बड़े शहर के लोगों को सच्चा प्यार होता भी है? या फिर ये सिर्फ़ दिखावा करते हैं। क्या इन्हें पता होगा पहली बार हाथ पकड़ना क्या होता है? महबूब की आँखों में देखना क्या होता है? या फिर अपनी महबूबा के लिए सड़क किनारे से गजरा लेना क्या होता? शायद बड़े शहर के लोगों को इतनी फुर्सत ही नहीं होगी, मगर उन्हें इतनी फुर्सत ज़रूर होती है कि वह एक अच्छे खासे इंसान को मैला कर दें या फिर उनके साथ विशवास घात करें। ये तो आप सुन ही रहे हैं कि कैसे सौरभ, माया को अपने जाल में फंसाता है और वह फँसती चली हाती है। सौरभ के फ़्लैट से निकलकर माया जैसे ही अपने होटल रूम में पहुँचती है उसे सौरभ का ख़याल बार-बार आता है। वह ख़ुद को सौरभ को मैसेज करने से नहीं रोक पाती। माया का मैसेज देखकर, सौरभ को अपने बनाए हुए प्लान पर यक़ीन हो जाता है। सौरभ भी उसे तुरंत मैसेज करता है, जिसके बाद दोनों टेक्स्ट पर बातें करने लग जाते हैं, हर बार की तरह इस बार भी सौरभ अपनी क़िस्मत पर गुरूर करता है। माया का भरोसा जीतना, उसकी पहली जीत है। सौरभ, बातों-बातों में ही माया को हाई सोसाइटी पार्टी के बारे में पूछता है। पहले तो माया मना करती है। फिर सौरभ के थोड़ा इंसिस्ट करने पर मान जाती है।
अगली सुबह, माया के लिए उसकी पसंदीदा सुबह होती है। आखिरकार सैटरडे जो होता है। माया ने उठते ही अपने घर पर फ़ोन किया और आई बाबा से वीडियो कॉल पर बातें की। हमेशा की तरह इस सैटरडे भी उसकी आई ने नाश्ते में पुरणपोली बनाई थी। उसी वक़्त माया ने अपनी आई से ज़िद करते हुए कहा की, वह कल दोपहर के खाने में वरण भात और ठेचा खाएगी। माया की ज़िद देखकर उसकी आई भी मान गई. माया अपने आई बाबा से बात कर रही थी कि उसके रूम की डोर बेल बजी
माया, वीडियो कॉल पर रहकर ही देखने गई। जैसे ही माया ने दरवाज़ा खोला, सामने सौरभ खड़ा था। माया उसे देखते ही चौंक गई. उसने आई बाबा को बाय कहकर कॉल कट किया और सौरभ से अंदर आने को कहा। सौरभ अंदर आकर रूम में रखे काउच पर बैठ गया। कुछ वक़्त के लिए माया की धड़कने तेज़ हो गई, उसकी नेर्वस्नेस सौरभ को ना पता चले, इसलिए माया फ़ोन पर अपनी उंगलियाँ फेरती रही, मगर सौरभ उसकी उँगलियों की हरकत से भांप गया की माया इस सिचुएशन में अव्क्वार्ड हो रही है, सौरभ ने ऑकवर्डनेस ख़त्म करने के लिए माया से पूछा...…
सौरभ (सवाल) : आपने ब्रेकफास्ट किया?
माया (नर्मी से) : अब तक तो नहीं, तुमने?
सौरभ (नर्मी से) : मैंने भी नहीं किया, सोचा आप यहाँ हैं तो, आज का ब्रेकफास्ट आपके साथ ही कर लूँ।
माया (ख़ुशी से) : That’s so sweet of you! चलो फिर, यहाँ के restaurant में breakfast लग गया है, वहीँ चलते हैं।
सौरभ (उत्सुकता से) : इस 5 स्टार होटल का नहीं, चलो सड़क किनारे पर लगा वड़ा पाव खाते हैं।
माया (खुश होकर) : साउंड्स ग्रेट।
माया को सौरभ का देसी आइडिया बहुत पसंद आया। वह दोनों मरीन लाइन्स के खाऊ गली के लिए निकले। किसी के भी दिल तक पहुँचना हो, तो रास्ता हमेशा पेट से होकर बनाना चाहिए, ऐसा हम नहीं पुराने लोग कहते हैं। सौरभ को बेफिक्र होकर खाते देख, माया उसकी रैंडम फोटोज़ लेने लगी। सौरभ खाने में मग्न था और माया उसकी बेफ़िक्री में। दोनों मुंबई का तीखा वड़ा पाव खाने के बाद, टपरी पे चाय पीने गए. उसी वक़्त माया ने सौरभ से पूछा…
माया (सरलता से) : आपने मेरे बचपन की बातें तो जान ली, मगर अपना बचपन नहीं बताया।
सौरभ (गंभीरता से) : सबका बचपन एक जैसा नहीं होता, सही वक़्त आने पर बताऊंगा।
माया (सवाल) : और कब आएगा वह वक़्त, मेरे जाने के बाद?
सौरभ (सामान्य) : शायद हाँ!
