अश्विन उस जादुई ब्रेसलेट को हाथ में लेकर इस सोच में डूब था की क्या एक और विश माँगना चाहिए उस ब्रेसलेट से? मांगता तो क्या मांगता? और उसके बदले अश्विन को किस चीज़ से हाथ धोना पड़ता? इन्ही भावनाओं से झूँझते-झूँझते, कब आँख लगी और कब सुबह हुई, अश्विन को पता तक नहीं चला। कमरे की खिड़की से आती हुई सूरज की रौशनी ने उसे इस बात का एहसास दिला दिया कि एक नया दिन शुरू हो चुका है। उसने उस ब्रेसलेट को दोबारा से बक्से में बंद करके अलमारी में रखकर मन ही मन में कहा,
अश्विन: मैं भी कितना पागल हूँ। जिसकी वजह से सारी परेशानियाँ शुरू हुईं, मैं उसी से फिर से मदद मांगने की सोच रहा था? यह ब्रेसलेट ही तो सारी मुसीबतों की जड़ है। इसका इस्तेमाल करने से बेहतर है कि मैं अपनी सारी समस्याओं का सामना खुद करूँ।”
इस नई सोच के साथ, अश्विन ऑफिस जाने के लिए तैयार होने लगा। जैसे ही उसने हॉल में कदम रखा, उसकी नजर बार कैबिनेट पर पड़ी, और वह दंग रह गया। दरअसल, जब वह रात को घर लौटा था, तो उसने उस पर ध्यान नहीं दिया था। लेकिन अब, जब उसने देखा, तो उसका वह कैबिनेट, फिर से भर चुका था।
यह देखकर वह हक्का-बक्का रह गया और गिल्ट महसूस करने लगा। उसे लगा कि उसने बेवजह शीना को गुस्से में बहुत कुछ सुना दिया, जो उसे नहीं कहना चाहिए था। अश्विन ने तुरंत ही शीना को कॉल किया, लेकिन शीना ने उसका फोन नहीं उठाया।
रास्ते में, कैब में बैठे-बैठे, अश्विन को पिछली रात शीना के साथ हुई लड़ाई याद आ गई। वह उन्हीं ख्यालों में खोया हुआ था, तभी उसका फोन बज उठा। फोन की आवाज़ से उसकी सोच की कड़ी टूट गई। उसने जल्दी-जल्दी अपनी पैंट की जेब से फोन निकाला, लेकिन तब तक कॉल कट चुकी थी। इसी बीच, कैब ने ऑफिस के गेट पर रोक दिया, और अश्विन ऑफिस पहुँच चुका था।
आज अश्विन की एक क्लाइंट के साथ मीटिंग थी, जो वैसी नहीं गई जैसी उसने उम्मीद की थी। उसने मीटिंग में गड़बड़ कर दी, जिससे उसके बॉस उससे नाराज़ हो गए। अश्विन अपने केबिन में बैठकर काम कर रहा था, लेकिन उसका ध्यान पूरी तरह बँटा हुआ था—पिता की बिगड़ी सेहत, माँ का गुस्सा, और शीना के साथ हुई लड़ाई उसके दिमाग़ में घूम रहे थे।
तभी, अचानक उसके केबिन में उसका बॉस आ गया। उन्हें अपने सामने देखकर अश्विन तुरंत अपनी कुर्सी से उठ खड़ा हुआ।
बॉस ने गंभीर लहजे में उससे बैठने को कहा और फिर उसकी काम को लेकर इन एफ़िशियन्सी की बात की। उन्होंने उसे चेतावनी दी कि अगर अगली बार उसकी वजह से किसी क्लाइंट के सामने कोई गड़बड़ हुई, तो यह उसके करियर ग्रोथ के लिए सही नहीं होगा। बॉस के जाते ही, अश्विन ने मन ही मन खीजते हुए कहा:
अश्विन: “ऐसे ही क्या कम परेशानियाँ हैं मेरी ज़िंदगी में, जो अब यह उड़ता हुआ तीर भी आ लगा।”
शाम के समय, जैसे ही अश्विन ऑफिस से निकला, वह टपरी पर चाय और सिगरेट के लिए रुक गया। वहाँ खड़े-खड़े उसने अपने फोन पर कुछ मेल्स देखने शुरू किए। तभी, उसके फोन पर शीना का कॉल आया। उसने तुरंत ही फोन उठाया और कुछ एक-आध मिनट की बातचीत के बाद शीना से कहा, मैं चाय की टपरी पर हूँ। थोड़ी देर में तुमसे पास वाले कैफ़े के आसपास मिलता हूँ।" कुछ ही देर बाद अश्विन और शीना, कैफ़े में बैठे हुए, कॉफी पीते-पीते, बस एक-दूसरे को देखे जा रहे थे।
अश्विन: “तुमने मुझसे ये क्यों कहा था कि तुमने सारी बोतलें फेंक दीं? वो सब तो अपनी जगह पर ही थीं।”
