अपने प्रायवेट इन्वेस्टिगेटर को काम पर लगाने के बाद विक्रम कुछ रिलैक्सड  फील कर रहे थे क्योंकि उन्हें कम से कम अब रिया की ख़बर तो मिल रही थी, वरना हॉस्पिटल से भागने के बाद से उसने विक्रम से कॉन्टैक्ट ही ख़त्म कर दिया था।

अफ़सोस, विक्रम तक अभी यह ख़बर नहीं पहुंची थी कि रिया उन ख़तरों से खेलते हुए कितनी बुरी तरह फँस गई है।  

घर से ऑफिस के लिए निकलते हुए विक्रम उसी को कॉल करते हैं :  

विक्रम: हैलो। हाँ, क्या ख़बर है?

उधर से जो जवाब आया , उसे सुनकर विक्रम का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।  

जिस बात का सबसे ज़्यादा डर था, वही हुआ। विक्रम को पता चला कि रिया गिरफ़्तार हो गई है और वह भी ड्रग्स सप्लायर की एक बड़ी टीम के साथ।

विक्रम को सामने अब कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। जब भी रिया को एक मुसीबत से बचाने की कोशिश करते, वो उससे पहले कोई नई मुसीबत में फंसी मिलती। इस बार  तो वह पुलिस की गिरफ़्त में थी। किस तरह उसे निकाल पाएंगे समझ ही नहीं आ रहा था।

विक्रम तुरंत गाड़ी में बैठे और पुलिस स्टेशन की तरफ़ निकल गए लेकिन गाड़ी चलाते आज विक्रम के हाथ कांप रहे थे। रिया की गिरफ़्तारी से वह बुरी तरह टूट गए थे। ड्रग्स रैकेट में इनवॉल्व होने के अंजाम से विक्रम अच्छे से वाक़िफ़ थे। एक के बाद एक न जाने कितने पर्दे फ़ाश होंगे और उनमें कितनी जगह रिया का नाम आएगा, यह सोचकर ही उनका दिल बैठ जा रहा था। कुछ सोचकर विक्रम फिर किसी को कॉल करते हैं।

विक्रम: एक घंटे बाद मेरे ऑफिस में आकर मिलो। हमें अब एक अच्छे वकील की ज़रूरत पड़ेगी।

 विक्रम के पास अब कानूनी लड़ाई लड़ना ही एकलौता रास्ता था। सबसे पहले तो वह हर हाल में रिया की ज़मानत करवाना चाहते थे मगर वकील के पास जाने से पहले वह पुलिस स्टेशन गए। आगे बढ़ते रिया का गुस्सा और नफ़रत से भरा चेहरा विक्रम के सामने आ रहा था और वह रिया का सामना करने की हिम्मत भी जुटा पा रहे थे। अन्दर जाकर सब-इंस्पेक्टर से रिया के बारे में पूछा ही था कि उसने विक्रम को ताना कसा : “अपने बच्चों को अगर आप लोग खुद सम्भाल लिया करें न साहब, तो हम लोगों के काम आधे हो जाएं। कितना अजीब है, आपकी बेटी को आपका घर और जेल एक जैसे लगते हैं।

विक्रम उसकी बात सुनकर ठगे से खड़े रहे। उसने जो कहा वह खुद भी अच्छे से जानते थे मगर फिर भी एक बार रिया से मिलना चाहते थे। एक कांस्टेबल उन्हें लेकर जाता है, मगर रिया उनसे मिलने से साफ़ मना कर देती है। वह पलट कर देखती तक नहीं। विक्रम चुपचाप वहां से चले जाते हैं।

रिया उनके जाने के बाद पलट कर देखती है और रोते हुए बिखर जाती है। जाते हुए विक्रम को देख रिया सोचने लगती है

रिया : आखिर क्या गलत किया मैंने?  मैं तो सिर्फ़ अपने आप को बचाना चाहती थी। उस घर, उन लोगों, उन हालात से, जिसमें फंसकर मेरी माँ डिप्रेशन की शिकार हुई और समय से पहले ही दुनिया से चली गई। वह तो इतनी अच्छी थीं.. तो फिर उनके साथ अच्छा क्यों नहीं हुआ?

