मैथिली को जब होश आया तो वह बुरी तरह से चौंक गई। उसने जब खुद को एक कमरे में बंधा हुआ पाया, उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो है तो है कहाँ और उसे kidnap किया तो किया किसने? वो चिल्ला भी नहीं पा रही थी क्योंकि उसके मुँह पर पट्टी बंधी हुई थी।
अपनी पूरी ताकत लगाकर वो अपने हाथों को खोलने की कोशिश कर रही थी मगर काफी कोशिश करने के बाद भी जब वो कामयाब नहीं हो पाई तो मैथिली अंदर ही अंदर झल्ला गई और रोने लगी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वो अब यहाँ से बाहर कैसे निकलेगी और उसे किसने kidnap किया है?
मैथिली को इस वक्त अपने परिवार की, रीमा की जीतेंद्र की याद आ रही थी। तभी एकाएक कि उसके दिमाग में कुमार का ख्याल आया। उसने खुद से सवाल किया,
मैथिली(मन में) : "क्या कुमार ने मुझे किडनैप किया है...लेकिन कैसे...जहाँ तक मुझे याद है, कल रात को मैं खिड़की के पास बैठी जीतेंद्र के बारे में सोच रही थी और फिर अचानक से आंगन में कुछ गिरने की आवाज आई। मैं जब बाहर निकल कर आयी, उसके बाद....उसके बाद मेरे साथ क्या हुआ...मुझे कुछ याद नहीं। क्या हुआ था मेरे साथ, किसने मुझे किडनैप किया है?"
एक तरफ जहाँ मैथिली परेशान हो रही थी वहीं इधर दूसरी तरफ पूरी तरह से पूछ्ताछ करने के बाद इंस्पेक्टर मलिक ने कुमार को समझाते हुए कहा,
इंस्पेक्टर मलिक(कड़क आवाज़ में) : "देखो ऐसा है..हम ठहरे जिद्दी पुलिसवाले और सारे सबूतों को और गवाहों को देखकर हमको पूरा शक तुम पर है मगर बात ये भी है कि तुम नाबालिग लड़के हो इसलिए हम कुछ कर नहीं सकते.... नहीं तो तुमको हम अभी ऐसा कंटाप मारते कि सारा सच बाहर आ जाता।"
इतना कहने के बाद इंस्पेक्टर ने डिब्बी से एक पान अपने मुंह में रखते हुए कहा,
इंस्पेक्टर मलिक(प्यार से) : "पान खाओगे.... ख़ैर छोड़ो... हमारे जैसा पुलिस सिर्फ़ खाता है... खिलाता नहीं....(Pause and then laugh)... पान बे!!...तुम का समझे...हम पान खाने का बात कर रहे थे... चलो अपना ख्याल रखो, थोड़ा खाना वाना खाओ, घबरा गए हो और हाँ भागने की कोशिश मत करना....हम कभी भी तुमको पूछ्ताछ के लिए बुला सकते हैं। जे बात….चलते हैं...."
इतना कहते हुए इंस्पेक्टर जीप में बैठकर वहाँ से चला गया। उसके साथ साथ रीमा और जीतेंद्र भी जीप में बैठकर चले गए। उसके जाते ही कुमार ने राहत की सांस ली। वो एकदम से घबरा गया था। उसने खुद से कहा,
कुमार(सांस छोड़ते हुए) : "अभी तो बाल बाल बचा। अगर थोड़ा सा भी मैं इस इंस्पेक्टर के सामने घबरा गया होता तो मेरी सारी पोल खुल जाती.....(pause)... ये इंस्पेक्टर दिमाग़ से पैदल लगता है... संभल कर रहना होगा...."
इतना कहते हुए कुमार वहाँ से अपने घर जाने की बजाय जंगल की तरफ एक पतले रास्ते पर आगे बढ़ने लगा। वो इस वक्त उस सुनसान और कच्ची सड़क पर आगे बढ़ रहा था, आखिर वो कहाँ जा रहा था, ये उसके अलावा कोई नहीं जानता था। कुमार धीरे धीरे चलते हुए एक नाव में बैठ गया और फिर चप्पू चलाते हुए नदी के उस पार चला गया। उस पार जाते ही कुमार को सामने एक सुनसान बंगला नजर आया। उस बंगले को देखते ही उसके चेहरे पर एक कुटिल मुस्कान आ गई।
थोड़ी ही देर में कुमार उस बंगले के अंदर आया। उसने कमरे के अंदर जैसे ही enter किया, उसे सामने मैथिली बंधी हुई दिखाई पड़ी। मैथिली ने भी जब अचानक से कुमार को देखा, वह हड़बड़ा गई। वो कुमार से कुछ कहने की कोशिश कर रही थी, उसे लगा कि कुमार उसे बचाने आया है। कुमार ने तभी मुस्कुराते हुए कहा,
कुमार(मुस्कुरा कर) : "तुम यहां बिल्कुल safe हो मैथिली... तुम्हें यहां कोई खतरा नहीं है... तुम्हें सब से बचाने के लिए ही तो मैं यहां लेकर आया हूं...."
