श्री - "लगता है आप लोगों की दोस्ती भी हो गई", क्यों पंडित जी?
श्री घर में घुसते ही बोल पड़ती हैं और फिर अंदर जाकर, पैर धोकर पंडिताइन से मिलने, किचन में चली जाती हैं।
श्री - "कैसी हैं काकी?"
पंडिताइन - "हम एकदम ठीक हैं बिटिया.. तुम ठीक हो?"
श्री - "हां काकी.. मैं एकदम मस्त। लाइए मुझे दीजिए.. मैं ले चलती हूं"
कहकर श्री पंडिताइन के हाथों से ट्रे ले लेती हैं और बाहर के कमरे में आ जाती हैं।
श्री - “ये लीजिए.. काकी के हाथ की गर्मा गर्म चाय” श्री पहले पंडित जी के पास जाकर उन्हें चाय देती हैं और फिर वसन के पास जाकर उसे चाय देकर, उसके पास ही बैठ जाती हैं।वसन चाय पीते हुए मन ही मन सोच रहा है,
वसन - "यहां भी रिश्ते बना लिए इसने.. पंडित जी की वाइफ को काकी बना लिया इसने.. पता नहीं कहां से लाती है ये इतनी बातें.."
श्री - "तो पंडित जी कैसी लग रही है हमारी जोड़ी?"
श्री चाय की एक चुस्की लेती हैं और अचानक से पंडित जी से यह सवाल कर देती हैं। पंडित जी कुछ नहीं कह पाते और वसन की ओर शक की नजरों से देखने लगते हैं क्योंकि वसन ने तो उन्हें कुछ और ही बता रखा है।
श्री - "अरे.. आप ऐसे क्यों देख रहे हैं पंडित जी.. क्या वसन ने आपको बताया नहीं?"
ये बोलते हुए श्री वसन का एक हाथ पकड़ लेती हैं और उसके थोड़ा और पास आ जाती हैं। ये सब चल ही रहा होता है कि पंडिताइन भी बाहर आकर पंडित जी के पास ही बैठ गईं हैं।
श्री - "क्यों वसन .. बताया नहीं तुमने?"
वसन एकदम ब्लैंक है और श्री की ओर देखे जा रहा है.. वह अपना हाथ छुड़ाने की कोशिश भी करता है पर श्री नहीं छोड़ती, बल्कि और कसकर पकड़ लेती है।
पंडित जी - "इस लड़के ने तो कहा कि तुम्हारे साथ…",
पंडित जी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाते कि श्री बोल पड़ती है,
श्री - "हां पंडित जी मेरे साथ इसने दोस्ती कर ली है.. वो भी पक्की वाली। है ना हमारी जोड़ी एकदम मस्त.."
यह सुनते ही, पंडित और पंडिताइन जोर से हंसने लगते हैं और श्री को उनके साथ मस्ती करने के लिए डांट भी लगाते हैं.. पर इस हंसी मजाक में वसन की हंसी शामिल नहीं है। वह हाथ छुड़ाकर आंगन में आ गया है।
पंडित जी - "बेटी, उसे तुम्हारा मजाक अच्छा नहीं लगा… जाओ जाकर उससे माफी मांगो और लेकर आओ यहां.. फिर आकर जो हमने सबके लिए पालक पत्ता चाट बनाई है.. वो खाना"
काकी श्री को ऐसा बोलकर अंदर किचन में चली जाती हैं और श्री बाहर आंगन में आ गई है जहां से सामने बहती गंगा साफ - साफ नजर आ रही हैं।
श्री - "सॉरी.. सो सॉरी.. देखो कान भी पकड़ लिए। अब तो मान जाओ ना",
श्री जाकर वसन के पीछे खड़ी हो गई है और बार-बार उससे माफी मांग रही है।
वसन - "देखो.. मुझे थोड़ा खुद के लिए टाइम चाहिए.. तुम जाओ, मैं आता हूं।"
श्री - "पर वसन .. आइ ऐम सॉरी .."
