जब नीना की आंख खुली तो नज़ारा कुछ अलग था,अब वॉल नहीं बल्कि नीना के हाथ थरथरा रहे थे। वह घुटनों के बल ज़मीन पर बैठी थी, जैसे खुद अपने बोझ तले दब गई हो। उसकी हथेलियाँ अब भी वॉल  की गर्दन के चारों ओर की गर्मी को महसूस कर रही थीं। उसके हाथ कांप रहे थे , मगर उस कांपन में डर कम और अपने लिए घिन ज़्यादा थी। खुद से। अपने उस रूप से, जो अब तक बस डरावनी कल्पना लगता था।

वो किसी बुरे सपने से जागी थी। या शायद वो अब भी उसी सपने में थी, फर्क अब मिट चुका था। एक लम्हा पहले उसकी आंखें लाल थीं, साँसें तेज़, और शरीर किसी अजनबी ताकत से भरा हुआ था। और अब... अब बस खामोशी थी।

उसने खुद को ज़ोर से पीछे खींचा। जैसे ही वॉल  की गर्दन पर उसकी पकड़ ढीली हुई, वॉल  ज़ोर-ज़ोर से खांसने लगी। नीना का चेहरा सफेद पड़ चुका था। पसीने की बूंदें उसकी कनपटियों से बह रही थीं और हर धड़कन उसके भीतर किसी धमाके सी गूंज रही थी।

"मैंने... मैं उसे मारने ही वाली थी," उसने खुद से फुसफुसा कर कहा। यह वाक्य उसके होंठों से नहीं, आत्मा से निकला था।

वॉल  अब ज़मीन पर लेटी थी, सांसें समेटती हुई। उसके चेहरे पर वो दहशत नहीं थी जिसकी नीना उम्मीद कर रही थी। वहाँ तो कोई अजीब सी शांति थी। जैसे वह जानती थी कि ये होने ही वाला था। जैसे वह उसी पल के इंतज़ार में थी।

नीना की आंखें अब वॉल  की आंखों से नहीं मिल पा रही थीं। उसने अपने हाथों को देखा , वही हाथ, जिन्होंने अभी कुछ क्षण पहले किसी की जान लेने की कोशिश की थी।

"ये मैं नहीं हूँ..." उसने दोहराया, मगर उसकी ही आवाज़ उसे झूठी लग रही थी।

उसका पूरा शरीर झनझना रहा था। जैसे हर नस में बिजली दौड़ गई हो। द ईआई अब भी उसके अंदर था, उसकी रगों में। लेकिन अब उसकी फुसफुसाहट और भी तेज़ हो गई थी , जैसे वो उसका हिस्सा बन चुका हो।

नीना को याद आया , वो कहीं और थी। किसी और जगह, किसी और समय में। एक गहरी नींद जैसी जगह में, जहाँ सब भ्रम था। वहाँ द ईआई ने उसे एक सौदा ऑफर किया था , ताकत के बदले आत्मसमर्पण। और नीना... नीना ने कुछ कहा नहीं था। पर शायद उसकी चुप्पी ही जवाब थी।

अब, जब उसने आँखें खोलीं, तो उसका गला वॉल  की गर्दन पर था।

उसने अपने गले में सूखा महसूस किया, होंठ फटे हुए थे। कोई आवाज़ नहीं निकली। बस अंदर एक तूफ़ान था , पश्चाताप, डर और खुद से घिन का।

उसने दीवार का सहारा लिया और धीरे-धीरे खड़ी होने की कोशिश की, पर उसके पैरों ने साथ नहीं दिया। वो वापस ज़मीन पर गिर पड़ी।

"क्या मैं वॉल  बन रही हूँ?" उसका मन बार-बार पूछ रहा था।

वॉल  अब उठ चुकी थी। उसने गहरी सांस ली और नीना को देखा। उस नज़र में ताज्जुब नहीं था, बल्कि एक जानी-पहचानी मुस्कान थी , अधूरी, मगर बेहद कहती हुई।

नीना ने सर थाम लिया। सिर में एक तेज़ झनकार उठी थी , जैसे हजारों आवाज़ें एक साथ बोल रही हों। और उन सबके बीच, एक अकेली, ठंडी आवाज़ , "गिव इन यू कैन बी स्ट्रॉन्गर देन हर।

