‘न्याय’ इस शब्द को आम और बेबस लोगों के लिए एक हथियार के तौर पर गढ़ा गया. इसे गढ़ने वाले ने सोचा जब भी किसी पर जुल्म होगा वो अपने लिए न्याय की मांग करेगा और अपराधी को सजा होगी, फिर अपराधी भले ही कहीं का राजा ही क्यों ना हो, लेकिन समस्या ये है कि ये शब्द एक सभ्य समाज का हथियार था जहाँ अन्य लोग भी जुल्म सहने वाले के साथ खड़े होंगे. जंगलराज में ये हथियार किसी काम का नहीं, न्याय करने वाले ही इस हथियार का गलत फायदा उठाते हैं.
रतौली गाँव में भी इस समय जंगलराज था, जिसका हर फैसला खुद अपराध करने वाला छुन्नू सेठ लेता था. उसकी बात होते ही गाँव का हर शख्स अपने आँख और कान दोनों बंद कर लेता था. ऐसे में यहाँ न्याय मिलने की बात सोचना भी बेवकूफी थी. बाबा के फैसले से अनजान रेशमा, सारी रात भयानक सपनों से डर कर उठ जा रही थी, जिसकी वजह से उसकी नींद ठीक से पूरी नहीं हो पाई। सुबह सूरज उगने के साथ उसने खुद के अंदर के हिम्मत के सूरज को भी जगाया और वही फैसला लिया जो कानूनन तो एक दम सही था लेकिन इस गाँव के लिए बेवकूफी भरा.
रेशमा को भी पता था कि जिसके खिलाफ जाने की वो सोच रही है, वही इस गाँव के फैसले लेता है लेकिन उसे उम्मीद थी कि पंचायत में कोई ना कोई पंच तो ऐसा होगा जो उसकी बात समझ कर उसके हक़ में बोलेगा. कोई गाँव वाला होगा जो उसकी आपबीती सुन कर उसके साथ खड़ा हो जाए. यही सब सोच कर उसने फैसला लिया कि वो अपनी शिकायत लेकर पंचायत ऑफिस जायेगी और सबको बताएगी कि जो उसके साथ जो हुआ उसमें उसकी कोई गलती नहीं बल्कि इसके असल अपराधी छुन्नू और उसके साथी हैं.
हादसे के बाद रेशमा पहली बार खुद से उठी है. उसकी माँ ये सब देख रही थी. हादसे के बाद से सुजाता अपनी बेटी से बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पाई थी. उसे तो अभी तक ये भी नहीं पता था कि उसकी बेटी के साथ ये सब किया किसने है. सब लोग अंदाजा ही लगा रहे हैं लेकिन पूरी सच्चाई अभी तक सामने नहीं आई है.
सुजाता को रात से हरि का रेशमा को लेकर किया हुआ फैसला भी परेशान कर रहा था. इसके साथ ही वो इन सबके लिए खुद को सबसे बड़ा दोषी मान रही थी. उसके मन में बार बार आ रहा था कि अगर उसने गाँव की बाक़ी औरतों की तरह एक अच्छी माँ होने का फ़र्ज़ निभाया होता, रेश्मा को घर में ही रखा होता तो आज उसकी बेटी सुरक्षित होती. उसे लग रहा था कि उसे अपने पति की बातों में आ कर अपनी बेटी को इतनी छूट नहीं देनी चाहिए थी.
ना वो उसे इतनी छूट देती ना रेशमा पढ़ने की जिद करती और ना ये सब होता. वो ये सब सोच कर खुद के ही बाल नोच रही है. वो रोते रोते सो गयी.
इधर रेशमा कपड़े पहन कर अपने लिए न्याय मांगने निकल चुकी है. सुजाता इस बात से अनजान सोई हुई है. उसके घर से बाहर कदम रखते ही सभी लोग अपना अपना काम छोड़ उसे घूरने लगे हैं. हर आँख उसे घूरते हुए ये जांचने में लगी है कि एक लड़की के साथ जब गलत होता है तो उसके शरीर में कैसे बदलाव आते होंगे. इन घूरती आँखों में हमदर्दी नहीं बल्कि हवस और घिन है.
हर कोई उसे ऐसे देख रहा जैसे उसने ही कोई बड़ा पाप किया हो. औरतें बातें बना रही हैं कि ये कितनी बेशर्म लड़की है कि इतना कुछ होने के बाद भी ऐसे अकेली घर से बाहर निकल आई है. अभी तो रेशमा ने कुछ ही कदम आगे बढ़ाये हैं तब ये हाल है, उसे तो अभी पूरा गाँव पार कर पंचायत भवन तक जाना है.
