जेल में गुज़री रात रिया के लिए उसकी ज़िंदगी की सबसे लम्बी रात थी और अब उसे यहां कितनी रातें ऐसे ही निकालनी है कोई नहीं कह सकता।

विक्रम की कोशिश जारी थी कि किसी तरह रिया को ज़मानत मिले और वह उसे एक नई शुरुआत करवाए  मगर यह  इतना आसान नहीं था। दिन भर भाग दौड़ करने के बाद जब विक्रम घर आए तो पूरी तरह टूट चुके थे। कहीं कोई सपोर्ट नहीं था जिससे थोड़ा भी आराम कर पाते। जेब में रखा मोबाईल काफी देर से बज  रहा था लेकिन वो उसे भी नजरअंदाज कर रहे थे। शायद मन नहीं था किसी से बात करने का।  

मोबाइल निकाल कर टेबल पर रख ही रहे थे कि एक बार फिर बजने लगा। मोबाईल के स्क्रीन पर दिख रहे नाम पर नज़र गई तो एक हल्की सी मुस्कान चेहरे पर आ गई।

विक्रम  : शनाया!  कमाल है आज मुझे एक दोस्त की ही जरूरत थी और तुमने याद कर लिया।

 विक्रम अपनी खास दोस्त शनाया से बात तो करना चाहते थे मगर फिर कुछ सोचकर फ़ोन स्विच ऑफ कर टेबल पर रख दिया। अपने दर्द में डूबे विक्रम किसी से भी अपना दुख नहीं बाँटना चाहते थे। शनाया उनकी काफी पुरानी दोस्त थी और हर तरह से मददग़ार भी, मगर विक्रम आज अकेला रहना चाहते थे ।

विक्रम: मैं उस दर्द के साथ एक दम अकेला रहना चाहता हूं जो पहले अनन्या ने उठाया और अब रिया उठा रही है। उस दर्द को मैं भी बिल्कुल अकेले रहकर महसूस करना चाहता हूं।

उधर विक्रम को बार बार फोन कर रही शनाया फोन बंद होने पर टेंशन में आ गई। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि विक्रम फोन रिसीव न होने पर रिटर्न कॉल न करें, पर आज तो फोन स्विच ऑफ हो गया था। किसी अनहोनी के अंदेशे से डरती हुई शनाया हैंड बैग उठाकर विक्रम के घर के लिए निकल जाती है। उसके मन में डर के साथ प्रार्थना भी चल रही थी :  

शनाया: हे भगवान, विक्रम ठीक हो ।  पता नहीं, क्या हुआ है आज।

विक्रम के घर पहुंची शनाया सीधे विक्रम के रूम की तरफ बढ़ गई और वहां विक्रम का हाल देख उसका दिल बैठ सा गया। धीरे से कदम बढ़ाती हुई वह  विक्रम के पास जाकर बैठ गई।  

शनाया : इतनी बड़ी क्या प्रॉब्लम हो गई विक्रम कि तुमने खुद को इस तरह अकेला कर लिया। अपना हाल देखो, क्या मेरे सामने वही विक्रम सिंह है जिसके चेहरे पर कभी इमोशन्स दिखते ही नहीं थे?  

शनाया को आया देख विक्रम एक सेकेंड के लिए संभलने की कोशिश करता है मगर अगले पल ही शनाया के सवाल करने पर बिखर जाता है। अपनी जिंदगी में आए तूफान में विक्रम को सब कुछ बर्बाद होते दिख रहा था। शनाया के सवालों का कोई जवाब नहीं था उसके पास। द ग्रेट बिजनेसमैन विक्रम सिंह अपनी ही बेटी को बर्बाद होने से बचा नहीं पा रहा थे।  

शनाया विक्रम की चुप्पी और उसकी हालत को समझ नहीं पा रही थी। उसने सबसे पहले बेड के पास फर्श पर बैठे विक्रम को उठाकर बेड पर बिठाया, फिर एक ग्लास पानी देते हुए उससे कहा,

शनाया : इस तरह चुप रहकर तुम अपना दर्द कम नहीं कर सकते और न ही किसी मुश्किल का कोई हल निकाल सकते हो। तुम मुझसे अपने परेशानियाँ शेयर कर सकते हो।

