मुलाकातों का सिलसिला अब शुरू हो चुका है - पहली बार इत्तेफ़ाक, दूसरी बार तलब और अब आगे देखना ये है कि सौरभ और माया का मिलना किस तरह से होता है। अपनी इस अधूरी मुलाक़ात में सौरभ, माया के मन में अपनी जगह बनाने में कामयाब होता है। माया इस बात को नहीं स्वीकारती, उसके लिए इमोशंस, सिर्फ़ आंसू बहाने का ज़रिया है, जो उसे कमज़ोर बनाता है। सौरभ भी माया को देखकर इस बात का अंदाज़ा लगा लेता है कि माया इतनी जल्दी हाथ में आने वालों में से नहीं है पर सौरभ को ये यक़ीन हो जाता है कि ऊपर से सख्त दिखने वाली माया अन्दर से कमज़ोर है। उसे प्यार की ज़रुरत है और सौरभ को औरों की ज़रुरत का ख़याल बहुत अच्छे से आता है।

सौरभ फेस्ट से निकलता ही है कि उसकी नज़र माया पर पड़ती है, जो अकेली इवेंट के मेन गेट पर खड़ी कैब का इंतज़ार कर रही है। सौरभ अपनी कार रोककर माया से कहता है......

सौरभ (नर्मी) : हे, किसी का वेट कर रही हो?

माया (परेशान होकर) : हाँ, लास्ट मोमेंट पर कैब वाले ने cancel  कर दी... अब दूसरे cab की वेट कर रही हूँ.…

सौरभ (गंभीरता से) : अगर तुम्हें बुरा ना लगे तो, मैं तुम्हें ड्रॉप कर सकता हूँ।

माया (मज़ाकिया) : आप मुझे ठीक ठाक इंसान लग रहे हैं... मेरे पैसे तो लेकर नहीं भागेंगे?

सौरभ (हँसते हुए) : चिंता मत कीजिये, मैं छोटी मोटी चोरी नहीं करता। ये बताइये आपको कहाँ जाना है?

माया (नर्मी से) : होटल इरा, कोलाबा।

सौरभ (खुश होकर) : मेरा भी फ़्लैट वहीं है। जब मंज़िल एक है तब एक ही गाड़ी में सफ़र करने में कैसी दिक्कत?

माया (सवाल) : क्या ये लिटरेचर फेस्ट का असर है?

सौरभ (गंभीरता से) : ऐसा ही कुछ समझ लीजिये।

एक बार फिर प्यार ने दस्तक दे दी थी। एक बार फिर किसी का दिल बहुत ज़ोर से धड़कने वाला था। माया इस एहसास को अपने मन के ऊपर हावी होने नहीं देती। माया का प्यार को लेकर कॉन्सेप्ट क्लियर था - जिससे दिल गहराई से लगाया जाए, वह उतना ही गहरा घाव दे जाता है, खैर। इस वक़्त गाड़ी में बैठे सौरभ और माया के बीच ऑकवर्ड साइलेंस था, जो सौरभ ने कुछ फ़िल्मी गीतों को चलाकर तोड़ दिया। माया भी गानों को लेकर अपनी पसंद बताने लगी जैसे उसे रॉक म्यूजिक पसंद है, मगर कॉन्सर्ट में जाना उसके लिए एक बड़ा टास्क है। कुछ देर दोनों में सिर्फ़ फ़िल्मों को लेकर बात चलती रही जिसके बाद सौरभ ने माया से पूछा...

सौरभ (सवाल) : अब तो लिटरेचर फेस्ट ख़त्म, तो कब लौट रहीं हैं आप अपने शहर?