कुमार की बातों को सुन कर और उसके चेहरे को देख कर मैथिली एक बार में समझ गई कि जिस शख़्स से वो मदद की उम्मीद लगा रही थी, असल में उसी शख़्स ने उसे kidnap किया था। मैथिली को अब सारा सच पता चल गया था। वो बुरी तरह से छटपटाने लगी। मैथिली को ऐसा लग रहा था, जैसे उसका दम घुट रहा था। वो चिल्लाने की कोशिश कर रही थी, मगर मुंह में पट्टी के कारण उसकी आवाज़ नहीं निकल रही थी।
मैथिली ने देखा कुमार उसी की तरफ़ बढ़ रहा था। मैथिली की रूह कांप चुकी थी, वो वहां से भगाना चाहती थी मगर चाह कर भी वो वहां से भाग नहीं पा रही थी।
मैथिली ने कभी सोचा नहीं था कि उसी का student इस तरह से उसे किडनैप कर लेगा। मैथिली को ऐसा लग रहा था कि कुमार उसकी और कुछ गलत intention से बढ़ रहा है मगर तभी कुमार ने उसके मुँह से पट्टी हटा दी। मैथिली उसके बाद खांसते हुए ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने लगी,
मैथिली(चिल्लाते हुए) : "मुझे यहां से जाने दो...तुम्हें शर्म आनी चाहिए कुमार...तुमने अपनी teacher के साथ ऐसा किया, मैं अभी भी कह रही हूं, मुझे यहां से जाने दो... मैं तुम्हें माफ़ कर दूंगी... मैं किसी को भी नहीं बताऊंगी कि तुमने मुझे kidnap किया है..."
मैथिली चिल्लाए जा रही थी मगर कुमार कुछ react नहीं कर रहा था। उसके चेहरे पर बस एक सुकून भरी मुस्कान थी, क्योंकि वो मैथिली को यहां लाने में कामयाब हो गया था। काफी देर चिल्लाने के बाद जब मैथिली का गला सूखने लगा, कुमार ने उसके चेहरे को प्यार से देखते हुए कहा,
कुमार(शांति से) : "मुझे अफसोस के साथ ये कहना पड़ेगा कि यहाँ तुम्हारी आवाज़ सुनने वाला कोई नहीं है....कोई भी नहीं, और हाँ तुम्हें क्या लगा था, मैं तुम्हारी ओर कुछ गलत इरादे से बढ़ रहा हूँ...बिल्कुल भी नहीं, मैंने तो तुम्हें बस प्यार के लिए यहाँ रखा है क्योंकि तुमने मेरे सामने कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा..... तुम्हें मुझे ignore नहीं करना चाहिए था और sorry बोल देना चाहिए था….”
इतना कहने के बाद कुमार अजीब सी हँसी हँसने लगा। अब मैथिली को अपने ही student से डर लगने लगा था। वो मैथिली जो कभी क्लास में बच्चों पर चिल्लाती थी, कुमार पर चिल्लाती थी, होमवर्क ना करने के लिए, आज उसी मैथिली को अपने ही favourite student से डर लग रहा था, उसकी हालत खराब थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो करे तो करे क्या? कुमार ने तभी मैथिली को समझाते हुए कहा,
कुमार(प्यार से) : "मैंने कहा ना...तुम यहाँ एकदम safe हो मैथिली....तुम यहाँ उन लोगों से safe हो, जो तुम्हें नहीं समझते और ना ही हम दोनों के बीच के प्यार को समझते हैं, मगर देखना... मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, तुम कुछ दिन मेरे साथ यहाँ बिताओगी, तुम्हें अहसास हो जाएगा कि मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ....”
