मेल्विन ‘मी’ को लेकर जैसे ही उस अंधेरे कमरे से बाहर निकला। उसे एक अनजान नम्बर से कॉल आयी।
"कैसे हो मेल्विन?"- यह सिंडिकेट के चीफ की आवाज थी क्योंकि यह आवाज उसने डिकोस्टा के फोन में भी सुना था।
यह आवाज काफी भारी भरकम थी। उसने कहा।
"अब क्या चाहते हो?" - मेल्विन ने पूछा।
"एक बार तुम्हें याद है जब तुम मुंबई की ट्रेन से अपने ऑफिस जा रहे थे। तब तुम्हें वहाँ एक लड़की मिली थी जिससे तुम्हारी अच्छी दोस्ती हो गयी थी लेकिन अफसोस वह अचानक से ट्रेन से गिर कर मर गयी? तुम्हें याद है?" -उसने पूछा।
यह सुनते ही मेल्विन को उस लड़की की याद आ गयी जिसकी मौत ने मेल्विन को काफी परेशान किया था। उसका ट्रैन से गिरना मेल्विन के लिए किसी डरावने सपने से कम नहीं था। वो बेचारी अपने पिता से बस मिलने ही वाली थी।
"हाँ याद है। पर यह सब तुम्हें कैसे पता?" - मेल्विन ने पूछा।
"ऐसे ही कितने ही एक्सीडेंट आये दिन होते रहते हैं तुम्हें पता भी नहीं होगा। कभी ट्रेन से, तो कभी किसी सड़क पर तो कभी पानी पर। तुम्हें क्या लगता है वे दुर्घटनाएं अपने आप होते हैं? भगवान की मर्जी से होते हैं? हा हा।।। नहीं, मेल्विन। उसमें से आधे से ज्यादा हमारी मर्जी से होते हैं। तुम्हें क्या लगता है कि तुम बच्चों को बचाकर तुम हीरो बन गए? हमारा धंधा ठप्प कर गए? नहीं, मेल्विन। हमें जब भी ह्यूमन ऑर्गन की जरूरत पड़ेगी हम उसे ले सकते हैं, जिसकी भी जरूरत पड़ेगी हम वह ले सकते हैं। और तुम कुछ भी नहीं कर पाओगे।"- उसने कहा।
मेल्विन एकदम से गुस्सा हो गया था लेकिन इससे पहले वो कुछ भी कहता वो फोन कट गया। मेल्विन जानता था कि उसे दोबारा कॉल करने से कोई फायदा नहीं इसलिए उसने आगे बढ़ने का फैसला किया।
"नितिन! मेरा एक काम कर दोगे?"- मेल्विन ने सामने खड़े नितिन से कहा।
"तुम उस NGO पर नजर रखवाना चाहते हो न?"- नितिन ने कहा।
"हाँ, मैं सारे बच्चों को अपने साथ नहीं ले जा सकता इसलिए मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। और मुझे मालूम है कि इन सब में मैं तुम पर भरोसा कर सकता हूँ क्योंकि तुम भी उनसे उतना ही नफरत करने चाहते हो जितना की मैं। तुमने भी यह सब बच्चों को बचाने के लिए ही किया था यह सब मैं समझता हुँ।" -मेल्विन ने कहा।
"तुम चिंता मत करो। उन बच्चों को कुछ नहीं होगा। अब मैं खुद उस NGO में जाकर उनकी देखभाली करूँगा।" -नितिन ने कहा।
"तुम्हारा शुक्रिया।" इतना कहकर मेल्विन वहाँ से आगे बढ़ गया।
मेल्विन ने ‘मी’ को डिकोस्टा के चंगुल से सुरक्षित निकाल लिया था, एक ऐसे अँधेरे से जहाँ से शायद ही कोई वापस आ पाता है। अब ‘मी’, डिकोस्टा के वेयरहाउस की भयावह दुर्गंध और अमानवीय माहौल से कोसों दूर, मेल्विन के घर के एक शांत, धूपदार कमरे में लेटी हुई थी। यहाँ की हवा में ताज़ी फूलों की खुशबू और घर जैसी शांति थी, जो उसकी घबराहट को धीरे-धीरे शांत कर रही थी। मेल्विन उसके बिस्तर के पास एक कुर्सी पर बैठा था, उसके चेहरे पर हल्की सी राहत थी, लेकिन उसकी आँखों में अभी भी एक गहरी चिंता की हल्की सी झलक थी जो पूरी तरह से मिट नहीं पाई थी। वह जानता था कि खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं था, लेकिन कम से कम ‘मी’ अब सुरक्षित थी।
