सौरभ अपनी झूठी प्रेम कहानी का किस्सा, माया को बताता है। माया ना चाहते हुए भी सौरभ के लिए अपने दिल में जगह बनाती जाती है। प्यार कहाँ कभी किसी को बताकर दस्तक देता है, ये बिन बताये आता है और ज़िन्दगी भर के लिए ग़म दे जाता है, जिससे उभरने के लिए कुछ लोगों को एक ज़िन्दगी भी कम पड़ जाती है । सौरभ, माया का चेहरा देखते ही समझ जाता है कि उसकी झूठी कहानी ने माया के दिल में असर करना शुरू कर दिया है। कुछ देर मरीन ड्राइव में साथ वक़्त बिताने के बाद, माया की दोस्त आती है और दोनों पुणे के लिए निकल जाते हैं। सौरभ और माया एक दूसरे को जाते हुए देखते है। माया की नज़रों में प्यार झलकता है और सौरभ की नज़रों में फ़रेब, जिसे वह प्यार के चोगे से ढकने की कोशिश करता और कामयाब भी हो जाता है।
माया अपनी दोस्तों के साथ होने के बावजूद भी सौरभ के ख़यालों में ऐसे डूब चुकी थी, जैसे नदी में डूबता है पत्थर। वैसे ये हाल सिर्फ़ माया का ही नहीं, बल्कि हर उस लड़की का है जो प्यार में ख़ुद को पागल बना लेती है। वह माया जिसे प्यार से दूर रहना पसंद था, जिसने अपनी ज़िन्दगी में आजतक कभी किसी को आने नहीं दिया था, जिसने इश्क़ सिर्फ़ सपनों से किया था, आज वह पहली बार किसी के लिए प्यार महसूस कर रही थी। बस की खिड़की से अपना सर टिकाये सौरभ के साथ अपनी छोटी-छोटी मुलाकातों में बनाई हुई हसीं यादें सहेज रही थी। जिस माया का काम सच्चाई की तह तक जाना था, वह आज अपने ख्यालों की दुनिया में ख़ुद को सौरभ के साथ सोचकर खुश हो रही थी। एक तरफ़ उसकी सारी सहेलियाँ एक दूसरे से बातें करने में लगी हुई थी, वहीं दूसरी तरफ़ माया अपनी आँखें बंद किये हुए खुदको सौरभ के साथ, पावना झील पर देख रही थी, जहाँ वह सौरभ से कह रही थी..
माया (प्यार से) : तुमने ख़ुद को दूसरा मौका क्यों नहीं दिया मोहित?
सौरभ (दुखी होकर) : एक बार किसी को टूटकर चाह लिया जाए, तब दूसरे मौके की कोई कसर बाक़ी नहीं रहती।
माया (सवाल) : ...और अगर तुम्हें वह दूसरा मौका मिल जाए तो?
सौरभ (गंभीरता से) : अब तक वह मौका आया नहीं है, अगर आया तो देखेंगे। वैसे तुमने क्यों ख़ुद को रोक रखा है?