शनाया के शब्दों से थोड़ा सुकून मिला विक्रम को लेकिन खुद को संभाल नहीं पाते हुए, वह रो पड़े। रिया की गिरफ्तारी और ड्रग्स रैकेट में उसका नाम आना, यह  सब शनाया को बताते हुए विक्रम की आवाज़ कांप रही थी। शनाया उन्हें लगातार शांत होने को कह रही थी मगर विक्रम आज बिखर चुके थे। कुछ नहीं दिख रहा था ऐसा जो उनकी और रिया की दुश्मनी को कम कर सके। शनाया का हाथ थामते हुए विक्रम बोले :  

विक्रम: रिया को किस तरह बचाया जा सकता है शनाया? कोई तरीका बताओ न प्लीज़ ? अनन्या को खोने की सजा पहले से ही भुगत रहा हूं, अब रिया को नहीं खो सकता।

विक्रम खुद को दोषी मानकर हर सज़ा के लिए तैयार थे मगर रिया को खोकर जीने के लिए नहीं। रिया की हालत के लिए, वह खुद को ज़िम्मेदार मानकर अपराध बोध में पिसे जा रहे थे। शनाया विक्रम को विश्वास दिलाती है कि रिया को कुछ नहीं होगा लेकिन उसे जेल से निकालने के लिए पहले उन्हें हिम्मत रखनी होगी।  

वहां रिया जेल में बैठी, किसी तरह ज़मानत मिलने की उम्मीद लगाए थी मगर अपने आस–पास उसे सिर्फ़ निराशा ही दिखाई दे रही थी। उसने जो किया था उसके बाद वह  यह भी नहीं कह सकती थी कि वह  बेगुनाह है। यही सब सोचते हुए, घबराहट भरी आवाज़ में रिया अपने-आप से बड़बड़ाने लगी।  

रिया : अगर मेरी ग़लतियों के लिए मुझे सजा हो गई तो? अगर मैं जेल से कभी बाहर ही ना आ पायी तो ??  

यह सब सोच सोचकर रिया और ज़्यादा घबरा रही थी। अपने ही अंदर के द्वंद में उलझी थी कि तभी उसका वकील आ जाता है। रिया वकील को देख उठकर खड़ी हो जाती है।।  

रिया: क्या हुआ अंकल?? बेल हो जाएगी न?  मैं यहां से जल्दी निकलना चाहती हूं, प्लीज बताइए न।

रिया के सवालों का सीधा-सीधा जवाब वकील साहब के पास नहीं था। यह माल पेंचीदा था। रिया के बार-बार पूछने पर, वह बोला, : “कानून का काम कानूनी तरीके से ही होता है। जैसे भी हो हम बेल तो करवा ही लेंगे, मगर बेटा तुम अगर सचमुच दोषी साबित होती हो तो यह बहुत मुश्किल हो जाएगा। खुद को सही साबित करने के लिए तुम्हारे पास वक्त बहुत कम है।”

वकील की बात सुनकर रिया और ज़्यादा हताश हो गई थी। यह तो वह जानती थी कि दोष उसका है ही, बस साबित होना बाकी है।  

वहां घर में पड़ा कबीर बहुत अकेला हो गया था। काम कुछ था नहीं, ठिकाने सारे पुलिस ने मिटा दिए थे, दिन भर नशे में रहते हुए उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी।

घर में कुछ खाने को भी नहीं मिल रहा था। ऐसे में वह एक के बाद एक इंजेक्शन ही खुद को दे रहा था कि कुछ देर के लिए वह अपनी भूख और प्यास को भुला सके।  

उधर जेल में रिया अपने हाल पर रो रही थी,

रिया : अगर हमारा वकील ही श्योर नहीं है तो केस में जीत कैसे हासिल हो पाएगी? पता नहीं कब तक, मुझे इस तरह जेल में रहना होगा।

अपने लिए ऐसी जिंदगी की कल्पना तो रिया ने नहीं की थी। दुःख और पछतावे में उलझी रिया घुटनों में सिर छुपाकर बैठी थी कि तभी एक कांस्टेबल लॉक खोलकर उसे बाहर आने को कहता है। रिया को अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि वह उसे बाहर आने को कह रहा है।

वह जल्दी से उठ खड़ी हुई।  

रिया: आपने अभी क्या कहा? क्या मैं बाहर जा सकती हूं?  

