​​सुबह के करीब 10 बज रहे थे, मगर मैथिली अभी तक नहीं उठी थी। उसके कमरे का दरवाजा अभी भी लगा हुआ था। मैथिली की माँ ने जब समय देखा तो उन्होंने गुस्सा करते हुए कहा, "​​ये लड़की पता नहीं आज इतनी देर तक कैसे सोती रह गई है?"​

​​कहते हुए मैथिली की माँ ने जैसे ही दरवाजे को छुआ वह अपने आप खुल गया। दरवाज़ा बस भिड़काया हुआ था, मैथिली की माँ जैसे ही अंदर गई, उन्होंने वहाँ पर मैथिली को नहीं देखा। तभी अचानक से उन्होंने मैथिली के कमरे में मौजूद बाथरूम में देखा मगर वहाँ का दरवाजा भी खुला ही था। मैथिली की माँ बुरी तरह से हैरान हो गई। उन्होंने गौर किया कि बिस्तर में कोई भी सिलवाटें नहीं आई थी, बिस्तर को देखकर ऐसा लगा था कि बिस्तर पर रात को मैथिली सोई ही नहीं। ये देखते ही मैथिली की माँ बुरी तरह से चौंक गई और चिल्लाने लगी, ​​"मेरी बेटी को न जाने क्या हो गया, वो कहाँ चली गई?"​ ​​कहते हुए उन्होंने पूरे घर में शोर मचा दिया। 5 मिनट के अंदर अंदर ही मैथिली के घर वाले जमा हुए और सब मैथिली को पागलों की तरह ढूंढने लगे। पूरे घर को अच्छी तरह से छान लेने के बाद भी जब मैथिली का कहीं कोई पता नहीं चला और जब फ़ोन लगाने पर भी उसका फ़ोन बंद आया तो उसके घर वाले और ज़्यादा परेशान हो गए। ​

मैथिली के पिताजी और चाचाजी यही सोचने लगे कि आखिर मैथिली गई तो गई कहाँ? तभी अचानक से मैथिली के चाचा जी ने कहा, ​​"एक बार जीतेंद्र को फ़ोन लगाइए, हो सकता है उसे कुछ पता हो या ऐसा भी हो सकता है कि वो लोग दोनों सुबह सुबह कहीं गए हों..."​

​​अगले ही पल मैथिली के पिताजी ने जीतेंद्र को फ़ोन लगाया मगर उनको हैरानी का सामना तब करना पड़ा, जब उन्हें पता चला कि जीतेंद्र तो अपने घर में सोया हुआ है। जीतेंद्र ने तभी फ़ोन के उस पार से पूछा, ​

​​जीतेंद्र(हैरानी से) : "क्या हुआ है, पिताजी? आखिर बात क्या है? आप लोग परेशान लग रहे हैं, मैथिली ठीक तो है,  कहाँ है वो?"​

​​ना चाहते हुए भी मैथिली के पिताजी अपने जजबातों को न रोक सके और वो ज़ोर ज़ोर से रोने लगे। उनको रोता देख जीतेंद्र समझ गया कि जरूर कुछ न कुछ गड़बड़ हुई है। उसने तुरंत ही phone रखा और अपनी bike निकाली।​ ​​करीब दस मिनट के अंदर ही जीतेंद्र, मैथिली के घर पहुँच चुका था। जीतेंद्र ने भी अपनी तरफ से पूरे घर को छान लिया था और उसने अब तक 20 से भी ज्यादा बार मैथिली के फ़ोन पर call कर लिया था, मगर मैथिली का कुछ भी पता नहीं चल पाया था। ​

​​थोड़ी ही देर में रीमा भी वहाँ आ पहुंची। उसे भी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मैथिली गई तो गई कहाँ? इस वक्त रीमा और जीतेंद्र आपस में बात कर रहे थे, एक पल के लिए रीमा को कुमार का ख्याल आया, उसने मन ही मन कहा,​  "कहीं मैथिली को कुमार ने ही तो गायब नहीं किया... नहीं... नहीं वो 16 साल का लड़का इतना बड़ा crime नहीं कर सकता... मैं कुछ ज़्यादा ही सोच रही हूं.."​

​​ये ख्याल आने के बाद अचानक ही रीमा को एक पल के लिए ये भी लगा कि वो जीतेंद्र को सच बता दे कि कल मैथिली कुमार से मिलने गई थी, मगर तभी अचानक से उसका ध्यान खिड़की के दरवाजे की कुंडी पर गया। वहाँ पर एक कागज मोड़कर फंसाया गया था।​  

