गांव के उस आदमी को जब ठोकर लगी और उसने जब नीचे की ओर देखा, उसकी आँखें फटी की फटी रह गई। उसकी आंखों के सामने मंदिर के पंडित जी घायल पड़े हुए थे, उनकी आंखों से खून बह रहा था। उस आदमी की घबराहट के मारे सिट्टी पीट्टी गुम हो गई थी। उसने घबराते हुए कहा, "पंडित जी ये आपके साथ क्या हो गया... किसने किया ये सब?"
मगर तभी पंडित जी बेहोश हो गए। वो आदमी पंडित जी को उठाने की कोशिश करने लगा मगर चाह कर भी वो कुछ नहीं कर पा रहा था। आख़िर में वो गांव की तरफ़ भागा और पूरे गांव वालों को बताने लगा।
एक घंटे के अंदर अंदर पंडित जी को गांव वाले सरकारी अस्पताल ले गए। किसी को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था, सब यही सोच रहे थे कि सुबह अंधेरे में जब पंडित जी नदी से नहा कर आ रहे होंगे, उस वक्त किसी जानवर ने उन पर हमला कर दिया होगा।
सुबह के 8 बजते बजते पूरे गांव में ये ख़बर फ़ैल गई कि पंडित जी पर किसी जानवर का हमला हुआ है और उनकी आँखें चली गई है।
मैथिली नहा धो कर मंदिर की तरफ़ बढ़ रही थी। इसी बीच उसे पंडित जी के बारे में पता चला, जिसे सुनते ही मैथिली के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
मैथिली (shocked) : "नहीं...ये झूठ है.... पंडित जी से कल शाम को ही तो मैं मिली थी...उनसे बात हुई थी... और अभी मैं मंदिर उन्हीं से कुछ बात करने जा रही थी...."
गांव की कुछ औरतों ने बताया कि पंडित जी अब देख नहीं सकते और उनकी हालत ख़राब होती जा रही है। मैथिली से आगे सुना नहीं गया, उसने पूजा की थाली गांव की एक औरत को दी और सरकारी अस्पताल की तरफ़ दौड़ पड़ी। इधर दूसरी तरफ़ जीतेंद्र पहले से ही पंडित जी के सामने बैठा हुआ था और वो उनसे जानने की कोशिश कर रहा था कि आख़िर उनके साथ क्या हुआ? मगर पंडित जी कुछ बता ही नहीं रहे थे, जीतेंद्र ने उन्हें समझाते हुए कहा,
जीतेंद्र (समझाते हुए) : "पंडित जी...आप कुछ तो बताइए....क्योंकि आपकी चोट को देख कर साफ़ लग रहा है कि आप पर किसी ने हमला किया है.... और ये हमला किसी जानवर का तो लग नहीं रहा है...."
ठीक उसी वक्त मैथिली वहां पर आ गई। पंडित जी को एहसास हो गया कि मैथिली आ गई है। वे उठने की कोशिश करने लगे, मगर मैथिली ने उन्हें सुलाते हुए कहा,
मैथिली(serious tone में) : "पंडित जी आप लेटे रहिए.... आपकी ये हालत कैसे हुई?"
मैथिली के सवालों को अनसुना करते हुए पंडित जी ने हाथ जोड़ कर कहा, "मैथिली बेटी...मुझसे एक गलती हो गई... मैंने कल कुमार के बारे में जो कुछ भी कहा था... उस पर ध्यान मत देना...मुझे उसके माथे की लकीर पढ़ने में गलती हुई थी....वो एक बहुत अच्छा लड़का है.... मैंने रात में विचार किया....तो पाया कि वो तुम्हारे आस पास रहेगा तो तुम सदा खुश रहोगी...."
पंडित जी की बातें किसी को भी 440 volt का झटका देने वाली थी। उनकी बातें सुन कर मैथिली हैरान होकर जीतेंद्र को देखने लगी। जीतेंद्र को भी समझ नहीं आया कि आख़िर पंडित जी इस वक्त उस कुमार का ज़िक्र क्यों कर रहे हैं? मैथिली ने काफ़ी सोचने के बाद पूछा,
मैथिली(सोचते हुए) : "पंडित जी... आप अचानक से कुमार के बारे में क्यों बता रहे हैं... आपकी हालत ठीक नहीं है अभी।"
पंडित जी को इस सवाल का अंदाज़ा था, उन्होंने तपाक से जवाब दिया, "बेटी ना जाने मैं ज़िंदा रहूं या ना रहूं.... इसलिए सोचा तुम्हें कुमार की सच्चाई बता दूं... ताकी तुम उसे ग़लत ना समझो....वो एक बहुत अच्छा लड़का है मैथिली...."
