दुनिया भी बहुत अजीब है, बच्चों को बचपन में दुनिया भर का ज्ञान देती है, उम्मीद करती है कि बड़ा हो कर एक अच्छा और सच्चा इंसान बने. उसे हमेशा सच बोलना और किसी से भी ना डरना सिखाती है. वही बच्चा जब बड़ा हो कर सच बोलने लगता है तो उसका मुंह बंद करने की कोशिश करते हैं, उसे डराते हैं.
रेशमा के बाबू ने भी तो उसे हमेशा सच बोलना ही सिखाया था. उन्होंन उससे हमेशा यही कहा कि सच इंसान का सबसे बड़ा हथियार है, जिसके पास सच की ताकत है उससे सभी बुरे लोग डरते हैं. रेशमा ने उस दिन के बाद हमेशा सच बोला. आज उसके पिता की कही बातें सच भी हो रही हैं. वो सच को हथियार बनाए अकेली खड़ी है और बुरे लोग उसे देख काँप रहे हैं. लेकिन उसे सच का पाठ पढ़ाने वाले उसके पिता ही आज उसका मुंह बंद करना चाहते हैं.
पंचायत ऑफिस में लोगों की भीड़ जमा हो चुकी है. छुन्नू सरपंच इस भीड़ के आगे अकेली खड़ी रेशमा को देख कर घबराया हुआ है. वो अपना सच सबको बताने जा ही रही होती है कि तभी उसके बाबूजी उसके पास पहुंच जाते हैं.
हरि- “पागल हो गयी है क्या? क्यों बची कुची इज्जत भी नीलाम करवाने पर तुली है?”
रेशमा के बाबूजी उससे धीरे से कान में कहते हैं. रेशमा उनकी बातों पर ध्यान नहीं देती. तभी छुन्नू ताव में आ जाता है. उसे लगता है कि रेशमा को रोकने के लिए उसके डरे हुए बाप को और डराना सही रहेगा. वो हरिया पर ऐसे गरजता है जैसे वो यहाँ सबसे सच्चा इंसान हो.
छुन्नू- “का हो हरिया, ये सब क्या हो रहा है. एक बार की जग हंसाई से मन नहीं भरा तुम लोग का? हरिया हम तुमको इज्जतदार आदमी समझते थे लेकिन तुम तो एक दम निर्लज निकले. तुम्हारी बेटी इतना बड़ा काण्ड कर आई तब भी तुम उसको इतना छूट दे दिए कि वो पुरे गाँव में घूमती फिर रही है. एक बात जान लो हरिया, जिस तरह से तुम्हारी बेटी हमारे गाँव का नाम खराब की है ना उसके लिए तुमको परिवार समेत गाँव से मुंह काला कर के निकाल देते लेकिन तुम्हारा मुंह देख के हम ये सब नहीं किए. थोड़ा भी शर्म बचा है तो इसको यहाँ से ले जाओ. हो सके तो इसे इस गाँव से ही कहीं दूर भेज दो.”
छुन्नू बोले जा रहा था और उसके बोलने के साथ ही रेशमा की आँखों में उतरा खून और गाढ़ा होते जा रहा था.
हरि- “आपने सच में बहुत दया दिखाई है मालिक. हम आगे से ये गलती नहीं होने देंगे. इसका बियाह कर के जल्दी इसे बहुत दूर भेज देंगे. ये कुछ नहीं बोलेगी और ना अब घर से बाहर पैर रखेगी.”
हरिया की बातें रेशमा को शूल की तरह चुभ रही थीं. जिसने हमेशा सच बोलना सिखाया आज वही इंसान उसे सच बोलने से रोक रहा है? मगर रेशमा को अब फर्क नहीं पड़ता वो सबके खिलाफ जा कर बोलेगी. वो खुद को बोलने से और नहीं रोक पायी.
रेशमा- “सरपंच जी, हमारे काण्ड से गाँव का नाम ख़राब हुआ तो ये भी बताइए कि वो काण्ड हमारे साथ किया किसने. और अगर बताने की हिम्मत नहीं है तो हम बताये देते हैं.”
छुन्नू ये भी जानता था कि रेशमा की उसके सामने कोई औकात नहीं, वो चिल्ला चिल्ला कर भी कहेगी कि उसके साथ छुन्नू सेठ ने गलत किया है फिर भी उसका एक बाल तक बांका नहीं कर पाएगी लेकिन फिर भी रेशमा की हिम्मत देख उसे घबराहट हो रही थी.
डर इंसान की सबसे बड़ी कमजोरी होती है, जिसने अपने अंदर से डर निकाल दिया उससे तो काल भी घबराता है. आज बिना डर के इतने लोगों के बीच खड़ी रेशमा सबको डरा रही थी. उसकी बात पर छुन्नू कुछ नहीं बोल पाया. हरिया अपनी बेटी को चुप कराने की पूरी कोशिश करता रहा मगर वो आज मानने वाली नहीं थी. आज उस में चंडी की वो झलक दिखी थी जो किसी औरत में तब दिखती है जब अति हो जाती है.
