…. कहीं ऐसा न हो जाए कि मैथिली तुमसे ही दूर हो जाए….”
कुमार की बातें इस वक्त जीतेंद्र को बचकानी लग रही थी। वो जानता था कि कुमार बस बोल रहा है, क्योंकि एक 16 साल का लड़का क्या ही कर सकता है। जीतेंद्र ने भी इस बार सोच लिया था कि वो कुमार को माफ़ नहीं करेगा, अगर उसने कुछ भी ऐसी वैसी हरक़त की तो वो कुमार को सबक सिखाएगा। कुमार की तरफ़ देखते हुए जीतेंद्र ने कहा,
जीतेंद्र(कुटिल मुस्कान से) : “मेरी बात याद रखना कुमार…. और हां बहुत जल्द ही तुम्हें मेरी और मैथिली की शादी की ख़बर मिलेगी…. मैं उसे मना कर ही अब चैन की सांस लूंगा….”
इतना कहते हुए जीतेंद्र वहां से निकल गया। उसने कुमार के गुस्से की आग में घी डालने का काम किया था । कुमार के गुस्से पर जीतेंद्र की बातों ने घी का काम किया था। उसने अपनी मुट्ठियां भींचते हुए कहा,
कुमार(गुस्से से): “मैथिली तुम मेरी हो…. और हमेशा रहोगी…. मगर पहले मुझे एक बहुत ज़रूरी काम करना है…. जिसके कारण तुमने मुझे सबके सामने थप्पड़ मारा है।”
एक तरफ़ जहां कुमार गुस्से में कुछ कांड करने की सोच रहा था तो वहीं दूसरी तरफ़ मैथिली अपने घर के बाहर वाले आंगन में बैठी हुई थी। उसे अंदर से बहुत अजीब लग रहा था। उसके कानों में बार बार पंडित जी की कही हुई बात गूंज रही थी, “बेटी इस लड़के से सावधान रहो…ये तुम्हारे लिए खतरा बन सकता है….मुझे इसकी माथे की लकीर बता रही है कि ये तुम्हारे लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है…” इस बात को याद कर करके मैथिली के मन में कई सारे सवाल उठने लगे थे। उसने ख़ुद से पूछा,
मैथिली(मन में) : “आख़िर पंडित जी ने आज अचानक ऐसा क्यों कहा….क्या कारण हो सकता है उनके ऐसा कहने का….(Pause).... एक बार उनसे जाकर मिल लूं क्या…. लेकिन शाम के इस वक़्त उनके यहां जाना ठीक होगा…..”
मैथिली कुर्सी पर बैठी सोच रही थी कि अचानक से उसकी नज़र सामने पड़ी, थोड़ी ही दूरी पर एक शख़्स खड़ा उसे ही देख रहा था। उस शख़्स को देखते ही मैथिली के चेहरे पर एक मुस्कान आ गई, मगर उसने तुरंत ही अपनी मुस्कान छुपा ली। सामने खड़ा शख़्स कोई और नहीं बल्कि जीतेंद्र था, जो कुमार से मिलने के बाद सीधा मैथिली के घर के पास आ गया था। उसकी आंखों में मैथिली से ना मिल पाने और ना बात कर पाने का दर्द साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था।
एक पल के लिए मैथिली को लगा कि उसे घर के अंदर चले जाना चाहिए मगर अगले ही पल उसने ख़ुद से कहा,
मैथिली(मन में) : “मैथिली…इतनी भी बेरूखी सही नहीं है….एक बार बात करना तो बनता है….ना जाने कितने ही दिन हो गए, तुम दोनों को बात किए हुए…”
ख़ुद को समझाते हुए मैथिली ने अपने घर की तरफ़ देखा, उसे एहसास हुआ कि इस वक्त उसके पिताजी और चाचाजी घर पर नहीं है, मैथिली ने तभी जीतेंद्र को इशारा करके बुलाया। जीतेंद्र एकाएक ही खुश हो गया, वो excited होते हुए मैथिली के पास आया, उसका मन हो रहा था कि वो मैथिली को सीने से लगा ले मगर चाह कर भी वो ऐसा नहीं कर पाया। मैथिली ने भी ख़ुद को बड़ी मुश्किल से रोकते हुए कहा,
मैथिली(झिझकते हुए) : “कैसे हो जीतेंद्र….. क्या चल रहा है आज कल तुम्हारी ज़िंदगी में?”