शीना : “बीती बातों को भूल जाओ, अश्विन। मुझे बस इस बात की खुशी है कि तुम मुझसे मिलने यहाँ आ गए और तुमने मुझसे ब्रेक-अप भी नहीं किया। मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती हूँ अश्विन।
शीना के चेहरे पर उससे मिलने की खुशी साफ झलक रही थी। वहीं, अश्विन उनके बीच हुई लड़ाई को लेकर थोड़ा शर्मिंदा महसूस कर रहा था। उसे खुद पर भी शर्मिंदगी हो रही थी कि उसने शराब के लिए अपनी गर्लफ्रेंड को दुख पहुँचाया।
अश्विन और शीना के बीच फिर से मामला ठीक होने लगा था। उनका पैच अप हो गया था, और उन्हें दोबारा साथ आए हुए दो हफ़्ते गुज़र चुके थे। शीना अपने गर्लफ्रेंड मोड में लौट आई थी और फिर से वीकेंड्स पर अश्विन के फ्लैट में उसके साथ समय बिताने लगी थी। लेकिन इस बार, उसने अश्विन के बनाए हुए दायरे को लाँघने की कोशिश नहीं की।
इससे अश्विन को थोड़ी-बहुत राहत मिलने लगी थी। इसके साथ ही, शीना ने कुछ दिनों के लिए शादी की बात नहीं की। और अगर वह करती भी, तो अश्विन के पास उसका भी "मस्त जुगाड़" तैयार था। अश्विन ने पहले से ही सोच रखा था कि जब भी शीना उससे शादी की बात करेगी, तो वह अपने पिता की बीमारी की बात उससे करेगा। इससे शीना ख़ुद को दोषी महसूस करेगी और शादी के प्लान अपने-आप ही टल जाएगा ।
अश्विन ने शीना को पूरी तरह से अपने कंट्रोल में करने के लिए खुद को मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार कर लिया था। लेकिन ऐसा कब तक चलता? ख़ैर, यह तो वक्त ही बताएगा। जहाँ एक तरफ उसने शीना से निपटने का तरीका ढूँढ लिया था, वहीं दूसरी तरफ उसकी ज़िंदगी में समस्याओं की कोई कमी नहीं थी।
एक दिन, अश्विन शीना के साथ बैठा अपने क्रेडिट कार्ड के बिल्स देख रहा था, तभी उसकी माँ का फोन आया। उसने शीना को चुप रहने का इशारा किया और फोन उठाया। “शुक्र है तूने कॉल तो उठाया।” यह सुनकर अश्विन को थोड़ी हैरानी हुई। उसने प्यार से जवाब दिया:
अश्विन: “तुम तो ऐसे कह रही हो, आई, जैसे मैं कभी तुम्हारा फोन नहीं उठाता। सब ठीक तो है?”
दूसरी तरफ, उसकी आई उसके बाबा के बगल में बैठी थीं। उन्होंने थोड़े रूखे अंदाज़ में जवाब दिया: “हाँ, ठीक ही तो होगा सब कुछ।” उनके रूखे अंदाज़ से अश्विन को कुछ खास अच्छा नहीं लगा। इससे पहले कि वह कुछ और कहता, उनकी आवाज़ फिर आई: “तेरे बाबा की तबीयत खराब है। तू तो यहाँ होता नहीं, तो तुझे इस सबसे क्या लेना-देना?” यह सुनकर अश्विन ने थोड़ा ऊँची आवाज़ में कहा:
अश्विन : “तो मैं क्या सारा काम-धंधा छोड़कर वहाँ आ जाऊँ? फिर घर का खर्चा, बाबा के इलाज के पैसे, आपकी दवाइयों का खर्चा—ये सब कहाँ से आएगा? और अगर मैं मुंबई में भी होता, तो भी अपने काम में उलझा ही होता। मेरे वहाँ रहने से कौन से बाबा जल्दी ठीक हो जाएँगे? उल्टा यही कहेंगे कि जवान बेटा घर पर बैठ जाए, तो बीमार बाप के सीने पर बोझ बन जाता है।”
यह सुनते ही अश्विन की आई ने तुरंत जवाब दिया ग़ैर-ज़िम्मेदारी की भी एक हद होती है, तू तो सारी हदें पार कर चुका है बेटे। ऊपर से उल्टा जवाब देता है। तुझसे तो बात ही करना बेकार है।”
यह कहते ही, उसकी माँ ने फोन काट दिया। इसके बाद अश्विन को बहुत ही बुरा महसूस हुआ। उसे इस तरह परेशान देखकर, शीना को उसकी चिंता होने लगी। उसने अश्विन को अपने सीने से लगा लिया और पूछा:
शीना: “क्या कह रही थीं आई ?”
