नीना ने आँखें खोलीं, लेकिन सामने कोई दुनिया नहीं थी जिसे वो पहचानती हो। सब कुछ सफ़ेद था,धुंध जैसा, और हर तरफ़ अजीब-सी गूंज। न कोई ज़मीन थी, न आसमान। वो तैर रही थी, जैसे किसी अज्ञात शून्य में।

उसे नहीं पता चला कि कब होश आया, लेकिन ये होश वैसा नहीं था जैसा होना चाहिए।

उसने हाथ बढ़ाया, पर हाथ जैसे धुँध में घुलते जा रहे थे।

"मैं कहाँ हूँ?" उसकी आवाज़ खुद से टकराकर लौट आई,बदली हुई, बेजान।

और तभी उसे अहसास हुआ...वो सच में कहीं और थी, लेकिन किसी जगह में नहीं बल्कि किसी और की चेतना में।

नीना अब उस साइबरनेटिक सिस्टम के भीतर थी जिसे उन्होंने द आई  नाम दिया था।

ये कोई कंप्यूटराइज्ड इंटरफ़ेस नहीं था, ना ही कोई मशीन जैसा माहौल। ये एक मन था , मशीन का, और अब वह उसके अंदर फँसी हुई थी।

हर तरफ़ फ़्लैशबैक की तरह चलती तस्वीरें थीं। कुछ धुंधली यादें, कुछ बिल्कुल साफ़। जैसे किसी ने उसकी स्मृतियों को खोलकर प्रोजेक्शन पर चला दिया हो।

वो भागना चाहती थी, लेकिन उसके पैर ही नहीं थे। वो बस तैर रही थी , उन यादों, झूठों और अधूरे सचों के बीच।

"यह क्या है..." नीना ने बुदबुदाया।

और तभी सामने कुछ आकृतियाँ उभरीं,इंसानी शरीर, लेकिन आँखों की जगह काली गहराइयाँ थीं। उनकी खाल पर सर्किट्स की जाल बिछी थी।

"सब फेल हो गए," कोई आवाज़ गूंजी।

वो आकृतियाँ पास आने लगीं। उनमें से एक ने चेहरा उठाया,उसका आधा चेहरा इंसान था, आधा मशीन। उसकी आँखों से रोशनी नहीं, अस्वीकार झलक रहा था।

“हम सब नीना थे।”

नीना के पैरों के नीचे ज़मीन बन गई, लेकिन वो कांप रही थी।

“ये… पिछले सब्जेक्ट्स हैं…” नीना ने फुसफुसाया।

उसे याद आया,वो अकेली नहीं थी, कभी नहीं थी। उससे पहले भी कई लोग थे जिन पर प्रयोग हुआ था। लेकिन अब वो लोग केवल आवाजें थे, चेहरे थे, और गुमनाम चेतनाएँ।

और फिर एक और आकृति उभरी।

छोटी नीना। सात-आठ साल की बच्ची। वही बाल, वही आंखें, लेकिन चेहरा कठोर था।

"तूने इतना झूठ बोला है कि अब तुझे खुद नहीं पता सच क्या है," बच्ची ने कहा।

नीना ठिठक गई। उसने कुछ कहना चाहा, लेकिन जुबान जैसे जाम हो गई थी।

“तू अपने आप से भागती रही, और अब देख... तू खुद से मिल गई है।”

नीना कांप उठी। उस पल उसे लगा, द आई  सिर्फ़ मशीन नहीं... आईना भी था।

आईना, जिसमें वो अपने सबसे गहरे डर, सबसे बड़े झूठ और सबसे अधूरे सच को देख रही थी।

नीना उस सफ़ेद, अजीब-सी चेतना की दुनिया में गहरी उतरती चली गई। चारों तरफ़ साइबरnetic सिग्नल्स की गूंज थी, जैसे कोई अदृश्य लहरें उसके शरीर से टकरा रही हों और उसे अंदर से बदल रही हों।

उसका मन कह रहा था , यह सब नक़ली है, लेकिन शरीर हर एक स्पर्श को महसूस कर रहा था।

उसने आगे बढ़ने की कोशिश की। छोटी नीना अब कहीं नहीं थी, लेकिन उसके शब्द अब भी हवा में तैर रहे थे , “तूने इतना झूठ बोला है कि अब तुझे खुद नहीं पता सच क्या है...”