​​"ये क्या चीज़ है...इस पर मेरा ध्यान पहले नहीं गया।"  ​​कहते हुए रीमा उठी और उसने उस कागज को कुंडी से निकाला। उस कागज में लिखे शब्दों को जैसे ही रीमा ने पढ़ा, वह बुरी तरह से चौंक गई। ​

​​उसने चिल्लाकर कहा, "​​जीतेंद्र जल्दी यहाँ पर आओ....चाचा जी.... चाची जी मैथिली के कमरे में आइए....देखिये मुझे क्या मिला, मैथिली ने एक note छोड़ा है यहां पर..."​

​​जीतेंद्र और बाकी घरवाले दौड़कर उस कमरे में आए। जीतेंद्र ने अगले ही पल रीमा के हाथों से वो कागज लिया, जिसमें लिखा हुआ था, "​​मेरी तलाश मत करना।"​ इन शब्दों को देखते ही जीतेंद्र, रीमा और बाकी घर वाले परेशान हो गए। "​​क्या मतलब है इसका...मेरी बच्ची कहां गई...क्या वो घर छोड़ कर चली गई...."​​ कहते हुए मैथिली की मां चक्कर खाकर गिर पड़ी। सारे लोग उन्हें संभालने की कोशिश करने लगे। ​

​​वहीं जीतेंद्र भी सोच में पड़ गया कि आखिर मैथिली के साथ हुआ क्या और क्या इस note को उसी ने छोड़ा था? उसे कल के लिए बुरा भी लग रहा था कि उसने मैथिली को उल्टा सीधा कहा।​ ​​काफी सोचने के बाद जीतेंद्र ने रीमा से कहा, ​

​​जीतेंद्र(serious tone में) : नहीं रीमा मुझे नहीं लगता कि मैथिली ने ये note छोड़ा है। मुझे कुछ तो गड़बड़ लग रही है.... कहीं मैथिली किसी खतरे में तो नहीं है..."​

​​रीमा का भी दिल जोरों से धड़कने लगा, उसने जब पूछा कि अब आगे क्या करना है, तब जीतेंद्र ने ज़वाब दिया, ​​"हमें अब पुलिस के पास जाना चाहिए क्योंकि अब मामला बहुत ज्यादा बढ़ चुका है। मुझे कुछ अनहोनी का डर लग रहा है।"​  ​​रीमा ने जब ये सुना उसने भी हां में सर हिलाया। ​

​​अगले ही पल जीतेंद्र कमरे से निकलने ही वाला था कि तभी अचानक से रीमा ने उसे रोकते हुए कहा, ​ "जीतेंद्र मुझे लगता है कि अब वक्त आ गया है कि मैं तुम्हें एक सच बताऊँ.... मगर प्लीज़ गुस्सा मत करना और शांत दिमाग से सोचना.....”​

​​जीतेंद्र को समझ नहीं आया कि आखिर रीमा किस बारे में बात कर रही है। वो ध्यान से उसकी बातें सुनने लगा। इसके बाद रीमा ने मैथिली और कुमार के मिलने की पूरी बात जीतेंद्र को बताई। रीमा ने ये भी बताया कि कैसे मैथिली ने गुस्से में उन सारे सबूतों को जला दिया। ये सुनने के बाद कहीं ना कहीं जीतेंद्र को यह भी विश्वास हुआ कि मैथिली का प्यार उसके लिए अभी भी जिंदा था मगर उसे कहीं ना कहीं थोड़ा सा दुख हुआ था कि मैथिली ने उसे बताया नहीं था कि वह कुमार से मिलने जा रही है। ​

​​रीमा की पूरी बात सुनने के बाद एकाएक ही जीतेंद्र के चेहरे पर गुस्सा आ गया। वो पैर पटकता हुआ घर से बाहर निकल गया। रीमा भी उसके पीछे पीछे भागती हुई चिल्ला रही थी, ​  जीतेंद्र कहाँ जा रहे हो इस तरह....देखो गुस्से से कुछ नहीं होगा! तुम इस तरह कहाँ जा रहे हो,  हम तो पुलिस स्टेशन जाने वाले थे?"​

​​लेकिन जीतेंद्र कुछ भी नहीं ज़वाब दे रहा था। वो मैथिली के घर से बाहर आ गया था और आगे बढ़ने लगा। थोड़ा आगे जाने के बाद अचानक से उसने चाय की टपरी पर कुमार को बैठा देखा। कुमार को देखते ही वो आग बबूला हो गया। वो गुस्से से पैर पटकता हुआ कुमार के पास पहुंचा और उसने कॉलर से पकड़ते हुए कहा, ​

