अश्विन: “बेवकूफ हो क्या? तुमने सब फेंक क्यों दिया?
शीना : “नहीं तो क्या करती मैं अश्विन? क्या चाहते हो तुम? यही कि मैं तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दूँ? छोड़ देती अगर तुमने शराब की लत नहीं लगायी होती।”
अश्विन : “भाड़ में जाओ तुम, शक्ल मत दिखाना अपनी”
यह कहते हुए वह कमरे से निकलकर, घर के बाहर चला गया। वहीं, उसे ऐसे जाते देख, शीना अलमारी के सहारे से टेक लगाये, ज़मीन पर बैठकर, बिना किसी आवाज़ के रोने लगी।
अश्विन को मुंबई से दिल्ली लौटे हुए एक-दो हफ्ते हो चुके थे। इन दो हफ्तों में न तो उसने अपने माँ-बाप से ढंग से बात की थी, और न ही शीना से। इसका कारण उसका काम था – या कहें, काम तो बस एक बहाना था। असल सच्चाई यह थी कि जब वह मुंबई गया था, तब उसकी माँ के साथ हुई कहा-सुनी ने उसके ईगो को चोट पहुँचाई थी।अब बार-बार उसके दिमाग़ में अपनी माँ की आवाज़ गूँजती रहती, जो कह रही थी, "तू एक ज़िम्मेदार बेटा नहीं है।"
रही बात शीना की, तो अश्विन ने उसे एक हफ्ते के लिए खुद से दूर रखा। उसने यह कह दिया कि वह अपने पिता की तबीयत की वजह से थोड़ा स्ट्रेस में है और उसे थोड़ी स्पेस चाहिए।
फिर क्या था, उस एक हफ्ते में उसकी ज़िंदगी पूरी तरह पटरी से उतर गई। उसने अपना ध्यान भटकाने के लिए खुद को काम में झोंक दिया। यही नहीं, वह हर रोज़ ऑफिस से देर रात घर लौटने के बाद नशे में धुत रहता। उसने अपने हॉल में एक बार कैबिनेट खरीदकर लगवाया था, जिसमें उसकी पसंद की और तरह-तरह की शराब की बोतलें रखी थीं। हर शाम, ऑफिस से लौटकर अश्विन उसी बार कैबिनेट के सामने बैठा, नशे में डूबा रहता।
पहले-पहले, जब भी अश्विन खुश होता, दुखी होता, या परेशान होता, तो वह शराब पीने लगता था। मगर अब? अब वह अपनी ज़िंदगी में चल रही हर एक समस्या से जूझने के लिए नशे का सहारा लेने लगा था। शराब का नशा अब उसके लिए छोटी बात बन गई थी। अब वह शराब के साथ-साथ ड्रग्स का भी इस्तेमाल करने लगा था। पिछले कुछ दिनों में उसने अलग अलग तरह के ड्रग्स को चखा, और अब वह इन नशों में माहिर हो चुका था।
कुछ दिनों पहले, जब हर रात की तरह अश्विन ऑफिस से देर रात घर लौटा, तो सीधे अपने बार कैबिनेट से जा चिपका। उस रात, शराब और ड्रग्स के नशे में डूबे हुए अश्विन का सारा ध्यान उसके बाबा के पसंदीदा गाने पर था। उसने कहीं पढ़ा था, जब इंसान खुश होता है, तो वह संगीत का आनंद लेता है।
लेकिन जब दिल उदास होता है, तब वह गीत के शब्दों की गहराई को महसूस करता है। तब हर शब्द का महत्व ध्यान से समझा जाता है, जैसे हर शब्द मानो उसी दुख के लिए ही लिखा गया हो।
उस वक्त, उसका पूरा ध्यान गाने के लीरिक्स पर था। उन शब्दों को सुनकर उसे खुद पर हँसी आई।
वह गाना एक धमाकेदार ऐक्टर की सुपरहिट फिल्म का था, जिसके सिन्जर भी काफ़ी मशहूर रहे हैं। उस गाने के बोल कुछ यूँ थे,
“दिल जाने, मेरे सारे, भेद ये गहरे,
हो गये कैसे मेरे, सपने सुनहरे,
घनी थी उलझन, बैरी अपना मन।”
