"लेकिन अगर ये सौदा नहीं हुआ तो तुम भी जानते हो कि मैं तुम्हें उस 500 करोड़ तक पहुँचाने के लिए बाध्य नहीं रहूँगा। तो तुम सोच लो कि तुम्हें मी चाहिए या फिर वो 500 करोड़ रुपये।"- डिकोस्टा ने भी आगे कहा। 

यह बहुत बड़ी दुविधा थी क्योंकि पैसों का ना मिलना पूरे प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा सकता था। एक पल के लिए मेल्विन सोच में पड़ गया। उसे भी अब कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वो क्या करे? अब क्या वो मी को बचाएगा या फिर 500 करोड़ रुपये लेगा। जानने के लिए सुनते रहिए।

"मैंने तुम्हें कब कहा की मैं यह सौदा नहीं कर रहा। यह सौदा होगा बस शर्त इतनी सी होगी कि मुझे माल जिंदा मिलेगा।"- मेल्विन ने कहा- "कहो, तुम्हें मंजूर है?" 

मेल्विन की आँखों में अब कोई बेबसी नहीं थी, केवल आत्मविश्वास था। डिकोस्टा जानता था कि मेल्विन ब्लफ नहीं कर रहा था।

"ठीक है, मेल्विन," डिकोस्टा ने आख़िरकार कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब सी निराशा और स्वीकृति थी। "यह सौदा मुझे मंज़ूर है।"

मिस्टर वर्मा और नितिन हैरान रह गए। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि मेल्विन ने इतनी आसानी से डिकोस्टा को मना लिया। रघु के चेहरे पर भी राहत के भाव थे। 

मेल्विन ने एक पल के लिए राहत की साँस ली, पर वह जानता था कि यह सिर्फ एक अस्थायी जीत थी। डिकोस्टा को अभी भी उस पर पूरी तरह से भरोसा नहीं था, और यह खेल अभी खत्म नहीं हुआ था। उसने डिकोस्टा की ओर देखा और एक हल्की मुस्कान दी, "तो, डिकोस्टा, अब बताओ। क्या तुम मी को आज़ाद करोगे, या फिर अपनी सल्तनत को खतरे में डालोगे?"

"मी अब आज़ाद है।"- डिकोस्टा ने निराशा के साथ कहा।

"आ,,,आ,,, और वे 500 करोड़?"- रघु ने तुरन्त पूछा। 

"वो भी मिलेगा। बस सौदा पूरा होते ही वो भी आप लोगों को हाथों हाथ मिल जाएंगे।"- मिस्टर डिकोस्टा ने कहा। 

यह सुनकर रघु ने भी राहत की सांस ली। सौदा को पूरा होने में भी ज्यादा वक्त नहीं लगा। मी बच गयी थी। पर सवाल अभी भी वही था, वे 500 करोड़ रुपये मिलेंगे कैसे? 

"आखिर क्यों डिकोस्टा?"- मेल्विन ने धीमी स्वर में पूछा। 

"तुम कहना चाहते हो कि में बच्चों के ऑर्गन्स का सौदा क्यों कर रहा हूँ?"- डिकोस्टा ने पूछा। 

"नहीं। मैं पूछ रहा हूँ कि तुम्हें वह कम्पनी क्यों चाहिए जब तुंम्हारे पास इतनी दौलत पहले से ही है।"- मेल्विन ने कहा। 

"कुछ चीज़ें पैसों के लिए नहीं कि जाती मेल्विन। कुछ चीजों की कीमत इससे भी परे होते है। तुम पूछ रहे हो की मुझे वो मैगज़ीन वाली कम्पनी क्यों चाहिए? सच कहूँ तो मुझे भी नहीं पता कि मुझे वो क्यों चाहिए। क्योंकि मैं तो सिर्फ मोहरा हूँ। असली डोर तो कोई और थामे हुए है। वो कब क्या सोचेंगे, इस बात का मुझे भी कोई आईडिया नहीं।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"अरे अपनी पहेली वाली बातें बुझाना बंद करो। मुझे सिर्फ इतना बताओ कि मुझे इसके बाप के पैसे कब मिलेंगे।"- रघु ने झल्लाते हुए कहा। 