​​जीतेंद्र(चिढ़ कर) : "बहुत ज्यादा मर्दानगी सूझ रही है ना....एक मुक्के में अकल ठिकाने आ जाएगी...(Pause)... चल बता कहाँ है मैथिली, क्या किया तुने उसके साथ... देख अगर मैं अपनी पर आ गया तो फिर मैं भूल जाऊंगा  कि तू एक 16 साल का लड़का है, कल भी hospital में तू rude होकर मैथिली को sorry कहने bol रहा था…”​

​​रीमा जीतेंद्र के मुँह से ऐसे शब्दों को सुनकर हैरान थी। आज पहली बार उसने जीतेंद्र को इस तरह से गुस्से वाले अंदाज को देखा था और कहीं ना कहीं ये सही भी था क्योंकि जीतेंद्र मैथिली से बेइंतहा प्यार करता था और आज जब वो अचानक से गायब हो गयी थी तो उसका गुस्सा होना लाजमी था।​

​​वहीं कुमार एकदम शांत था। उसने जैसे ही मैथिली के बारे में सुना उसने कहा, ​

​​कुमार(आराम से) : "एक मिनट....तुमने क्या कहा जीतेंद्र.... मैथिली कहाँ है??....ये तुम मुझे क्यों पूछ रहे हो? वो तो तुम्हारी होने वाली पत्नी है, तुम्हे पता होना चाहिए...."​

​​तभी जीतेंद्र ने उसे थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ उठाया मगर अगले ही पल उस चाय की टपरी वाले आदमी ने जीतेंद्र का हाथ पकड़ते हुए कहा, ​​"क्या कर रहे हैं बाबू...एक बच्चे पर हाथ क्यों उठा रहे हैं? आखिर इसने किया क्या है?"​

​​तभी कुमार ने अपने कपड़ों को ठीक करते हुए कहा,​

​​कुमार(शांति से) : "अरे!.. चाचा ये हमारे teacher हैं... इनका हक बनता है....(जीतेंद्र की तरफ़ देखते हुए).... और रही बात मैथिली की.... तो मुझे नहीं पता कि मैथिली कहाँ हैं और तुम लोगों को क्या मैं कोई गुंडा लगता हूँ, जो मैं मैथिली को गायब कर दूंगा?"​

​​इतना कहने के बाद कुमार ने रीमा की तरफ देखा और पूछा, ​

​​कुमार(नर्म आवाज़ में) : "तुम ही बताओ मेरा मतलब आप ही बताइए मैडम आप तो मुझे जानती हैं, मैथिली की best friend हैं, मैं ज्यादा से ज्यादा क्या कर सकता हूँ? ज़िद कर सकता हूँ, बच्चों की तरह रो सकता हूँ मगर इस तरह का crime तो नहीं कर सकता ना? आपको क्या लगता है मुझे देख कर.....मुझे तो अभी पता चल रहा है कि मैथिली गायब है।"​

​​कुमार जिस तरह से शांत होकर बातें कर रहा था, आखिर में जीतेंद्र को भी लगा कि उसे इस तरह से सबके सामने कुमार को बेइज्जत नहीं करना चाहिए था मगर जीतेंद्र को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मैथिली गई तो गई कहाँ, क्या हुआ है उसके साथ, किसने उसे गायब किया है? ​

​​रीमा, कुमार और जीतेंद्र तीनों इस वक्त शांत खड़े थे। वहीं चाय की टपरी पर मौजूद बाकी लोगों को भी अब अंदाजा हो गया था कि मैथिली गायब हो चुकी है, मगर सबका सवाल यही था कि आखिर वो कहां है?​

​​दोपहर होते होते ये बात पूरे गांव में फैल गई कि मैथिली घर से गायब है और उसने घर पर एक नोट लिखकर छोड़ा है कि कोई उसकी तलाश ना करे। गांव के लोग मैथिली के बारे में तरह तरह की बातें करने लगे। किसी ने तो ये तक कह दिया कि मैथिली को जब जीतेंद्र के बारे में पता चला तो वही सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई और वो घर छोड़कर भाग गई। ​

वहीं कुमार भी मैथिली के चाचा के साथ पूरा गांव छान चुका था, मगर मैथिली कहाँ थी उसे पता ही नहीं चल पाया था। मैथिली के चाचा को दूसरे गांव जाता देख कुमार वहां से अपने घर की तरफ़ आने लगा। वो इस वक्त पसीने से लतपथ हांफता हुआ अपने घर की ओर जा रहा था कि उसे दूर से पुलिस की जीप आती हुई दिखी। ​