आख़िर, इस बात पर उसे ख़ुदपर हँसी कैसे न आती! आख़िर, वरुण जैसा बनने की उसकी इच्छा, वरुण जैसी लाइफ जीने का उसका सपना, पूरा तो हुआ था, मगर उसकी क़ीमत वह पल-पल चुका रहा है।
अगले दिन, जब उसकी नींद खुली, तो उसने महसूस किया कि कमरे में उसके अलावा कोई और भी है। उसकी नींद से भरी, आधी खुली आँखें अचानक पूरी तरह खुल गईं, और वह हड़बड़ाकर उठकर बैठ गया।
उसने देखा कि शीना उसके सामने एक कुर्सी पर बैठी, गुस्से से उसे घूर रही थी। शीना के एक हाथ में शराब की बोतल थी और दूसरे हाथ में नशे की पुड़िया।
अश्विन का दिल एकदम धक से रह गया। उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी ने उसके घर में जबरन घुसपैठ कर दी हो। वह हक्का-बक्का सा रह गया और कुछ बोलने की स्थिति में नहीं था।
गुस्से में तमतमाते शीना ने फ़र्श पर वो सामान रखा, और अश्विन की तरफ एक टक देखती रही।
शीना: “कुछ कहना है तुम्हें? अपनी हालत देखी है तुमने? पिछले एक हफ्ते से तुम मुझसे पीछा छुड़ा रहे थे, मुझसे भाग रहे थे, यह बोलकर कि तुम्हें स्पेस चाहिए क्योंकि अंकल की तबीयत खराब है? सच में, अश्विन? ये सब क्या है? ड्रग्स? शराब? अरे, मैं तो यहाँ यह सोचकर आई थी कि तुम्हें चीयर अप करूँगी, तुम्हें गुड न्यूज दूँगी कि मैं यहाँ शिफ्ट होने आई हूँ। लेकिन तुमने मेरा मूड खराब कर दिया।
जब मैंने यह सब देखा, तो इतना गुस्सा आया कि मन किया तुम्हें पीटूँ और फिर यहाँ से चली जाऊँ। लेकिन फिर सोचा कि उसमें भी तुम्हारा ही फायदा होगा। क्योंकि तुम तो यही चाहोगे कि मैं चली जाऊँ, ताकि तुम्हें यहाँ शराब और ड्रग्स करने की पूरी छूट मिल जाए।
मैं यहाँ से जा भी नहीं सकती, क्योंकि मैं तुम्हें इस हालत में, इस तरह डिप्रेशन में नहीं देख सकती। और इस सबके साथ तो बिल्कुल भी नहीं।
इसलिए मैंने फैसला किया है कि मैं यहीं रहूँगी, अभी और इसी वक्त से। क्योंकि तुम्हें हो न हो, लेकिन मैं तुमसे प्यार करती हूँ। और मैं तुम्हें अपने-आप को इस तरह बर्बाद करने नहीं दूँगी।”
उसकी सारी बातें सुनने के बाद, अश्विन ने गहरी साँस ली। मगर अंदर ही अंदर उसे घुटन महसूस होने लगी। उसे लगने लगा जैसे शीना ने अब उसे किसी पिंजरे में बंद कर दिया है और उसकी आज़ादी छीन ली है। अब उसे शीना के इरादों से और भी ज़्यादा डर लगने लगा। वह जानता था कि शीना उसके भले का ही सोच रही थी, लेकिन अब वह इस रिश्ते से पूरी तरह बाहर निकलने की सोचने लगा।
अश्विन ने एक आँह भरी, और अपने हाथों से अपने चेहरे को मलते हुए बोला,
अश्विन: “आजकल बिना बताए आ जाती हो, आने से पहले इन्फॉर्म तो करना चाहिए”
अश्विन की आवाज़ में एक घबराहट थी, जो कि शीना से छुपी नहीं। शीना ने उसे घूरते हुए कहा,
शीना: “अच्छा! अपना फोन चेक करो।”
जैसे ही अश्विन ने अपना फोन ढूँढने के लिये बिस्तर के आस-पास अपनी नज़रें दौड़ायीं, तो उसे बेड के पास वाले छोटे से टेबल पर उसका फोन दिखा, जो कि चार्ज पर लगा था।
शीना गुस्से में ऊंची आवाज़ में बोलती रही…