माया (उलझन में) : कभी-कभी आपकी बातें मेरे पल्ले नहीं पड़ती।
सौरभ (मज़ाकिया तौर पर) : अजीब बात है, माया को मोह की बातें नहीं समझ आती... जबकि इनका रिश्ता तो सुई धागे जैसा है।
माया (नर्मी से) : आप और आपकी लिटरेचर वाली बातें।
भारी ब्रेकफास्ट करने के बाद सौरभ ने माया को होटल छोड़ा। माया को नींद आने लगी, तो वो सो गई। जब उसकी नींद खुली शाम के 5 बज चुके थे। उसने अपना फ़ोन चेक किया और देखा की सौरभ के 25 मिस्ड कॉल्स थे। माया ने तुरंत, सौरभ को कॉल किया। सौरभ ने कॉल उठाते ही माया से कहा…
सौरभ (परेशान) : कहाँ हो माया? फ़ोन क्यों नहीं उठा रही थी।
माया (नींद में) : बहुत गहरी नींद में सोई थी। आई के भी मिस्ड कॉल्स हैं।
सौरभ (हड़बड़ी में) : आज 8 बजे हमें, पार्टी में जाना है। रेडी रहना।
माया (नींद में) : ठीक है।
सौरभ से बात होने के बाद, माया ने अपनी आई को कॉल किया और उन्हें बताया कि आज वह मुंबई की हाय सोसाइटी पार्टी अटेंड करने वाली है। जिसे सुनकर उसकी आई कहती है, "इतने बड़े-बड़े लोग होंगे ना वहाँ पर, तू कुछ अच्छा-सा पहनना, वह अपना ढीला ढाला पैंट-शर्ट मत पहनके चली जाना! क्या पता कोई तुझे वहाँ पसंद कर ले।
अपनी आई की बातें सुनकर, माया खीजते हुए कहती है" क्या आई हर वक़्त बस शादी-शादी कभी तो कुछ और बातें किया करो " इतना कहकर माया कॉल कट करती है और सीधे रेडी होने लगती है । Formals में रहने वाली माया, आज हाई सोसाइटी पार्टी के लिए गाउन पहनती है। ठीक 7: 20 में सौरभ होटल के रिसेप्शन एरिया में होता है। ठीक बीस मिनट के बाद माया वहाँ पहुँचती है। सौरभ जैसे ही माया को देखता है, उसकी नज़रें कुछ देर के लिए माया पर ही ठहर जाती है। माया ने अपना सर हिलाते हुए सौरभ से चलने का इशारा किया, तब जाकर सौरभ का ध्यान, माया से हटा और दोनों पार्टी के लिए निकल गए। सौरभ की नज़र बार-बार माया की तरफ़ ही जा रही थी, और माया इतने सालों में आज पहली बार शर्मा रही थी। जिस लड़की की आँखों में बेफ़िक्री होती थी, आज प्यार की चमक दिख रही थी। थोड़ी देर बाद, जैसे ही दोनों होटल ताज पहुँचे, वैसे ही माया के सामने सौरभ की दुनिया की चकाचौंध आ गई। शहर के बड़े-बड़े लोग, उनके महंगे लिबास, हीरों के गहने। माया, आखिरकार फँस ही गई माया नगरी की चमक में। माया अपने चारों तरफ़ देख ही रही थी कि तभी सौरभ ने उसे champagne देते हुए कहा कि ये कोलाबा की सबसे बड़ी पार्टी है। इस पार्टी में मुंबई के बड़े से बड़े लोग शामिल है।
माया और सौरभ ने जैसे ही अपनी-अपनी ड्रिंक ख़त्म की, सौरभ ने माया से डांस के लिए पूछा और दोनों एक साथ डांस फ्लोर पर गए. डांस करते-करते सौरभ का हाथ माया की कमर पर गया, माया ने अपने हाथों को सौरभ के कंधे पर डाल दिया और दोनों एक दूसरे की आँखों में देखते हुए डांस करने लगे। दोनों की आँखों में प्यार की कशिश दिख रही थी। माया ने अपने होंठों को सौरभ के कान के पास लाते हुए कहा…
माया (प्यार से) : मरीन ड्राइव चलें?
सौरभ (सवाल) : ऐसे पार्टी छोड़कर? थोड़ा ऑकवर्ड नहीं लगेगा?
माया (प्यार से) : यहाँ लोग बहुत हैं और वहाँ सिर्फ़ तुम और मैं होंगे।
सौरभ (प्यार से) : लगता है किसी को कुछ वक़्त दुनिया से दूर गुज़ारना है...