श्री उदास हो जाती है।
वसन - "हम्म.. ओके। अब जाओ।"
श्री वापस कमरे में आकर बैठ जाती है और पंडित जी उसे उदास देखकर समझाने लगते हैं,
पंडित जी - "बेटी, आ जाएगा वो अभी.. जरूरी नहीं ना कि तुम्हारा मजाक सबको अच्छा लगे.. हो सकता है कि कुछ ऐसा हो जो उसे पसंद नहीं आया हो…"
श्री अब अपनी चाय खत्म करती है और पंडित जी उठकर अलमारी में से कुछ किताबें निकालने लगते हैं… वह कुछ लोग होते हैं ना जिनसे एक इमोशन ज्यादा देर चिपका नहीं रह सकता.. उनमें से श्री भी एक है। और इस वक्त वो कुछ और देर उदास रही तो पता नहीं क्या हो जाएगा..
श्री - "मैंने तो सॉरी बोल दिया.. और आगे से ध्यान भी रखूंगी पर अब मैं सैड नहीं रह सकती पंडित जी.."
पंडित जी - "तो ये तो अच्छी बात है ना बेटा.. क्यों रहना है सैड। क्यों उस बात को अपने ऊपर हावी होने देना है।"
श्री - "हां तो ठीक है.. आप बताइए मुझे कि आज हम कहां जाने वाले हैं? आप कह रहे थे ना कि बड़ा प्रसिद्ध मंदिर है वो।"
पंडित जी एक बुक श्री के सामने रखकर बैठ जाते हैं। बुक का टाइटल है 'काल भैरव की कथा'।
पंडित जी - "यह किताब हमने स्वयं छपवायी है बेटा.. एक समय था जब हमने खूब किताबें पढ़ीं, उपनिषद, पुराण.. सब पढ़ा तब हमें महसूस हुआ कि कुछ कथाओं का यूं अलग से संग्रह करना चाहिए.. तुम चाहो तो इस किताब से काल भैरव के बारे में जान सकती हो.. और तुम पूछ रही थी ना कि आज हम कहां जाने वाले हैं.. बेटा जी आज हम काल भैरव के दर्शन करने जाने वाले हैं… कहते हैं कि इनके दर्शन नहीं किए तो समझो काशी पूरा नहीं हुआ.."
श्री पंडित जी की बातें बड़े गौर से सुनती है और फिर बोलती है,
श्री - "मैं ये बुक तो पढ़ूंगी ही.. आप मुझे इनके बारे में और भी बताइए ना।"
पंडित जी बताना शुरू करते हैं,
पंडित जी - "भगवान काल भैरव की कथा के बारे में जानकारी देने वाली किताबों में से एक स्कंद पुराण है, तुम वो भी पढ़ना.. माना जाता है कि काल भैरव, भगवान शिव के पांचवे अवतार हैं। उपासना की दृष्टि से भैरवनाथ एक दयालु और प्रसन्न होने वाले देवता हैं और कहते हैं कि भोग में बाबा को हलवा, खीर, गुलगुले और जलेबियां बड़ी पसंद आती हैं।"
श्री यह सब सुनकर बड़ी खुश हो जाती है और पंडित जी से एक सवाल करती है,
श्री - "एक बात पूछूं पंडित जी?"
पंडित जी - "अब तक हम इतना तो जान ही गए हैं बेटा कि तुम बिना पूछे रह नहीं पाओगी.. इसलिए पूछ ही लो।"
श्री हंसते हुए पूछती है,
श्री - "भगवान तो कोई बोलते नहीं कि उन्हें ये सब पसंद है.. फिर कैसे पता चला कि भैरव बाबा को ये सब पसंद है।"
पंडित जी - "म्म्म्म.. यह जो सवाल आया है ना बिटिया, यह आध्यात्म की दृष्टि से.. इस पथ पर चलने के शुरुआती समय में आने वाले सवालों में से एक सवाल है… और हम इसका जवाब तुम्हें नहीं देंगे। इसका जवाब तुम्हें अपने आप ही मिल जाएगा।"
पंडित जी श्री को यह सब बता ही रहे होते हैं कि वसन आ जाता है और आकर वहीं बैठ जाता है.. अब पंडित जी का ध्यान श्री से हटकर वसन पर आ जाता है,
पंडित जी - "तुम ठीक हो?"