रिया याद करने लगी..  जब वह बहुत छोटी थी, एक दिन उसकी माँ, अनन्या तेज सरदर्द के चलते बेहोश होकर गिर गई थी। घर के एक नौकर ने उन्हें दवाई लाकर दी और रिया के साथ अनन्या को उसके कमरे में छोड़ा। रिया बचपन की अपनी मासूमियत को याद करके खुद पर ही तरस खाकर रो पड़ती है।  

रिया: यह  क्या हो गया? मम्.. मैं कहां फंसती जा रही हूँ? आप की तरह अच्छी नहीं बन पाई मैं क्योंकि मुझे आपके जैसी लाइफ़ नहीं  चाहिए थी। पर देखो न मम्मा, डैड आज भी वैसे ही है। अभी भी उन्हें अपनी रेप्यूटेशन की फ़िक्र मुझसे कहीं ज़्यादा है। मैं उनकी शक्ल कभी नहीं देखूंगी।

बड़े से बड़े खतरों को नज़र-अंदाज कर कुछ भी कर डालने की हिम्मत रखने वाली रिया को जेल की जिंदगी बर्दाश्त नहीं हो रही थी। घुटनों  में सिर छुपा कर बैठी रिया के पास, एक प्लेट में खाना रखा था जिसे देखने तक का उसका मन नहीं कर रहा था। रिया का सिर अब भारी हो रहा था, दर्द और घुटन के बीच उसे अब डोज़ की ज़रूरत महसूस हो रही थी।  

इधर पूरी तरह से निराश और उदास विक्रम ऑफिस आकर एक मीटिंग बुलाते हैं और दो हफ़्ते के लिए अपनी सभी मीटिंग्स और नए प्लान्स कैंसिल करवाते हैं। फिर शहर के सबसे नामी वकील का पता करके जल्द से जल्द रिया की ज़मानत की अर्ज़ी लगवाने की तैयारी करते हैं। अपने असिस्टेंट से वकील का नंबर लेकर विक्रम खुद उससे मिलने जाते हैं । विक्रम उस के सामने सारी बात रख देते हैं कि किस तरह रिया यह बचपना कर बैठी है।  

विक्रम: वकील साहब, मुझे अपनी बेटी की ज़मानत किसी भी कीमत पर चाहिए... इसके लिए मुझे जो कुछ करना होगा सब करूंगा।

वकील विक्रम को बताता है कि रिया का केस मामूली नहीं है। उसे ज़मानत इतनी आसानी से नहीं  मिल सकती और इस केस का अंत क्या और कब हो, कुछ नहीं  कहा जा सकता। रिया को सज़ा भी हो सकती है।

इस सच को विक्रम अच्छे से जानते थे मगर फिर भी, रिया को निकालने की हर कोशिश करना चाहते थे।  

विक्रम, वकील को साथ लेकर रिया से मिलने पुलिस स्टेशन जाते हैं।  वकील से मिलने तैयार हुई रिया की नज़र विक्रम पर पड़ती है और उसका गुस्सा किसी विस्फोट की तरह फट जाता है। वह विक्रम को ही अपना सबसे बड़ा दुश्मन बताती है।

रिया: किसलिए आए हैं अब आप यहां? मेरी ज़िंदगी पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है आपने। शक्ल भी नहीं देखना चाहती मैं आपकी।

विक्रम: अपनी ज़िद से बाहर आओ रिया, पूरा जीवन पड़ा है अभी तुम्हारे सामने...

रिया: वह जीवन जो आपके अभिमान से टकराकर बिखर गया, डैड। आपने कुछ भी अच्छा नहीं किया अपनी लाइफ़ में...  आप बहुत बुरे इंसान हो।

रिया की नफरत विक्रम को अन्दर से पूरी तरह तोड़ कर रख रही थी।

वह उसे समझाना चाहते थे मगर रिया उनकी कोई बात सुनना भी नहीं  चाहती थी। उसने बस एक ही ज़िद लगा ली थी कि वह वहाँ से चले जाएँ। वकील को इशारा करके वह चुपचाप चले गए। रिया उनके जाते ही अपना चेहरा हाथों में छुपाकर रो पड़ी।

विक्रम के साथ आया वकील रिया को समझाता है : “मिस रिया, मैं कोशिश करूंगा कि जल्दी ही आपको ज़मानत मिले और आप यहां से बाहर निकल सकें।”

रिया वकील से बहुत कुछ पूछना चाहती थी पर अभी तक उसकी आँखों के  सामने अपने डैड का चेहरा घूम रहा था और इसलिए वह कुछ नहीं बोल पाई।

वकील अपनी बात रखकर चला गया। रिया इतना तो अच्छे से समझ रही थी कि जेल से उसका निकलना बहुत मुश्किल है। अकेली बैठी रिया आखिर उसी हालत में पहुंच गई जिससे वह खुद को बचाए रखना चाहती थी। जेल का वह छोटा सा कमरा और भूख से बेहाल होती रिया को कबीर से पहली मुलाकात याद आ रही थी.. उसने किस तरह उसे बेहोशी की हालत में, कीचड़ से सने कपड़ों में अपने घर में जगह दी, और उस दिन जो नूडल्स उसने खाए थे, कबीर की प्लेट भी उसी ने खाली कर दी थी।