मैथिली ने बस हां में सिर हिला दिया, वहीं जीतेंद्र अंदर ही अंदर frustrate हो गया था कुमार का नाम सुन कर। तभी अचानक से उसके दिमाग़ में एक ख्याल आया, उसने अपने मन में कहा,
जीतेंद्र(ख़ुद से) : "कल ही पंडित जी ने कुमार के खिलाफ़ मैथिली को कुछ बातें बताई.... और आज सुबह उनके साथ इस घटना का होना.... जिसके बाद अचानक ही मैथिली के आते ही पंडित जी का कुमार का तारीफ़ करना...कुछ तो लोचा है....(Pause)... कहीं मैं जो सोच रहा हूं, वैसा ही तो नहीं हुआ है कुछ?"
जीतेंद्र का दिमाग़ अब अलग level पर चल रहा था, उसने अगले ही पल पंडित जी का हाथ पकड़ा और उन्हें शांत करने के बाद पूछा कि कहीं कुमार ने पंडित जी की ऐसी हालत तो नहीं की? इस सवाल को सुनते ही मैथिली सबसे पहले चौंक उठी। वो जीतेंद्र को समझाने ही वाली थी कि पंडित जी को भरोसा दिलाते हुए जीतेंद्र ने कहा,
जीतेंद्र(प्यार से) : "बताइए पंडित जी... मैं जो कह रहा हूं, क्या वो सच है....देखिए आपको घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है.... मैं हूं ना.... मैं तो आपके बेटे जैसा ही हूं।"
पंडित जी कुछ बोलने की कोशिश करने लगे, वहीं मैथिली जीतेंद्र को समझाने लगी कि वो कुमार को criminal बना रहा है मगर जीतेंद्र ने उसे समझाया कि वो बस पूछताछ कर रहा है। पंडित जी अपनी जुबां से कोई भी शब्द बाहर निकालते इससे पहले ही कमरे में कुमार आया, उसने आते ही कहा,
कुमार(चिंता करते हुए) : "पंडित जी मैं वहां मंदिर में बैठा सोच रहा था कि आप कब आयेंगे और मुझे तभी पता चला कि आपकी ऐसी हालत हो गई है...."
कुमार की बात पर पंडित जी शांत हो गए, जीतेंद्र को कुछ अजीब लगा। उसने तपाक से पूछा कि आख़िर कुमार मंदिर क्यों गया था, जिसके जवाब में कुमार ने बताया,
कुमार(घूरते हुए) : "तुम्हारे कारण मेरे बाबा ने मुझे कल घर में घुसने नहीं दिया...ऐसे में मैं रात भर बाहर कहां भटकता, इसलिए मंदिर चला गया था सोने.... तुम्हारे कारण मैं रात भर बाहर रहा हूं..."
कुमार कह ही रहा था कि उसने देखा मैथिली उठ कर बाहर चली गई हैं। कुमार को उसका जाना ठीक नहीं लगा। वो उसके पीछे जाने ही वाला था कि जीतेंद्र ने उसे टोकते हुए कहा, “कुमार....वो मेरी होने वाली बीवी है, दूर रहो उससे.... नहीं तो अच्छा नहीं होगा...."
कुमार(हंसते हुए) : "पंडित जी यहीं हैं, इनसे confirm कर लो.... तुम्हारी मैथिली के साथ इस जन्म में क्या, अगले 7 जन्म तक भी शादी नहीं हो पाएगी।"
कुमार की बात से जीतेंद्र आग बबूला हो गया, मगर अस्पताल के कमरे में वो कुछ नहीं कर सकता था। वो अपना गुस्सा पी कर रह गया। वहीं कुमार कमरे से बाहर आया, उसकी निगाहें मैथिली को तलाश रही थी। उसे लग रहा था कि मैथिली को बुरा लगा हो और वो कल के लिए उसे sorry बोल दे।
कुमार अस्पताल का पूरा चक्कर लगा चुका था मगर उसे मैथिली कहीं भी नहीं दिखाई पड़ी। वो सोचने लगा कि आख़िर मैथिली इतनी जल्दी कहां चली गई होगी। ठीक उसी वक्त उसकी नज़र सामने garden की तरफ़ गई, जहां मैथिली फूलों को देखते हुए कुछ सोच रही थी। वो पंडित जी की हालत देख उदास थी। कुमार उसके पास आकर बोला,
कुमार(धीरे से) : "मैथिली... तुम मुझे अब अनदेखा भी करने लगी....तुम्हें पता है, मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता, जब तुम मुझे इस तरह से अनदेखा करती हो।"
कुमार मैथिली के जवाब का इंतज़ार करने लगा, मगर मैथिली ने कुछ नहीं कहा, वो वहां से जाने को हुई तभी कुमार उसके सामने आकर खड़ा हो गया। मैथिली कुमार को घूरने लगी, कुमार ने अपनी बात रखते हुए कहा,
कुमार(थोड़ा सख़्ती से): "मैथिली मैंने तुम्हारी हर बेरूखी को सहा है....तुमने उस रात मुझे पागल तक कह दिया था...उसके बाद भी मेरे मन में तुम्हारे लिए कोई कड़वाहट नहीं आई....मगर कल...कल तुमने भरे बाज़ार में सबके सामने थप्पड़ मार दिया....क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुमने ग़लत किया.... क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें मुझे sorry कहना चाहिए...."