जीतेंद्र(फीकी मुस्कान से) : “इतना जान लो कुछ भी सही नहीं चल रहा है….मैथिली आख़िर कब तक हमें दूर तक रहना होगा….क्या तुम्हारे चाचाजी और पिताजी को अभी तक मुझ पर भरोसा नहीं हुआ है….”
मैथिली जानती थी कि इस वक्त जीतेंद्र के दिल पर क्या बीत रही होगी मगर जैसे ही उसने बताया कि जब से कुमार अपनी शादी का रिश्ता उसके घर लेकर आया था, उसके बाद से मैथिली के पिताजी ख़ुद ही जल्द से जल्द मैथिली की शादी जीतेंद्र के साथ कराने को बेकरार हो रहे थे। ये सुनते ही जीतेंद्र ने पूछा,
जीतेंद्र(हड़बड़ाते हुए) : “तो फ़िर इंतजार किस बात का कर रहे हैं मैथिली…तुम्हारे पिताजी….एक बार हम दोनों की शादी हो गई उसके बाद उस कुमार को भी समझ आ जाएगा कि वो जो बेकार के सपने देख रहा है, वो सपना टूट चुका है….”
जीतेंद्र के मुंह से कुमार की बात सुन कर एक बार फ़िर से मैथिली को पंडित जी की बात याद आ गई, अचानक ही मैथिली के चेहरे के expressions बदल गए। वो उसी बात को सोचने लगी, जीतेंद्र ने जब उसे पूछा कि क्या हुआ, कोई बात है क्या, तब मैथिली ने जीतेंद्र को पंडित जी वाली बात बताने के बाद कहा,
मैथिली(घबराते हुए) : “मुझे समझ नहीं आया कि आख़िर पंडित जी ने अचानक ही मुझे कुमार से सावधान रहने के लिए क्यों कहा…क्या मतलब हो सकता है, उनके कहने का….”
जीतेंद्र(सोचते हुए) : “simple सी बात है मैथिली…. कुमार ने क्या किया और वो तुम पर कैसी नज़र रखता है, ये बात पूरा गांव जान चुका है…इसलिए पंडित जी ने तुम्हें सावधान रहने के लिए कहा होगा।”
मगर मैथिली को ना जाने क्या हुआ, उसका मन बेचैन हो रहा था। जीतेंद्र उसे परेशान देख कर बोला,
जीतेंद्र(समझाते हुए) : “ठीक है मैथिली….एक काम करते हैं, हम पंडित जी के घर चल कर पूछ लेते हैं….. कि आख़िर उन्होंने ऐसा क्यों कहा….क्या कारण है?”
मैथिली(इनकार करते हुए) : “नहीं जीतेंद्र….. इस वक्त तुम्हारे साथ जाऊंगी और पिताजी या चाचाजी ने देख लिया तो परेशानी हो जाएगी…इसलिए कल मंदिर जब पूजा करने जाऊंगी, पंडित जी से बात कर लुंगी….”
जीतेंद्र को मैथिली की ये बात भी सही लगी, दोनों बात कर ही रहे थे कि अचानक से मैथिली की मां बाहर आ गई, उन्हें देखते ही दोनों घबरा गए, जीतेंद्र वहां से नज़रें चुराते हुए जा ही रहा था कि मैथिली की मां ने रोकते हुए कहा, “रुको बेटा…. घबराने की ज़रूरत नहीं है….मुझे पता है कि तुम मैथिली से बहुत प्यार करते हो…और इसलिए उस दिन इतना कुछ होने के बाद भी तुम अपना अहम किनारे रख कर मेरी बेटी से मिलने आए हो….मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं है….”
जीतेंद्र के चेहरे पर मुस्कान आ गई, वो खुश था कि मैथिली की मां को कोई दिक्कत नहीं थी, जीतेंद्र के सिर पर हाथ फेरते हुए मैथिली की मां ने आगे कहा, “मैं इसके पिताजी से बात कर रही हूं….वो इसी हफ़्ते में किसी दिन तुम्हारे घर जाएंगे, तुम्हारे मां पिताजी से बात करने….”
