सौरभ के ज़रिये, माया के पास कोलाबा में होने वाले हिस्टोरिकल इवेंट को कवर करने की ओपर्चुनिटी आती है। जिसके बाद माया सारी तैयारियों में लग जाती है। एक हफ़्ते बाद, माया मुंबई आती है, जहाँ सौरभ उसे बस स्टॉप पर पिक करने आता है। दोनों, सौरभ के फ़्लैट पर जाते है।
माया, सौरभ का फ़्लैट देखते सौरभ का स्टैण्डर्ड ऑफ़ लिविंग का अंदाज़ा लगा लेती है। सौरभ उसकी आँखें देखकर, उसके सपनों में झाँक लेता है। माया के सपनों के तार छेड़े बिना ही उसे अन्दर आने को कहता है। वो माया को बिठाकर उसके लिए एक स्ट्रोंग फ़िल्टर कॉफ़ी बनाने किचन में जाता है। माया हॉल में बैठकर सौरभ के घर का कोना-कोना देखती है - modified cabinets, beautiful decoration, book racks और modern art! माया की नज़र सौरभ के बेडरूम में जाती है कि इतने में ही सौरभ, माया को कॉफ़ी देते हुए, उसे अपना फ़्लैट दिखाता है। सौरभ का आलीशान फ्लैट, बारीक़ी से देखने के बाद, माया ख़ुद में श्योर हो जाती है कि, जब भी वह अपना घर लेगी, इसी तरह का लेगी। दोनों सौरभ का फ़्लैट देखने के बाद, वापस हॉल में आकर बैठ जाते हैं।
सौरभ (नर्मी से) : Make yourself comfortable...
माया (सवाल) : आप कितनी किताबें पढ़ते हैं? आपके हर कमरे में किताबें रखी हुई है!
सौरभ (नर्मी से) : इतनी भी नहीं है, दरअसल इनमें से कुछ, सालों पुरानी किताबें हैं।
माया (सवाल) : पुरानी चीज़ों से इतना अटैचमेंट?
सौरभ (नर्मी से) : हाँ, पुरानी चीजें ही मुझे ज़िन्दा रखतीं हैं।
सौरभ की बातें सुनकर, माया उसकी तरफ़ अट्रेक्त होती जाती है। उसकी पोएटिक बातें उसे सच्ची लगने लगी थी। दोनों के बीच पुरानी बातों का सिलसिला चलता ही रहता है कि माया उसकी बात काटते हुए उससे कहती है…
माया (सवाल) : पुरानी चीज़ों में और क्या-क्या संभालकर रखा है?
सौरभ (मायूसी से) : ज़्यादा कुछ नहीं बस उसकी यादें।
माया (नर्मी से) : बुरा ना मानो, तो, क्या मैं उन्हें देख सकती हूँ?
सौरभ (नर्मी से) : इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है। वह मेरा पहला प्यार है और मुझे ख़ुद पर फ़ख्र है कि वह शख़्स मुझ में आज भी मौजूद है।
सौरभ, अपनी बातें कहते-कहते ही उठता है और गेस्ट रूम से पुराना बक्सा लेकर आता है। बड़ी उत्सुकता से माया की नज़रें, बक्से में अटकी होती हैं। वह देखना चाहती है कि एक मर्द प्यार में क्या कर सकता है? मगर उसे क्या मालूम जो शख़्स उसके सामने खड़ा है वह बस एक खोखला इंसान है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं। सौरभ अपने फ़रेब का चोला ओढ़े, उनमें रखी कॉपिज़, टूटे हुए क्रेयोंस, हल्की फटी चिट्ठियाँ, डॉट पेंस और एक झुमका, जिसे देखते हुए माया कहती है...
माया (गंभीरता से) : आपको देखकर यक़ीन हो गया की, प्यार में लड़कियों से ज़्यादा लड़के पागल होते हैं।
सौरभ (गंभीरता से) : हाँ, हम लड़के वक़्त रहते कुछ कह नहीं पाते, इसलिए पागल हो जाते हैं। वैसे थैंक यू सो मच।
माया (सवाल) : थैंक यू, पर मैंने क्या किया?