वो जितना आगे बढ़ रही है घूरने वाली आँखों की संख्या उतनी ही बढ़ती जा रही है. अब ये नज़रें उसे परेशान करने लगी हैं. पूरे गाँव की नज़रें उसके साथ साथ चल रही हैं.
तंग आ कर रेशमा एक जगह रुक जाती है. वो चारों ओर देख कर सभी आँखों में आँखें डाल चिल्लाती है
“क्या देख रहे हो सब? सबको यही जानना है ना कि मेरे साथ क्या हुआ? किसने किया? कहाँ कहाँ छुआ गया? मुझे कैसा लगा होगा तब? यही सब जानना है ना, तुम सबकी सोच ही यहीं तक है. चलो सब पंचायत ऑफिस, सब कुछ बताउंगी. सब मज़े से सुनना और आगे जब तुम्हारी बहन बेटी के साथ ऐसा कुछ हो ना तो अंदाजा लगा लेना कि कैसा लगता होगा. चलो…”
रेशमा की बात सुन कर कुछ पल के लिए हर किसी की ज़ुबान सिल गयी. रेशमा आगे बढ़ती है. और लोग इतने बेशर्म हैं कि सच में उसके पीछे चल देते हैं. सबको सच में वो सब जानना है जो रेशमा के साथ हुआ है.
उधर पंचायत भवन में छुन्नू सेठ अपने चमचों और दूसरे पंचों के साथ बैठा हंसी मजाक कर रहा है. तभी किसी ने आ कर बताया कि रेशमा अपनी शिकायत लेकर इधर ही आ रही है.
ये बात सुनकर कुछ पलों के लिए वहां सन्नाटा छा गया. अभिराज ने इस सन्नाटे को तोड़ते हुए कहा, “मगर शिकायत करेगी किससे? यहाँ तो सब अपने ही हैं.”
उसकी बात पर पूरा पंचायत ऑफिस ठहाकों से गूंज उठा.
छुन्नू ने पानी की पीक फेंक कर मुंह खाली करते हुए कहा, “आने दो, आज उसकी बची खुची इज्ज़त भी उतारते हैं. वैसे भी पूरे गाँव को पता चलना चाहिए कि उसके रूप का घमंड छुन्नू सेठ ने तोड़ा है. पंचों. तुम लोगों को अपना काम पता है ना, क्या करना है.”
छुन्नू के सवाल पर वहां बैठे सभी सम्मानीय पंचों ने अपनी चमचे जैसी गर्दन को हां में हिलाया.
इधर रेशमा के बढ़ते कदम रुकने का नाम नहीं ले रहे थे. वो जो करने जा रही थी उसका क्या अंजाम होगा इस बात से वो अच्छे से वाकिफ थी लेकिन फिर भी वो रुक नहीं रही थी.
भीड़ के भी कितने चेहरे होते हैं, एक भीड़ किसी के पीछे हो तो वो दुनिया जीतने की ताकत खुद में महसूस करता है, और एक भीड़ ऐसी होती है जो आगे चलने वालों की सारी हिम्मत तोड़ देती है. रेशमा के पीछे भी एक भीड़ थी जो उसकी हिम्मत तोड़ने के लिए ही साथ चल रही थी. इन सबको बस तमाशा देखना था, इसी तमाशे के लिए ये लोग अपना काम छोड़ कर रेशमा के पीछे चल दिए हैं.
इन सभी बातों से बेखबर हरिया खेतों में काम कर रहा है. घर पर रहते हुए उसे रेशमा का चेहरा और उसके साथ हुआ हादसा दोनों तंग कर रहे थे और वैसे भी गरीब इंसान को तो मौत भी ज्यादा दिन घर पर खाली बैठने की इजाजत नहीं देती. वो तो अपने मरने के दिन तक कुछ ना कुछ काम ही करता रहता है.
बिल्ली ने रसोई में कोई बर्तन गिराया है जिसकी तेज आवाज़ से सुजाता की आँख खुल गयी है. वो चौंक कर उठी है. उसने एक भयानक सपना देखा है जो उसके सच से कम ही भयानक था इसलिए वो दुखी है कि काश वो उसी डरावने सपने में रहती. उसने उठ कर रसोई में झाँका. उसे अचानक से रेशमा का ख्याल आया. उसने हिम्मत जुटा कर उसका नाम पुकारना शुरू किया मगर वो घर में नहीं दिखी. सुजाता ने बाहर देखा मगर वो वहां भी नहीं थी.
वो उसका नाम चिल्लाते हुए बाहर भागी. तब उसे किसी ने बताया कि रेशमा पंचायत ऑफिस गयी है. इतना सुनते ही सुजाता सिर पकड़ कर सड़क पर ही बैठ गयी. उसे पता था कि अब अनर्थ होने वाला है. उसमें इतनी हिम्मत भी नहीं बची कि वो भागते हुए जाए और रेशमा को रोक ले. इधर रेशमा ताने और भद्दी बातें सुनते हुए आगे बढ़ी चली जा रही थी. उसका पूरा शरीर पसीने से नहा चुका था. दर्द इतना था कि एक कदम चलना मुश्किल था लेकिन वो फिर भी नहीं रुक रही थी. उसका तमाशा बनते देखने वाली भीड़ भी उसके पीछे पीछे थी.
