मैथिली खिड़की के पास खड़ी थी कि अचानक से उसे सामने नदी के किनारे एक नाव दिखाई पड़ी। उस नाव को देखते ही मैथिली को एक उम्मीद की किरण दिखाई पड़ी। उसने मन ही मन कहा,
मैथिली(excited होकर) : "अब मुझे यहाँ से भागने का रास्ता मिल चुका है। मैं इस नाव से नदी के उस पार जैसे ही जाऊंगी, कोई ना कोई गांव तो मुझे मिल ही जाएगा। मैं वहाँ जाकर इस कुमार के बारे में सबको बता दूंगी।"
मैथिली को इस वक्त ये नहीं पता था कि वो अपने ही गांव के नदी पार वाले बंगले में मौजूद थी क्योंकि वो idea तक नहीं लगा पा रही थी कि कुमार उसे यहाँ पर ला सकता है। कुमार का मानना था कि जैसे मशाल चारों तरफ उजाला करता है मगर उसके खुद के निचले हिस्से में अंधेरा होता है, ठीक उसी तरह इस जगह पर कोई भी मैथिली को ढूंढने नहीं आयेगा।
अगली सुबह हो चुकी थी। कुमार जैसे ही मैथिली वाले कमरे में गया तो उसने देखा मैथिली बिस्तर पर अभी भी गहरी नींद में सोई हुई थी और खिड़की से सूरज की किरण उसके चेहरों को छू रही थी। तभी अचानक से ना जाने कुमार को क्या हुआ, वो मैथिली के चेहरे के सामने आकर खड़ा हो गया। अब धूप कुमार की पीठ से टकराकर रुक जा रही थी। कुमारी के चेहरे पर अचानक से एक मुस्कान आ गई, मानो उसकी जीत हो गई हो। उसने मैथिली के बालों को मैथिली के कान के पीछे करते हुए कहा, "तुम्हें इस तरह छूने का हक किसी को भी नहीं है.... किसी को भी नहीं मेरे अलावा।"
कुमार ये सब कह ही रहा था कि अचानक से मैथिली हड़बड़ाते हुए उठ गई, उसने तभी कुमार को देखा, कुमार ने उसे शांत रहने का इशारा किया। उसने उसे समझाते हुए कहा,
कुमार(प्यार से) : "घबराओ मत मैथिली.... तुम्हें अगर याद हो तो तुम इसी कमरे में रात को सोई थी....मुझे उम्मीद है तुम्हें अच्छी नींद आयी होगी क्योंकि मैं जानता हूँ ये जगह काफी शांत है।"
इतना कहने के बाद कुमार मैथिली को बताने लगा कि एक बार जीतेंद्र और मैथिली की शादी टूट जाए और फिर कुमार को मैथिली अपना ले, उसके बाद भविष्य में कुमार मैथिली को यहीं पर लाकर रखेगा, दुनिया से दूर सबसे बचकर वो दोनों यहाँ पर एक नई दुनिया शुरू करेंगे। कुमार इस वक्त जिस तरह से बातें कर रहा था, वो एक psycho से कम नहीं लग रहा था। वहीं मैथिली इतना तो समझ गई थी कि वो ज़ोर जबरदस्ती करके वहाँ से भाग नहीं सकती थी इसलिए उसने मन ही मन कहा,
मैथिली(ख़ुद से) : "मुझे अब अपनी उसी planning के हिसाब से चलना होगा, जो मैंने रात को सोचा था.... "
मैथिली को इस तरह से सोचता देख कुमार ने जब कारण पूछा तो अचानक से मैथिली emotional हो गई। उसे इस तरह से emotional देखकर कुमार को हैरानी हुई, उसने पूछा,
कुमार(हैरानी से) : "क्या हुआ मैथिली....तुम इस तरह अचानक भावुक क्यों हो गयी ...(Pause)....देखो मैं सब कुछ देख सकता हूँ मगर तुम्हारी आँखों से आंसू नहीं देख सकता...."
मैथिली ने अपनी नम आँखों को पोंछते हुए कहा, "नहीं...नहीं ऐसी कोई बात नहीं है..." वो जानबूझकर कुमार को नहीं बता रही थी मगर कुमार भी कहाँ मानने वाला था? उसने काफी देर तक ज़िद की, जिसके बाद मैथिली ने कहना शुरू किया,
मैथिली(धीरे से) : "देखो, मुझे थोड़ा पछतावा हो रहा है कि मैंने तुम्हें भला बुरा कहा। तुम मुझसे इतना प्यार करते हो मगर मैंने उसकी कद्र ना की। हाँ, मुझे शुरू में डर लग गया था....कुमार अगर मैं सच कहूं तो मैं डर गई थी... तुम्हारा behaviour देख कर..."