धीरे-धीरे, ‘मी’ की पलकें फड़फड़ाने लगीं और उसकी आँखें खुलीं। पहले सब धुंधला था, फिर धीरे-धीरे कमरे की चीज़ों पर फोकस करने लगीं। उसने चारों ओर देखा – शांत दीवारें, एक खिड़की जहाँ से हल्की धूप आ रही थी, और फिर उसकी नज़र आखिरकार मेल्विन पर टिकी। उसकी आँखों में पहले भ्रम था, जैसे वह इस नई जगह को समझने की कोशिश कर रही हो, फिर पहचान की एक हल्की सी चमक आई।
"मेल्विन अंकल?" उसकी आवाज़ एक फुसफुसाहट से ज़्यादा नहीं थी, बेहद कमज़ोर और हल्की, जैसे बरसों बाद कोई शब्द उसके गले से निकला हो। यह आवाज़ इतनी नाजुक थी कि मेल्विन को सुनने के लिए और झुकना पड़ा।
मेल्विन ने तुरंत उसके पास झुककर उसके ठंडे हाथ को हल्के से थपथपाया। "हाँ, ‘मी’। तुम ठीक हो। मैं ही हूँ।"
उसकी आवाज़ में वो सुकून था जो ‘मी’ को इतने दिनों की भयानक यातना के बाद पहली बार महसूस हुआ था। उसकी आवाज़ में आश्वासन था, एक ऐसा आश्वासन जिस पर ‘मी’ आँखें बंद करके भरोसा कर सकती थी।
‘मी’ ने उठने की कोशिश की, पर उसके शरीर में ज़रा भी ताक़त नहीं बची थी। ऐसा लग रहा था मानो उसके अंग बस उसका साथ छोड़ चुके हों, हर मांसपेशी में दर्द था। "मैं... मैं कहाँ हूँ? मुझे कुछ याद नहीं आ रहा? मुझे क्या हुआ था?" उसकी आँखें अभी भी पूरी तरह से फोकस नहीं कर पा रही थीं, और उसकी आवाज़ में एक अजीब सी घबराहट थी, जैसे वह किसी बुरे सपने से जाग रही हो।
मेल्विन ने उसे धीरे से वापस बिस्तर पर लिटा दिया। "तुम मेरे घर पर हो ‘मी’। तुम सुरक्षित हो। तुम्हें आराम की ज़रूरत है।"
उसने एक गहरी साँस ली, जैसे कोई भारी बोझ उसके कंधे पर से उतरा हो, फिर भी उसे पता था कि अभी भी बहुत कुछ बताना बाकी है, वो सच जो डिकोस्टा के सामने एक चालाक कहानी बन गया था।
"तुम्हें शायद याद नहीं होगा, लेकिन जब मैं तुम्हें वहाँ से लाया था, तो तुम बहुत कमज़ोर थी। तुमने 'कॉम्पिटिशन' में परफॉर्म कर रही थी और शायद सदमे से बेहोश हो गई। तुम्हारी हालत ठीक नहीं थी, और इसलिए मैं तुम्हें पहले सीधे अस्पताल ले गया था।"
‘मी’ ने अपनी आँखें बंद कर लीं, शायद उन धुंधली यादों को जोड़ने की कोशिश कर रही थी, जो उसके दिमाग में आ-जा रही थीं। "कॉम्पिटिशन?" उसने फुसफुसाया, जैसे उस शब्द का कोई मतलब नहीं समझ पा रही हो, या उसे उस भयानक जगह से जोड़ पा रही हो।
मेल्विन ने धीरे से अपना सिर हिलाया। "हाँ, वही। डॉक्टरों ने तुम्हें ठीक कर दिया, और अब तुम यहाँ मेरे घर में आराम कर रही हो। अब तुम्हें किसी चीज़ की चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।" उसकी आवाज़ में गहरा आश्वासन था, लेकिन ‘मी’ की आँखों में अभी भी सवालों की गहराई थी। वह जानती थी कि मेल्विन कुछ छुपा रहा है, या शायद वह उसे कुछ ऐसी बात बताने की कोशिश कर रहा था जिसे समझना उसके लिए मुश्किल हो रहा था। उसके दिमाग में अभी भी डिकोस्टा का चेहरा, वेयरहाउस की बदबू और उस भयानक "कॉम्पिटिशन" का अजीब सा ख्याल घूम रहा था।
"मैं कब से यहाँ हूँ?" ‘मी’ ने धीरे से पूछा, उसकी आवाज़ में थोड़ी सी ताक़त लौटी थी।
"कुछ दिनों से," मेल्विन ने जवाब दिया। "तुम्हें पूरी तरह ठीक होने में थोड़ा और समय लगेगा। पर अब तुम्हें चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। मैं तुम्हें लेकर मुंबई जा रहा हूँ।"