माया (नर्मी से) : मुंबई आकर एक दिन में कौन लौटता है? एक्चुअली कल मैं और मेरी फ्रेंड्स ने, कोलाबा की आर्ट गैलरी जाने का प्लान बनाया है।

सौरभ (नर्मी से) : हे व्हाट अ कोइंसिडेंस, कल तो मैं भी जा रहा हूँ।

माया (उत्सुकता से) : लेट्स सी, कल हम मिलते हैं या फिर बिना मिले ही मैं अपने शहर लौटती है।

सौरभ (प्यार से) : आप जानती नहीं हैं मोहतरमा! माया, बहुत ज़्यादा मोह से दूर नहीं रह पाती।

माया (मुस्कुराकर) : उफ़! Too poetic for me, Mr Ganguly.…

सौरभ जैसे ही माया को होटल ड्रॉप करके अपने फ़्लैट की तरफ़ बढ़ता है, वह होटल से थोड़ी दूर पहुँचकर ख़ुद से कहता है…

सौरभ (उत्सुकता से) : पहला क़दम तो कामयाब रहा, बिचारी को पता भी नहीं चला कब उसने अपनी कमज़ोरी मेरे सामने ज़ाहिर कर दी। अब आई है गेंद मेरे पाले में। Just wait and watch, तुम्हारा confidence कैसे ख़त्म होता है!  

सौरभ के दिमाग में षड्यन्त्र ऐसे घूमने लगे जैसे आसमान में गिद्ध घूमते हैं, शिकार पर टूटने के पहले। वह अपनी ही बातों पर ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगता है, उसी वक़्त पास से गुज़रता एक शख्स, सौरभ को देखकर ताना कसते हुए कहता है, "What’s there to laugh? Mad or what?"  सौरभ उस अजनबी इंसान को कुछ नहीं कहता, पर उसके जाते ही हँसते-हँसते वह अपने आप से बुदबुदाता है…

सौरभ (सरफिरा) : ये दुनिया मुझे पागल कहती है, कहेगी भी -  अलग जो हूँ, लेकिन ये दुनिया वाले क्या जाने? जितना ये मेहनत करके महीनों में कमाते हैं, उतना तो मैं बिना मेहनत किए सिर्फ़ एक महीने में कमाता हूँ। बड़ा बेवकूफ़ है वह शख़्स जो ये समझता है कि hardwork is the key to success बल्कि सच तो ये है कि shortcut is the key to success, बस इंसान को उसका motive clear होना चाहिए। जैसे मुझे है...  मैं जानता हूँ मुझे सिर्फ़ लड़कियों को इमोशनली अंडरएस्टीमेट करना है और फिर मुझे कुछ करने की ज़रुरत ही नहीं।

सौरभ इस बार अपनी चाल ब्लाइंड चलता है, सिर्फ़ इस जुनून में कि उसे हर हाल में माया अपने पास चाहिए। सौरभ को ये बात अच्छे से पता थी कि अगर कल माया से मुलाक़ात नहीं भी हुई तो उससे मिलने का क्लू आर्ट गैलरी से तो मिल ही जाएगा। माया को होटल ड्रॉप करने के बाद जब सौरभ अपने फ़्लैट वापस आता है, तब पहली बार उसके दिमाग़ में कोई ख़याल नहीं होता। वह अपने आपको फ्रेश रखना चाहता था। अगली सुबह उठते साथ ही सौरभ शीशे के सामने खड़े होकर ख़ुद से कहता है…

सौरभ (ख़ुश होकर) : गुड मोर्निंग मिस्टर सौरभ, आज का दिन आपका दिन है। अपने चेहरे पर सीरियसनेस रखना है, कुछ भारी शब्दों के कलेक्शंस दिमाग़ में रखने हैं और माया सेट। Let’s win this game! Again!

टाइम का अंदाज़ा लगाते हुए, सौरभ 12: 30 बजे आर्ट गैलरी में पहुँच जाता है। जहाँ अचानक उसे रितिका की झलक याद आ जाती है। सौरभ के मन को समझने वाली अब तक सिर्फ़ वही  लड़की थी, जिसे सौरभ ने अपनी काली करतूतों की वज़ह से गंवा चुका था। सौरभ ने अपने दिमाग़ से रितिका का खयाल ऐसे हटाया जैसे गाड़ी का wiper बारिश के पानी को हटाता है। अब वह पेंटिंग्स देखने लगा। उसी वक़्त पीछे से उसे किसी ने आवाज़ देते हुए कहा।

माया (चहककर) : यू वर राईट, क़िस्मत अच्छी है आपकी!