कुमार की बातें सुनने के बाद मैथिली ने उसे एक look दिया और बिना कुछ कहे, वहां से जाने लगी। कुमार को यक़ीन नहीं हुआ, उसे लगा था कि मैथिली उसे sorry कह देगी, कुमार सोच में डूब गया था, तभी मैथिली के पास जीतेंद्र आया और उसने मैथिली से कहा कि उसे sorry बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है, कुमार उसी लायक़ था। मैथिली जीतेंद्र के साथ जा ही रही थी, तभी कुमार की नज़रों के सामने जीतेंद्र ने मैथिली का हाथ पकड़ लिया और उसे वहां से ले जाने लगा। कुमार ने चिल्लाते हुए कहा,
कुमार(चिढ़ते हुए): "मैथिली!!.... अब भी वक्त है मुझे sorry कह दो... और दूर हो जाओ इस जीतेंद्र से.... मैं बस तुमसे एक बार sorry सुनना चाहता हूं.... मैं तुमसे इतना प्यार करता हूं कि मैं सब कुछ भूल जाऊंगा....अगर तुम sorry कह दोगी तो....क्योंकि इसके अलावा मैं जो कहूंगा, वो तुम कर नहीं पाओगी...."
मैथिली अचानक ही कुमार की बात सुन कर रुक गई, उसने कुमार को नफ़रत भरी निगाहों से देखते हुए कहा,
मैथिली(गुस्से से) : "कुमार....कल एक पल के लिए मुझे लगा कि जीतेंद्र ने तुम्हें suspend करवा कर ग़लत किया मगर अब मुझे ऐसा नहीं लगता.... और रही बात sorry की तो.... मैंने कुछ ऐसा नहीं किया है कि मैं sorry कहूं......"
इतना कहते हुए मैथिली जीतेंद्र के साथ वहां से चली गई। कुमार उसी जगह पर खड़ा रह गया, ऐसा लग रहा था जैसे उसे सदमा लगा हो। मैथिली की बातों में उसे हमेशा से प्यार नज़र आता था मगर आज उसकी बातों में उसे नफ़रत नज़र आ रही थी। कुमार की अब सारी उम्मीद टूटती हुई नज़र आ रही थी। एकाएक ही मैथिली के बारे में सोचते हुए उसकी आंखों से आंसु निकलने लगे। उसे कुछ पुराना दर्द याद आने लगा।
अगले ही पल कुमार ने अपने आंसुओं को पोंछते हुए कहा,
कुमार(ख़ुद से) : "बस कुमार.... तू इतना कमज़ोर नहीं है.... कि तू इस तरह रोए....तूने अपनी ज़िंदगी में ऐसे दर्द सहे हैं, जिसके बारे में दूसरे सोच भी नहीं सकते.... इसलिए हिम्मत मत हार....__________________________
इधर दूसरी तरफ़ मैथिली और जीतेंद्र वापस पंडित जी के पास आए, मैथिली उनका हाथ पकड़ कर बैठ गई। पंडित जी मैथिली को काफ़ी मानते थे, वो जब भी मंदिर जाती थी, पंडित जी से आशीर्वाद लिए बिना घर नहीं आती थी, इसलिए आज उनको तकलीफ़ में देखकर मैथिली को काफ़ी दुख हो रहा था। वहीं पंडित जी के मन में भी कुछ बात चल रही थी, मगर वो चाह कर भी मैथिली से कह नहीं पा रहे थे।
उन्होंने मन ही मन कहा, "मैथिली बेटी... मेरी इस हालत का जिम्मेदार कौन है.....ये ज़रूरी नहीं है... मगर तुम्हारे जीवन में आगे जो होने वाला है, उसके बारे में मैं तुम्हें कैसे बताऊं.... तुम्हें विश्वास नहीं होगा....मगर मैं जानता हूं कि मेरी भविष्यवाणी कभी ग़लत नहीं होती...."