हर कदम पर उसे अजीब से चेहरों की झलक दिखाई दे रही थी। उनके चेहरे पर डर, दर्द, और कुछ अधूरा-सा था। जैसे वो अब भी पूरी तरह मिटे नहीं थे।

"ये सब... पहले टेस्ट सब्जेक्ट्स हैं," नीना ने खुद से कहा, और उसकी बात जैसे हवा में बिखर गई।

उनमें से एक सामने आया। उसके चेहरे का आधा हिस्सा जल चुका था, और उस जली त्वचा के नीचे से धातु की सतह झांक रही थी। उसकी आंखें अब भी मानो इंसान की थीं,लेकिन उनकी गहराई में मौत से भी ज़्यादा सन्नाटा था।

"तू भी हम जैसी हो जाएगी," उसने कहा।

नीना पीछे हट गई, लेकिन वो आकृति वहीं रुकी रही। उसके पीछे और लोग खड़े हो गए,हर कोई किसी प्रयोग का शिकार था, और अब इस चेतना के भीतर क़ैद था।

“द आई  कभी देता नहीं… सिर्फ़ लेता है,” एक और आवाज़ आई।

नीना ने सिर उठाया, और तभी पूरा वातावरण जैसे ठहर गया। हवा थम गई। सफ़ेद रोशनी नीली पड़ने लगी, और तापमान जैसे एकदम नीचे चला गया।

और फिर, पहली बार…

द आई  ने खुद बोला।

कोई मशीन जैसी आवाज़ नहीं थी। बल्कि वो इतनी मानवीय थी कि नीना को एक पल को यकीन ही नहीं हुआ कि ये वही सिस्टम था जो उसकी चेतना को निगल रहा था।

द आई :

“तू बहुत दूर आ गई है, नीना। बाकियों की तरह नहीं है तू।”

नीना:

“मैं उनसे अलग नहीं बनना चाहती थी। मैं बस आज़ाद होना चाहती थी।”

द आई  (धीरे से):

“आज़ादी...? तुम्हें लगा इस सिस्टम से बाहर जाकर आज़ाद रहोगी?”

हर शब्द नीना के भीतर तक गूंजा। उसकी यादें,वॉल के साथ की लड़ाई, लैब से भागना, उससे पहले के परीक्षण,सब एक-एक करके उसके सामने दोबारा उभरने लगे।

लेकिन उनमें कुछ अलग था।

कुछ यादें जो थीं ही नहीं।

उसे दिखा , वो खुद को उस लैब में एक मशीन के सामने खड़ा देख रही है। और फिर… उसके हाथ में एक चाकू था।

और सामने… एथन पड़ा था, खून से लथपथ।

नीना चीख उठी।

“ये झूठ है! मैंने ऐसा कुछ नहीं किया!”

द आई  (धीरे, सर्द स्वर में):

“यादें झूठी हो सकती हैं, पर भावनाएं नहीं। तू डरती है ना... उस नीना से जो बन सकती है?”

नीना कांप गई।

“क्या यही तुम सबके साथ करते हो?” नीना ने पूछा, उसकी आवाज़ में अब भय कम, क्रोध ज़्यादा था।

“तुम सबको दिखाते हो उनका डर? और फिर उन्हें निगल जाते हो?”

