वैसे तो शर्मा फैमिली अतिथि देवो भवः की सोच रखने वाले लोग हैं मगर राजेश को देख दादा जी ऐसे डरे हुए हैं जैसे कोई ईएमआई की किश्तें ना भरने वाले रिकवरी एजेंट्स से डरते हैं. कुछ ऐसा है जिसने दादा जी के चेहरे के रंग उड़ा दिए हैं. ऊपर से वो विक्रम को इस बन्दे से मिलने नहीं देना चाहते, बट व्हाय दादा जी?
वैसे तो दूसरों की बातें सुनना गन्दी बात है मगर आप लिसनर हैं, आपका पूरा हक़ बनता है शर्मा फैमिली की एक एक बात एक एक राज़ जानने का. तो चलिए थोड़ा पास जाकर जानते हैं कि आखिर दोनों क्या बात कर रहे हैं.
दादा जी लगातार उस बन्दे को घूर रहे हैं जिसने अपना नाम राजेश बताया है. वहीं राजेश, उनसे नजरें चुरा रहा है. उसने बुक शेल्फ से उठाई किताब को पास पड़े टेबल पर रखा और दादा जी की तरफ बढ़ते हुए झुक कर उनके पैर छूने चाहे मगर दादा जी पीछे हट गए.
राजेश ने उनकी तरफ देखा और शर्मिन्दा होने का नाटक करते हुए बोला
राजेश: “अभी तक नाराज़ हैं पिता जी?”
पिता जी? आप भी ये सोच कर हैरान हैं कि राजेश दादा जी को पिता जी क्यों कह रहा है? चलिए आगे सुनते हैं कि आखिर माजरा क्या है. दादा जी ने इस बात पर आग बबूला होते हुए कहा
रघुपति: “तुमने जो किया है उसके लिए तुम्हें सातों जन्म माफ़ नहीं कर सकता. क्या एक बार इस परिवार को मुसीबतों में दाल कर तुम्हें चैन नहीं आया, जो दोबारा भी चले आये हो? अब कौन सी मुसीबत लेकर आये हो? क्या चाहिए तुम्हें.”
राजेश धीरे धीरे अपने चेहरे से भोलेपन का नकाब उतार रहा था. उसने दादा जी को घूरते हुए कहा
राजेश: “अपने हिस्से के पैसे लेने आया हूँ? अगर आपको बात नहीं करनी मुझसे तो भईया को बुलाइए. उनसे अपना हिसाब कर लूंगा.”
दादा जी इतने भड़क गए कि उनके पैर कांपने लगे. उनहोंने अपनी कांपती आवाज़ में कहा
रघुपति: “खबरदार जो मेरे बेटे के आसपास भी दिखाई दिया. तेरे लिए मेरे अंदर इतना गुस्सा है कि तुझे शूट करने में भी मैं एक पल नहीं सोचूंगा.”
राजेश: “वाह, वो आपका बेटा है तो भला मैं कौन हूँ? उसे पूरी कंपनी, घर, प्रोपर्टी सब दे दी और मुझे गोली मार देंगे? ये कैसा इंसाफ है?”
रघुपति: “परिवार को मुसीबत में डालने और फिर उन्हें उनके बुरे हाल पर छोड़ जाने वाला भगौड़ा मेरा बेटा नहीं हो सकता. जिस दिन तू इस घर से गया उसी दिन से तू हम सबके लिए मर गया. मैं इस परिवार पर तेरी परछाई भी नहीं पड़ने दे सकता.”
राजेश: “मुझे भी यहाँ रहने का कोई शौक नहीं है. मुझे मेरा हिस्सा मिल जायेगा, मैं चला जाउंगा. ये मेरा भी परिवार है. मुझ पर मुसीबत आई है तो मैं कहाँ जाऊं?”
राजेश ने आवाज़ को थोड़ा ऊंचा करते हुए कहा.
रघुपति: “धीरे बोलो, अगर किसी ने सुन लिया तो तुम्हारी खैर नहीं.”
दादा जी उससे बात करते हुए सोच रहे थे कि ये ऐसे मानने वाला नहीं. दो चार लाख दे के इसे यहाँ से चलता करना ही ठीक होगा.
थोडा सोच कर दादा जी ने उसे रुकने के लिए कहा और खुद घर के अंदर चले गए. घर में अभी भी सन्नाटा था. विक्रम अपने रूम में बंद था. दादा जी ने अपनी चेक बुक निकाली और उसमें अमाउंट भरने लगे.
माया ऑफिस में है और अपने ही ख्यालों में खोई हुई है तभी उसकी कलीग अनु उसके पास आती है और उसे ख्यालों की दुनिया से बाहर निकालती है. दोनों एक दूसरे को देख स्माइल करते हैं और गले मिलते हैं. अनु बताती है कि उसके हसबैंड ने एक नया स्टार्टअप शुरू किया है. जिसकी लॉन्च पार्टी रखी है. वो उसे इस पार्टी में आरव के साथ इनवाईट करती है. इसके साथ ही वो बताती है कि वो लोग इस हैप्पी मोमेंट को सेलिब्रेट करने विदेश घूमने भी जा रहे हैं. इसके बाद वो कबीर और आरव का हाल चाल पूछ वहां से चली जाती है.