कुमार को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो किस तरह से react करे। कुमार ने तभी एक कुटिल मुस्कान के साथ कहा, "मैथिली ये नाटक मैं फ़िल्मों में देख चुका हूँ। मुझे पता है कि तुम यहाँ से आज़ाद होने के लिए मेरे साथ ड्रामा...." कुमार आगे कहता तभी मैथिली ने उसकी बातों को काटते हुए कहा,
मैथिली(तपाक से) : "अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो फिर तुम ऐसा ही समझो, मगर मुझे रात में एहसास हुआ कि तुम सही हो और वैसे भी तुम्हारी इसमें क्या गलती है? प्यार तो इंसान को कभी भी किसी से भी हो जाता है और तो और मैं एक बात समझ गई कि जीतेंद्र मुझसे प्यार नहीं करता..."
कुमार ने जैसे ही ये सुना उसकी आँखें चमक उठी। उसे यकीन नहीं हुआ कि मैथिली जीतेंद्र के बारे में ऐसा कुछ कह रही है? वो इसका कारण जानना चाहता था। उसने जैसे ही पूछा कि मैथिली ऐसा क्यों कह रही है तो मैथिली कुमार को बताने लगी कि अगर जीतेंद्र को उसकी चिंता होती तो अब तक वो उसे ढूंढ लेता। वो जमीन आसमान एक कर देता मगर अब तक ना तो जीतेंद्र वहाँ पर आया है और ना ही मैथिली आजाद हुई थी, इससे यही पता चलता है कि जीतेंद्र उससे उतना प्यार नहीं करता।
कुमार के लिए ये सब किसी सपने से कम नहीं था। उसने अपने आप को चिमटी काटते हुए कहा, "मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुम जो कुछ भी कह रही हो उस पर...."
मैथिली ने उसकी बात पर हामी भरते हुए कहा, "
मैथिली(प्यार से) : "मुझे पता है कि तुम यकीन नहीं कर पाओगे, मगर सच यही है कुमार….मैं तुम्हें ये नहीं कह रही कि तुम अभी इसी वक्त मेरे हाथ पैर खोल कर आजाद कर दो....(pause)....तुम्हें जब मुझ पर भरोसा हो जाए, तुम मेरे हाथ पैर खोल देना, मगर हाँ, मैं तुम्हें बस यही कहूँगी कि मुझे माफ़ कर देना। मैं तुम्हें sorry कहती हूं…..”
कुमार एकदम ही excited हो गया, उसे मैथिली ने sorry कह दिया था, कुमार को खुश होता देख, अगले ही पल मैथिली ने एक गहरी सांस लेते हुए कहा, "देखो तुम अभी मुझे बस 1 घंटे के लिए खोल दो ताकि मैं fresh होकर पूजा कर लूँ क्योंकि तुम्हें भी पता है कुमार मैं बिना नहाये और पूजा किए नहीं रह सकती। जैसे ही मेरी पूजा खत्म होगी, मुझे वापस से बांध देना।" मैथिली की बात सुनते ही कुमार घूरते हुए उसकी ओर बढ़ने लगा। मैथिली को डर लगने लगा कि कहीं उसने जल्दी में कुछ गड़बड़ तो नहीं कर दी है।
वहीं इधर दूसरी तरफ जीतेंद्र जो पूरी रात नहीं सोया था, वो अभी भी मैथिली के कमरे में बैठा सोच रहा था कि आखिर मैथिली गई तो गई कहाँ? वो इस वक्त दीवार पर लगे मैथिली की तस्वीरों को देख रहा था। जीतेंद्र ने अपने जज़्बातों को छुपा लिया था। तभी रीमा कमरे में आते हुए बोली, "जीतेंद्र मुझे लगता है कि तुम्हें आराम कर लेना चाहिए। इस तरह से मैथिली की तस्वीर देखने से कुछ नहीं होगा। इंस्पेक्टर मलिक पर मुझे भरोसा है..."