मैथिली, कुमार के सामने गिड़गिड़ा रही थी कि वो उसे जाने दे मगर कुमार उसकी एक नहीं सुन रहा था। काफ़ी देर हो जाने के बाद अचानक से मैथिली के मन में सवाल आया कि अकेले कुमार ने ये सब कुछ किया कैसे, क्योंकि वो एक 16 साल का लड़का था। मैथिली ने जब ये सवाल कुमार से पूछा, वो हंसते हुए बोला,
कुमार(हंसते हुए) : "तुम्हारा सवाल जायज़ है... मैंने ये सब कैसे किया....मेरा साथ किसने दिया, वो कौन है...(Pause)... इन सारे सवालों का जवाब तुम्हें धीरे धीरे पता चल जाएगा.... अभी के लिए तुम बस इतना जान लो कि मैं अकेला नहीं हूं....”
मैथिली(हैरानी से) : "मैं समझी नहीं... तुम्हारा मतलब?"
"कहा ना.... धीरे धीरे सब समझ आ जाएगा...." कहते हुए कुमार ने मैथिली को अपनी गोद में उठाया और उसे दूसरे कमरे में ले जाने लगा।
मैथिली ये देख कर हैरान थी कि कुमार ने उसे आसानी से उठा लिया था, मैथिली को उसकी ताक़त का अंदाज़ा लग गया था। कुमार मैथिली को दूसरे कमरे में ले आया और उसे कुर्सी पर बिठाने के बाद, एक एक करके उसे कुछ सामान दिखाने लगा। वो सारा सामान मैथिली से जुड़ा था, कुछ चीज़ों को कुमार ने उस दिन आग में जला दिया था, जिस दिन मैथिली ने उसके प्यार को ठुकराया था मगर उसके बाद भी कुमार के पास मैथिली से जुड़ी हुई कई और चीज़ें थीं, जिन्हें उसने इस बंगले में रखा था।
मैथिली एक एक करके उन सामानों को देख अचंभित हो रही थी। कुमार ने तभी एक tissue paper निकाल कर दिखाते हुए मैथिली से कहा कि जब उसने school में अपने होंठ पोंछ कर इस tissue को फेंका था, उसने इसे उठा कर अपने पास रख लिया था। कुमार की इस दीवानगी को देख कर मैथिली को यकीन ही नहीं हो रहा था। वो यही सोच रही थी कि आख़िर कुमार उसके लिए इतना पागल क्यों है, मगर इस सवाल का जवाब सिर्फ़ कुमार ही जानता था। कुमार ने मैथिली को एक chewing gum का wrapper दिखाते हुए कहा,
कुमार(प्यार से) : "याद है मैथिली....तुमने मुझे ये chewing gum दिया था.... आज तक ये wrapper मैंने संभाल कर रखा है...क्योंकि इसमें मुझे तुम्हारा एहसास मिलता है...."
ऐसे ही करते करते कुमार खाली nail polish की शीशी, पुरानी चुनरी और ना जाने क्या क्या मैथिली को दिखा कर बताने लगा कि वो उससे कितना ज़्यादा प्यार करता है। कुमार का ऐसा रूप देख कर मैथिली अंदर से बुरी तरह से डर गई थी, उसे अब कुमार किसी psycho से कम नहीं लग रहा था।
सारा सामान दिखाने के बाद कुमार मैथिली के पास जाकर उसका हाथ पकड़ते हुए बोला,
कुमार(प्यार से) : "मैथिली...एक सच बात बताऊं....जीतेंद्र और उसका परिवार बस अपने फायदे के लिए तुम्हें अपने घर की बहु बनाना चाहते हैं....क्योंकि उनको पता है कि तुमसे अच्छी बहु उन्हें पूरे गांव क्या शहर में भी नहीं मिलेगी....(Pause).... लेकिन मैं... तुम्हें दिल से प्यार करता हूं...तुम ख़ुद सोचो और बताओ...जीतेंद्र के आने से पहले क्या मैंने कभी तुम्हें तंग किया...कभी बदतमीजी की...."
मैथिली ने ना में सिर हिला दिया, क्योंकि कहीं ना कहीं कुमार की बात सही भी थी। मैथिली को पहले एहसास ही नहीं हुआ था कि कुमार उसके बारे में क्या सोचता है, वो उसके लिए कितना पागल है। कुमार इसके बाद मैथिली को अपनी बात बताता ही रहा, सूरज ढल चुका था। धीरे धीरे अंधेरा होने लगा था। मैथिली अंधेरे को देख कर घबरा गई थी। उसने कुमार को कमरे की lights जलाने को कहा, मगर तभी कुमार ने ज़वाब दिया,
कुमार (तपाक से) : "नहीं मैथिली...अगर यहां की lights जल गई तो लोगों को शक हो सकता है...क्योंकि गांव वाले यही मानते हैं कि ये बंगला वीरान है...यहां कोई नहीं रहता....(Pause)... मगर तुम्हें घबराने की ज़रूरत नहीं है....तुम्हारा डर भगाने के लिए मेरे पास उपाय है...."
