घर का सबसे छोटा बच्चा जिंदगी भर छोटा ही माना जाता है. हर बात में जुमले छोड़ती उसकी ज़ुबान जब एक दम से चुप हो जाए तो समझिये मामला बेहद गंभीर है. आप जिंदगी की हर मुसीबत झेल सकते हैं मगर घर के बच्चे की ऐसी ख़ामोशी आपसे नहीं झेली जायेगी.
माया की चुप्पी को देख अनीता भी चुपचाप कमरे से बाहर चली आई है. उसने बाहर आकर कबीर के बारे में सोचा. उसे याद आया कि कबीर आज पूरा दिन उसके कमरे में नहीं आया और ये तो उसके सोने का टाइम भी नहीं है. उसका मन ये सोच कर डरने लगा है कि कहीं उसकी तबियत तो नहीं खराब हो गई. वो फिर से कमरे में जाती है लेकिन इस बार वो दबे पाँव आई है. माया ने उसकी तरफ देखा तो उसने माथे पर हाथ रख कर इशारे से पूछा कि क्या उसे फीवर है? माया ने ना में सिर हिलाया. फिर अनिता ने हाथ के इशारे से पूछा क्या हुआ है. इस पर माया ने बच्चों की तरह मुंह लटका कर बता दिया कि वो सैड है. अनिता ने फिर इशारे से पूछा क्यों?
इस पर कबीर बोल पड़ा
कबीर: “दादी आप बोल सकती हो, मैं जाग रहा हूँ.”
इतना सुनते ही अनीता झट से उसके पास पहुंच गयी और उसका माथा, हाथ पैर सब छू कर देखने लगी.
अनीता: “क्या हुआ मेरे बच्चे को?”
बच्चे भी समझते हैं कि उन्हें कौन सी बात कहाँ कहनी चाहिए और कौन सी नहीं. उसने अनीता का सवाल बस ‘कुछ नहीं’ कह कर टाल दिया. अनीता ने उसे गोद में उठाया और बाहर ले गयी. कबीर कहता रहा कि उसे नहीं जाना दादी फिर भी उसे ले गयी. माया इस समय किसी और के बारे में सोच भी नहीं पा रही थी. उसके दिमाग में बस कबीर की बातें घूम रही थी.
हॉल में विक्रम और दादा जी बैठे थे. अनीता ने कबीर को कुर्सी पर बिठाते हुए दोंनों से कहा “घर में दो दो दादा जी हैं फिर भी हमारा कबीर सैड है, आप लोग इसके साथ क्यों नहीं खेलते? विक्रम और दादा जी ने भी ये पढ़ लिया कि आज कबीर ठीक नहीं लग रहा. उन्हें भी अभी अहसास हुआ कि आज वो सारा दिन उदास रहा है. विक्रम ने कबीर से कितनी बार पूछा कि क्या उसे कुछ चाहिए मगर उसने हर बार मना ही किया. वो किसी को नहीं बता रहा था कि उसे क्या हुआ है. अनीता जी उसे घुमाने बाहर ले गयीं.
उनके जाने के बाद विक्रम ने माया को आवाज़ लगाई और उससे पूछा कि कबीर क्यों उदास है. जब माया ने उन्हें असली वजह बताई तो दोनों के सिर शर्म से वैसे ही झुक गए जैसे कबीर की बात सुन माया ने अपना सिर झुका लिया था. उनके पास भी इस बात का कोई जवाब नहीं था कि आखिर सब लोग एक दूसरे पर क्यों गुस्सा दिखा रहे हैं. दादा जी ने चिंता जताते हुए कहा कि बिजनेस को लेकर बहस करते करते हमने ये भी नहीं सोचा कि हमारे बच्चे पर इसका क्या असर पड़ेगा.
निशा और आरव भी घर लौट आये थे. सबको ये बात पता चल चुकी थी कि आज कबीर उदास है और उसकी उदासी की वजह पूरा परिवार है. सबको धीरे धीरे अपनी गलती का अहसास होने लगा. इसके बाद दादा जी ने एक प्लान बनाया कि पहले तो सभी कबीर को एक साथ कान पकड़ कर सॉरी बोलेंगे, उसके बाद सभी लोग बारी बारी से एक दूसरे को सॉरी बोल कर हाथ मिलायेंगे और फिर उससे ये वादा करेंगे कि आगे से घर में कोई लड़ाई नहीं करेगा और सब ये ध्यान रखेंगे कि सच में आगे से कबीर के सामने कोई किसी पर नहीं चिल्लाएगा. सबने उनकी बात पर हामी भरी. जब अनीता जी कबीर को लेकर लौटीं तो उन्हें भी पूरा प्लान समझा दिया गया.