माया (नर्मी से) : कोई मुझको समझने वाला मिला ही नहीं।
माया अपनी ख़्वाबों में, सौरभ के साथ बातों में लगी हुई थी। दुनिया से दूर, वह ख़्वाबों में हक़ीक़त तलाश रही थी। ख़यालों में भी सौरभ की आवाज़ सुनकर उसे सुकून मिल रहा था। माया अपने ख्यालों में इतनी उलझी हुई थी की, उसे पता भी नहीं चला कैसे साढ़े तीन घंटे बीत गए! जब माया की दोस्त ने उसे जगाया तब उसकी आँखों के सामने, बस स्टॉप का शोरगुल, लोगों की आवाज़ें, आसपास में होती चहल पहल थी।
माया जैसे ही नींद से जागी, उसके मन में एक अफ़सोस था। मोहित, मतलब सौरभ, से उसका contact number ना ले पाने का अफ़सोस। माया बस स्टॉप पर अपनी दोस्तों को see-off करके, ऑटो में बैठकर घर निकल जाती है।
अपने आदत के अनुसार, माया घर आते ही सीधे अपनी आई के पास गई जहाँ उसने रट्टू तोते की तरह मुंबई में किया हुआ अपना काम और लोगों से मिले कोम्प्लिमेंट्स के बारे में बताया। आई, माया की बात सुनकर खुश हो रही थी। इतने में ही उसके बाबा आये और माया तुरंत अपने बाबा के साथ बैठकर, अपने काम के बारे में बातें करने लगी। अपने काम की फ़ोटोज़ और वीडियोज़ दिखाने लगी। अपने आई-बाबा के हँसते हुए चेहरे देखकर माया के मन से सौरभ की छवि धुंधली होने लगती है। थोड़ी देर घरवालों के साथ बैठने के बाद, माया अपने कमरे में जाती है और थककर बिस्तर पर लेट जाती है। उसी वक़्त उसे एक बार फिर सौरभ का ख़याल आता है। माया, इस बार उस ख़याल को हटा देती है, मगर जो शख्स, मन में बस गया हो उसके ख़याल से पीछा छुड़ाना नामुमकिन है। माया कुछ देर करवट बदलती रही, जब उसे कुछ भी समझ नहीं आया, तब उसने शावर लेना ठीक समझा। जैसे ही वह बाहर आई उसके बाबा ने उसे खाने की टेबल पर बुलाया।
माया टेबल पर आकर बैठी। उसके बाबा ने, उसके सामने तीन, चार लड़को की फ़ोटोज़ रखी और उसकी तरफ़ देखते हुए कहा कि जो भी उसे पसंद आ रहा है, वह उसके बारे में बता दे। माया ने उन तस्वीरों को बिना देखे ही कह दिया की, वह अभी शादी के लिए ready नहीं है। माया के मुंह से एक बार फिर शादी के लिए ना सुनकर, उसकी आई ने अपना लहजा सख्त करते हुए कहा कि, "उम्र निकल जाने के बाद लड़के नहीं, आदमी मिलते है"। हर बार की तरह माया ने अपनी आई की बातों को अनसुना करते हुए अपने बाबा से कहा कि, वह शादी से इंकार नहीं कर रही है, बस उसे शादी से पहले अपना घर चाहिए, solid बैंक बैलेंस चाहिए,emotional security से पहले financial security चाहिए। माया ने बचपन में देखा था, अपने बाबा को साइकिल से ऑफिस जाते हुए, अपनी माँ को कपड़े सिलते हुए... त्यौहारों में अपनी आई को दूध शक्कर का भोग लगाते हुए, अपनी पुरानी साड़ी से माया के लिए ड्रेस और उसके छोटे भाई केशव के लिए कुर्ता सिलते हुए। तब से माया ने ठान लिया था कि अपनी मेहनत से वह सबसे पहले घर ख़रीदेगी।
जैसे ही सबने रात का खाना खाया सब अपने-अपने कमरे में चले गए. माया भी कमरे में आकर, अपने वीडियोज़ के व्यूज़ और मैसेजेस देखने लगी। उसी वक़्त उसे अपने डी एम में एक appreciation note मिला जिसमें उसके काम की तारीफ़ लिखी हुई थी और नीचे लिखा हुआ था - मोहित गांगुली। माया जितनी खुश उस appreciation note से नहीं हुई थी, उतनी ज़्यादा खुश वह नाम देखकर ख़ुश हो गई थी। माया ने तुरंत ही मैसेज का रिप्लाई दिया और दोनों में बातें शुरू हो गई। हमेशा बेबाक रहने वाली माया के गाल, सौरभ से चैटिंग के दौरान लाल पड़ गए थे! वक़्त के साथ बातें इतनी बढ़ गई की रात के दो बज गए। माया का ध्यान जब वक़्त पर गया तब उसने गुड नाईट लिखा। माया के मेसेज करने के बाद सौरभ ने उससे उसके कुछ रिपोर्टिंग की क्लिप्स मंगाई। Clips भेजने के लिए माया ने उससे उसका नंबर मांगा और अपने रिपोर्टिंग वीडियोज़ उसे भेजे. सौरभ ने उस वक़्त उसे कुछ भी नहीं कहा। माया भी सो गई.