इतना कहते हुए कुमार ने कमरे का दरवाज़ा बंद किया और एक मोमबत्ती जला दी, जिससे कमरे में हल्की हल्की रोशनी फ़ैल रही थी। कुमार ने तभी सामने वाले झोले से खाने का सामान निकाला, उसने पहले ही सारी तैयारी कर ली थी। कुमार ने मैथिली के सामने कुछ फल रख दिए, मगर मैथिली के हाथ बंधे हुए थे।
उसने जब अपने हाथों को खोलने के लिए कहा, कुमार हंसने लगा और वो अपने ही हाथों से मैथिली को फल खिलाने लगा। मगर मैथिली ने गुस्से से मुंह फेर लिया। दो से तीन बार कोशिश करने के बाद भी जब मैथिली ने फल नहीं खाया, कुमार ने कहा,
कुमार(serious tone में) : "मैथिली हम दोनों जानते हैं कि अगर मैंने तुम्हारे हाथ खोल दिए तो तुम मुझे चकमा देकर यहां से भाग जाओगी... इसलिए बेहतर यही है कि मैं जैसे खिला रहा हूं, चुप चाप खा लो...(Pause)... देखो मुझे गुस्सा मत दिलाओ मैथिली....
मैथिली ने कल रात के बाद से कुछ नहीं खाया था, वो समझ गई कि उसे मजबूरी में कुमार के हाथों से ही खाना होगा। थोड़ी ही देर में मैथिली को एहसास हो गया कि वो कुमार के साथ ज़ोर जबरदस्ती करके वहां से भाग नहीं सकती, इसलिए मैथिली मन ही मन एक plan बनाने लगी। उसने मन ही मन फ़ैसला किया कि वो कुमार से अब प्यार से पेश आएगी, जितना हो सके कुमार का भरोसा जीतने की कोशिश करेगी। उसने बड़े ही अच्छे अंदाज़ में कहना शुरू किया,
मैथिली(sweet tone में) : "कुमार... मैंने तुम्हारी बात मानी ना... और देखो मुझे थोड़ा वक्त दो... ताकि तुम्हारी बात समझ सकूं... इस तरह ज़ोर जबरदस्ती से क्या प्यार होता है बताओ..."
कुमार(तपाक से) : "नहीं बिल्कुल भी नहीं मैथिली.... मैं तो तुम्हें कभी भी तकलीफ़ पहुंचाने के बारे में सोच ही नहीं सकता मैथिली.... रही बात वक्त की...तुम आराम से वक्त लो....(Pause)... मगर हां ज़्यादा वक्त मत लेना....चलो अब तुम आराम करो.... रात हो गई है...."
कुमार ने अगले ही पल मैथिली को उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया, उसके पैर हाथ अभी भी बंधे हुए थे। मैथिली ने इस बार कुछ नहीं कहा, उसने मुस्कुराते हुए अपनी आंखें बंद कर ली।
"घबराना मत...तुम आराम से सो सको इसलिए मैं दूसरे कमरे में जा रहा हूं...किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे एक आवाज़ देना..... मैं हाज़िर हो जाऊंगा....." कहते हुए कुमार बगल वाले कमरे में जाकर सो गया। धीरे धीरे रात गहराने लगी, चारों तरफ़ से झिंगुरों की आवाज़ें आने लगी। मैथिली अपने बिस्तर से इधर से उधर बेचैनी से पलट रही थी। उसने जब महसूस किया कि कुमार गहरी नींद में सो चुका है, वो संभलते हुए बिस्तर से खिड़की के पास गई। चांदनी रात थी, उसे खिड़की से बाहर का दृश्य साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था। उसने चारों तरफ़ देखते हुए मन में कहा,
मैथिली(बेसब्र होकर) : "मुझे यहां से जल्द ही निकलना होगा.... लेकिन उसके लिए मुझे ख़ुद ही कुछ करना होगा..."
इतना कहते हुए गौर से बाहर देखने लगी। सामने उसे नदी में बहता पानी दिखाई दे रहा था। ठीक उसी वक्त मैथिली की नज़र ऐसी चीज़ पर पड़ी, जिसे देखते ही उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसने ख़ुद को उम्मीद देते हुए कहा, "हां अब मैं यहां से भाग सकती हूं...." ऐसा क्या देख लिया था मैथिली ने?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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