कबीर के लिए तो घर का हर मेंबर जान तक देने को तैयार था फिर ये तो बहुत छोटी सी बात थी. कबीर के लिए दादा जी वाली महाराजा कुर्सी लायी गयी और उसे उस पर बैठाया गया. सब उसके आगे लाइन से खड़े हो गए और सबने अपने कान पकड़ के उसे सॉरी बोला. कबीर अभी भी एकदम शांत था. इसके बाद सब एक दूसरे को गले लगा कर सॉरी बोलने लगे. अनीता ने माया और निशा को गले लगा कर सॉरी बोला. दादा जी ने बॉस दादी को सॉरी बोला. विक्रम जी ने भी अनीता को और आरव ने माया को सॉरी बोला. इसके बाद सब एक बार फिर से कबीर के सामने खड़े हो गए.
इस पर कबीर बोला
कबीर: “क्या पापा और दादू हग्गी नहीं करेंगे?”
कबीर की बात सुन सब लोग उन दोनों को घूरने लगे. जिसके बाद आरव ने झट से पापा को गले लगाते हुए उनसे कहा आई एम सॉरी पापा. ये देख कबीर कुर्सी से उछल कर उतरा और ख़ुशी से तालियाँ बजाने लगा. उसने महाराजा की तरह ये भी फरमान सुनाया कि कल दादू भगत जी और दादी उनकी मेड सरला को सॉरी बोलेंगी और इसके बाद सबने उससे वादा किया कि आज के बाद कोई भी किसी से नहीं लड़ेगा. इस वादे के बाद कबीर की गुम हुई ख़ुशी वापस लौट आई. उसने निशा की उंगली पकड़ी और कहा
कबीर: “चलो अब मुझे आइसक्रीम दिला कर लाओ.”
निशा को बहुत काम था क्योंकि उसकी आर्ट गैलरी की ओपनिंग में बस एक ही दिन बचा था लेकिन इस वक्त कबीर के हुकुम मानने से बड़ा कोई काम नहीं था. निशा ने कहा
निशा: “जो हुकुम मेरे आका, चलिए.”
अब घर में हर कोई कबीर से किया वादा निभाने की कोशिश कर रहा था. अगर कोई किसी पर थोड़ा ज़ोर से बोल देता तो कबीर उनको घूर के शांत करा देता.
निशा की आर्ट गैलरी की ओपनिंग का दिन भी आ गया. आज पूरा शर्मा परिवार यहाँ मौजूद था. शहर के बड़े बड़े लोगों को इनवाईट किया गया था. इस मौके पर राहुल भी अपनी फैमिली के साथ आया था. निशा ने राहुल और उसकी फैमिली को अपने परिवार से मिलवाया. अनीता जी को ये बात पसंद नहीं आई लेकिन इसके बावजूद वो राहुल और उसके परिवार से मुस्कुरा कर मिलीं. आरव और राहुल काफी देर तक एक दूसरे से बात करते रहे. निशा ये देख कर खुश थी कि दोनों की फैमिली एक दूसरे से मिल कर खुश है.
हालांकि उसे इस बात का गहरा झटका लगा कि आर्ट एग्ज़िबिशन कुछ ख़ास कमाल नहीं दिखा पाया. शहर के उन्हीं चुनिंदा लोगों ने उसकी आर्ट को पसंद किया जो सच्चे आर्ट लवर थे और जिन्हें वर्ल्ड पेंटिंग की समझ थी. बहुत लोग तो ऐसे थे जो इस तरह के आर्ट को समझ ही नहीं पाए. इस मिक्स्ड रिएक्शन ने निशा को ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या विदेश की जॉब छोड़ कर अपने पैशन को फ़ॉलो करने का उसका फैसला सही था? हालांकि उसने ये किसी को महसूस नहीं होने दिया कि वो अपने फैसले से निराश है. वैसे भी उसे अभी अपने और राहुल के रिश्ते पर ज्यादा ध्यान देना था.
घर में सबकुछ पहले जैसा ही था, बस एक चीज़ जो बदली थी वो ये कि अब कोई भी कबीर के सामने कुछ भी डिस्कस नहीं करता था. कोई कितना भी बिज़ी हो, सुबह का नाश्ता और रात का डिनर सब साथ ही करते थे. इससे परिवार में ये बदलाव आया था कि अब बिना मतलब के झगडे नहीं हो रहे थे. आरव ने बिजनेस में काफी चेंजस कर दिए थे. अब वो अपने हिसाब से बिजनेस को चलाने लगा था, जिसके लिए वो दिन रात मेहनत कर रहा था. उसे भी अहसास था कि इससे उसके और माया के रिश्तों में काफी फर्क पड़ रहा है लेकिन वो फ़िलहाल बिजनेस के सिवा कुछ और नहीं सोच सकता था.