​​पुलिस की जीप देखते ही वो घबरा गया। उसका चेहरा सूखने लगा मगर अगले ही पल उसने खुद को समझाते हुए कहा,​

​​कुमार(ख़ुद से) : "कुमार...ये क्या कर रहा है??...इस तरह पुलिस को देखकर घबराएगा तो किसी को भी शक हो जाएगा इसलिए खुद को normal कर...normal कर...."​

इतना ​​कहते हुए कुमार अपने चेहरे पर आए पसीने को पोंछने लगा। जीप कुमार के पास आकर रुकी, कुमार ने देखा जीप के अंदर रीमा और जीतेंद्र भी बैठे हुए थे। कुमार समझ गया कि उससे मिलने के बाद दोनों सीधा पुलिस स्टेशन जा पहुंचे थे। ​​"Relax कुमार...relax...."​  ​​कुमार चुप चाप उन दोनों को देख कर वहाँ से जाने लगा, मगर ठीक उसी वक्त एक पान की पिचकारी कुमार के ठीक पैरों के सामने गिरी, जिसके कारण वो रुक गया। कुमार ने जैसे ही जीप के अंदर देखा तो सामने driver के बगल में एक इंस्पेक्टर बैठा हुआ था, जो अपने मूछों पर ताव दे रहा था। ​

​​इंस्पेक्टर अपनी टोपी पहनते हुए जीप से उतरा और अपना डंडा कुमार की ठुड्डी पर रखते हुए कहा,​

​​इंस्पेक्टर मलिक(कड़क tone में) : "कहाँ भाग रहे हो बे!!... पहले कुछ सवाल जवाब तो हो जाए...."​

​​कुमार जो अंदर से पूरी तरह से डर गया था, वो इस कोशिश में लगा हुआ था कि वो normal रहे वरना अगर वो घबरा जाता तो पुलिस को उस पर और भी ज़्यादा शक हो जाता। इंस्पेक्टर ने तभी पान की पिचकारी फेंकते हुए कहा,​

​​इंस्पेक्टर मलिक(कड़क आवाज़ में) : "तो रीमा मैडम ने बताया कि तुम मैथिली मैडम का पीछा करते थे, बताओ....अपनी कहानी बताओ हमको....(Pause)... और हां सच बोलना नहीं तो देंगे एक कंटाप।"​

​​कुमार(घबराते हुए) : "सर, देखिए रीमा मैडम ने और जीतेंद्र सर ने जो कुछ भी कहा बिल्कुल सच है। मैं मैथिली मैडम को पसंद करता था.... और अगर किसी को पसंद करना गुनाह है तब तो फिर मुझे लगता है कि हर उस student को arrest कर लेना चाहिए, जो अपनी teacher को crush बनाता है... क्योंकि एक सच तो ये भी है कि हिंदुस्तानी लड़कों को पहला प्यार अपनी school teacher से ही होता है...."​

​​कुमार की बातों ने इंस्पेक्टर को impress कर दिया था, एकाएक ही इंस्पेक्टर मलिक को भी अपना पहला प्यार याद आ गया, तभी अचानक से उन्हें ख़्याल आया कि वो case solve करने निकले थे। इंस्पेक्टर ने कुमार के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ​

​​इंस्पेक्टर मलिक(हंसते हुए) : "देखो ऐसा है...अगर तुम हमसे झूठ बोले तो तुम्हारी crush के चक्कर में कहीं हम तुमको ना crush कर दें...इसीलिए सच को अपने हृदय से बाहर निकालो बालक.... काहे कि अजय देवगन को जैसे झूठ बर्दाश्त नहीं है, उसी तरह हमको बकैती बर्दाश्त नहीं है। का समझे?"​

​​कुमार हाथ जोड़तें इंस्पेक्टर मलिक के सामने ख़ुद को निर्दोष साबित करने में लग गया था। उसकी हालत देख रीमा को भी लगने लगा था कि कुमार बेकसूर है। कुमार ख़ुद ही बताने लगा, जो कुछ भी उसने अब तक किया था। ​ ​​एक तरफ़ कुमार इंस्पेक्टर मलिक को सारी बातें बता रहा था तो वहीं दूसरी तरफ़ उसी गांव के नदी के उस पार एक बंगले में अचानक ही एक लड़की की आँखें खुली। उसने जैसे ही आस पास देखा, वो हैरान हो गई। उसने ख़ुद को देखा, उसके हाथ पैर बंधे हुए थे, मुंह पर पट्टी थी। वो लड़की कोई और नहीं बल्कि मैथिली थी।​ पर उसे यहा लाया कौन? और ये कौन सी जगह है?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

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