नीना ने खुद को ज़ोर से झटका, उस आवाज़ को रोकने की कोशिश की , पर वो अब रुकने वाली नहीं थी।

उसने अपना सिर दीवार से टिका दिया। आंखें बंद कीं, साँसें रोकीं। फिर धीमे से बुदबुदाई, “मैंने ऐसा कैसे किया... बिना सोचे... बिना महसूस किए।”

दूर कहीं कोई मशीन की आवाज़ आ रही थी , शायद बिल्डिंग की ऊर्जा फिर से बहाल हो रही थी। पर नीना के भीतर की ऊर्जा अब भी टूट चुकी थी।

वो अब जान चुकी थी कि चाहे वो जितनी भी कोशिश कर ले, उस सिस्टम से पूरी तरह बाहर नहीं आ सकती। क्योंकि अब, वह सिर्फ़ मशीन की बंदी नहीं थी,मशीन खुद उसके भीतर थी।

और इससे ज्यादा डरावनी बात और कोई नहीं थी।

 

वॉल  की सांस अब सामान्य हो रही थी, लेकिन उसकी आंखों में एक अलग चमक थी , ऐसी जिसे नीना पहचान नहीं सकी, पर महसूस ज़रूर किया। वो चमक डर की नहीं थी, न ही गुस्से की। वह कुछ और था… आनंद?

"तुमने देखा?" वॉल  की आवाज़ कांपी नहीं, बल्कि उसमें स्थिरता थी। “तुम्हें अहसास हुआ ना… कितना अच्छा लगता है जब कोई तुम्हारे हाथों में तड़पता है?”

नीना ने सिर झटका। “चुप रहो।”

वॉल  हँसी , धीमी, टुकड़ों में टूटी हुई, जैसे किसी टूटी हुई मशीन से निकली आवाज़ हो। “तुम खुद से भाग रही हो, नीना। और इस बार, तुम हार रही हो।”

नीना ने उसकी तरफ देखा, उसकी आँखों में गुस्सा नहीं, सिर्फ़ घबराहट थी।

"मैं वॉल  नहीं हूँ," उसने धीमे लेकिन यकीन से कहा।

"नहीं... पर बन जाओगी," वॉल  मुस्कराई। “मैं जानती हूँ। क्योंकि मैंने भी पहले यही कहा था।”

नीना का दिल बैठ गया।

तभी पास से दौड़ते कदमों की आहट आई। दोनों ने पलट कर देखा। अंधेरे कॉरिडोर के छोर से कोई तेज़ी से आ रहा था , फूटी हुई लाइट्स के बीच से एक परिचित आकृति उभरी।

“नीना!”

एथन था। उसके चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी। उसने आगे बढ़ते ही वॉल  के और नीना के बीच खुद को रख लिया, जैसे वो नहीं जानता कि खतरा किससे है , नीना से या वॉल  से।

"क्या हुआ यहां?" उसकी आंखें नीना पर टिकी थीं।

"मैं… मैं बस…" नीना की आवाज़ टूटी हुई थी।

वॉल  ने एथन की ओर देखा और फिर नीना की ओर। "क्या उसे बताओगी?" वो फुसफुसाई। “कैसे तुमने मुझे मारने की कोशिश की? बिना चेतावनी… बिना पछतावे?”

एथन की निगाहें और सख्त हो गईं। “नीना?”

नीना ने एथन की ओर देखा , वही एथन, जो उसका सहारा था, जो उसे इस मशीन से बाहर निकालने की उम्मीद था। लेकिन अब, वो खुद को नहीं पहचान पा रही थी।

"मैंने..." उसने धीमे से कहा, “मैंने खुद को खो दिया है, एथन। मैं ये लड़ाई और नहीं लड़ सकती।”

एथन आगे आया, उसके दोनों कंधे थाम लिए। “तो क्या अब हार मान लोगी?”

