रात का सन्नाटा अनिका के कमरे में घुला हुआ था। खिड़की के बाहर से आती हल्की ठंडी हवा का झोंका पर्दों को बार-बार हिला रहा था। अनिका अपने बिस्तर पर गहरी नींद में डूबी हुई थी, अचानक फोन की वाइब्रेशन से अनिका की नींद झटके में टूट गई। और उसने अनमने मन से बिस्तर के पास हाथ बढ़ाया। उसके मन में एक उम्मीद सी जगी कि शायद ये फोन अमन का होगा। उसने नींद में बड़बड़ाते हुए कहा
अनिका- शायद... शायद ये अमन का मैसेज हो।
फोन उठाते वक्त उसकी आँखों में चमक थी, लेकिन अगले ही पल, वो चमक बुझ गई। स्क्रीन पर अमन का नाम नहीं, बल्कि मीरा का नाम चमक रहा था, उसकी उंगलियाँ स्क्रीन पर कुछ देर के लिए थमी रही, वो सोच रही थी कि क्या जवाब दे या फिर चुप रह जाए। अनिका ने वापस फोन को बिस्तर के कोने पर रख दिया, और अपने मन में अनिका के मैसेज को दोहराते हुए बोली
मीरा- अनिका, सब ठीक है न? तुम परेशान क्यों हो? बात करो मुझसे।
अनिका करवट लेकर कुछ देर तक फोन को घूरती रही, उसकी आँखों में उभरते सवाल, उसके दिल के साथ एक अजीब लड़ाई लड़ रहे थे। अनिका को महसूस हुआ कि मीरा अभी बहुत खुश है, उसने मन ही मन बोलते हुए कहा
अनिका- मीरा खुश है, और मैं उसकी खुशी बर्बाद नहीं कर सकती... लेकिन अब मुझसे ये झूठ नहीं सहा जाता। मुझे किसी से कोई बात नहीं करनी।
अनिका ने ये सोचकर फोन को आखिरी बार उठाया और फिर धीरे-धीरे, एक-एक करके अपने सारे सोशल मीडिया अकाउंट्स डिलीट करने लगी। अनिका की आँखों में आँसू आ रहे थे, उसने खुद से बोलते हुए कहा
अनिका- ये सब मेरे ही साथ होना था, लेकिन कोई बात नहीं, मैं ही इसका सामना करूंगी।
अनिका ने फोन बंद कर एक लंबी गहरी सांस ली। वो मानो सब कुछ छोड़ देने की राहत महसूस कर रही हो। लेकिन उसके चेहरे पर अब भी एक अनसुलझा सा भाव था। वहीं दूसरी ओर, मीरा अपने कमरे में खिड़की के पास खड़ी थी, ठंडी हवा उसके चेहरे को हल्के से सहला रही थी और वो अपने बालों को पीछे करते हुए आसमान की ओर देख रही है। उसके चेहरे पर थोड़ी सी परेशानी थी, क्योंकि अनिका उसके मैसेज का रिप्लाइ नहीं कर रही थी। उसकी निगाहें थोड़ी देर तक फोन पर टिकी रही फिर उसने बाहर देखना शुरू कर दिया। और अपने मन में बोलते हुए कहा
मीरा- अनिका क्यों फोन नहीं उठा रही? क्या उसे मुझसे कोई बात करनी थी? शायद वो ज़्यादा सोच रही है।क्या अर्जुन से मिलके ऑक्वर्ड हो गई?
अर्जुन का नाम आते ही उसके चेहरे पर अचानक से एक धीमी मुस्कान आ गई। अचानक उसकी आंखों के सामने वो पल घूमने लगा जब अर्जुन के साथ उसे शाम जादू भरी लग रही थी। मीरा और अर्जुन शहर के एक खूबसूरत कैफे में बैठे एक-दूसरे को देख रहे थे, सुबह से शाम हो गई थी, लेकिन ना मीरा ने एक बार भी जाने का जिक्र किया था, ना ही अर्जुन ने। अर्जुन का चेहरा शांत था, वो बस एकटक मीरा को देख रहा था। अर्जुन ने मीरा के चेहरे पर आई लट को पीछे करते हुए कहा
अर्जुन- तुम्हें पता है, मीरा... जब से तुमसे मिला हूँ, मैं खुद को और किसी चीज़ में नहीं देख पाता। तुम्हारे बिना सब अधूरा सा लगता है।
मीरा उसके शब्दों को सुनकर कुछ पल के लिए खो गई, फिर उसने शरमाते हुए कैफै से बाहर जाने का फैसला किया। अर्जुन मीरा के पीछे-पीछे चला, लेकिन मीरा तेज़ कदमों के साथ बाहर निकल गई। अर्जुन ने दरवाज़े के बाहर आकर मीरा का हाथ पकड़ लिया। अर्जुन धीरे-धीरे मीरा के करीब आया, उसने मीरा के चेहरे को हल्के से छुआ जैसे वो कोई नाजुक फूल हो। मीरा की साँसे तेज़ हों गई, वो अर्जुन को देख रही थी, वहीं अर्जुन की उँगलियां अब मीरा के गालों को छूते हुए उसके होंठों के पास पहुँच गई थी। अर्जुन ने एक बार मीरा की आँखों में झाँककर कहा
अर्जुन- मीरा, क्या मैं...?"