सौरभ (नर्मी से) : जिस सच को मैं एक्सेप्ट करने से डर रहा था, आपने मुझको उस सच से वाक़िफ़ करा दिया। मैं बहुत सालों बाद आज पहले से बेटर फील कर रहा हूँ। थैंक यू फॉर डूइंग सो।
सौरभ की बातें सुनने के बाद, माया के दिल में सौरभ के लिए सॉफ्ट कॉर्नर बढ़ता जाता है। किसी तरह माया अपने दिल का हाल छुपा लेती है। सौरभ के साथ बातें करते करते, दो घंटे कैसे बीत गए, माया को पता ही नहीं चला। उसने वक़्त देखा तो सौरभ से तुरंत होटल चलने के लिए कहा, हालाँकि सौरभ को इतना इमोशनल देखकर उसका जाने का मन तो नहीं था। सौरभ पर हक़ ना जमाते हुए उसने इस वक़्त चुप रहना ही ज़रूरी समझा। होटल पहुँचने तक माया और सौरभ ने एक दूसरे से कुछ भी नहीं कहा, बस माया इस बात को लेकर बहुत ख़ुश थी की उसकी वज़ह से कोई आज खुश हुआ है। बीस मिनट बाद, माया ने होटल में चेक इन किया। सौरभ ने उसे ड्रॉप करते हुए कहा की, वह एक घंटे बाद रेडी रहे। वह उसे पिक करने आएगा, जिसके बाद दोनों कोलाबा के एग्ज़ीबिशन ग्राउंड जायेंगे। माया अपने रूम में चेक इन करने के बाद भी सौरभ की बातों को याद कर रही थी, उसके अन्दर छुपे आशिक़ को देख रही थी ख़ासकर जिस तरह से उसने अपनी पुरानी चीजों को सहेजकर रखा है; कैसे उसने अब तक अपने पहले प्यार की निशानी संभाले रखी है। सौरभ के सच से अनजान, माया को अभी सौरभ में अपना प्यार दिख रहा है। इतने में माया ने टाइम देखा तो तुरंत ही रेडी होने चली गई। अपने वादे के मुताबिक, सौरभ ठीक एक घंटे बाद, होटल के सामने खड़ा था।
5 मिनट बाद, माया भी आ गई जिसके बाद दोनों एग्ज़ीबिशन ग्राउंड के लिए निकल गए। जैसे ही माया, ग्राउंड पहुँची उसने अपना काम शुरू किया। पहले पूरे सेक्शंस को बड़े ग़ौर से ओब्ज़र्व किया। हर सेक्शन में भारत के हर राज्य की ऐतिहासिक इमारतों का ढांचा और उससे जुड़ी कुछ अनसुनी कहानियाँ लिखी हुई थी। माया अपने काम में लग चुकी थी, और सौरभ उसे देखकर अपने आगे की प्लानिंग कर रहा था। वह, समझ चुका था कि, माया उन लड़कियों में से तो बिलकुल भी नहीं है जो चिकनी चुपड़ी बातों पर एक बार में यक़ीन कर लें। यही वजह थी कि उसने बक्से में पुरानी चीजें रखने का ढोंग किया। माया की सख्ती देखकर तो, एक बार को सौरभ के भी मन में आया की वह उसके पीछे ना जाए, मगर सौरभ जानता था कि उसे स्ट्रोंग इंडिपेंडेंट लड़कियों को ही कमज़ोर करने में मज़ा आता है। बस अपने इसी मोटिव के चलते सौरभ माया के पीछे लगा रहा, माया ने भी अपना काम ख़त्म किया। फिर वहाँ मौजूद सारे ऑफिसर्स का इंटरव्यू लिया जिसमें से कुछ ने तो माया का काम देखकर, उससे बातें भी की। सौरभ ये सब देखकर कुटिल हंसी हँसता रहा। माया जैसे ही अपना काम ख़त्म उसके पास आई सौरभ और वह कोलाबा के कैफ़े में कॉफ़ी पीने चले गए.
माया कैफ़े में बैठे-बैठे अपने बनाये वीडियोज़ देख रही थी। सौरभ कुछ देर चुप होकर उसे देखता रहा, जब उससे रहा नहीं गया तब उसने पूछ लिया…
सौरभ (सवाल) : आप अपने काम में इतनी ही उलझी रहती हैं?
माया (मुस्कुराकर) : इसे उलझना नहीं कहते।
सौरभ (सवाल) : फिर इसे और क्या कहते है?
माया (नर्मी से) : इसे कहते है मीडिया की दुनिया, जहाँ हर समय आपको अपडेटेड होना पड़ता है और अपने काम का अपडेट देना पड़ता है। बस इन वीडियोस को सोशल मीडिया डिपार्टमेंट को भेज दूँ, उसके बाद मेरा काम हो जाएगा।
सौरभ (हंसकर) : आप भी अतरंगी ही हैं?