जिसे सुनते ही कुछ पलों के सन्नाटा छा गया। 

"कोई 500 करोड़ नहीं है। है न? क्योंकि उनका पचास सालों तक बचना मुमकिन ही नहीं था। है न?"- मेल्विन ने पूछा। 

"पैसे के रूप में? नहीं। बिल्कुल भी नहीं। हम लोग कभी भी डील पैसों में करते ही नहीं। पैसे तो बस कागज के टुकड़े होते हैं। यह सौदा भी उसी में हुआ है, और अगर तुम्हें वे पैसे चाहिए तो तुम्हें पहले इस सौदे की रकम देनी होगी।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"हाँ, हाँ। पैसे फेंक कर मारो इसके मुँह में। कितने पैसे चाहिए? 5 करोड़? 10 करोड़? मेल्विन बेटा, इसके मुँह में जरा फेंककर मारना तो... अपने पैसे।"- रघु ने कहा। 

"तुमने शायद गलत सुना। हम कभी भी कोई सौदा पैसों में नहीं करते। और अगर तुम्हें यह सौदा पूरा करना ही है तो तुम्हें पेमेंट भी उसी में करनी होगी।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"किसमें? क्या चाहिए तुझे? किस्में करनी है तुझे पेमेंट? बता।"- रघु ने झल्लाते हुए कहा। 

"हीरों में।"- नितिन ने शांत स्वर में कहा। 

"हीरों में?"-रघु ने हैरानी के साथ पूछा। 

"जैसा कि मैंने कहा, हम इस व्यवसाय में 150-200 सालों से हैं। और तुम्हें क्या लगता है हम इतने सालों से सिर्फ मानव अंग बेचते आ रहे हैं?"- डिकोस्टा ने मुस्कुराते हुए कहा। 

"हम हमेशा से हीरे के व्यापारी थे। हमने हीरों को विश्व भर में प्रसिद्ध कराया। उसे मूल्यवान बनाया। अगर हम न होते तो वे कौड़ियों के भाव बिकते। इसलिए हमारी नजर में हीरों की वैल्यू कागज़ के टुकड़ों से ज्यादा है।" -डिकोस्टा ने जोर से हंसते कहा। 

"इसका मतलब इसके पीछे सिंडिकेट का हाथ है। और तुम सिंडिकेट के आदमी हो।" -मेल्विन ने पूछा- "अगर ऐसा है तो तुम मानव अंगों के सौदे में कैसे आए?" 

"क्योंकि इसमें हीरों से भी ज्यादा पैसा है। हीरे की वैल्यू आज नहीं तो कल कम हो जाएगी लेकिन मानव अंग? उसकी जरूरत इस दुनिया को हमेशा रहेगी।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"यानी कि इसके बाप ने सारे पैसे हीरे के रूप में रखे है।"- रघु ने कहा। 

"हाँ। उसी श्याम लाल के हीरे के रूप जिसकी चोरी का इल्जाम इस पर लगा था। वे हीरे इसी के थे।"- डिकोस्टा ने कहा। 

यह सुनकर मेल्विन ने ठंडक की सांस ली। 

 

"मुझे शक था। जब मैं तुंम्हारे आगरा वाली हवेली में मेरे पिताजी के डायरी के अंशों देखा, तभी मुझे सारा खेल समझ आ गया था। इसलिए मैं चुप था।" -मेल्विन ने कहा। 

"बढ़िया। अगर तुम्हें खेल समझ आ गया हो तो तुम यह भी जानते होंगे कि बिना हीरे के यह सौदा अधूरा है और जो तुंम्हारे पैसा हीरे थे वो तो श्याम लाल के पास है तो अब तुम क्या करोगे मेल्विन? क्योंकि अगर तुमने हीरे नहीं दिए तो न मी बचेगी और न ही तुम्हें वे 500 करोड़ रुपये मिलेंगे।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"हीरे? अब इस भरी महफ़िल में हीरे कहाँ से लाऊं। क्या हममे से किसी के पास हीरे नहीं।"- अब रघु झल्ला गया था।  वो हीरों की मांग ऐसे कर रहा था मानो सब अपनी जेब में उसे लेकर घूमते हो। 