‘मी’ की आँखें थोड़ी चौड़ी हुईं। "मुंबई? वहीं जहाँ हीरो लोग रहते हैं?" उसके चेहरे पर एक उत्सुकता थी।
"हाँ, मेरा घर वहीं है," मेल्विन ने मुस्कुराते हुए कहा। "तुम्हें वहाँ ज़्यादा आराम मिलेगा, और हम वहाँ ज़्यादा सुरक्षित भी रहेंगे। मैंने तुम्हारे लिए टिकट का इंतज़ाम कर लिया है। हम जल्द ही चलेंगे, जैसे ही तुम थोड़ी बेहतर महसूस करो।" मेल्विन को पता था कि मुंबई में डिकोस्टा के लिए उन्हें ढूँढ़ना और भी मुश्किल होगा।
दो दिन बाद, ‘मी’ इतनी ठीक हो चुकी थी कि यात्रा कर सके। वह मेल्विन के साथ हवाई अड्डे पर थी। ‘मी’ के लिए यह एक बिल्कुल नया अनुभव था। उसने पहले कभी हवाई जहाज नहीं देखा था, बैठना तो दूर की बात थी। जब वे रनवे पर भागते हुए विमान के अंदर बैठे, तो ‘मी’ की आँखें उत्साह से चमक उठीं। खिड़की से बाहर देखते हुए, उसने बादलों को अपने नीचे देखा, जो रुई के विशाल गोलों जैसे लग रहे थे। नीचे की दुनिया धीरे-धीरे छोटी होती जा रही थी, और ऊपर आसमान में ऐसा लग रहा था मानो वह किसी जादूई यात्रा पर निकल पड़ी हो। उसके चेहरे पर एक ऐसी खुशी थी जो मेल्विन ने इतने समय बाद देखी थी।
"यह.... यह कमाल है!" ‘मी’ ने कहा, उसकी आवाज़ में बच्चों जैसा उत्साह था, जो उसके पुराने दर्द को कुछ देर के लिए भुला रहा था।
मेल्विन ने मुस्कुराते हुए उसका हाथ थामा। "अभी तो बस शुरुआत है, ‘मी’। मुंबई तुम्हें पसंद आएगा।"
मुंबई पहुँचकर, मेल्विन ‘मी’ को सीधे अपने घर ले गया। यह एक शांत इलाका था, जहाँ हरे- भरे पेड़ और सुंदर बंगले थे। गेट से अंदर घुसते ही, ‘मी’ की नज़र घर के चारों ओर फैले खूबसूरत बगीचों पर पड़ी। वहाँ रंग-बिरंगे फूल खिले हुए थे – लाल गुलाब, पीले गेंदे, और नीले डेलफिनियम, सभी अपनी पूरी भव्यता में। उनकी ‘मी’ठी खुशबू हवा में घुली हुई थी, एक सुखद एहसास दिला रही थी। ‘मी’ को फूल बहुत पसंद थे, और यह दृश्य देखकर उसके चेहरे पर एक सच्ची, दिल से निकली हुई मुस्कान आ गई। यह मुस्कान उसके पिछले दर्द को छुपा रही थी, और एक नई उम्मीद जगा रही थी।
"यह कितना सुंदर है!" ‘मी’ ने कहा, उसकी आँखें खुशी से चमक रही थीं, जैसे उसे कोई अनमोल खजाना मिल गया हो।
अंदर कदम रखते ही, एक गर्मजोशी भरी आवाज़ ने उन्हें पुकारा, "मेल्विन, बेटा! आ गया मेरा शेर!" मेल्विन की माँ, एक स्नेही महिला, बाहर आईं और अपने बेटे को प्यार से गले लगा लिया। उनके चेहरे पर इतनी खुशी थी कि पूरे घर में एक सकारात्मक ऊर्जा फैल गई।
"माँ, यह ‘मी’ है," मेल्विन ने अपनी माँ को ‘मी’ से मिलवाया।
मेल्विन की माँ ने ‘मी’ की ओर देखा, उन्हें ‘मी’ के बारे में मेल्विन ने पहले ही सूचित कर दिया था। इसलिए वह उससे पहले ही फैमिलयर हो गयी थी। ‘मी’ को देखते ही उनके चेहरे पर चिंता के साथ-साथ गहरी ममता भी थी। उन्होंने ‘मी’ के सिर पर हाथ फेरा। "अरे, तुम इतनी दुबली हो गई हो! अंदर आओ, बेटा, आराम करो।"
उन्होंने ‘मी’ को प्यार से गले लगाया, और ‘मी’को पहली बार ऐसा लगा जैसे वह किसी सुरक्षित और प्यारे आलिंगन में है, अपने परिवार से मिली हो।