माया (हंसकर) : अतरंगी नहीं हूँ, बस जुनूनी हूँ.... मुझे अपने काम में कोई भी गड़बड़ी नहीं चाहिए।
सौरभ (सवाल) : वैसे ऐसा पूछने वाला मैं कोई होता तो नहीं हूँ, मगर मैं फिर भी आपके सपनों के बारे में जानना चाहूँगा।
माया (सरलता से) : ख़ुद का घर, अच्छा बैंक बैलेंस, आई बाबा को उनकी पसंद की ज़िन्दगी देना।
सौरभ, अब पूरी तरह से समझ गया था कि माया की कमज़ोरी उसका परिवार के लिए प्यार है। अगर माया के दिल को कमज़ोर करना है तो उसको उसके परिवार जैसा फील कराना पड़ेगा। सौरभ, माया को समझने के बाद, अपनी अगली प्लानिंग में लग जाता है और ये तय करता है कि इसके बाद वह माया को नेहरु आर्ट गैलरी लेकर जाएगा। सौरभ जैसे ही माया से आर्ट गैलरी के लिए पूछता है वह मान जाती है और दोनों निकल पड़ते है।
माया को सौरभ का साथ अब धीरे-धीरे अच्छा लगने लगता है। सौरभ, माया को अपने फ़रेब दिखने वाले सच्चे प्यार का एहसास कराते जाता है। सौरभ इस बीच माया से उसके बचपन के किस्से सुनता है। जिस तरह से सौरभ माया को सुनता है, वह देखकर माया थोड़ी shocked हो जाती है, क्योंकि इससे पहले सबने माया की सिर्फ़ काम की बातें सुनी है। उसके दिल में झाँकने की कोशिश किसी ने नहीं की... वह पहला ऐसा शख़्स सौरभ ही है, जिसने उससे सिर्फ़ उसकी बातें की, जिससे की माया को ख़ुद के होने का एहसास होना शुरू हुआ।
थोड़ी देर बाद दोनों, नेहरु आर्ट गैलरी के सामने थे। सौरभ ने माया को आर्ट गैलरी के सामने ड्रॉप किया और अपनी कार पार्क करने चल गया। माया, सौरभ के लिए वहीं रुकी रही। सौरभ, 5 मिनट में ही आ गया और दोनों एक साथ अंदर गए. जब आखिरी बार दोनों की मुलाक़ात हुई थी, तब दोनों अलग-अलग थे, आज इसी जगह पर दोनों साथ आये हैं। सब की तरह, माया और सौरभ भी नेहरु आर्ट गैलरी की खामोशी में ख़ुद को सुन रहे थे। सौरभ अपने भीतर छुपे फ़रेब को और माया अपने भीतर छुपे प्यार को टटोल रही थी।
गैलरी में तस्वीरों को देखते-देखते दोनों की नज़रें जैसे ही रोमांटिक तस्वीर के सामने पहुँचे, सौरभ की सांसें तेज़ होने लगी। माया ने जैसे ही सौरभ का बेचैन होना देखा, वह उसे बाहर ले गई और दोनों कार में बैठ गए. कार में बैठने के बाद भी, सौरभ की बेचैनी ख़त्म नहीं हुई. उसकी हालत देखते हुए, माया ने ख़ुद ड्राइव किया और उसे उसके फ़्लैट तक लेकर आई. जैसे ही दोनों सौरभ के फ़्लैट पर पहुँचे सौरभ ने माया को ज़ोर से गले लगा लिया। सौरभ की घबराहट देखते हुए, माया ने भी सौरभ को नहीं रोका जिस भरोसे के साथ सौरभ ने माया को गले लगाया, वह भरोसा, वह एहसास माया को पहली बार हुआ था। धीरे-धीरे सौरभ नॉर्मल हुआ। माया ने तुरंत डाइनिंग टेबल पर रखा पानी का गिलास, सौरभ को लाकर दिया। आधे घंटे तक सौरभ और माया ने एक दूसरे से बात भी नहीं की, माया के लाख पूछने पर भी सौरभ ने कुछ नहीं कहा, बस उसकी तरफ़ देखता रहा। माया ने जब आखिरी बार उससे पूछा...…
माया (सवाल) : मोहित बताओ तो आख़िर बात क्या है?
सौरभ (मोहित ... भारी आवाज़ में) : उस तस्वीर में मुझको मेरा बीता कल दिख गया, मैं ख़ुद को संभाल नहीं पाया।
माया (नर्मी से) : कोई बात नहीं, मैं हूँ अभी। आप जो कहना चाहते हैं कह सकते हैं।
सौरभ (भावुक होकर) : मुझे रोना था खुलकर और आज आपके सामने अपने इतने सालों के छुपे दर्द को बाहर निकालकर रो लिया। आज आपने मेरे सबसे बड़े डर को ख़त्म किया है माया।
सौरभ की बातें एक बार फिर माया के दिल पर अपना घर बनाने लगी थी। माया इस बात से खुश थी कि वह सौरभ के इतने करीब आ पाई कि उसकी मरहम बन गई. सौरभ अपने रचे खेल में एक बार फिर जीत रहा था। उसने माया का भरोसा काफ़ी हद तक जीत लिया। जैसे ही माया जाने वाली थी सौरभ ने उसे रोका और कहा कि आज का डिनर वह उसके फ़्लैट पर ही करें, मगर माया ने मना कर दिया। अपना जेंटलमैन साइड दिखाने की फ़िराक में सौरभ ने उससे कुछ नहीं कहा। माया इस बार अकेली ही अपने होटल गई जहाँ वह जाकर सौरभ के बारे में सोच रही थी। इस बात से माया हैरान थी कि कोई प्यार में इतना कैसे डूब सकता है। उसे ख़ुद भी नहीं पता चल रहा था कि वह कब सौरभ से प्यार करने लगी थी। इसलिए उसका ख़याल, उसकी बातें, माया के दिमाग़ पर इतना ज़ोर डाल रही हैं।
क्या माया समझ पाएगी, जिसे वह पहला प्यार समझने की गलती कर रही है? खैर ये जानना दिलचस्प होगा की माया कैसे सौरभ से ख़ुद को बचाएगी? जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
No reviews available for this chapter.