कहते कहते पंडित जी emotional हो गए, उनकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी, इसलिए उनके आंसु किसी को दिखाई नहीं दे रहे थे। वहीं जीतेंद्र ने काफ़ी देर शांत रहने के बाद फ़िर से पूछा,
जीतेंद्र(serious tone में) : "पंडित जी आपने बताया नहीं....आपकी ऐसी हालत ऐसे कैसी हुई...क्या कुमार ने...."
"नहीं....जीतेंद्र बेटा... कुमार तो एक बच्चा है, वो मेरी ऐसी हालत कैसे कर सकता है भला? मुझे जहां तक याद है.... मेरे ऊपर किसी अजीब से जानवर ने हमला किया था.... हां उसके बाद मुझे याद नहीं...." पंडित ही ने जीतेंद्र की बात काटते हुए जवाब दिया, जिसके बाद जीतेंद्र शांत हो गया। मैथिली ने जीतेंद्र को समझाया,
मैथिली(समझाते हुए) : "जीतेंद्र... कुमार को मैं सुना चुकी हूं... इसलिए बिना सुबूत के उस पर इस तरह के इल्ज़ाम लगाना ठीक नहीं है.... और पंडित जी ने कह दिया ना कि उसने हमला नहीं किया है...."
जीतेंद्र जो पहले से ही कुमार के नाम से चिढ़ता था, उसने जब देखा मैथिली उसका side लेकर बोल रही है, जीतेंद्र से बर्दाश्त नहीं हुआ। उसने बिफरते हुए कहा,
जीतेंद्र : "मैथिली...तुम कब से उस बदतमीज कुमार की side लेने लगी..."
मैथिली(नाराज़गी से) : "जीतेंद्र.... बस करो.... मैं कुमार की side नहीं ले रही बल्कि तुम्हें समझा रही हूँ कि ऐसे बिना सबूत के किसी पर भी इल्ज़ाम लगाना सही नहीं होता...."
मगर जीतेंद्र कहां समझने वाला था, उसे लगा कि मैथिली कुमार की side ले रही है। देखते ही देखते दोनों में बहस शुरू हो गई, और झल्लाहट में जीतेंद्र के मुंह से ऐसी बात निकल गई, जो नहीं निकलना चाहिए था, उसने कहा,
जीतेंद्र(गुस्से से) : "रहने दो मैथिली... मुझे school में कई बच्चों ने बताया कैसे तुम उस कुमार से अपना tiffin share करती थी, तुम्हारी class में वो सबसे आगे आकर बैठता था... सोनिया के साथ मेरी photo देख कर तुमने और तुम्हारे परिवार वालों ने मेरे character को judge कर लिया था, मगर तुम्हारा क्या मैथिली? अगर गौर किया जाए तो तुम भी उस कुमार के साथ स्कूल आना जाना करती थी, उसके साथ कितना सारा वक्त बिताती थी.... मैंने तुम पर कभी सवाल नहीं उठाया...."
मैथिली को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ, वो रोती हुई वहां से चली गई। उसके जाने के बाद जीतेंद्र को एकाएक ही एहसास हुआ कि गुस्से में ये उसने क्या कह दिया? रात हो चुकी थी। मैथिली अपने घर के अंदर कमरे में बैठी जीतेंद्र के बारे में सोच रही थी। उसे जीतेंद्र की बातें सुई की तरह चुभ रही थी, उसने खुद से कहा,
मैथिली(रोते हुए) : "जीतेंद्र ने मेरे character पर सवाल उठाया.... उसे जान तो लेना चाहिए था कि क्यों मैं कुमार से tiffin share करती थी, क्यों उसे आगे बिठाती थी....(Pause).... कुमार को मैंने हमेशा अपना student माना है और कुछ नहीं.... उसके बाद भी जीतेंद्र ने वो सब कहा.... "
मैथिली अपने आप में बड़बड़ा रही थी कि अचानक उसे जीतेंद्र पर गुस्सा आने लगा। उसने अपना phone निकाला और जीतेंद्र को call लगाने लगी, वो आज उससे अच्छे से सुनाना चाहती थी।
ठीक उसी वक्त बाहर वाले आंगन से एक अजीब आवाज़ आई, जिसे सुनते ही मैथिली चौंक गई। वो सोच ही रही थी कि एक कागज़ का टुकड़ा, खिड़की से किसी ने अंदर फेंका। मैथिली ने जैसे ही उस काग़ज़ को खोला, उसके होश उड़ गए। क्या लिखा था उस कागज़ में?
जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग।
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