‘मी’ को ऐसा लगा जैसे उसे एक नए जीवन का अवसर मिल गया है, एक ऐसी जगह जहाँ वह सुरक्षित महसूस कर सकती है, जहाँ उसे कोई खतरा नहीं था, और शायद फिर से खुश रह सकती है। मेल्विन ने उसे अपने घर में, अपनी माँ के साथ, एक नई शुरुआत दी थी। यह सिर्फ एक जगह नहीं थी, यह एक नया मौका था, एक ऐसी उम्मीद जो उसे लगा था कि उसने खो दी है।
मेल्विन के मुंबई वाले घर में ‘मी’ के आने और उसके ऑफिस लौटने के बाद, ज़िंदगी धीरे-धीरे सामान्य हो रही थी। ‘मी’ अपनी चोटों से उबर रही थी और धीरे-धीरे अपनी खोई हुई ताक़त और थोड़ी सी मुस्कान वापस पा रही थी। मेल्विन के लिए यह किसी जीत से कम नहीं था। अब जब ‘मी’ सुरक्षित थी और ठीक होने की राह पर थी, मेल्विन को अपनी सामान्य ज़िंदगी में लौटने की ज़रूरत थी। वह जानता था कि खतरा अभी पूरी तरह टला नहीं था, लेकिन कम से कम ‘मी’ अब सुरक्षित थी और यह उसके लिए सबसे महत्वपूर्ण था।
एक हफ़्ते बाद, मेल्विन ने अपने ऑफिस में वापसी का फैसला किया। यह एक जानी-मानी पब्लिशिंग कंपनी थी, जो शहर के सबसे प्रतिष्ठित मैगज़ीन हाउसों में से एक थी। सुबह की मुंबई की हलचल भरी सड़कों से गुज़रते हुए, मेल्विन को एक अजीब सी संतुष्टि महसूस हुई। इतने दिनों बाद वह फिर से अपनी दुनिया में लौट रहा था, एक ऐसी दुनिया जो डिकोस्टा के काले साये से बहुत दूर थी। जैसे ही उसने ऑफिस का दरवाज़ा खोला, उसके साथी कर्मचारियों ने उसे देखा और खुशी से चिल्ला उठे। "मेल्विन! तुम वापस आ गए!"
सारा, उसकी सबसे पुरानी सहकर्मी, दौड़कर उसके पास आई और उसे गले लगा लिया। "हम तुम्हें बहुत याद कर रहे थे! सब ठीक है न?"
मेल्विन ने मुस्कुराते हुए कहा, "हाँ, सारा, सब ठीक है। बस एक ज़रूरी काम से बाहर गया था।"
उसने डिकोस्टा और ‘मी’ के बारे में कुछ भी बताने से परहेज किया। मेल्विन अपने ड्रॉइंग टेबल की ओर बढ़ा। उसकी मेज पर उसके पुराने स्केच पड़े थे, अधूरे आर्टिकल्स और मैगज़ीन लेआउट्स की फाइलें और उसके पसंदीदा चारकोल पेंसिल का डब्बा। उसने अपनी कुर्सी खींची और बैठ गया। एक पल के लिए उसने अपनी आँखें बंद कीं, अपने आसपास के परिचित माहौल को महसूस किया – कागज़ की महक, कंप्यूटरों की धीमी आवाज़, और सहकर्मियों की बातचीत की हल्की फुसफुसाहट।
उसने अपनी सबसे पसंदीदा पेंसिल उठाई और एक नए मैगज़ीन कवर के लिए स्केचिंग शुरू की। उसकी उंगलियाँ कागज़ पर नाचने लगीं, और कुछ ही पलों में, एक खूबसूरत डिज़ाइन आकार लेने लगा। रेखाएँ साफ और सटीक थीं, हर स्ट्रोक में आत्मविश्वास झलक रहा था। यह वो जगह थी जहाँ वह सबसे ज़्यादा सुकून महसूस करता था – अपने विचारों को कागज़ पर उतारते हुए, रचनात्मकता में लीन होकर। जैसे-जैसे उसने स्केच करना जारी रखा, उसके दिमाग से डिकोस्टा का तनाव और ‘मी’ की चिंता कुछ देर के लिए दूर हो गई। यहाँ, इस ड्रॉइंग टेबल पर, सब कुछ एकदम सही था। वह अपने काम में पूरी तरह खो गया, दुनिया की सारी परेशानियों को भूलकर अपनी कला में लीन हो गया। उसके सहकर्मी भी उसे काम करते हुए देखकर खुश थे, यह जानते हुए कि मेल्विन अब पूरी तरह से वापस आ गया था, और सब कुछ फिर से पटरी पर आ गया था।
सब कुछ परफेक्ट था या फिर ये आने वाली तूफान से पहले का सन्नाटा था? क्या डिकोस्टा उसे यहाँ भी ढूंढते हुए आ जाएगा या आने वाली चुनौती कौन सी होगी? जानने के लिए बने पढिए इस कहानी का अगला भाग।
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