माया के कहने पर, दोनों मरीन ड्राइव के लिए निकल गए. अरब सागर में उठती लहरों के शोर को सुनते, सौरभ ने अपना सिर, माया के कंधे पर टिका रखा था। माया ने भी सौरभ के मन का भार अपने कंधे पर ही रहने दिया। कुछ देर सौरभ अपनी आँखें बंद किये बैठा रहा। माया अरब सागर की उछलती लहरों को देखती रही। उसे यक़ीन नहीं हो रहा था कि इन दो दिनों में ज़िन्दगी ने उसके कितना खूबसूरत मंज़र दिखाया था। माया को आज पहली बार ये एहसास हुआ कि रईसों वाली ज़िन्दगी होती कैसे है। जिस ज़िन्दगी के उसने सिर्फ़ ख़्वाब देखे थे, सौरभ ने उसे एक दिन में हक़ीक़त बना दिया था। माया बस किसी भी तरह अपनी मेहनत से इस ज़िन्दगी को हासिल करना चाहती थी। उसने तय कर लिया था कि वह पुणे जाकर, अपने लिए और भी ज़्यादा बेटर जॉब तलाशेगी। उसी वक़्त, सौरभ की आँखें खुली और उसने माया की तरफ़ देखते हुए कहा…
सौरभ (नर्मी से) : तुम सच में माया हो?
माया (हंसते हुए) : मतलब?
सौरभ (गंभीरता से) : मतलब ये कि तुम्हारे साथ सब कुछ सपने-सा लगता है।
माया (सामान्य) : मगर मैंने तो ऐसा कुछ किया ही नहीं।
सौरभ (गंभीरता) : तुमने बहुत कुछ किया है माया, तुमने मेरे बीते हुए कल का मोह दूर किया है। मुझे इतने सालों में आज आज़ाद महसूस हो रहा है।
माया (प्यार से) : तुमने भी मुझे मेरी हक़ीक़त से मिलाया…
सौरभ (सवाल) : वह कैसे?
माया (नर्मी से) : अगर तुम मुझे आज अपनी हाई क्लास पार्टी का हिस्सा नहीं बनाते, तो मैं अपना पोटेंशियल नहीं जान पाती।
सौरभ (सवाल) : कल तुम चली जाओगी... फिर कब आओगी...?
माया (उत्सुकता से) : जब मुंबई बुलाये।
सौरभ (नर्मी से) : तुम्हारे साथ बिताये ये दो दिन मुझे हमेशा याद रहेगा।
माया (नर्मी से) : मुझे भी…
माया और सौरभ की शाम का एक अच्छा अंत होता है जिसके बाद सौरभ उसे होटल छोड़ता है और अपने फ़्लैट निकल जाता है। दोनों इतने ज़्यादा थके होते हैं कि कोई किसी को कॉल नहीं करता। दोनों सो जाते हैं। माया सुबह वाली ही बस से पुणे वापस चली जाती है। सौरभ की नींद जैसे ही खुलती है, वह माया को कॉल करता है। नेटवर्क इशू होने की वज़ह से कॉल नहीं लगता। एक बार फिर माया अपने घर में, अपने आई बाबा के साथ होती है। इस बार उसके मन में मुंबई की ज़िन्दगी की अलग तस्वीर बनी होती है। माया, अब उस ज़िन्दगी को जीना चाहती है। जिसके लिए वह तय कर चुकी होती है कि अपनी मेहनत में कोई कसर बाक़ी नहीं छोड़ेगी। माया अपने कमरे में लेटी आराम कर रही होती है की, तभी उसकी आई आती है और कहती है…
(marathi accent) आता लग्नाला होकार घा बेटा, उमर निकल जायेगी तो कैसे करेगी?
माया : तू पुन्हा सुरुवात केलीस आई, मिल जाएगा लड़का, हो जायेगी शादी।
माया (चिढ़कर) : मगर वह कुछ नहीं करते, आई! शादी होने से ज़रूरी है, अच्छे इंसान से शादी होना।
माँ, बेटी की नोक-झोंक सुनकर, माया के बाबा भी अपनी बेटी की ही तरफदारी करने लगे। इसपर आई ने चिढ़ते हुए कहा कि माया को सिर पर चढ़ाने का श्रेय, सिर्फ़ और सिर्फ़, उसके बाबा को ही जाता है। आई बाबा के साथ कुछ पल बिताने के बाद, माया एक बार फिर सौरभ की यादों से बाहर निकलने लगी। उसे मन में पूरी तरह से ये बात बैठ गई कि उसे सिर्फ़ अपने आई बाबा की ख़ुशी देखनी है। अपने छोटे भाई केशव का सपना पूरा करना है। ख़ुद का घर लेना और solid bank balance बनाना है।
ये सब सोचने के बाद, माया की आँखें थकान से बंद होने लगी और वह सो गई. जैसे ही उठी, आई उसके लिए वरण भात बना रही थी, उसके बाबा पुरानी मराठी पिक्चर देख रहे थे और केशव अपनी ट्राफी साफ़ कर रहा था। माया ने ये सब अपने फ़ोन में रिकॉर्ड कर लिया। माया अपने छोटे से परिवार की ख़ुशी के लिए, बड़े से बड़ा रिस्क तक उठाने को तैयार रहती है। इस वक़्त उसकी लाइफ का सबसे बड़ा रिस्क सौरभ होने वाला है जिससे ना तो आज तक माया ठीक तरह से वाक़िफ़ है... और शायद ही कभी हो।
क्या माया की क़िस्मत सौरभ का सच उसके सामने लेकर आएगा? या लुट जाएगा माया का सब कुछ? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.