मगर जीतेंद्र ने दांत पीते हुए कहा,
जीतेंद्र(गुस्से से) : "मुझे ख़ुद पर गुस्सा आ रहा है रीमा…. कि क्यों मैंने मैथिली को इतना कुछ कहा…वो मेरी आंखों के सामने रो रही थी मगर मैं उसे सुनाता रहा…..(pause)....मुझे अब खुद ही कुछ करना होगा। मैं तब से बैठकर यही सोच रहा था कि आखिर में क्या कर सकता हूँ।”
रीमा जीतेंद्र की हालत समझ रही थी। वो जानती थी कि अगर मैथिली को कुछ हो गया तो जीतेंद्र बर्दाश्त नहीं कर पाएगा। वहीं मैथिली के घर को देखकर ऐसा लग रहा था, जैसे वहाँ मातम छाया हुआ हो। कुछ दिन पहले शादी की तैयारी की जितनी रौनक थी, आज सब कुछ सुना-सुना लग रहा था। चारों तरफ जो फूल सजाये हुए थे, ऐसा लग रहा था कि उनकी रंगत भी फीकी हो गई थी। मैथिली की माँ की तबियत बुरी तरह से खराब हो चुकी थी, उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया था।
वहीं मैथिली के पिताजी और चाचाजी परेशान थे कि आखिर मैथिली गयी तो गयी कहाँ? तभी मैथिली के पिताजी ने जीतेंद्र के पास आकर कहा, "जीतेंद्र बेटे, मुझे लगता है कि मैथिली अपनी मर्जी से गई है, इसलिए अब इतना...."
कहते कहते मैथिली के पिताजी रुक गए, जीतेंद्र औरी रीमा ने देखा, उनके होंठ कांप रहे थे। रीमा ने उन्हें सँभाला और फ़िर जीतेंद्र ने कहा,
जीतेंद्र(हैरानी से) : "आप ये क्या कह रहे हैं, आप अपनी ही बेटी पर शक कर रहे हैं, आखिर क्यों?"
इसके जवाब में मैथिली के पिताजी ने कहा कि अगर मैथिली को किसी ने किडनैप किया होता तो अब तक किडनैपर का फ़ोन आ चुका होता और फ़िरौती की रकम किडनैपर ने मांग लिया होता मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ था, जिससे ये पता चलता है कि मैथिली अपनी मर्जी से गई है। मैथिली के पिताजी ये सब कुछ उस नोट को याद करते हुए बोल रहे थे, जो मैथिली ने अपने कमरे में छोड़ा था। उस note में लिखा था, "मेरी तलाश मत करना"
मगर जीतेंद्र ये बात मानने को तैयार ही नहीं था। उसने पैर पटकते हुए कहा,
जीतेंद्र(गुस्से से) : "मैं नहीं मानूंगा...जब तक मैं मैथिली के मुँह से ये नहीं सुन लूँगा कि वो खुद ही घर छोड़कर गई है, मैं चुपचाप नहीं बैठूंगा।"
इतना कहते हुए जीतेंद्र उस घर से निकल गया। वहीं इधर दूसरी तरफ उस बंगले के अंदर, कुमार जो मैथिली को घूरते हुए उसकी ओर बढ़ रहा था, अचानक से वो रुक गया। मैथिली बुरी तरह से परेशान हो चुकी थी। उसने धीमी आवाज़ में कहा, "देखो कुमार अगर तुम्हे मेरी बातों का कुछ बुरा...."
तभी कुमार ने मैथिली के होंठों पर अपनी ऊँगली रख दी और उसके हाथ पैर को रस्सी से आजाद करते हुए कहा,
कुमार(मुस्कुरा कर) : "1 घंटे के लिए नहीं.... बल्कि तुम अब हमेशा के लिए आज़ाद हो क्योंकि मुझे तुम पर भरोसा है, तुम यहां से नहीं जाओगी.... ऊपर से तुमने मुझे sorry भी कह दिया है….”
मैथिली को यकीन ही नहीं हुआ कि कुमार इतनी आसानी से उसकी बात मान जाएगा। दोपहर होते होते मैथिली ने उस बंगले के हर कोने को अच्छे से जान लिया था और वो इतना तो समझ गई थी कि वो कहाँ से उस नाव तक पहुँच सकती है। इसी बीच मैथिली को ये भी पता चल गया था कि उस बंगले के पीछे एक motorboat रखा हुआ था।
मैथिली ने उस motorboat को देखते हुए यह फैसला किया कि अगर वो वहाँ से भागेगी तो उसी से भागेगी ताकि वो इस speed से उस बड़ी सी नदी को पार कर दे क्योंकि मैथिली ने अब तक यह भी अंदाजा लगा दिया था कि वह नदी काफ़ी चौड़ी है, ऊपर से नदी में पानी का बहाव भी तेज था। तभी अचानक से उसके कंधे पर किसी ने हाथ रखा मगर इस बार मैथिली नहीं डरी और ना ही उसने कुछ react किया। उसके पीछे खड़े कुमार ने जब ये देखा तो वो बुरी तरह से चौंक गया। उसने मैथिली को अपनी और किया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा,
कुमार(चौंक कर) : "ये क्या....मुझे लगा था कि तुम घबरा जाओगी, तुम हर बार की तरह मुझसे दूर भागोगी मगर यहाँ तो उल्टा हो गया.."