सौरभ (चहककर) : मैंने कहा था मोह, ज़्यादा देर तक माया से दूर नहीं रह पायेगा।

माया (इतराते हुए) : मैं कोइंसिडेंस में बिलीव नहीं करती।

सौरभ (नर्मी से) : मैं इसे कोइंसिडेंस नहीं मानता। आज तुम नहीं भी आती तब भी मेरा आना तय था।

माया (सवाल) : तो ये आपकी पसंदीदा जगह है?

सौरभ (नर्मी से) : ये मेरी हीलिंग प्लेस है...  मैं यहाँ जब भी आता हूँ इन तस्वीरों में अलग-अलग कहानियाँ ढूँढता हूँ।

माया (ख़ुशी से) : वैसे मैं ये कहती नहीं किसी से पर आपसे कह रही हूँ - आप अलग हैं।

सौरभ (खुश होकर) : इस इज्ज़त अफज़ाई का शुक्रिया।

माया और सौरभ, अलग-अलग डायरेक्शन में पेंटिंग्स देखने लगते हैं। सौरभ, इस बार ये देखना चाह रहा था की, माया की नज़र कितनी बार उसपर पड़ती है, एक घंटे बाद जैसे ही दोनों, फिर से टकराए, दोनों ने एक दूसरे को देखकर स्माइल किया, पास से गुज़रते वक़्त सौरभ ने माया से पूछा…

सौरभ (सवाल) : कोई पेंटिंग पसंद आई?

माया (नर्मी से) : हाँ 3-4, तुम्हें कितनी कहानियाँ मिली?

सौरभ (गंभीरता से) : सिर्फ़ एक

माया (सवाल) : बस एक?

माया की बातें सुनकर, सौरभ श्योर हो गया था की, उसे भी बात करनी है, पर कह नहीं पा रही थी। सौरभ, माया के इंटरेस्ट को देखते हुए, उससे कॉफ़ी के लिए पूछता है। उसी वक़्त माया कहती हैं कि उसे कॉफ़ी नहीं, बल्कि मौसम को देखते हुए, मरीन ड्राइव पर चाय पीनी है। सौरभ, उसकी हाँ में हाँ मिलाता है और दोनों पहले रास्ते में चाय पीते हैं फिर मरीन ड्राइव के लिए निकल जाते हैं। अगले आधे घंटे में, सौरभ की कार, मरीन ड्राइव के सामने होती है। जिसे देखते हुए, माया कहती है

माया (चहककर) : मुझे मुंबई सिर्फ़ मरीन ड्राइव की वज़ह से पसंद है।

सौरभ (सवाल) : आप थोड़ी अतरंगी हैं क्या?

माया (ख़ुश होकर) : कोई शक? वैसे आपने मेरे प्रोफेशन को तो जान लिया, अब अपने प्रोफेशन के बारे में भी बताइये...

सौरभ (गंभीरता से) : कुछ ख़ास नहीं कर रहा हूँ...  ख़ुद को पन्नो में तलाशता हूँ। दरअसल मैं पी एच डी स्कॉलर हूँ, हिन्दी लिटरेचर में।

माया (ख़ुश होकर) : अच्छा, अब मैं समझी, तुम इतनी पोएटिक बातें क्यों करते हो...

सौरभ (हँसते हुए) : थोड़ी देर बैठोगी तो अपने आप पता चलेगा, मैं सर्कास्टिक बातें भी करता हूँ।

माया (नर्मी से) : आई नो, आप कवि लोग हर एक बात पर जज़्बाती हो जाते हैं!

सौरभ (सवाल) : क्या ऐसा करना ग़लत है?

माया, धीरे-धीरे सौरभ को समझने लगी थी। दोनों एक दूसरे के प्रोफेशन के बारे में बातें करने लगे थे। उसी वक़्त माया, सौरभ से पूछती है।

माया (सवाल) : कौन थी वह? जिसके लिए आपने लिटरेचर चुना?

सौरभ (नर्मी से) : स्कूल का प्यार, वह भी क्लास 10th का।

माया (सवाल) : कितने साल साथ रहे?