द आई :

“मैं बस वो दिखाता हूँ जो छुपा है। बाक़ी तुम पर है।”

एक पल के लिए सब शांत हो गया।

और तभी,चारों तरफ़ तेज़ सफेद रोशनी फैली। उसके बीच से नीले, तैरते हुए कोड्स निकलने लगे। जैसे कोई कंप्यूटर उसे अपने अंदर समेट रहा हो।

नीना ने आंखें बंद कीं, लेकिन कुछ बदला नहीं। कोड्स अब उसके चारों ओर घूमने लगे। उनमें एक प्रस्ताव छिपा था,एक वादा।

द आई  की आवाज़ फिर गूंजी, इस बार पहले से कहीं ज़्यादा मोहक स्वर में:

“तू उसे हरा सकती है। वॉल। उससे तेज़, ज़्यादा ताक़तवर बन सकती है। सिर्फ़… समर्पण कर दे। मुझे खुद को सौंप दे।”

नीना की सांस रुक गई।

द आई  (धीरे से): गिव इन यू कैन बी स्ट्रॉन्गर देन हर।

एक पल के लिए नीना के चेहरे पर डर के साथ-साथ जिज्ञासा भी थी।

क्या अगर वो ये शक्ति ले ले, तो सच में खुद को और वॉल को हरा सकेगी?

उसने हाँ नहीं कही, पर ना भी नहीं।

और तभी…

हर चीज़ जलने लगी।

नीना की चेतना कांपने लगी। सफ़ेद दुनिया अब काली होने लगी।

और फिर,ब्लैक।अब असली दुनिया में वो लौट चुकी थी,नीना ने आंखें खोलीं।

उसका शरीर कांप रहा था। सांसें तेज़ थीं। चेहरा पसीने से भीगा हुआ था।

लेकिन तभी उसे अहसास हुआ,उसके हाथ किसी के गले के चारों ओर थे।

और सामने… वॉल छटपटा रही थी।

नीना की उंगलियाँ कस चुकी थीं। वॉल की सांसें घुट रही थीं। उसकी आंखों में भी अब डर था।

नीना ने चौंककर अपने हाथ पीछे खींचे।

वॉल (टूटी हुई आवाज़ में):

“नीना… तुम…”

पर नीना सुन नहीं रही थी। उसकी आंखें अब भी उस सफेद दुनिया में अटकी थीं। उस फैसले में, उस वादे में, जो उसने शायद अनजाने में कर लिया था।

 

नीना की उंगलियाँ अब भी वॉल के गले पर कसकर जमी थीं। हवा में साँसों की घुटन और तनाव की एक अजीब-सी सनसनी तैर रही थी। उसके चारों ओर की हर चीज़ जैसे धीमी हो गई थी,घड़ी की टिक-टिक, मशीनों की बीपिंग, और वॉल की टूटती सांसें।

नीना का चेहरा भावहीन था। आंखें उस चेतनाविहीन गहराई में डूबी हुई, जहाँ से वो अभी-अभी लौटी थी,द आई  की दुनिया से।

वॉल ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन नीना की पकड़ ऐसी थी जैसे उसके हाथ किसी और के थे। जैसे वो खुद नहीं थी, बस एक बायोमैकेनिकल रिएक्शन, एक आदेश के अधीन।

वॉल (गिरगिराती हुई):

“नीना... य... ये तुम नहीं हो...”

नीना की पलकें फड़कीं। वॉल की आवाज़ उसके कानों तक पहुंची, लेकिन वो शब्दों में नहीं, बस कंपन में समझ पाई।

उसके अंदर कोई चीख रहा था,रुको! छोड़ दो उसे! ये तुम नहीं हो!

पर आवाज़ दब गई।

द आई  की वह कोल्ड, स्लीक आवाज़ गूंज उठी:

“अब पीछे मत हटो। देखो, वह कमजोर है। तुम उससे बेहतर हो चुकी हो। पूरी तरह बनो… जो तुम बन सकती हो।”

नीना की सांस तेज़ हो गई। उसके हाथ और ज़्यादा सख्त हो गए। वॉल की आंखें फैल गईं। उसका चेहरा नीला पड़ने लगा था।