खेतों में काम कर रहा हरि इस सोच में डूबा हुआ था कि रेशमा की शादी उस शराबी बूढ़े से कराने का उसका फैसला सही है या नहीं. क्या अपनी फूल सी बच्ची को ऐसे दुल्हे के साथ भेजना सही होगा जिसकी उम्र उससे भी ज्यादा है? फिर उसने सोचा कि उसके पास और कोई रास्ता भी तो नहीं. अगर रेशमा यहाँ रही तो छुन्नू और यहाँ के लोग उसे चैन से जीने नहीं देंगे. किसी दूसरे गाँव में जा कर कम से कम वो अपने साथ हुआ हादसा भुला कर जी तो पायेगी. हरि को याद आता है कि उसने खुद से वादा किया था कि वो अपनी बेटी को टीचर बनाएगा मगर वो ये वादा भी पूरा ना कर पाया.
वो यही सब सोच रहा होता है, इतने में उनके पड़ोस में रहने वाला मंगल हांफता हुआ उसके पास आता है. हरि उसे देख कर पूछता है
“कहाँ आग लग गयी जो तू इतना भागता हुआ आ रहा है? पहले दो घड़ी सांस ले ले फिर बोलना.
उसकी बात सुन मंगल हांफते हुए बताता है “आग नहीं लगी, भूचाल आने वाला है तुम्हारी जिंदगी में.”
हरि दुख भरे शब्दों में कहता है
“अब इससे बड़ा क्या भूचाल आएगा मंगल. सब तो ख़त्म हो गया.”
मंगल इस पर उसे बताता है कि “इससे भी बड़ा भूचाल आ जायेगा अगर रेशमा पंचायत ऑफिस पहुंच गयी. वो न्याय मांगने जा रही है मगर उसे पता नहीं कि सामने कौन बैठा है. जाओ और उसे रोको वरना गजब हो जायेगा. पूरा गांव उसके साथ होने वाला तमाशा देखने उसके पीछे पीछे जा रहा है.”
ये सुनते ही हरि के पैरों तले ज़मीन खसक जाती है. वो हड़बड़ा कर उठता है, भागने की कोशिश करता है लेकिन गिर पड़ता है. वो फिर से उठता है और पंचायत भवन की तरफ भागने लगता है.
इधर पंचों को सामने से रेशमा आती दिख रही है. छुन्नू के चेले ने सिर्फ ये बताया था कि रेशमा आ रही है लेकिन ये नहीं बताया था कि उसके पीछे पूरा गांव आ रहा है. उस भीड़ को देखने के बाद सभी लोग आपस में कानाफूसी करने लगते हैं. छुन्नू और अभिराज भी इस भीड़ को देख कर घबरा रहे हैं.
उन्हें ये शक है कि कहीं पूरा गांव रेशमा का पक्ष न लेने लगे. भीड़ की यही ताकत है कि वो इसे कंट्रोल करने वाले को भी डरा कर रखती है. एक भीड़ सिर्फ तमाशे की प्रेमी होती है और कई बार इस तमाशे के लिए उसे भी बेईज्जत कर देती है जिसने सभी को डरा कर रखा होता है. छुन्नू भी इस भीड़ को देख कर इसलिए थोड़ा घबरा गया है.
रेशमा पंचायत ऑफिस पहुंच चुकी है. उसके पीछे लगभग 100 लोग हैं. इस भीड़ को देख कर घबराहट का पसीना पंच सरपंच सब के माथे पर देखा जा सकता है. इस घबराहट को देख कर रेशमा को लगता है कि शायद अब उसे इंसाफ मिल जाए. उसे लगता है कि इतने लोगों के बीच पंचों को उसकी बात सुनते हुए जायज फैसला सुनाना ही पड़ेगा.
रेशमा अपनी बात कहने जा रही है. उसके पिता भी वहां पहुंच चुके हैं. वो दूर से अपनी बेटी को देख रहे हैं. वो उसकी तरफ बढ़ते हैं. छुन्नू घबरा रहा है कि कहीं पहली बार रतौली उससे डरने की बजाय उसपर हावी न हो जाये।
क्या रेशमा को इस पंचायत में न्याय मिल पाएगा?
क्या रेशमा की आपबीती सुन गाँव के लोगों का मन पिघलेगा?
क्या हरिया अपनी बेटी के इस फैसले का साथ देगा?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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