जीतेंद्र को लग रहा था कि अब सब कुछ ठीक हो जाएगा। उसने मैथिली को देखा, वो शर्मा गई थी। एक पल के लिए मैथिली भी वो सब कुछ भूल गई थी, जो जीतेंद्र के बारे में उसे ग़लत फ़हमी हुई थी, मगर कहते हैं न कि सब कुछ जब अच्छा दिखाई देने लगे तो वो किसी बुरे का संकेत होता है, ठीक वैसा ही कुछ अब होने वाला था।
रात के क़रीब 8 बज रहे थे। दिन भर इधर उधर भटकने के बाद कुछ सोचते हुए, कुमार अपने घर की तरफ निकल गया। उसे उम्मीद थी कि उसके बाबा का गुस्सा अब तक शांत हो गया होगा या मां ने उन्हें समझा दिया होगा। जैसे ही कुमार घर के बाहर पहुंचा, उसने देखा बाहर कोई नहीं है। कुमार घर के अंदर कदम रखने ही वाला था कि उसके बाबा ने देख लिया, उन्होंने चिल्लाते हुए कहा, “तेरी हिम्मत कैसे हुई वापिस आने की… चला जा यहां से।”
कुमार (धीरे से)- " बाबा मेरी बात तो सुनिए आगे से कभी झगड़ा नहीं करूंगा और तो और मैं मानता हूं कि ग़लती मेरी है…मगर सारी ग़लती भी मेरी नहीं है…. उस जीतेंद्र ने मुझसे बदला लिया है….”
कुमार के बाबा को अपने बेटे की बातों पर भरोसा नहीं था। उन्हें लग रहा था कि कुमार झूठ कह रहा था। उन्होंने ठान लिया था कि आज की रात कुमार घर के अंदर नहीं आएगा। तभी कुमार की मां ने समझाते हुए कहा, “कैसे पत्थर दिल हैं आप….आपको उस पर ज़रा सा भी तरस नहीं आ रहा…. उसे अंदर आने दीजिए ना, अकेला बच्चा रात में कहां जाएगा।"
"तुम्हारी वजह से यह इतना बिगड़ गया है...( Pause)... एक रात घर के बाहर रहेगा तो अकल ठिकाने आ जाएगी।" कुमार के बाबा ने गुस्से से कहा और कुमार के मुंह पर दरवाज़ा बंद कर दिया। कुमार जो कि अब तक उदास था, वो गुस्से से कांपने लगा। उसने मन ही मन कहा,
कुमार(गुस्से से) : “मेरी ही ग़लती थी, जो मैं यहां उम्मीद लेकर आया था….जब बचपन में बाबा ने मेरी परेशानी नही सुनी तो आज क्या ही सुनेंगे…ठीक है अब दोबारा मैं घर तब ही आऊंगा, जब बाबा ख़ुद मुझे लेने आएंगे….”
इतना कहते हुए कुमार वहां से चल पड़ा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस वक्त वो जाए तो जाए कहां, उसके पैर बस लगातार बढ़ रहे थे। एकाएक ही कुमार बाज़ार से होते हुए घने जंगल की तरफ़ बढ़ने लगा। धीरे धीरे वो खंभे में लगे बत्ती की रौशनी से दूर होता गया और घने जंगल के अंधेरे में खो गया। इधर दूसरी तरफ़ मैथिली अपने परिवार वालों के साथ बैठी थी कि तभी उसके चाचाजी ने कहा, “भैया सुना कि नहीं आपने…. उस बदमाश लड़के कुमार को एक महीने के लिए स्कूल से निकाल दिया गया है…. अब उसे समझ आएगा…”
मैथिली के चाचाजी जहां ये कह कर खुश हो रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ़ मैथिली के पिताजी के माथे पर कोई परेशानी दिख रही थी। उन्होंने काफ़ी सोचने के बाद कहा, “नहीं छोटे…. ये अच्छा नहीं हुआ है….किसी को शिक्षा से दूर करना ठीक बात नहीं है….वो लड़का बदमाश है, ढीठ है मानता हूं…मगर school से निकाल देना, उपाय नहीं हुआ न….उसे अच्छे से समझाना चाहिए था, ताकि आगे वो कुछ गलत कदम उठाने से पहले सोचे….क्योंकि अभी उसकी उम्र मात्र 16 साल की है, पढ़ाई ही तो उसकी ज़िंदगी बदल सकती है…”
मैथिली के पिताजी पढ़ाई का महत्व समझते थे, उनको लगता था कि वैसे भी गांव में बहुत कम लोग पढ़ते हैं, ऐसे में जो पढ़ रहा है, उसे पढ़ाई से दूर करके सज़ा नहीं दी जानी चाहिए। अपने पिताजी की बात सुन कर मैथिली अब उसी तरीके से सोचने लगी। उसे वो पल याद आया जब उसने पहले कुमार की एक बार मदद की थी, जब उसे fees ना भर पाने के लिए school से निकाल दिया गया था।
मैथिली(मन ही मन) : “पिताजी की बात एकदम सही है….क्योंकि कुमार जैसे लड़के को मारपीट कर समझाने का कोई फ़ायदा नहीं है….”