शीना: “सुबह से तुम्हें फोन कर रही थी, लेकिन तुम्हारा फोन बंद था। मुझे टेंशन होने लगी, तो मैंने अपना सारा सामान उठाया और यहाँ आ गई। यहाँ आकर क्या देखती हूँ? हॉल का पूरा हुलिया बदल गया है! बार कैबिनेट लगवाया गया है! एक सेकंड के लिए तो मुझे लगा कि जैसे मैं किसी और के फ्लैट में आ गई हूँ। फिर बेडरूम में जाकर देखा, तो तुम नशे में धुत पड़े हुए थे। तुम्हारा फोन तुम्हारे पास मिला, बंद था। मैंने उसे चार्ज में लगा दिया। इसके बाद मैंने घर की साफ-सफाई की। जब तुम्हारे गंदे कपड़े वॉशिंग मशीन में डालने लगी, तो उसमें से वह पाउच मिला। अच्छा हुआ मैं बिना बताए आ गई। कम से कम पता तो चला कि मेरे पीठ पीछे तुम क्या-क्या करने लगे हो।”
अश्विन ने गहरी साँस ली, और कुछ भी कह नहीं पाया। उसे नहीं पता था कि वह कैसे शीना से कहे कि वह यह नहीं चाहता कि शीना और वह एक साथ एक ही घर में रहें। उस वक़्त, उसके मन में एक एक अलग ही लड़ाई चल रही थी।
शीना ऑफिस से अश्विन के फ्लैट में जल्दी लौट आई थी। मगर अश्विन, तो रोज़ की तरह देर रात तक ऑफिस में ही रुका रहा। अब तो वह जानबूझकर ही ऑफिस में देर तक रुकने लगा था। ख़ैर, जब आधी रात को अश्विन ने अपने फ्लैट में क़दम रखा, तो हॉल का हुलिया देखकर उसका माथा घूम गया। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुँच गया।
उसके बार कैबिनेट से शराब की बोतलें ग़ायब थीं। उसे समझ ही नहीं आया कि शीना ने यह सब क्यों किया। हालाँकि, कहीं न कहीं अश्विन को शायद पता था कि शीना ने यह सब क्यों किया। उस वक्त, शीना की इस हरकत पर उसका गुस्सा काबू से बाहर हो चुका था।
ठीक उसी वक़्त, शीना भी कमरे से निकलकर हॉल में आ गयी, और नींद में बोलने लगी,
शीना: “आ गये तुम? मैं खाना लगा देती हूँ, साथ में मिलकर डिनर कर लेते हैं।”
वह भले ही नींद में थी, लेकिन उसकी आवाज़ में ख़ुशी और उत्साह था। शीना उसकी तरफ प्यार भरी निगाहों से देख रही थी, जबकि अश्विन खुद को धर्मसंकट में फँसते हुए महसूस कर रहा था। वह इस रिश्ते के बोझ से खुद को बाहर निकालने की कोशिश कर रहा था, लेकिन उसे यह समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे किया जाए।
उसने जैसे-तैसे अपने गुस्से पर काबू रखा, खुद को शांत किया, और बेडरूम की ओर बढ़ गया। शीना भी चुपचाप उसके पीछे-पीछे चलने लगी। जैसे ही अश्विन ने कमरे में कदम रखा, बिस्तर पर अपने और शीना के कपड़ों का ढेर देखकर उसका गुस्सा फिर से बढ़ने लगा।
फिर, उसकी नजर ब्रेसलेट के डिब्बे पर पड़ी। उसे देखते ही उसकी साँसें थम गईं, और उसकी आँखें फटी की फटी रह गईं। अचानक, एक झटके में उसके दिमाग़ में शीना की शादी वाली बातें गूँजने लगीं। उसके बीमार बाबा की हालत उसकी आँखों के सामने आ गई, और अपनी माँ के प्रति उमड़ा हुआ गुस्सा भी उभरने लगा।
ये भावनाएँ और विचार उसे गुस्से के और नज़दीक ले गए। उसके सब्र का बाँध आखिरकार टूट गया। उसने गुस्से में शीना की तरफ़ देखकर उसे डाँटते हुए कहा,
अश्विन: “तुमने मुझसे बिना पूछे मेरे सामान को हाँथ क्यों लगाया?”