अर्जुन का सवाल सुनकर मीरा ने अपनी आँखें बंद करली, अर्जुन का चेहरा और करीब आया और उसने अपने होंठ मीरा के होंठों पर रख दिए। उस पल को मीरा ने पूरी तरह से महसूस किया, जैसे दुनिया का सारा शोर गायब हो गया हो और बस उनके बीच का सन्नाटा रह गया हो। एक हवा के झोंके के साथ मीरा वापस उसी पल में आई जब वो खिड़की पर खड़ी अर्जुन के बारे में सोच रही थी। उसकी सांसें अब भी थोड़ी भारी थी, और वो उस पल को फिर से याद करके मुस्कुराती रही। मीरा ने खिड़की को बंद करते हुए बेड तक आयी और बैठ कर डायरी उठा कर उसमें लिखते हुए कहा
मीरा- आज अर्जुन ने मुझे पहली बार बहुत करीब पाया। इसलिए वो पल मैं तुझे भी बता रही हूँ, मेरी डायरी। वो पल... मैं कैसे भूल सकती हूँ? सब कुछ इतना जादुई था, जैसे मैं उस पल में खो गई थी। पर अनिका.....
मीरा लिखते-लिखते रुक गई और फिर और एक गहरी सांस लेकर खिड़की से बाहर देखने लगी।
रात के अंधेरे को सुबह की हल्की धूप ने मिटा दिया था। गलियों में धूप, बच्चों का शोर, गाड़ियों की आवाज़ सब था। जैसे धूप रात के सन्नाटे को धीरे-धीरे जागते हुए शहर से मिटा रही हो। मीरा गली के उसी मोड़ पर खड़ी थी, जहां वो और अनिका रोज मिला करती थीं। आज उसका दिल कुछ बेचैन था, जैसे कुछ अधूरा-अधूरा सा हो। एक ख्याल उसे अर्जुन से जोड़ रहा था तो दूसरा अनिका से। वो बार-बार अपने फोन पर समय देख रही थी, अनिका अभी तक नहीं आई थी। मीरा ने घड़ी देखकर बेचैन होकर कहा
मीरा- कहाँ रह गई ये?
कुछ देर बाद उसकी नज़र गली में खेलती दो छोटी बच्चियों पर पड़ी। वो दोनों एक खिलौने को लेकर आपस में लड़ रही थीं, जिसे दोनों खींचने की कोशिश कर रही थीं। बच्चियों की मासूम सी लड़ाई देख मीरा के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आ गई। वो अचानक अपने बचपन की यादों में खो गई—वही गली, वही मोड़, वही लड़ाई, और अनिका। वो दोनों भी ऐसी ही लड़ाइयाँ किया करती थीं, कभी छोटी-छोटी बातों पर, तो कभी बड़ी बातों पर। लेकिन हर बार उनकी लड़ाई जल्दी ही हंसी में बदल जाती थी। मीरा ने अपने फोन को निकालते हुए उन दोनों बच्चियों को रिकार्ड करना शुरू किया और कहा
मीरा- याद है अनिका वो दिन... जब हम भी इन्हीं बच्चियों की तरह लड़ते थे। कभी गुड़ियों को लेकर, तो कभी किसी खेल को लेकर। और फिर आखिर में, हंसते हुए गले लग जाते थे। कितना आसान था तब सबकुछ..."