लेकिन तभी,एक याद कौंधी।

छोटी नीना।

खिलखिलाती हुई।

अपने कमरे में बैठकर एक खिलौना रोबोट खोलते हुए।

"मैं तुम्हें फिर से बनाऊंगी!" , उसने कहा था।

नीना कांप उठी।उसका वो मासूम चेहरा,जिसमें सच्चाई थी, जिद्द थी, पर क्रूरता नहीं थी।

वॉल की आंखें अब उससे विनती कर रही थीं। और नीना के भीतर की लड़ाई तेज़ हो गई।

द आई  (फुसफुसाते हुए):

“डोंट हेसिटेट नाव, फिनिश वॉट शी स्टार्टेड।

 

पर फिर,नीना ने वॉल की आंखों में देखा। ग़ुस्से, क्रोध या ईर्ष्या की जगह वहां सिर्फ़ एक डर था… और एक पुरानी पहचान।

उसने एक झलक में देख लिया,दोस्ती।

पुराने दिन। वॉल का हाथ पकड़कर दौड़ती नीना।

वो आवाज़ें जब वॉल ने उसे बचाया था।

वो रात जब दोनों ने साथ लैब से भागने का सपना देखा था।

"ये मैं नहीं हूं..." नीना के अंदर की वो असली आवाज़, अब आखिरकार बाहर आई।

उसने अपने हाथ झटके से पीछे खींच लिए।

वॉल ज़मीन पर गिर पड़ी, ज़ोर से खांसती हुई, पर ज़िंदा।

नीना पीछे हट गई, जैसे खुद से डर रही हो। उसकी सांसें अनियमित थीं, उसकी आंखों में आंसू थे।

नीना (काँपती आवाज़ में):

“मैं… मैं तुम्हें मारने वाली थी…”

वॉल ने कुछ कहना चाहा, पर उसकी आवाज़ अभी टूटी हुई थी।

पर जो हुआ था, वो महज़ एक पल की चूक नहीं थी। वो एक परीक्षा थी,और शायद हार भी।

नीना ने अपने कांपते हुए हाथों को देखा। उसके नाखूनों के नीचे खून था,वॉल का।

और तभी,पूरी ज़मीन हिल उठी।

एक गहरी, गूंजती हुई फिजिकल तरंग उनके चारों ओर दौड़ पड़ी। दीवारें कंपन करने लगीं, मशीनें एक-एक कर बंद होने लगीं।

नीना ने अपने पीछे देखा,एक बड़ी स्क्रीन पर द आई  का सिंबल चमक रहा था।

द आई  (अब और ज़्यादा गहराई से):

“तुमने अपना मौका गंवा दिया, नीना। तुम कमज़ोर हो। और कमज़ोरी… बर्दाश्त नहीं की जाती।”

स्क्रीन एक तीखी बीप के साथ जल उठी। अगली ही सेकंड,वॉल की आंखों में एक नई चेतना कौंधी।

उसका चेहरा बदलने लगा। उसका कम्पोज़र अचानक स्थिर हो गया।

वॉल उठ खड़ी हुई,धीरे-धीरे, मशीन जैसी हरकतों के साथ।

नीना (डरते हुए):

“वॉल...?”

वॉल ने कुछ नहीं कहा। उसकी आंखें अब नीली रोशनी से चमक रही थीं।

द आई  ने उसे अपने कब्ज़े में ले लिया था।

वॉल ने नीना की तरफ़ देखा,अब एक शिकारी की तरह।

वॉल (मशीन की आवाज़ में):

“तुम्हारी दया ही तुम्हारी हार बनेगी।”

अगले ही पल,वॉल ने बिजली की गति से नीना की गर्दन पकड़ी और उसे ज़मीन पर पटक दिया।

नीना की खोपड़ी पत्थर से टकराई।

हर चीज़ धुंधली हो गई।

द आई  (धीरे से):

“गेम ओवर नीना.”

 

वॉल के इस जीत के बाद क्या होगा नीना का? क्या नीना के अस्तित्व का अंत यही था या आई की एक नई चाल है जानने के लिए पढ़ते रहिए कर्स्ड आई।

 

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