"मेरे पास हैं वो हीरे।"- मेल्विन ने कहा। इसके बाद उसने अपने बैग से वही श्याम लाल का हीरों का नेकलेस निकाला। 

"अरे यह तो वही श्यामलाल वाला नेकलेस है। यह तुंम्हारे पास कैसे आया?"- डिकोस्टा ने हैरानी के साथ पूछा। 

"श्याम लाल ने ही दिया था जब जाँच पूरी हो गयी थी तब उसने आर्टिफीसियल नेकलेस मुझे वापिस लौटा दिया बगैर यह समझे कि वह आर्टिफिशल नेकलेस ही वास्तव में असली नेकलेस है।" -मेल्विन ने कहा- "क्योंकि हीरों के मामले में आर्टिफीसियल और असली के बीच फर्क करना इतना आसान नहीं होता। पर मुझे लगता है सिंडिकेट तो जरूर कर लेगी।" -मेलवीन ने कहा। 

"क्या? तूने मुझे चुना लगाया? वे 500 करोड़ रुपये तेरे ही पास थे? तूने धोखा दिया मुझे?"- रघु ने हैरानी के साथ कहा। 

"डील यह थी कि तुम्हें वे पैसे मिलेंगे अगर तुम मेरी मदद करोगे।" -मेल्विन ने कहा।

"तो तुम्हें सौदे की रकम इसी नेकलेस से करोगे?"- डिकोस्टा ने पूछा। 

"नहीं। मेरा यह हीरा सिंडिकेट को फिर से देने का कोई इरादा नहीं है।" -मेल्विन ने कहा। 

"तो? कैसे अदा करोगे सौदे की रकम? कैसे दोगे मुझे 4 करोड़ के हीरे।" -डिकोस्टा ने फिर पूछा। 

"मैं सिंडिकेट को कोई रकम नहीं दूंगा क्योंकि उन्हें उनके पैसे पहले ही मिल चुके है।" -मेल्विन ने कहा। 

"क्या? कैसे और कब?" -डिकोस्टा ने फिर पूछा। 

"तुम भूल रहे हो कि मुझ पर लगे चोरी के इल्ज़ामों के कारण ही उस श्याम लाल के हीरे और दुनिया भर के बांकी के हीरो की मांग बढ़ी थी जिससे हीरों के दाम में उछाल आया था। वे बढ़े हुए कीमत से हुए फायदे को ही मेरी रकम मान लो।" -डिकोस्टा ने कहा। 

"हह। हम इसे रकम नहीं मान सकते।" -डिकोस्टा ने नकारते हुए कहा। 

 

"वैसे सिंडिकेट के बने नियमों के अनुसार ऐसा मुमकिन है। अतीत में बहुतों ने सिंडिकेट को अपने रकम एक इनडायरेक्ट बेनिफिट के जरिये दिया है। ऐसे में मेल्विन का भी ऐसा करना एक इनडाइरेक्ट बेनिफिट ही है। इसलिए सिंडिकेट को उसका यह ऑफर मानना ही होगा।" -नितिन ने बीच में कूदते हुए कहा।  

एक पल के लिए डिकोस्टा सोच में डूब गया लेकिन तभी उसे एक अनजान कॉल आया जिसमें एक बेहद मोटी सी आवाज सुनाई दी। 

"उसकी बात मान जाओ। सौदा पूरा हुआ। बच्ची को उसे दे दो।"- उस आवाज ने कहा। जिसे सुनते ही डिकोस्टा ने एक पल की भी देरी नहीं कि और मेल्विन को मी सौंप दिया। मी अब सुरक्षित हाथों में थी। रघु भी खुश था कि वे 500 करोड़ रुपये पहले ही उनके पास थे।  