रेशमा- “हम बताते हैं सच क्या है. ये सरपंच जो सामने न्याय का देवता बना बैठा है उसने हमारी जिंदगी तबाह कर दी. इसके साथ बैठा अभिराज, दरोगा विक्रम और इसके एक और साथी ने मेरे साथ…”
रेशमा इसके बाद नहीं रुकी, उसने उस भयानक दिन की एक एक बात पूरी पंचायत में चिल्ला चिल्ला कर बताई. जब वो बोल रही थी तो उसकी आवाज़ के सिवा और कोई आवाज़ नहीं थी. छुन्नू भी कुछ बोलने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था. अपनी पूरी बात बताने के बाद रेशमा भरी पंचायत में फूट फूट कर रोने लगी. उसे उम्मीद थी कि न्याय का मंदिर कहलाने वाली इस पंचायत में कोई एक पंच तो देवता की तरह होगा जो उसकी सुनेगा. लेकिन वो ये भूल गयी थी कि जहाँ राज ही राक्षसों का हो वहां देवता भी बोलने की हिम्मत नहीं करते. पंच गंगाराम ने कहा, “कहानी तो अच्छी बनायी हो रेशमा, बाकी जो कह रही हो उसका कोई सबूत भी है कि बस ऐसे ही हवाबाजी है… सरपंच छुन्नू से माल एंठने की?”
एक पंच ने अपनी बात कहते हुए रेशमा का भ्रम तोड़ दिया कि उसे यहाँ न्याय मिलेगा. उधर पहले पंच के बोलते ही छुन्नू की घबराहट भी दूर हो गयी. उसे ताकत मिल गयी ये सोच कर कि सभी पंच तो उसी के चेले हैं. दूसरा पंच बोला, “ठीक कह रहे हैं गंगाराम जी, मतलब जो तुम बता रही हो वो सब होते हुए कोई देखा? बस का ड्राइवर, उसमें कोई सवारी हो, या ये बस स्पेसल तुमको ही लेने आई थी और तुम फट से चढ़ गयी.”
सोहन पंच की बात पर पूरी पंचायत में जोरदार ठहाका गूंजा. जिन लोगों से रेशमा न्याय की उम्मीद कर रही थी वो उसकी लुटी हुई इज्जत का मजाक बना कर हंस रहे थे. इसी तरह बारी बारी से हर पंच ने नीचता की हद पार करते हुए एक के बाद एक घिनौने सवाल पूछे. हर सवाल के बाद रेशमा की हिम्मत थोड़ी थोड़ी टूट रही थी. पास खड़े उसके पिता का मन हो रहा था कि वो खुद को अभी मार ले. एक पंच ने तो हद ही कर दी, उसने रेशमा से कहा कि अगर उसके साथ जबरदस्ती हुई है जो, जखम या घाव तो हुए होंगे, सबूत के लिए पंचायत में वही दिखा दो. इस घिनौनी बात पर पंचायत में मौजूद हर आदमी राक्षसों की तरह हंसा. इस पंचायत में एक ही पंच था जिसे इन बातों पर हंसी नहीं बल्कि शर्म आ रही थी. वो थे टेकराम, यही अकेला शख्स यहाँ था जिसके मन में थोड़ी इंसानियत बची थी लेकिन वो भी बेबस था. छुन्नू के खिलाफ कुछ भी बोलने की हिम्मत नहीं थी उनमें. फिर पंच कालू ने भी कहा, “कुल मिला कर बात ये है कि सारी गलती इस रेशमा की है. अब अपनी गलती छुपाने के लिए ये हमारे ईमानदार और भले सरपंच सेठ छुन्नू को फंसाने की कोशिश कर रही है. पूरा गाँव इस बात का गवाह है कि जब ये लड़की आठवीं में थी तभी से छुन्नू इसके परिवार को समझाने में लगा हुआ था कि ज़माना खराब है बेटी को इतनी दूर स्कूल पढने मत भेजो. अक्षर पहचानना सीख गयी है इसके लिए इतना ही बहुत है लेकिन हरिया और रेशमा पढ़ाई की रट लगाए रहे. अब सोचिये कि पूरी क्लास लड़कों से भरी हो और उसमें बस एक लड़की पढने जाए तो लड़कों का मन बहकेगा की नहीं? ऊपर से इसे अपने रूप का घमंड था सो अलग. ऐसे में किसी की क्या गलती जब खुद ही न्योता दे रही हो तो. अगर तभी पढ़ाई छोड़ घर बैठ जाती तो ये दिन नहीं देखना पड़ता. गाँव की बाकी लड़कियों के साथ तो कभी ऐसा नहीं हुआ, क्या और कोई सुन्दर लड़की ही नहीं गाँव में? इसके लछण ही खराब हैं.”