मीरा ने विडिओ को यहीं रोककर फोन बैग में रख लिया, मीरा के चेहरे पर पुरानी यादों की एक धीमी सी चमक थी। वो अब भी मुस्कुरा रही थी, मीरा एक गहरी सांस लेकर उन बच्चियों के पास पहुंची और बोली
मीरा- तुम लोग लड़ो मत... मेरे पास बेटर सोल्यूशन है, देखो, एक काम करो—थोड़ी देर तुम खेलो, और फिर थोड़ी देर तुम। इससे झगड़ा भी नहीं होगा और तुम खेल भी पाओगी, ऐसे खींचोगी तो ये टूट जाएगा ना।
बच्चियाँ उसे देखती रहीं, उनकी आँखों में मासूमियत थी। मीरा की बात सुनकर उन्होंने खिलौने को आपस में बांटने का फैसला किया और फिर खेल में लग गई। मीरा उन बच्चियों को देखकर खुश हो रही थी, जैसे उसने किसी पुरानी याद को फिर से जी लिया हो। लेकिन वो अनजान थी कि अनिका उसकी सारी बातें सुन रही थी। अनिका ने जब मीरा को बच्चियों को समझाते हुए सुना और उसके दिल में एक अजीब सा गुस्सा उठने लगा। तभी उसकी नजर मीरा के गले में लटके उस पेंडेंट पर पड़ी, जिसे देखकर उसका गुस्सा और बढ़ गया। वो पेंडेंट वही था, जो अर्जुन ने उसे तोहफे में दिया था। अनिका की सांसें तेज हो गईं। उसे वो कैफे वाला लम्हा याद आ गया, जब उसने मीरा को अर्जुन के साथ देखा था। अनिका ने मीरा को देखते हुए झल्लाते हुए खुद से कहा
अनिका- कितनी आसानी से कह रही है, साथ खेलो....हर चीज़ को लाइट्ली लेती है।
अनिका के दिल में एक गहरी कड़वाहट उभर आई। वो एक पल के लिए और वहाँ खड़ी नहीं रह सकी। बिना कोई शब्द कहे, उसने अपने कदम तेजी से आगे बढ़ा लिए। उसकी चाल में नाराजगी साफ झलक रही थी। कदमों की आवाज सुनते ही मीरा ने मुड़कर देखा, तो अनिका को तेज़ी से जाते हुए पाया। उसके होंठों पर आई मुस्कान धीरे-धीरे गायब होने लगी। उसने हड़बड़ाते हुए अनिका को आवाज़ दी
मीरा- अनिका! सुनो तो... कहां जा रही हो?
लेकिन अनिका नहीं रुकी। उसके पैरों में गुस्से की तेजी थी। मीरा उसकी ओर दौड़ी, पर अनिका ने उसकी आवाज़ अनसुनी कर दी। वो रास्ते में खड़ा एक ऑटो पकड़कर उसमें बैठ गई। मीरा वहीं रुक गई, उसकी आंखों में हल्की सी चिंता उभर आई थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आखिर अनिका क्यों ऐसे चली गई। उसने इधर-उधर देखते हुए कहा
मीरा- अनिका को क्या हो गया है? वो ऐसे क्यों जा रही है? क्या मुझसे कोई गलती हुई है?
मीरा के मन में सवालों की एक भीड़ उमड़ आई, लेकिन जवाब कहीं नहीं था। वो वहीं खड़ी, एक गहरी सांस लेते हुए, अनिका को जाते हुए देखती रही। वहीं कॉलेज पहुंचकर क्लासरूम में अनिका ने अपनी सीट ले ली थी, लेकिन उसका मन किसी और ही दुनिया में था। उसने अपनी किताब खोलकर सामने रख ली, पर उसकी आँखों के सामने किताब के शब्द नहीं बल्कि वो पल घूम रहे थे जब उसने कैफे के बाहर मीरा और अर्जुन को गले लगते देखा, और आज जब उसने मीरा को पेंडेंट पहने देखा। थोड़ी देर बाद, मीरा भी क्लास में आई। हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए, उसने इधर-उधर देखा और फिर अनिका की ओर बढ़ी। लेकिन आज अनिका का चेहरा देख उसे कुछ अजीब लगा। अनिका ने उसकी ओर देखा भी नहीं, बस अपने सामने खुली किताबों को देखती रही। अनिका का बर्ताव बाकी स्टूडेंट्स के लिए भी अजीब था, लेकिन मीरा ने उसे नज़रंदाज़ करते हुए कहा
मीरा- क्या बात है? इतनी नाराज क्यों लग रही है आज? घर पर कुछ हुआ?
अनिका ने घूरते हुए मीरा को देखा, और कोई जवाब नहीं दिया। उसकी चुप्पी और आंखों में छिपे गुस्से ने मीरा को और भी बेचैन कर दिया। अनिका ने गुस्से से मीरा के पेंडेंट को देखा, और फिर अपनी नजरें घुमाली वहीं मीरा ने कुछ सोचते हुए खुद के गले में लटके पेंडेंट को छुआ और फिर अपने सिर पर हाथ मारकर हंसते हुए बोली
मीरा- तो ये बात है...तुझे अच्छा नहीं लगा मैंने पेंडेंट पहन लिया और तेरा वापस नहीं किया। देख, मैं तेरा पेंडेंट भी लाई हूं। कल भी कैफे में लाई थी, पर तू रुकी ही नहीं। चल, अब पहन ले... मुझे पता है, तेरे लिए कितना खास है ये।
मीरा ने बैग से पेंडेंट निकाला और अनिका की ओर बढ़ाया। लेकिन अनिका ने उसे लेने से साफ मना कर दिया। मीरा ने जबरदस्ती उसे थमाने की कोशिश की, पर अनिका ने अपनी मुट्ठी बंद कर ली और फिर एक झटके से उसका हाथ पीछे खींच लिया। और गुस्से में बोली
अनिका- मैंने कहा ना, मुझे नहीं चाहिए!