मी बेहोश हालत में थी। वह बच गयी थी। लेकिन खेल अभी तक खत्म नहीं हुआ था।  

"चलो  भाई। लड़की मिल गयी, पैसे भी। अब यहाँ से चलते हैं।" -रघु ने खुशी जताते हुए कहा। 

"एक मिनट। सौदा अभी तक पूरा  नहीं हुआ है। मुझे अभी भी कुछ चाहिए।" -मेल्विन ने कहा। 

"अब क्या?" -डिकोस्टा ने कहा। 

"अब इस नवजीवन संस्था का, उनके बच्चों का क्या होगा।"- मेल्विन ने पूछा। 

"होना क्या है, हम जल्द ही नए बच्चों को ढूंढेंगे। उसके ऑर्गन्स को अपने ग्राहकों को बेचेंगे।"- डिकोस्टा ने कहा। इसे सुनकर मेल्विन को जैसे झटका सा लगा। वह जानता था कि सिर्फ मी बचाना काफी नहीं था। वहाँ अभी और भी बच्चे थे जिनकी जिन्दगियां खतरे में थी। उनकी ज़िंदगी का क्या? उन्हें भी बचाना बेहद जरूरी थी। 

"हाँ, हाँ ठीक है। बेच लेना।"- रघु ने बेफिक्री के साथ कहा। वह खुद अपराध की दुनिया से था। उसने खुद न जाने कितने हत्याएं की थी। उसे अब खुद के अलावा किसी की भी ज़िंदगी से कोई मतलब नहीं था। लेकिन मेल्विन को था। उसके अंदर अभी भी इंसानियत बांकी थी। 

"इस धंधे से कितना पैसा बनाने की उम्मीद है?"- मेल्विन ने धीरे से पूछा। उसे पता था कि वह इतना ताकतवर नहीं है कि वह सिंडिकेट के खिलाफ कुछ भी कर सके। 

"यही कोई 250-300 करोड़ रुपये।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"ठीक है, वो पैसे मै तुम्हेँ दे दूंगा। उन बच्चों को छोड़ दो।"- मेल्विन ने बिना देरी कोई हुए कहा। जिसे सुनते ही डिकोस्टा हँस पड़ा। 

"तुम?" -डिकोस्टा ने पूछा- "तुम अगर खरीदोगे तो कीमत ज्यादा लगेगा। तुम्हें मालूम क्यूँ? क्योंकि यह 250-300 करोड़ तो ऑर्गन्स बेचकर मिलने थे हमें। तुम तो उन्हें समूचा खरीदना चाहते हो।" 

"फिर भी कितना चाहिए। 500 करोड़? यह नेकलेस रख लो और उन बच्चों को छोड़ दो।" -मेल्विन ने कहा। 

"क्या? नहीं, नहीं। मैं यह नेकलेस नहीं दूँगा। देख लड़के अगर तू मेरे एक भी पैसे उन्हें दिया तो अपने आदमियों की कसम। यहाँ से बाहर निकलते ही अपनी सारी गोली तेरे भेजे में उतार दूँगा।"- रघु ने गुस्से से कहा। 

"वैसे यह नेकलेस काफी भी नहीं है उन बच्चों को बचाने के लिए।"- डिकोस्टा ने मुस्कुराते हुए कहा। 

"तो फिर क्या चाहिए तुम्हें?" - मेल्विन ने बेसब्री के साथ पूछा 

"अरे अरे। ऐसा नहीं है कि मैं यह सौदा नहीं करना चाहता हूँ। पर तुम इन नेकलेस से सब को नहीं बचा पाओगे।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"तो जितनो को छोड़ सकते हो उतने लोगों को छोड़ दो। बाकी के पैसे अगर चाहिए तो अपना रघु है न। वो तुम्हें दे देगा।"- मेल्विन ने धीरे से डिकोस्टा के कान में कहा। 