जहाँ माया सौरभ से बातें करने के बाद बहुत स्पेशल फ़ील कर रही थी, वहीँ दूसरी तरफ़ सौरभ उसे छलने की प्लानिंग पर लग चुका था। सौरभ का पाला पहली बार ऐसी लड़की से पड़ा जिसे सच्चाई की तह तक जाना पसंद था, मगर सौरभ माया का स्वभाव जान चुका था। उसने उसकी नब्ज़ पकड़ ली थी कि माया का विश्वास सिर्फ़ प्यार से जीता जा सकता है, इसके अलावा कोई भी पैंतरा माया के मज़बूत मन को कमज़ोर बनाने में काम आएगा।
अगली सुबह माया अपने कमरे से बाहर निकली तो देखा कि उसके बाबा लोकल न्यूज़ चैनल, जहाँ वह काम करती है, उसपे न्यूज़ देख रहे थे। उसकी आई शनिवार की परंपरा निभाते हुए, पाव भाजी बना रही थी और उसका छोटा भाई केशव आज माया की ख़रीदी हुई सेकंड हैण्ड कार लेकर अपने कॉलेज गया था। माया को अपने परिवार के साथ धीमी गति से गुज़रने वाला शनिवार बहुत अच्छा लगता था। हर एक लम्हें में प्यार और अपनापन। शनिवार और रविवार की छुट्टी होने के कारण, माया पूरे दिन कभी आई के साथ घर के काम में मदद करती, तो कभी अपने बाबा के बालों में डाई लगाती। जैसे ही शाम हुई, माया चाय का कप लिए, अपानी बालकनी में खड़े होकर नीचे खेल रहे बच्चों को देख रही थी। उसे अपना और केशव का बचपन याद आ गया जहाँ वह दोनों छुट्टियों में वो दोपहर में निकलते तो सीधे दिन ढलने के बाद घर आते। उनके गंदे कपडे और हाथ पांव देखकर, आई ख़ूब डांट लगाती। माया बालकनी पर खड़े होकर अपने ख्यालों में खोई हुई थी। उसी वक़्त उसे सौरभ का कॉल आया। स्क्रीन पर नाम देखकर माया को यक़ीन नहीं हुआ और उसने ख़ुद को ज़ोर से पिंच किया। जब उसे ये एहसास हुआ कि ये हक़ीक़त है तब उसने कॉल उठाया ...…
सौरभ (गंभीरता से) : हाय, कैसी हो?
माया (नर्मी से) : अच्छी हूँ, बालकनी में चाय पी रही हूँ।
सौरभ (सवाल) : कोई सैटरडे प्लान्स नहीं?
माया (नर्मी से) : नहीं, इस सैटरडे का तो नहीं है।
सौरभ (मुस्कुराकर) : अगले सैटरडे, मुंबई आने का प्लान बनाओ.
माया (सवाल) : किस ख़ुशी में?
सौरभ (नर्मी से) : ख़ुशी में नहीं बाबा, काम में। यहाँ कोलाबा में एक हिस्टोरिकल एग्ज़ीबिशन लगने वाला है। तुम चाहो तो इसे कवर करने आ सकती हो।
माया (सामान्य तरह से) : ऐसे एग्ज़ीबिशन लगते रहते हैं।
सौरभ (नर्मी से) : मोहतरमा! आप अपना मेल चेक कीजिए।
सौरभ के कहने के बाद, माया ने तुरंत अपना मेल चेक किया जिसपर ये लिखा हुआ था कि, उसे इंडिया के सबसे बड़े हिस्टोरिकल एग्ज़ीबिशन को कवर करने के लिए उसे बुलाया जा रहा है। माया ने जैसे ही मेल पढ़ा, वह ख़ुशी से चिल्लाने लगी, छोटे बच्चे की तरह चिल्ला चिल्लाकर, अपने आई बाबा को इस ओपर्चुनिटी के बारे में बताने लगी। माया ने अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने के बाद, सौरभ को कॉल किया और उससे पूछा…
माया (चहकते हुए) : अब समझ आया, आपने मेरी वीडियोज़ किस लिए मांगी थी!