अनु की बातें माया पर आग में घी डालने जैसा काम करती हैं. वो सोचने लगती है कि आरव उसे पिछली बार कब कहीं घुमाने लेकर गया था उसे याद भी नहीं. कहीं बाहर तो दूर वो दोनों अकेले अब कहीं डिनर पर भी नहीं जाते. वो अपने आरव के साथ रिश्ते को लेकर बहुत उलझी हुई है. दूसरी तरफ घर की जिम्मेदारियां और उसका अपना काम भी है.
इधर दादा जी राजेश के पास लौट कर आते हैं. वो उसकी तरफ चेक बढाते हुए उससे कहते हैं कि ये पैसे रखो और यहाँ से जाओ. इस पर राजेश भड़क जाता है वो कहता है कि वो कोई भीख लेने नहीं आया, उसे अपना हिस्सा चाहिए.
ठीक इसी समय पीछे से विक्रम की आवाज़ आती है
विक्रम: “हिस्सा छोड़ तुझे ये भीख भी नहीं मिलेगी.”
वो आगे बढ़ कर राजेश के हाथ से 5 लाख का चेक छीन लेता है. राजेश विक्रम को देख आगे बढ़ कर उसे गले लगाना चाहता है मगर विक्रम पीछे हटाते हुए उसे ना छूने की चेतावनी देता है. दादा जी विक्रम को देख कर चौंक गए हैं. वो नहीं चाहते थे कि दोनों भाइयों का आमना सामना हो. लेकिन जब वो चेक लेकर राजेश के पास लौट रहे थे तब विक्रम ने गेस्ट रूम में राजेश को देख लिया था.
दादा जी के सामने राजेश रौब झाड रहा था लेकिन विक्रम के सामने आते ही उसकी सारी अकड़ गायब हो गयी. उसे पता है कि दादा जी कभी भी उतना गुस्सा नहीं करेंगे जिससे उसे नुक्सान हो लेकिन विक्रम अपनी ज़िद पर आया तो उसे आसानी से कुछ नहीं लेने देगा.
वो हाथ जोड़कर विक्रम से माफ़ी मांगने लगता है और बताता है कि उसे पैसों की बहुत ज़रुरत है. वो विक्रम को बताता है कि वो यहाँ से भाग के किसी तरह केप टाउन चला गया था. वहां उसने मेहनत से अपने दम पर होटल का कारोबार शुरू किया मगर उसके एक पार्टनर ने उसे धोखा दे दिया. अब उस पर करोड़ों का कर्जा है. जिसके लिए उसे अपनी फैमिली से मदद चाहिए. विक्रम उसकी कहानी से बिलकुल नहीं पिघलते. वो उसे बचपन से जानता थे, उन्हें पता है कि राजेश गिरगिट की तरह रंग बदलने में माहिर है. अभी ज़रुरत के समय वो पैर भी पकड़ेगा लेकिन ज़रुरत खत्म होते वो पीछे मुड़ कर भी नहीं देखेगा.
विक्रम उसे धमकाते हैं कि उसके इन आंसुओं का कोई असर नहीं होने वाला, अगर वो अपनी भलाई चाहता है तो यहाँ से चला जाये, नहीं तो वो पुलिस बुलाएँगे. राजेश जवाब में कहता है कि उसे पुलिस का डर नहीं है. उसने कुछ गलत नहीं किया, ये घर जितना विक्रम का है उतना उसका भी. हालांकि पुलिस का नाम सुनते ही उसके चेहरे पर एक डर सा झलकने लगा था जिसे विक्रम और दादा जी पकड़ नहीं पाए. विक्रम ने उसे कहा कि उसे यहाँ से कुछ नहीं मिलने वाला ये सब उसके हाथ से जा चुका है.
राजेश भी अब गुस्से में आ गया था, उसने परिवार के पुराने पन्ने खोलते हुए कहा
राजेश: “भईया आपको तो कभी ये बिजनेस नहीं संभालना था फिर अब क्यों इस बिजनेस के पीछे पड़े हैं. इसे खडा करने का जिम्मा मैंने लिया था ना, आप ये मुझे सौंप दीजिये.”
विक्रम उसकी इस बेशर्मी से दंग रह जाता है. वो गुस्से में कहता है
विक्रम: “मुझे नहीं था बिजनेस का लालच. तेरी वजह से मुझे ये चुनना पडा. उस वक्त ज़रुरत थी परिवार को मेरी. तू क्यों नहीं खड़ा रहा तब? मैं करता ना मदद लेकिन तू भाग गया. आज जब हमने इसे मेहनत से इतना बड़ा बना दिया तब तू आया है अपना हक जताने. नहीं मिलेगा कुछ भी तुझे. जा जो करना है कर ले.”
विक्रम का गुस्सा देख दादा जी को चिंता हो रही है. वो अभी तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं है. वो उसे शांत रहने के लिए कहते हैं. विक्रम कहता है इसके होते हुए वो कभी शांत नहीं रह सकते.