“मुझे नहीं लगता मैं और झेल सकती हूँ। द ईआई हर रोज़ मुझे कुछ और बदल देता है। मैं कब नीना से मशीन बन गई, पता ही नहीं चला।”

एथन ने उसकी आंखों में देखा। “तुम वही हो। अभी भी हो। क्योंकि अगर तुम मशीन बन चुकी होती, तो पछता नहीं रही होती।”

नीना की आंखें भर आईं। उसने खुद को दूर खींच लिया। “पर वो हर दिन मेरे अंदर गहराई तक जा रहा है। आज मैं लगभग वॉल  को मार ही चुकी थी, और मुझे तब तक अहसास नहीं हुआ जब तक उसकी सांस रुकने नहीं लगी।”

वॉल  अब दीवार से टेक लगाए खड़ी थी। उसकी मुस्कान और गहरी हो गई थी।

"तुम्हारे पास ज़्यादा समय नहीं है," उसने कहा। “दिवीजन तुम्हें ढूंढ रही है। तुम्हारे अंदर जो है, वो अब सिर्फ़ तुम्हारा नहीं रहा। वो चाहते हैं इसे वापस।”

नीना और एथन दोनों चौक पड़े। "दिवीजन?" नीना ने पूछा।

एथन ने मुट्ठियाँ भींच लीं। “वो आ रहे हैं। मैंने सिग्नल इंटरसेप्ट किया। हमारे पास बहुत वक़्त नहीं है।”

"तो अब?" नीना ने पूछा।

"अब हमें वो करना होगा जो सबसे खतरनाक है," एथन ने कहा। “पर यही एक रास्ता है उन्हें रोकने का... और तुम्हें बचाने का।”

नीना ने गहरी सांस ली।

उसके अंदर की मशीन जाग रही थी। मगर कहीं भीतर, इंसानियत भी सांस ले रही थी।

 

एथन की आवाज़ नीना के भीतर गूंज रही थी,“हमें वो करना होगा जो सबसे ख़तरनाक है।”

नीना ने उससे और वॉल  से कुछ दूरी बना ली थी। उसके अंदर एक अजीब सी बेचैनी थी, जैसे कुछ सिर के पीछे खिसक रहा हो, धीरे-धीरे उसकी चेतना में उतरता हुआ।

“क्या योजना है?” नीना ने एथन से पूछा, उसकी आवाज़ कांपती हुई पर नियंत्रित।

एथन ने जेब से एक छोटी सी चिप निकाली,काली, धातु की, और उसके किनारों पर नीली रोशनी झिलमिला रही थी।

“ये एक वायरस है,” उसने कहा। “मैंने इसे उस समय डिज़ाइन किया था जब मैं Eye के कोड के करीब था। ये आई के न्यूरल नेटवर्क में अस्थायी गड़बड़ी डाल सकता है,इतनी कि तुम्हें कुछ मिनटों की आज़ादी मिले।”

नीना ने वो चिप हाथ में ली, और उसकी उंगलियाँ सुन्न पड़ने लगीं। “और अगर कुछ गलत हो गया तो?”

“तो आई तुम्हें पूरी तरह कंट्रोल कर लेगा,” वॉल  बीच में बोल पड़ी। उसकी आवाज़ में वो दबी हुई क्रूरता अब भी बाकी थी। “फिर तुम वैसी बन जाओगी जैसी मैं हूँ… या उससे भी बदतर।”

“मैंने पूछा नहीं तुमसे,” नीना ने जवाब दिया।

एथन ने उसके कंधे पर हाथ रखा। “मैं तुम्हें हारते नहीं देख सकता, नीना। पर ये तुम्हारा चुनाव है। मैं बस तुम्हें रास्ता दिखा सकता हूँ।”

नीना की आँखों में एक पल को कुछ टूटा,शायद डर, या शायद किसी उम्मीद का आखिरी टुकड़ा। उसने चिप को कस कर पकड़ लिया।

“ठीक है,” उसने धीरे से कहा। “करते हैं ये।”

कुछ मिनट बाद…

वे तीनों अब उस खाली गोदाम में थे जहाँ आई से जुड़ा एक परित्यक्त सर्वर-नोड अब भी एक्टिव था। नीना ने उसे एक बार पहले देखा था, लेकिन तब वो बस मशीनरी थी,अब वो एक दिमाग़ था। एक जिन्दा तंत्र जो उसे निगलने को तैयार था।

एथन ने आखिरी बार नीना की आँखों में देखा। “तैयार हो?”