इससे पहले कि शीना उसके बदले बिहेवियर से ऊभर पाती, उसने शीना के कँधों पर अपने दोनों हाथ रखकर पूछा,
अश्विन: “बार कैबिनेट में जितना सामान था वो कहाँ गया शीना?”
शीना ने हिचकिचाते हुए कहा,“वो मैंने फेंक दिया।” अश्विन ने उसपर भड़कते हुए कहा,
अश्विन : “बेवकूफ हो क्या? तुमने सब फेंक क्यों दिया?
शीना : “नहीं तो क्या करती मैं अश्विन? क्या चाहते हो तुम? यही कि मैं तुम्हें तुम्हारे हाल पर छोड़ दूँ? छोड़ देती अगर तुमने शराब की लत नहीं लगायी होती।”
अश्विन: “भाड़ में जाओ तुम, शक्ल मत दिखाना अपनी”
यह कहते हुए वह कमरे से निकलकर, घर के बाहर चला गया। वहीं, उसे ऐसे जाते देख, शीना अलमारी के सहारे से टेक लगाये, ज़मीन पर बैठकर, बिना किसी आवाज़ के रोने लगी।
अश्विन के जाते ही, शीना काफ़ी देर तक ज़मीन पर बैठकर रोती रही। कुछ समय पहले तक उसे लग रहा था कि उसने अश्विन के लिए कुछ बड़ा किया है। मगर अश्विन के रिएक्शन के बाद, वह यह बात समझ चुकी थी कि अश्विन को उसकी दखलअंदाज़ी बिल्कुल पसंद नहीं आई। कुछ देर तक अश्विन का इंतज़ार करने के बाद, शीना ने बिस्तर पर फैले अपने कपड़ों को एक बैग में रखा। अश्विन के सारे कपड़े अलमारी में सलीके से तह करके रख दिए।
फिर उसने एक कागज़ पर एक छोटा सा नोट लिखा और उसे अश्विन के तकिए पर रख दिया। जाते-जाते, उसने फ्लैट की चाबी डोरमैट के नीचे रख दी और बाहर निकल गई।
वहीं, जब अश्विन कुछ देर बाद अपने फ्लैट लौटा, तो फ्लैट पर ताला लगा देखकर उसे काफी अजीब लगा। उसने दूसरी चाबी से ताला खोला, तभी उसे डोरमैट के नीचे रखी चाबी का एहसास हुआ।
जैसे ही वह कमरे में गया, उसे शीना का एक नोट मिला। उस पर लिखा था:
शीना: “मैं जा रही हूँ। सॉरी! मैं यहाँ अब तभी आऊँगी, जब तुम मुझे बुलाओगे। सॉरी तुम्हारी ज़िंदगी में दखल देने के लिए। यह मेरी गलती थी, मुझे तुमसे पूछना चाहिए था। लेकिन प्लीज़, मुझे छोड़ना मत! मैं अब भी तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। आय लव यू अश्विन.”
उस नोट को पढ़ते ही अचानक अश्विन को रिया की याद आ गई। रिया का हमेशा से यही मानना रहा था कि अगर कोई रिश्ता बेड़ियों में जकड़ने जैसा एहसास देने लगे, तो उसमें बंधे रहने से अच्छा है कि आज़ाद हो जाओ।
अश्विन बिस्तर पर लेटा हुआ, ब्रेसलेट को घूरते हुए इस सवाल से जूझ रहा था कि क्या उसे शीना से पीछा छुड़ाने के लिए इसका का सहारा लेना चाहिए?
मगर वह ब्रेसलेट का इस्तेमाल करने से डर भी रहा था। उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था कि क्या वह अपनी भावनाओं को दबाकर इस रिश्ते को निभाए, या फिर शीना को बिना दुख पहुँचाए इस रिश्ते को ख़त्म कर दे?
अब अश्विन क्या तय करता है?
क्या वह फिर से ब्रेसलेट का इस्तेमाल करता है? जानने के लिए पढ़ते रहिए।
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