डिकोस्टा ने रघु की तरफ देखा। उसे रघु के बैकग्राउंड के बारे में पता था। वो समझता था अगर पैसों की जरूरत पड़ी तो रघु वे पैसे कहीं से भी लाकर दे सकता था। और इस डील के लिए उसे रघु से बात करने की जरूरत ही नहीं थी। और वैसे भी उसके आदमियों को रघु ने ही शूटआउट में मरवाया था इसलिए रघु को सऊदी का हिस्सा बनाना लाज़मी भी था। और ऊपर से यह डील मेल्विन कर रहा था और वो रघु को गिरवी में रख रहा था। अब डिकोस्टा को बांकी के पैसों के लिए बस रघु को निचोड़ना था। 

"ठीक है हम बांकी के पैसे रघु से ले लेंगे।" डिकोस्टा ने कहा- "नवजीवन में मौजूद सारे बच्चे तुंम्हारे हुए।" 

"मैं यह कैसे मान लूँ की तुम सच कह रहे हो?"- मेल्विन ने पूछा। 

"सिंडिकेट की जुबान है। वो कभी अपने जुबान से पीछे नहीं हटती।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"ठीक है।"- मेल्विन ने बात मान ली। और वहाँ से जाने लगा। मेल्विन को वो नेकलेस डिकोस्टा को सौंपते देख रघु का भी गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया। 

"साले मेरे पैसे बच्चे खरीदने में दे दिया। तु बस बाहर मिल। एक बार मुझे मेरे बंदूक मिल जाने दे, अपने आदमियों की कसम, खून की होली खेलूंगा तेरे साथ।"- रघु ने गुस्से से कहा। 

और वो भी अपने आदमियों के साथ वहाँ से बाहर जाने लगा लेकिन मेल्विन के साथ उसे बाहर जाने नहीं दिया गया। 

"रुक जाओ।"- एक मोटे से काले से सिक्युरिटी गार्ड ने कहा। 

यह सुनकर रघु काफी हैरान हुआ। उसने कहा- "अबे ऐसे कैसे रुक जाऊँ। अभी उस लड़के के भेजे में गोली उतारनी है मुझे।" 

"वो बाद में उतारना। पहले हमें सौदे की रकम दे दो।"- उस आदमी ने कहा। 

"कौन सी रकम? कौन सा सौदा? तूने सौदा तो मेल्विन ने साथ किया था न? मेरे को क्यों रोक रहा है?"- उसने झल्लाते हुए कहा। 

"मेल्विन ने तुम्हें तुम्हारे आदमियों के साथ गिरवी रख दिया है। अगर तुम वो बांकी की हमें दे दो तो तुम्हें यहाँ से जाने दे दिया जाएगा।"- डिकोस्टा ने कहा। 

"अगर मैं नहीं माना तो?"- रघु ने पूछा। 

"तुम सब के भी ऑर्गन्स बुरे नहीं है।"- डिकोस्टा ने बस इतना ही कहा। 

"कितने पैसे चाहिए तुम्हें?"- रघु ने पूछा। 

"250 करोड़।"- डिकोस्टा ने कहा। इतना सुनते ही रघु ने अपना माथा पिट लिया। कुछ पैसे कमाने की उम्मीद में वो कहाँ आ गया अब वो सपने ही निर्णय पर सवाल उठाने लगा। वहीं मेल्विन नितिन के साथ वहाँ से बाहर निकल चुका था।

अब सारे उलझे तार सुलझ चुके थे। सारे रहस्य सुलझ चुके थे। लेखों तभी मेल्विन के फोन में एक अनजान नम्बर से कॉल आया। मेल्विन कुछ देर के लिए सोचा जरूर लेकिन फिर उसने कॉल उठाया। 

"कैसे हो मेल्विन।"- दूसरी तरफ से एक बहुत आवाज आई जैसे मानो उसकी आवाज को मॉडिफाई किया गया हो। मेल्विन समझ गया था कि मामला सीरियस है। क्योंकि यह सिंडिकेट के चीफ का कॉल था, वही चीफ जो डिकोस्टा को वहाँ आदेश दे रहा था। 

अब आगे क्या होगा? अब कौन सी नई मुसीबत आएगी मेल्विन पर? जानने के लिए पढिए कहानी का अगला भाग। 

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