मैथिली(मुस्कुराते हुए) : "देखो!!...तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास तो नहीं होगा, मगर हाँ, मैं कोशिश कर रही हूँ कि धीरे धीरे हमारा रिश्ता वैसा ही हो जाए, जैसे पहले हुआ करता था……(pause)....याद है तुम्हें.....कई बार जब तुम tiffin नहीं लाते थे तो मैं तुमसे अपना tiffin share करती थी…जिसके कारण तुम्हारे क्लास वाले तुमसे जलते थे कि मैथिली मैडम बस अपना लंच तुमसे share करती है।"
कुमार को जैसे ही मैथिली ने यह सब कुछ याद दिलाया उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ गई मगर एक झटके में वो भावुक भी हो गया। मैथिली को समझ में नहीं आया कि आखिर उसने ऐसा क्या कह दिया था? कुमार ने सामने से बताया,
कुमार(emotional होकर) : "मैथिली मैं तुम्हें बता नहीं सकता कि अगर तुम स्कूल में नहीं होती तो मैं पढ़ भी नहीं पाता और मुझे कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता। तुम्हारे कारण मेरे अंदर ज़िंदगी को अलग नजर से देखने का नजरियाँ आया था मैथिली...."
मैथिली को अंदर ही अंदर यह भी लगने लगा था कि कुमार इतना भी बुरा नहीं है, लेकिन कुमार ने कुछ हरकतें ऐसी कर दी थीं, जिसके कारण अब मैथिली चाह कर भी उस पर भरोसा नहीं कर सकती थी। मैथिली घंटों तक कुमार से बातें करती रही। दोनों ने साथ में lunch किया और फिर शाम को कुमार और मैथिली उस बंगले के आसपास जितनी एकड़ में वो जगह फैली हुई थी, कुमार ने वो सब कुछ मैथिली को दिखाया। मैथिली समझ गई थी कि उस जगह का मालिक कोई नहीं है।
कुछ ही घंटों में रात हो गई। कुमार दूसरे कमरे में सोया हुआ था और मैथिली अपने उसी कमरे में थी, जहाँ पिछली रात वो सोई थी मगर फर्क इतना था कि आज उसके हाथ पैर खुले थे।
रात के जैसे ही 11 बजे, मैथिली उठ गई, उसने देखा उस बंगले में चारों तरफ अंधेरा है मगर चाँद की हल्की हल्की रौशनी खिड़की से बंगले के अंदर आ रही थी। मैथिली उसी रौशनी की मदद से जसे तैसे करके वहाँ से निकलने की कोशिश करने लगी। उसे एक पल के लिए कुमार का चेहरा याद आया, उसने सोचा कि एक बार जब उसकी शादी जीतेंद्र से हो जाएगी, फ़िर वो कुमार को अच्छे से समझाएगी कि इस तरह वो प्यार के जुनून में ग़लत रास्ते पर ना जाए। मैथिली ने दिन में ही सारा रास्ता अपने दिमाग में याद कर लिया था, वो धीरे धीरे करते हुए बंगले के पीछे पहुंच गई।
"ये motorboat कैसे start होता है...." कहते हुए मैथिली अपनी ओर से दम लगाने लगी, उसने काफ़ी कोशिश की ओर फ़िर अचानक से motorboat start हो गया। Motorboat जैसे ही start हुआ, रात के सन्नाटे में, उसकी आवाज़ चारों तरफ़ गूंजने लगी। मैथिली ने motor boat को देखते हुए कहा,
मैथिली(परेशान होकर) : "ये... आगे क्यों नहीं बढ़ रहा...start तो हो गया है... फ़िर क्या दिक्कत हो रही है?"
कहते हुए मैथिली motorboat को आगे बढ़ाने की कोशिश करने लगी, ठीक उसी वक्त वहां पर आवाज़ आई, "मैथिली...मुझसे इतना बड़ा धोखा...." इस आवाज़ को सुनते ही मैथिली कांप उठी। अब क्या करेगा कुमार मैथिली के साथ?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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