रिया की बात पर कांस्टेबल फिर कहता है कि उसकी ज़मानत हो गई है। चलो, आपके डैड आपको लेने आए हैं।

रिया खुश होते हुए बाहर निकलती है और सामने वकील के साथ खड़े विक्रम को अनदेखा करते हुए वकील से कहती है  

रिया: थैंक यू सो मच अंकल। आपने मुझे बाहर निकाल लिया..  वहां बहुत ज्यादा घुटन हो रही थी।  

वकील ने कहा  - “बेटा, यह तुम्हारे डैड की मेहनत से ही हो सका। ध्यान रहे कि अब कोई और प्रॉब्लम न आए।”

रिया विक्रम को एक नजर देख, सोचती है कि इन्ही की वजह से तो यहां पहुंच गई हूं। विक्रम मगर इस बार अपने आप को रोक नहीं पाए और रिया के सामने आते ही उसे गले लगा कर रो पड़े। रिया पर अपने डैड के इमोशनल होने का कोई असर नहीं होता, वह उन्हें झिड़कते हुए बाहर निकल जाती है और वकील के कहने पर विक्रम की गाड़ी में जाकर बैठ जाती है। गाड़ी चलाते हुए विक्रम और रिया दोनों ही चुप थे। कितनी ही शिकायतें, ग़ुस्सा और नफरत अपने आप में समेटे रिया उनके साथ जा रही थी। रास्ते में अचानक उसने विक्रम को टोका,

रिया: आगे से राइट टर्न ले लीजिए, मैं अपने घर जाना चाहती हूं।

विक्रम: तुम्हें  शायद यह पता नहीं कि तुम्हारी बेल, कुछ शर्तों पर हुई है।

रिया को यह  पता था कि उसे बेल शर्तों  पर ही मिली है, पर वह  विक्रम और उनके परिवार के साथ एक सेकंड भी नहीं रहना चाहती थी। जेल के बाहर जेल नहीं चाहिए थी पर और कोई रास्ता नहीं था। वह चुपचाप विक्रम के साथ घर पहुंची। परिवार के लोग किसी गुनहगार की तरह ही रिया को देख रहे थे मगर विक्रम सबको पहले ही समझा कर गए थे, जिसकी वजह से कोई कुछ नहीं बोला।

रिया ने भी वहां किसी से कोई बात नहीं की और सीधे अपने कमरे में पहुंच गई।

उसने सबसे पहले कबीर को कॉल किया, मगर कई बार रिंग होने पर भी कबीर ने फोन नहीं उठाया। उसे कबीर की टेंशन होने लगी,

रिया : कबीर प्लीज, अपना मोबाईल देखो। मुझे तुमसे बात करनी है, प्लीज कबीर…

अब तो रिया किसी भी तरह घर जाकर देखना चाहती थी कि कबीर कहां है।

सबसे पहले तो रिया ने अपनी अलमारी खोलकर कपड़े निकाले, फ्रेश होने के बाद किचन में गई और खाने की प्लेट लगाकर चुपचाप अपने कमरे में चली गई। उसे इस तरह कमरे में जाते देख विक्रम को विश्वास हो चला था कि रिया अब कोई बचपना नहीं करेगी।  

विक्रम: अपने घर में अपने हिसाब से रहो बेटा। मैं भी अब निश्चिंत होकर ऑफिस जा सकता हूं।

विक्रम रिया को देखते हुए खुद से ही बात करते हैं और ऑफिस के लिए निकल जाते हैं। उनके जाते ही रिया ने मोबाइल उठाया और कबीर से मिलने निकल गई। कुछ देर बाद, रिया अपने घर के गेट पर थी। दरवाजा खुला देखकर वह  मन ही मन खुश हो गई कि कबीर शायद घर में ही हो। धीरे से अन्दर झांकती है और बिखरा पड़ा सामान देख घबरा कर अन्दर घुस जाती है। पूरे फर्श पर ड्रग्स के खाली पैकेट और इंजेक्शन बिखरे हुए थे। रिया घबरा कर आवाज लगाती है।

रिया: कबीर..  कबीर..  तुम कहाँ हो, कबीर? फोन भी नहीं उठा रहे हो!