पंच कालू ने बेशर्मी की सारी हदें पार करते हुए, सारा दोष उसी रेशमा पर डाल दिया जिसके साथ खुद गलत हुआ था. इससे भी ज्यादा शर्मिंदगी की बात ये थी कि उसकी बातों को सबने गंभीरता से सुना और सिर हिला कर सहमति भी जताई. इसके बाद भी रेशमा ने खुद को सही साबित करने की कोशिश की. उसने कालू पंच से कहा कि ऐसा सिर्फ उसके साथ ही नहीं हुआ है, बहुत लड़कियों ने ये दर्द झेला है लेकिन छुन्नू के डर से सब चुप रह गयीं. वो चुप नहीं रहेगी. यहाँ कोई नहीं सुनेगा तो वो न्याय मांगने कचहरी तक जाएगी. कहीं तो उसकी गुहार सुनी जायेगी. छुन्नू को अब यकीन था कि उसके खिलाफ कोई नहीं बोलेगा. अकेली रेशमा कुछ साबित नहीं कर पाएगी चाहे थाने जाए या कचहरी हर जगह उसकी बेइज्जती ही होगी.
उधर सुजाता सोच सोच कर पागल हो रही थी रेशमा ने पंचायत में ना जाने क्या तमाशा किया होगा. खुद उसके माँ बाप ही उसके सच बोलने को तमाशा बता रहे थे. सुजाता घर के बाहर पागलों की तरह चिल्ला रही थी. तभी पड़ोस की कुछ महिलाएं उसे अंदर ले गयीं और उससे बातचीत कर उसका मन बदलने की कोशिश करने लगीं. इस बीच इरावती ने एक बार फिर से अपनी बात दोहराई और सुजाता पर ये कह कर दबाव बनाया कि ये सब तो कुछ भी नहीं अगर रेशमा यहाँ रही तो ना जाने कितनी बार उन्हें पूरे गाँव के सामने बेइज्जत होना पड़ेगा. इससे अच्छा वो उसकी शादी उसके बुड्ढे शराबी भाई से करा दे.
असल में इसके पीछे इरावती का लालच छुपा हुआ था. उसके मामा ने सभी रिश्तेदारों में ये बात फैला दी थी कि जो उसके शराबी बेटे की शादी करवाएगा उसे वो मोटी रकम देगा. इरावती को इनाम का लालच था और उसे पता था कि रेशमा जैसी हसीन दुल्हन के लिए तो मामा उसे पैसों और गहनों से तोल देगा. इधर सुजाता जो कल तक इस रिश्ते के लिए इरावती को गालियाँ दे रही थी उसे भी अब लगने लगा था कि रेशमा के ब्याह में देरी हुई तो सब नाश हो जायेगा. वो उसके प्रस्ताव पर सोचने लगी. इरावती ने भी अपने शराबी भाई और उसके खानदान की खूब बढ़ाई की जिसके बाद बाकी औरतें भी इस रिश्ते को सही बताने लगीं.
उधर पंचायत में अपनी इज्जत उतरती देख हरिया गुस्से से पागल हुआ जा रहा था. उसका सारा गुस्सा इस समय अपनी बेटी रेशमा पर था. रेशमा चुप होने का नाम नहीं ले रही थी और छुन्नू सेठ बार बार हरिया से उसे चुप कराने को कह रहा था. पंचायत ने सर्वसम्मति से रेशमा के ऊँचे सपनों, खुली सोच और पढ़ाई की ज़िद्द को ही उसके साथ हुए दुष्कर्म का कारण बताया. किसी ने ये जानने में दिलचस्पी नहीं ली कि छुन्नू पर उसका लगाया आरोप सही हो सकता है. दरअसल पंचों के लिए वे लोग गलत नहीं थे जिन्होंने रेशमा के साथ गलत किया. उनके मुताबिक रेशमा ने ही उन्हें भड़काया होगा इसमें उनकी कोई गलती हैं. छुन्नू और उसके साथियों का तो किसी ने नाम तक नहीं लिया.
रेशमा के लिए ये सब बर्दाश्त से बाहर था. उसका मन हुआ वो सबको यहीं मार दे लेकिन वो अकेली भला क्या ही कर सकती थी. उसने फिर से कुछ बोलने के लिए अपना मुंह खोला ही था कि एक ज़ोरदार थप्पड़ उसके गाल पर पड़ा, ये थप्पड़ उसके बाबूजी ने मारा था। इस थप्पड़ की गूँज से पूरी पंचायत में सन्नाटा पसर गया. छुन्नू अपनी मूंछों पर ताव देते हुए ऐसे मुस्कुराया जैसे उसकी जीत हो गयी हो. वहीं इस थप्पड़ ने रेशमा का भ्रम तोड़ दिया कि उसके बाबूजी हर स्थिति में उसके साथ खड़े हैं. ये पहली बार था जब हरिया ने उस पर हाथ उठाया था.
सच के साथ खड़ी रेशमा आज हार गयी थी और गलत करने वाले अपनी जीत की ख़ुशी मना रहे थे…
अपने पिता से थप्पड़ खाने के बाद क्या रेशमा चुप हो जाएगी?
क्या अब उसकी शादी एक शराबी बूढ़े से कर दी जाएगी?
क्या रेशमा के सारे सपने कुचले जायेंगे?
जानेंगे अगले चैप्टर में!
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