सौरभ (नर्मी से) : हाँ, मैंने जब एग्ज़ीबिशन का पोस्टर देखा तब तुम्हारा ख़याल आया, पर कन्फर्म नहीं हुआ था, तो तुमसे कुछ कहा नहीं।
माया (ख़ुशी से) : थैंक यू सो मच मोहित, ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात है।
सौरभ (ख़ुशी से) : मुझे थैंक यू मत कहो, तुम्हारे काम की वज़ह से तुम वहाँ हो। मैं बस ज़रीया हूँ।
ये ख़बर मिलने के बाद, माया ने अपने काम पर और जान डालनी शुरू कर दी। रोज़ाना आवाज़ के रियाज़ के साथ साथ, पढ़ना भी शुरू किया। माया, शुरू से ही अपने सपने के पीछे पागल रही है, अपने हाथ आई इस ओपर्चुनिटी को वह खोना नहीं चाहती थी। माया ने ऑफिस रिपोर्टिंग के साथ साथ, इस काम की तैयारी भी शुरू कर दी। हर दिन ऐतिहासिक इमारतों का पॉडकास्ट सुनना, उनसे जुड़े फैक्ट्स निकालना और ख़ुद के साथ अपने ही बनाये सवालो पर तर्क वितर्क करना। देखते ही देखते वह दिन आ ही गया और माया बस से मुंबई आ गई। अब की बार माया जिस माया नगरी में आई थी, वह उसे कुछ ख़ास फील कराने वाली थी।। जिसके बारे में उसे पता भी नहीं था। जैसे ही माया बस से उतरी, उसे अपने ठीक सामने, मोहित दिख गया। माया शौक्ड थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह उसे देखकर क्या कहे? माया के फेशियल एक्सप्रेशंस देखकर, मोहित ने पहले बात शुरू करते हुए कहा।
सौरभ (सवाल) : ऐसे क्या देख रही हो, जैसे कोई भूत देख लिया हो?
माया (नर्मी से) : कुछ नहीं, बस आपको यहाँ एक्स्पेक्ट नहीं किया था।
सौरभ (सामान्यता से) : मैं यहीं था, तो सोचा तुम्हें पिक कर लूँ।
माया (नर्मी से) : थैंक यू फॉर बींग अ जेंटलमैन।
सौरभ (नर्मी से) : You are most welcome! अगर तुम कम्फ़र्टेबल हो तो घर चलें? तुम्हारे चेक इन में अभी दो घंटे बाक़ी हैं।
माया (सामान्यता से) : Yes, not a bog deal for me...
सौरभ की बात मानते हुए, माया उसके साथ उसके फ़्लैट पर जाने के लिए निकल गई। दोनों ने पूरे रास्ते काम की ही बातें की। आधे घंटे बाद, माया सौरभ के फ़्लैट के सामने थी। उसने बिल्डिंग के सामने खड़े होकर ही ये अंदाज़ा लगा लिया था कि, सौरभ हाई क्लास सोसाइटी में रहता है। दोनों लिफ्ट से सीधे 8th फ्लोर पर गए. सौरभ ने जैसे ही फ़्लैट का दरवाज़ा खोला और घर की लाइट्स ऑन की, माया को ऐसा लगा जैसे वह कोई सपना देख रही हो। सौरभ समझ गया कि माया फ़्लैट देखकर काफ़ी इम्प्रेस हुई है। माया ने अपने लिए जैसा घर सोचा-सोचा था। सौरभ का घर बिलकुल वैसा ही था।
क्या माया इस चकाचौंध वाली दुनिया का हिस्सा बनेगी? क्या सौरभ का जादू माया पर चलेगा? क्या माया, सौरभ के माया जाल से बच पाएगी?
जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।
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