रिया यहां वहां खोजते हुए आवाज लगा रही थी। अचानक ठोकर लगते ही, वह गिर गयी… देखा, तो बेड के पास फर्श पर कबीर की बॉडी पड़ी थी! कबीर की ऐसी हालत देख रिया घबरा जाती है। वह आस पास पड़े इंजेक्शन उठाकर देखती है - सब खाली होते हैं। कबीर को पकड़ कर हिलाती है और तब उसे समझ आ जाता है कि कबीर मर चुका है। वह एक लम्बी चीख मार कर रो देती है,

रिया: कबीsssssssssssssssssर। यह  क्या हो गया कबीर, तुम ऐसे नहीं जा सकते।

कबीर की मौत ने एक बार फिर रिया को तोड़ कर रख दिया था। वह उसकी बॉडी के पास बैठी रो रही थी। तभी उसे विक्रम के शब्द याद आते हैं , “तुम्हें  शायद यह नहीं पता कि तुम्हें बेल शर्तों पर मिली है"। रिया घबरा कर उठती है और वापस घर चली जाती है। रिया के पास अब घर के अलावा कोई और ठिकाना नहीं था और यह  घर किसी जेल से कम नहीं था। कबीर की मौत को रिया नजरंदाज नहीं कर पा रही थी। उससे भी ज्यादा उसे यह डर था कि कबीर की मौत उसी के घर में हुई। जो सपोर्ट उसे कबीर से मिलता था अब वह  खत्म हो चुका था - रिया फिर अकेली पड़ गई थी।  

उधर विक्रम ऑफिस पहुंच कर काम शुरू करने ही वाले थे कि उनके पास एक कॉल आया।  

विक्रम:  हां बोलो, क्या ख़बर है??

दूसरी तरफ से आवाज़ आई, “रिया के दोस्त कबीर की मौत हो गई है। पुलिस फिर रिया से पूछताछ करना चाहेगी क्योंकि आज शायद रिया को वहां देखा गया है।”

विक्रम तो रिया को खाना खाते हुए घर में छोड़ कर आए थे तो उनके हिसाब से यह तो हो ही नहीं सकता था कि रिया वहां गई हो..  पर रिया का कोई भरोसा भी तो नहीं था। अगर कहीं वह चली गई  तो ?? कन्फर्म करने के लिए वह रिया को फोन लगाते हैं।

विक्रम: हैलो रिया, कहां हो अभी तुम??

रिया:  घर में।

रिया की आवाज़ से विक्रम को लगता है वह  शायद सोई हुई थी मगर रिया तो डर और दर्द में डूबी जा रही थी। कबीर का चेहरा, बिखरा पड़ा घर बार-बार आँखों के सामने आ रहा था और फिर वह कॉल आता है जिसका रिया को डर था।

रिया: हैलो।

दूसरी तरफ से उसके वकील की आवाज आती है - “ मिस रिया, आपके दोस्त कबीर की मौत के लिए पुलिस आपसे पूछताछ कर सकती है।” रिया घबरा कर फोन बंद कर देती है और अपने कमरे का दरवाजा बन्द कर, डरी हुई अपने बेड पर बैठ जाती है। किसी भी कीमत पर वह फिर से जेल नहीं  जाना चाहती थी।

विक्रम भी रिया को किसी भी कीमत पर, फिर से किसी मुश्किल में नहीं देखना चाहते थे इसलिए ऑफिस छोड़ कर घर आ गए और रिया के रूम का दरवाज़ा खुलने का इंतजार करने लगे।

 

क्या रिया फिर से गिरफ्तार होगी?

क्या विक्रम इस बार भी उसे बचा पाएंगे?

जानने के लिए पढ़िए अगला एपिसोड। 

Continue to next

No reviews available for this chapter.