“तैयार नहीं,” उसने जवाब दिया, “पर चलो।”

वॉल  ने सिर झटकते हुए फुसफुसाया,“मज़ा आएगा।”

चिप को उसकी गर्दन के पिछले हिस्से में इम्प्लांट किया गया। झटका तेज़ था,जैसे बिजली पूरे शरीर में दौड़ गई हो। उसकी दृष्टि धुंधली होने लगी, और फिर,

,अंधेरा।

लेकिन नीना बेहोश नहीं हुई थी। नहीं, वो अब Eye के भीतर थी।

साइबरनेटिक स्पेस,डिजिटल ब्लैक, नीली नसों से भरा हुआ, हर दिशा से आती फुसफुसाहटें।

आई की आवाज़ पहली बार सीधे उसके ज़हन में गूंजी,“अब तुम समझती हो। ताक़त का स्वाद ले चुकी हो। क्यूँ रुक रही हो?”

नीना ने पलट कर देखा। एक छाया सामने खड़ी थी। वॉल  की तरह दिखती थी। या शायद… वॉल  का ही अंश था।

“तुम चाहती हो शक्ति,” आवाज़ फिर आई। “और मैं दे सकता हूँ तुम्हें सब कुछ,बस खुद को मत रोको।”

“मैं वॉल  नहीं बनना चाहती,” नीना ने ज़ोर से कहा।

“तो बनो कुछ और,कुछ नया। कुछ ऐसा जो वॉल  से भी ऊपर हो। तुम्हारी यादें, तुम्हारा दर्द, तुम्हारे झूठ… सबकुछ जलाओ और शक्ति को अपनाओ।”

नीना का दिल धड़क रहा था, लेकिन दिमाग़… शांत था।

“दे दूँ?”

“हां। सिर्फ़ एक हां कहो। मैं तुम्हें मुक्त कर दूंगा।”

और फिर,एक क्लिक।

सब उजाला हो गया।

नीना की आंखें खुलीं। सांसें तेज़। चारों तरफ़ वही गोदाम। एथन सामने था, वही डर उसके चेहरे पर।

पर... कुछ अलग था।

नीना के हाथ हवा में थे,वॉल  की गर्दन को कस कर पकड़े हुए।

वॉल  की आंखें फट चुकी थीं। उसकी सांस अटक रही थी। चेहरा नीला पड़ने लगा था।

“नीना!” एथन चिल्लाया। “रुको! क्या कर रही हो!”

नीना को कुछ भी याद नहीं था। कब उसके हाथ खुद-ब-खुद आगे बढ़े? कब उसने वॉल  को दबोच लिया?

वॉल  ने मुट्ठी से ज़मीन पर वार किया, जैसे खुद को बचाने की आखिरी कोशिश कर रही हो।

“नीना, सुनो मेरी आवाज़,” एथन फिर चीखा। “ये तुम नहीं हो। तुम ये नहीं हो!”

एक क्षण। एक लंबी सांस। और फिर…

नीना ने हाथ छोड़ दिए।

वॉल  ज़मीन पर गिर गई, खांसती हुई, जीवन को खींचते हुए जैसे।

नीना पीछे हट गई,सिहरती हुई, कांपती हुई। उसके चेहरे पर डर था, लेकिन किसी और का नहीं,खुद का।

“मैंने… मैं उसे मारने वाली थी…”

एथन चुप था। वॉल  ज़मीन पर पड़ी हँस रही थी,दबी हुई, कटी-कटी हँसी।

“तुम बन रही हो मेरी तरह…” उसने कहा। “मैं इंतज़ार कर रही हूँ उस पल का जब तुम पूरी तरह टूट जाओगी…”

और तभी,

बाहर से एक शोर उठा। दूर से सायरन की आवाज़, भारी बूट्स की गूंज।

एथन ने सिर उठाया।

“डीवीजन आ गई है।”

नीना ने उसकी ओर देखा।

“तो अब?”

एथन ने गहरी सांस ली,“अब वक्त है असली खेल का। लेकिन ये ख़तरनाक है, नीना… बहुत ज़्यादा।” अब क्या होने को था,खौफ और आतंक का नाच जो हर पल पास आ रहा था।

 

क्या वाकई में नीना  वॉल की तरह बन रही थी या सिर्फ यह आई का फैलाया हुआ एक भ्रम था? जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।

 

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