अश्विन ने खीझे हुए मन से शीना को झटक दिया और बोला:
अश्विन: “कुछ नहीं। साला, इतना सब कुछ करने के बाद भी मुझे गैर-जिम्मेदार बेटा कहकर इल्ज़ाम लगाया जाता है। बेवजह ही इमोशनल होती रहती हैं। अच्छे-खासे मूड की वाट लगा दी।”
फिर उसने खुद को थोड़ा शांत किया और शीना की तरफ देखकर कहा:
अश्विन: “कड़क चाय बनाओगी? चाय पियूँगा तो थोड़ा बेहतर महसूस होगा।”
कुछ दिनों बाद, अश्विन की ज़िंदगी फिर से उसी मोड़ पर आ गई, जहाँ उसने पहले शीना के साथ इस रिश्ते को छोड़ा था। शीना एक बार फिर से उसके फ्लैट में शिफ्ट हो गई। उसे लगने लगा था कि अगर इस बार भी उसने अश्विन को उसके हाल पर छोड़ दिया, तो शायद वह फिर से नशे की राह पर चल पड़ेगा।
एक बार फिर, शीना अपने हिसाब से अश्विन की ज़िंदगी को बदलने की कोशिश करने लगी। वह हर संभव प्रयास कर रही थी कि किसी भी तरह अश्विन को शादी की डोर में बाँध ले। इसके लिए उसने काफ़ी जद्दोजहद भी शुरू कर दी थी। जैसे-जैसे शीना की पकड़ अश्विन और उसकी ज़िंदगी पर कसने लगी, वैसे-वैसे अश्विन को इस रिश्ते में वापस घुटन महसूस होने लगी।
कहाँ शीना, अश्विन और अपनी ज़िंदगी को एक धागे में मोतियों जैसे पिरोकर रखने के सपने देख रही थी, पर उसे फिर से इस बात का एहसास होने लगा कि अश्विन रेत की तरह उसकी मुट्ठी से फिसलने लगा है। दूसरी तरफ, इस घुटन भरी ज़िंदगी से अश्विन भी ऊब चुका था। कई बार उसका मन करता कि वह किसी भी तरह शीना से बस पीछा छुड़ा ले।
साथ ही, आए दिन उसकी माँ फोन पर उसके पिता की बिगड़ती तबीयत और सेहत के बारे में बताते हुए उसे यह एहसास दिलाती रहती थीं कि वह एक गैर-जिम्मेदार बेटा है। हर बात पर ताने मारते हुए, वह उसे उनके पास न होने का दोष देती रहती थीं।
एक रोज़, देर रात जब अश्विन घर लौटा, तो शीना के साथ डिनर करते हुए उसे एहसास हुआ कि उसकी ज़िंदगी फिर से शीना की ज़िम्मेदारी और गुलामी में कटने लगी है। पहले तो वह शीना पर गुस्सा करता, उस पर भड़कता, ताने मारता था। लेकिन आजकल, अपनी ज़िंदगी में चल रही समस्याओं से वह इतना परेशान और थक चुका था कि उसने अब शीना से कुछ कहना ही छोड़ दिया था।
वह एक ही बात कितनी बार कहता? उसने शीना को उसके हाल पर छोड़ दिया। उसके मन में एक ही सोच थी:
आश्विन : "चलो, कम से कम उसकी ज़िंदगी में कोई एक ऐसा इंसान तो है जो खुश है। और अगर उसे मेरे होने से खुशी मिलती है, तो ठीक है। आख़िर, शीना के लिए उसकी खुशी का ज़रिया मैं ही तो हूँ।"
देर रात, जब अश्विन ऑफिस से घर लौटा, तो दरवाज़ा शीना ने बड़ी खुशी और मुस्कान के साथ खोला।
शीना: “मिस्टर अश्विन म्हात्रे, मैंने तुम्हारे लिए कुछ बहुत ख़ास किया है। मैं काफ़ी दिनों से इस पर काम कर रही थी।”
यह कहते हुए उसने अश्विन का हाथ थाम लिया और उसे बेडरूम तक ले गई।
शीना: “अपनी आँखें बंद करो।”
अश्विन ने थकान भरे लहजे में कहा:
अश्विन: बेब! मैं थका हुआ हूँ अभी यार ! क्या है ये सब?”
शीना: “प्लीज़! आँखें बंद करो न।”
अश्विन को झमेला नहीं चाहिए था, तो उसने वैसा ही किया जैसा शीना चाहती थी। तभी उसने अलमारी के खुलने और बंद होने की आवाज़ सुनी। फिर शीना के लैपटॉप के स्विच ऑन होने की आवाज़। और शीना ने कहा:
शीना: “अब अपनी आँखें खोलो।”
अश्विन ने जैसे ही अपनी आँखें खोलीं, तो चौंक गया। लैपटॉप की स्क्रीन पर एक प्रेज़न्टैशन चल रही थी, जिसका नाम था: "वेडिंग प्लान." कभी शीना उसे गहने दिखाने लगी, तो कभी शादी के लिए डेस्टिनेशन। शीना के चेहरे पर जैसे दिवाली की रौनक थी, और अश्विन का चेहरा अमावस्या की रात जैसा हो गया था। अश्विन के मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला। वह मन ही मन नज़दीकी एग्जिट का रास्ता खोजने लगा।
क्या अश्विन फिर से भाग जाएगा? या अश्विन एक बार फिर उस ब्रेसलेट से विश मांगेगा! जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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