राजेश जवाब में कहता है,
राजेश: “आप बड़े थे ना, मुझे रोक सकते थे. आखिरी बार तो मैंने आपको ही टेलीफोन किया था ना मुंबई से. आपने ही मुझे पैसे भेजे थे ना और कहा था चला जा फिर कभी मत आना.”
दादा जी के लिए ये बात किसी झटके से कम नहीं थी. विक्रम ने इसका कभी ज़िक्र नहीं किया था. उनका मन किया कि ये बहस रोक कर अभी विक्रम से सब पूछ लें मगर वो चुप रहे.
विक्रम: “मेरे बिजनेस में इन्वोल्व होने के 2 साल बाद तूने फोन किया. तब क्या कहता कि फिर से आकर सब तबाह कर दे? हम में से कोई भी तुझे वापस से नहीं देखना चाहता था. इसलिए तुझे पैसे भेजे और जाने को कहा.”
राजेश: “भईया इतना अच्छा बन्ने का नाटक मत करो, सब समझ रहा हूँ ये सब आपकी चाल थी. पहले आप बिजनेस में नहीं आना चाहते थे लेकिन जब आपके हाथ में पूरी कमान आ गयी तब आपको लालच आने लगा. मैंने जब फोन किया आपको तब आपके स्वार्थी मन में ये डर बैठ गया कि मैं लौट आया तो आपके हाथों से बिजनेस चला जायेगा. मैं भी नादान था जो इतना बड़ा बिजनेस छोड़ विदेश मजदूरी करने चला गया. वहां होटलों में काम कर कर के मैंने खुद का बिजनेस शुरू किया. सड़कों पर सोया, मांग के खाया, शादी नहीं की घर नहीं बसाया. सब आपकी वजह से. आप मुझे बुला लेते तो ये सब ना होता. गलती किससे नहीं होती मगर आपके मन में लालच था. आप सेल्फिश हैं.”
राजेश की बात ख़त्म होते ही एक चांटा उसके गाल पर छप गया था. ये दादा जी के बूढ़े हाथों का प्रिंसिपल वाला ज़ोरदार थप्पड़ था. विक्रम और राजेश दोनों हैरान रह गए. राजेश की आँखों में खून उतर आया लेकिन बाप के आगे वो कुछ नहीं कर सकता था.
राजेश: “आपका ये थप्पड़ मुझे नहीं रोक सकता. अभी जा रहा हूँ मगर जल्दी लौटूंगा. आपके पास दस दिन का टाइम है. या तो कंपनी मुझे सम्भालने दो या फिर मेरा हिस्सा मुझे चाहिए. याद रखना सिर्फ दस दिन.”
इतना कह कर राजेश वहां से चला गया. विक्रम के कान में बस यही गूँज रहा था कि आप स्वार्थी हैं.
क्या नहीं किया उसने इस परिवार के लिए, अपना सपना छोड़ा, दिन रात मेहनत की, अपने बीवी बच्चों से ज्यादा बिजनेस को टाइम दिया. इस परिवार को बांधे रखने की हर कोशिश की और आज वो सालों बाद लौट कर कह रहा है कि आप स्वार्थी हैं? दादा जी विक्रम को बार बार समझा रहे थे कि राजेश की बातों पर ज्यादा ध्यान ना दे लेकिन विक्रम बस इसी एक बात को सोचे जा रहा था कि क्या वो सच में स्वार्थी है.
वो अपने कमरे में चले गए थे. तब तक अनीता भी वहां आ गईं थीं, दादा जी ने अनिता को बिना कुछ बताये कहा कि विक्रम के पास जाए और उसका ध्यान रखे. अनिता विक्रम के पास चली गयी. वो बेड पर बैठे बस दीवार पर घूरे जा रहे थे. एसी की ठंडक में भी उनके माथे पर पसीना चमक रहा था. अनीता ने उन्हें कई बार पुकारा लेकिन वो जैसे सुन्न हो गए थे.
अनीता घबरा गयी, उसने जब विक्रम के नजदीक जा कर देखा तो वो कराह रहे थे, जैसे किसी दर्द को रोकने की कोशिश कर रहे हों. जैसे जैसे दर्द बढ़ता गया उनका हाथ सीने की तरफ बढ़ने लगा. दर्द असहनीय हो रहा था. लग रहा था जैसे उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है. अनिता चिल्लाने लगी, उसकी चीख सुन कर दादा दादी दोनों कमरे में आ गए. दादा जी ने तुरंत पहले आरव फिर माया और निशा को फोन किया.
विक्रम के बारे में सुनते ही जो जिस काम में था छोड़ कर वहां से घर की तरफ भागे. इधर विक्रम का दर्द बर्दाश्त से बाहर होता जा रहा था.
क्या राजेश का आना विक्रम के लिए जान लेवा हो सकता है?
क्या शर्मा परिवार इस अनचाहे मेहमान का सामना कर पाएगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
No reviews available for this chapter.