मीरा अनिका को देखकर हक्की-बक्की रह गई। उसकी हंसी गायब हो गई और चेहरा अचानक गंभीर हो गया। उसने दोबारा पेंडेंट उसकी ओर बढ़ाया, लेकिन इस बार अनिका का धैर्य पूरी तरह टूट गया। अनिका ने पेंडेंट को झपट कर उसके हाथ से छीन लिया और गुस्से में उसे ज़मीन पर फेंक दिया। और चिल्लाते हुए बोली
अनिका- बस, अब इसे भी तू ही पहन।
अनिका की हरकत से पूरी क्लास में सन्नाटा छा गया। मीरा को जैसे यकीन नहीं हुआ कि अनिका ऐसा कर सकती है। अनिका बिना कुछ कहे गुस्से से उठी और तेजी से क्लासरूम से बाहर निकल गई। मीरा कुछ पल वहीं खड़ी रही, पेंडेंट ज़मीन पर गिरा हुआ था और वो समझ नहीं पा रही थी कि आखिर क्या हुआ। उसने पेंडेंट उठाया और वो भी जल्दी से उसके पीछे भागी, जैसे उसे रोकना चाहती हो। मीरा ने चिल्लाते हुए अनिका को पुकारा
मीरा- अनिका! रुक... क्या हो गया है तुझे? ये सब क्यों कर रही है?"
अनिका रुकी नहीं। मीरा तेज़ी से भागी और और उसकी कलाई पकड़ ली। और बेबसी और गुस्से में बोली
मीरा- तू बच्चों की तरह बर्ताव क्यों कर रही है? क्या हुआ है? कुछ तो बता! सिर्फ पेंडेंट की वजह से ऐसा नहीं है, बता बात क्या है? क्या अमन ने...
अनिका ने मीरा की बात पूरी होती उससे पहले ही उसे घूरकर देखा, उसकी आंखें लाल थीं और गुस्से से भरी हुई थीं। उसने गहरी सांस ली, जैसे खुद को संभालने की कोशिश कर रही हो। फिर एक ठंडी आवाज़ में बोली
अनिका - बच्चों जैसी हरकतें और बच्चों की तरह बातें मैं नहीं, तू करती है मीरा, ये तेरी आदत है। तू इतनी बेवकूफ है, तुझे समझ नहीं आता कि अब हम एक खिलौने से नहीं खेल सकते!
मीरा ये सुनकर चौंक गई। उसकी आंखों में सवाल थे। उसे समझ नहीं आया कि अनिका आखिर किस बात की ओर इशारा कर रही थी, उसने हैरान होकर कहा
मीरा- मतलब? किस खिलौने की बात कर रही है तू? क्या बकवास है ये?
अनिका ने कोई जवाब नहीं दिया। उसकी आंखों में आँसू आगए, लेकिन वो उन्हें रोकने की पूरी कोशिश कर रही थी। अचानक, उसने मीरा के गले की ओर झपट्टा मारा और वहां लटके पेंडेंट को कसकर पकड़ लिया। मीरा कुछ समझ पाती, इससे पहले ही अनिका ने उसे खींच लिया। साथ ही मीरा ने जो पेंडेंट हाथ में पकड़ा था उसे भी अपने हाथ में ले लिया। फिर दोनों पेंडेंट को एक-एक हाथ में लेकर बोली
अनिका- अर्जुन और अमन... एक ही आदमी हैं!
अनिका की बात सुनकर मीरा के पैरों तले जमीन खिसक गई। उसका चेहरा सफेद पड़ गया। उसने अपनी जगह पर ठिठकते हुए पीछे की ओर कदम बढ़ाया, पर उसकी टांगें कांपने लगीं। मीरा ने हैरानी से बड़ी हुई आँखों से अनिका की ओर देखकर कहा
मीरा- अनिका.....
मीरा की जुबान से एक और शब्द नहीं निकला। क्या मीरा कर पाएगी इस बात का सामना?
क्या अनिका का शक सही है?
क्या टूट जाएगी अनिका और मीरा की दोस्ती?
जानने के लिए पढ़ें अगला चैप्टर
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