इतना कहते हुए मैथिली अपने कमरे में चली गई। ठीक उसी वक्त उसे रीमा का call आया। दोनों बातें कर रही थी कि मैथिली ने पूछा, “रीमा आज स्कूल में कुछ हुआ था क्या?”
“हां मैं तो बताना ही भूल गई, वो कुमार और जीतेंद्र के बीच झगड़ा हुआ था और फिर जीतेंद्र ने कुमार को स्कूल से suspend करवा दिया।" रीमा ने बताया।
मैथिली अब सोच में पड़ गई थी, उसे समझ नहीं आया कि आख़िर ऐसा क्या हो गया था, जो जीतेंद्र ने कुमार को suspend करवा दिया। मैथिली ने पूछा,
मैथिली (सोचते हुए)- "अच्छा वैसे क्या तुम्हें पता चला है कि आखिर बात क्या हुई थी, उन दोनों के बीच, क्योंकि मैं जहां तक कुमार को जानती हूं, वो school में कभी किसी teacher से बदतमीजी नहीं करता है….”
इस बात पर रीमा ने जीतेंद्र का side लेते हुए कहा, “मैथिली कुमार बदल चुका है…वो अब पहले जैसा नहीं रहा…..(pause)... वैसे मैथिली तुम्हें मैं बता रही हूं, किसी को बताना मत….जीतेंद्र ने जान बूझकर उस बतदमीज़ कुमार को suspend करवाया….अगर वो चाहता तो कुमार को दूसरी सज़ा भी दिलवा सकता था…पर अच्छा ही हुआ…”
रीमा की बात सुन कर मैथिली को एहसास हुआ कि कहीं ना कहीं जीतेंद्र ने गलत तो किया है। उसने मन ही मन कहा,
मैथिली(ख़ुद से) : “कुमार ग़लत है, ये हर कोई जानता है…. मगर किसी ग़लत को ग़लत तरीके से नहीं सुधारा जा सकता है…. आज मुझे जीतेंद्र से बात करनी चाहिए थी इस topic पर…(pause)... कोई बात नहीं कल बात करूंगी उससे….”
ख़ुद को समझाने के बाद मैथिली ने रीमा को bye बोलकर call काट दिया। वो कुमार के बारे में सोचने लगी, मगर तभी उसे एक बार फिर से पंडित जी की बात याद आई, “बेटी इस लड़के से सावधान रहो…ये तुम्हारे लिए खतरा बन सकता है….मुझे इसके माथे की लकीर बता रही है कि ये तुम्हारे लिए बहुत ही खतरनाक साबित हो सकता है…”
मैथिली ने कुमार की हरकतों को याद करते हुए ख़ुद को समझाते हुए कहा,
मैथिली(समझाते हुए) : “मैं भला इतना क्यों सोच रही हूं…. उसने मेरे साथ जो किया उसके बाद भी और पंडित जी ने भी मुझे उससे दूर रहने को कहा है…कल पहले पंडित जी से बात करूंगी…तब मुझे चैन मिलेगा।”
सुबह के 5 बज रहे थे। चारों तरफ़ हल्की हल्की रोशनी दिखाई देने लगी थी। गांव का एक आदमी पगडंडी पर गाना गुनगुनाता हुआ चला जा रहा था। तभी अचानक ही उसे ठोकर लगी, उसने जैसे तैसे ख़ुद को संभाला और ज़मीन की ओर देखा। ज़मीन की तरफ़ देखते ही उसे एक बड़ा झटका लगा, ये झटका इतना बड़ा था कि उसकी चीख निकल गई, “ये क्या अनर्थ हो गया….मुझे गांव वालों को बताना होगा….जल्दी जाकर…”
ऐसा क्या हुआ था? क्या कुमार ने जीतेंद्र से अपना बदला ले लिया था?
जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.