शर्मा परिवार में आगे के कुछ दिन बहुत अच्छे से बीते, अंदर जो भी चल रहा हो लेकिन बाहर से सब उतने ही खुश लगते थे जितने कि पहले सच में हुआ करते थे. कुल मिलाकर शर्मा परिवार में अच्छी खासी शांति छाई हुई थी मगर परिवारों में इतनी शांति भला किसे बर्दाश्त होती है? जितनी देर शांति रहती है आगे समस्या उतनी ही बड़ी आती है.
आज एक ऐसा ही बड़ा कलेश शर्मा परिवार के दरवाजे पर दस्तक देने वाला है.
घर पर दादा-दादी विक्रम अनीता और मेड सरला को छोड़ कर बाकी सब अपने अपने काम से बाहर गए हुए हैं. किसी ने अभी अभी दरवाजे पर दस्तक दी है.
सरला ने दरवाजा खोला तो सामने करीब 60 साल का एक शख्स खड़ा था. चेहरे पर बढ़ी हुई दाढ़ी, सफ़ेद बाल, एवरेज सा कद लाल लाल ऑंखें जैसे या तो नशा किया हो या फिर घंटों रो कर आया हो. पहचान पूछने पर उसने बताया कि
राजेश: अंदर जा कर रघुपति जी से कहो राजेश आया है.
सरला ने दादा जी को जा कर यही नाम बताया. जिसे सुनते ही उन्हें ऐसा झटका लगा मानों उन्होंने सीधे ट्रांसफोर्मर में हाथ डाल दिया हो. कुछ देर वो कुछ बोल ही नहीं पाए. सरला के बार बार पुकारने पर उन्होंने पूछा क्या पक्का यही नाम बताया उसने? सरला ने हां में जवाब दिया. दादा जी अपनी छड़ी के सहारे उठे और खिड़की से बाहर मेन गेट पर देखने लगे. उस शख्स को सामने देखते मानों डर से कांप गए दादा जी. एक बार के लिए दादा जी ने सोचा कि इस शख्स को मेन गेट से ही भगा दिया जाए लेकिन उन्हें पता था कि वो हंगामा करेगा जिससे बात सब जगह फ़ैल जायेगी. उन्हें सालों से इसी दिन का डर था.
उन्होंने सरला से कहा कि वो उसे गेस्ट रूम में बिठाए और खुद छुट्टी लेकर घर चली जाए. सरला ने बताया कि उसका सारा काम अभी पड़ा हुआ है. अनीता जी उसे सुनाएंगी मगर दादा जी ने उसे फिर भी घर जाने को कहा. सरला ने भी ऐसा ही किया और राजेश नाम के इस बन्दे को गेस्ट रूम में बिठा कर खुद घर चली गयी. दादा जी को सबसे बड़ी चिंता विक्रम की थी. वो सोच रहे थे कि राजेश अगर विक्रम के सामने आया तो गजब हो जायेगा.
निशा ने अपनी आर्ट गैलरी के ओपनिंग का रिएक्शन राहुल के साथ शेयर कर दिया था, और उससे पूछा भी कि क्या उसने अपने पैशन को चुन कर गलत किया? जिस पर राहुल ने उसे समझाया कि उसका आर्ट विदेश का है, यहाँ के लोगों को जल्दी समझ नहीं आएगा. यही तो चैलेंजेज़ है, जो चीज़ नयी है उसके बारे में लोगों को समझाना. राहुल ने उसे इग्ज़ैम्पल दिया कि विदेशों में भी तो जब किसी ने पहली बार ऐसे आर्ट को देखा होगा, तो समझ समझ नहीं पाया होगा. अगर तुम्हारी तरह सोच कर वो आर्टिस्ट ऐसे आर्ट बनाना बंद कर देता तो क्या आज इस आर्ट को पहचान मिल पाती? निशा को राहुल की इन बातों ने काफी मोटिवेट किया.
20 मिनट के इंतज़ार के बाद दादा जी भी गेस्ट रूम में पहुंच गए थे. राजेश स्टडी शेल्फ से एक किताब उठा कर उसे उलट पुलट कर देख रहा था. क़दमों की आहट सुनते ही वो समझ गया कि रघुपति शर्मा आ रहे हैं. वो पल्टा, सामने दादा जी थे दोनों की नजरें मिलीं. दादा जी की आँखों में गुस्सा था. राजेश की आँखों में दिखावे की शर्मिंदगी. दादा जी लगातार उसे घूरे जा रहे थे जैसे उससे पूछ रहे हों कि “यहाँ अब तुम्हारा क्या बचा है जिसे लेने आये हो?”
आखिर कौन है ये राजेश?
दादा जी विक्रम को राजेश से क्यों नहीं मिलने देना चाहते?
राजेश के आने से शर्मा परिवार के कौन से पुराने राज खुलेंगे?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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