सौरभ (मायूस होकर) : मैं उससे कभी कह नहीं पाया कि वह मुझे पसंद है...

माया (सवाल) : और अब कहाँ है वह?

सौरभ (दुखी होकर) : चार साल पहले उसने सुईसाइड कर लिया।

माया (दुखी होकर) : मुझे माफ़ कर दो, मुझे ऐसे मज़ाक नहीं बनाना चाहिए था।

माया, कन्वर्सेशन को बदलते हुए, बात आगे बढ़ाती है, एक बार फिर दोनों अपने-अपने प्रोफेशन को लेकर बातें करते हैं, अपने ड्रीम्स डिस्कस करते हैं। माया, सौरभ को बताती है कि, कैसे उसने जर्नलिस्ट बनने के लिए अपने घरवालों से लड़ाई की थी। सौरभ, माया को सुनने, समझने के बाद ये तो ख़ुद को समझा लेता है कि माया बाघी क़िस्म की लड़की है। मगर, सौरभ के हाथों में भी, माया की कमज़ोरी आ जाती है। अब की बार सौरभ उससे कहता है।

सौरभ (नर्मी से) : वैसे लड़कियाँ भी अपनी नज़रे चुराती हैं…

माया (सवाल) : मतलब?

सौरभ (प्यार से) : मतलब ये की अगर तुम आर्ट गैलरी में मुझे देख रही थी, तो आई क्यों नहीं बात करने?

माया (सवाल) : कौन-सा रिश्ता दोस्ती में तब्दील होगा और कौन-सा प्यार में, ये समझ आ जाता है।

सौरभ (सवाल) : आप इतने यक़ीन के साथ कैसे कह सकती हैं?

माया (नर्मी से) : जिस यक़ीन के साथ, तुम कहते हो।

सौरभ (नर्मी) : मैं भी मोहब्बत से दूर ही भागता हूँ, इसलिए हमारे बीच मोहब्बत का रिश्ता तो नहीं होगा। अब बची दोस्ती तो उसपर तुम सोचो...

माया को सौरभ का इतना स्पष्ट बात करना अच्छा लगा था इसलिए उसने कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुरा दिया।

सौरभ और माया बात कर ही रहे थे की, अचानक मौसम बदल गया। मरीन ड्राइव पर बैठे लोग उठकर भागने लगे। बस जो प्यार में थे वह ठहर गए।  इन प्यार करने वालों में, सौरभ और माया भी शामिल थे। माया जैसे ही जाने लगी,  सौरभ ने उसका हाथ पकड़कर उसे रोक लिया और कहा

सौरभ : दिल का भार इस बारिश के साथ बह जाने दो...

सौरभ की बातें सुनकर, माया अपने दोनों हाथों को खोलकर, अरब सागर की तरफ़ चेहरा घुमाती है और बारिश की हर एक बूँद को महसूस करती है। उसके शरीर पे पड़ती बारिश की बूँदें, माया के मन में जमी ग़लतफ़हमियों को धो रहे थे जिससे उसका मन हल्का हो रहा था…

जैसे ही बारिश थमती है, माया के अन्दर का गुस्सा, नाराजगी सब धूल चुका होता है और इस भयंकर तूफ़ान और बारिश के बाद उसके मन में खिलने लगता है प्यार का फूल। इससे पहले कि सौरभ कुछ कह पाता, माया की दोस्त उसे लेने आ जाती है। माया सौरभ से सिर्फ़ इतना कह पाती है कि वह ये पल भी नहीं भुलेगी। माया के इस जेस्चर से सौरभ को कन्फर्म हो जाता है कि माया अब उसके बारे में ज़रूर सोचेगी। दो दिन सौरभ के साथ बिताने के बाद, माया वापस पुणे चली जाती है।  

क्या सौरभ, माया के पीछे जाएगा?  क्या उसका फितूर उसे मुंबई से पुणे ले जाएगा, या ये कहानी, यहीं अधूरी रह जायेगी?

जानने के लिए पढ़िए कहानी का अगला भाग।

 

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