आज भी रिया को जोरों की भूख लगी थी मगर वह जेल की रोटियों का एक टुकड़ा भी नहीं  निगल पाई। अपने हाल पर रोती रिया, कबीर को याद करते हुए कहती है।

रिया: कहां हो तुम कबीर? तुम्हें पता भी है, मैं किस हालत में हूँ? तुमने कहा था कि किसी भी मिशन पर हम साथ जाएंगे लेकिन मैं अब बिल्कुल  अकेली हो गई हूँ कबीर।

रिया को खुद से जुड़ा हर शख्स इस वक्त याद आ रहा था। रोहन को बस उससे अपना काम निकलवाना था। अब जब वो जेल में थी तो उसका कहीं पता नहीं था। पहले आकाश उसे मुसीबत में छोड़कर भाग गया फिर कबीर भी ग़ायब हो गया। अपनी गलतियों पर पछतावे से ज्यादा रिया को उन लोगों पर गुस्सा आ रहा था जिनके लिए उसने अपनी जान जोखिम में डालकर काम किया।  

रिया अपनी गलतियां ढूंढती हुई उन सभी लोगों की शिकायत कर रही थी कि तभी एक लेडी पुलिस ऑफिसर अन्दर आती है और रिया से कहती है, “जो कुछ तुम्हें पता है, बता दो, कम से कम तुम्हारी बेल आसानी से हो जाएगी।  

रिया ने गिड़गिड़ाते हुए कहा :  

रिया: मुझे कुछ पता नहीं रहता था..  मैं तो बस रोहन के नाइट क्लब तक जाती थी, वहीं से काम मिलता था।

 पुलिस के सामने सच बताते हुए रिया को ये समझ में आया कि उसे तो वाकई कुछ भी नहीं पता, जबकि उसे हर रिस्की काम के लिए इस्तेमाल किया गया था।

वह पुलिस ऑफिसर भी खिलखिला कर हंसती है और रिया के चेहरे पर उंगली फिरा कर कहती है: “जितनी मेहनत इन गैर कानूनी कामों में कर लेती हो, उससे आधी भी कानून की मदद के लिए करती तो इस हालत में न पहुंचती।”

रिया उसकी बात चुपचाप सुन रही थी..  आखिर वह सच ही तो कह रही थी। निराशा में डूबती रिया को कोई भी आकर फिर से उड़ने की उम्मीद नहीं दे रहा था। ज़िंदगी भर जेल में रहने का सोचकर ही उसे रोना आ रहा था।  

रिया : काश कोई आकर कह दे कि सब ठीक है, यह सब एक बुरा सपना था। चलो, घर चलते हैं।  

उधर कबीर भी पुलिस के छापे के बाद यहां-वहां भागता फिर रहा था। सारे ठिकाने पुलिस ने सील कर दिए थे। रिया की गिरफ़्तारी का पता चलते ही रोहन भी नाइट क्लब छोड़कर भाग निकला था। कबीर के पास अब कोई काम या ठिकाना नहीं बचा था। नशे की हालत में वह रिया के फ्लैट पर पड़ा अपना वक्त निकाल रहा था। ऐसे में उसे कई बार कीचड़ में सनी हुई ड्रेस में रिया नज़र आती थी और कभी वह उसे ऊंचाई से जंप करने पर रोक देता था ।

एक गलत क़दम किस तरह से इतने सारे जीवन बर्बाद कर देता है - यहां कबीर की हालत बिगड़ती जा रही थी, वहां जेल में अकेली पड़ी रिया, खुद पर रोने के अलावा कुछ और नहीं कर पा रही थी। उधर विक्रम अपनी कामयाबी के घमंड में अपने परिवार के बर्बाद होने का कारण बन गए। पत्नी के जाने के बाद भी अगर अपने अभिमान को छोड़ दिया होता तो शायद आज रिया को इस हाल में देखना न पड़ता। अब उनके पास पैसा था मगर सुकून नहीं , वह एक पल भी चैन की सांस नहीं ले पा रहे थे। सब ठीक करना चाहते थे लेकिन कैसे ?  

 

विक्रम कैसे खत्म कर पाएंगे रिया की प्रॉब्लम्स को?

किस तरह निकल पाएगी रिया इस कैद से बाहर?

कबीर का क्या होगा?  

जानने के लिए पढिए अगला एपिसोड। 

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