वसन - "जी पंडित जी.. मैं ठीक हूं।"
पंडित जी - "तो अब जल्दी से दोनों दोस्त हाथ मिलाओ और बट्टी हो जाओ।"
श्री वसन की तरफ हाथ बढ़ा देती है और वसन भी अपना हाथ आगे बढ़ाकर बट्टी कर लेता है..
पंडित जी - "अरे क्या बात.. दोनों दोस्तों ने बट्टी कर ली.. चलो अब ये पालक पत्ता चाट खाकर बताओ कि कैसी लगी?"
काकी सभी को चाट की प्लेटें पकड़ा देती हैं और खुद तैयार होने चली जाती हैं।
और अब खा-पीकर, श्री और वसन , पंडित और पंडिताइन के साथ मंदिर जाने के लिए.. घर से बाहर आ जाते हैं। दो रिक्शे झट से आकर रुक जाते हैं.. पर अब यह तय करना मुश्किल है कि कौन किसके साथ बैठेगा.. पहले श्री, पंडिताइन के साथ बैठने की इच्छा जताती है और फिर वसन पंडित जी को पंडिताइन के साथ बैठने देने की बात कहता है.. कुछ देर चारों एक-दूसरे को एक-दूसरे के साथ बैठने की बातें करते हैं और फिर पंडिताइन सबको चुप कराते हुए बोलती हैं।
पंडिताइन - "हम अपने स्वामी, अपने द्विवेदी जी के साथ बैठेंगे। बाबा भैरव के पास जा रहे तो इनके साथ ही जाएंगे.. बस। कह दिया तो कह दिया।"
श्री, वसन और पंडित जी कुछ भी नहीं बोलते और चुपचाप रिक्शे में बैठ जाते हैं। अब श्री और वसन , जिस रिक्शे में बैठे हैं वह आगे चल रहा है और पंडित - पंडिताइन वाला रिक्शा पीछे चल रहा है।
पंडिताइन - "आपको क्या लगता है पंडित जी?"
पंडित जी - "क्या लगता है मतलब?"
पंडिताइन - "मतलब इन दोनों के बारे में.."
पंडित जी - "अरे.. ये काशी की महिमा है पंडिताइन.. इस पर तुम और हम बोलने वाले कौन ही होते हैं।"
पंडिताइन - "हां सही तो कह रहे हैं आप.."
बातों ही बातों में सब मंदिर जाने वाली गली के बाहर पहुंच जाते हैं और रिक्शेवाला बोलता है,
रिक्शेवाला - "अब यहां से अंदर पैदल जाना होगा दीदी।"
श्री और वसन रिक्शे से उतर जाते हैं और आकर पंडित और पंडिताइन के पास खड़े हो जाते हैं। फिर चारों साथ बढ़ते हैं।
श्री - "देखो ना, कितना सुंदर वॉल आर्ट है… तुम आए हो क्या पहले?"
श्री वसन से बात करने की पहल करती है और वह सिर हिलाकर, बिना कुछ कहे बताता है कि वह नहीं आया है।
श्री - "देखो मुझे पता है, मैंने तुम्हें बहुत हर्ट किया है पर मैं दिल से सॉरी हूं। प्लीज मुझसे बात करो ना.."
वसन - "मैंने तुम्हारा सॉरी एक्सेप्ट कर लिया है श्री पर अभी मैं शांत रहकर सब कुछ देखना चाहता हूं। आइ होप तुम मुझे स्पेस दोगी?"
श्री हां करती है और वसन से थोड़ा आगे चलने लगती है। वो अब आसपास के लोगों को देख रही है और इस बीच उसकी नजर एक सन्यासी बाबा पर पड़ती है.. श्री भागकर वसन के पास आती है,
श्री - "तुम्हें याद है वो बाबा?"
वसन - "तुमसे दो मिनट भी चुप नहीं रहा गया ना.. अब क्या हुआ?"
वसन श्री की पूरी बात बताने से पहले ही उसे डांट देता है।
श्री - "अरे मैं तुम्हें स्पेस दे रही थी..पर अभी सुनो तो.. मैंने वो बाबा को देखा.. वो जो उस दिन दिखे थे ना नमो घाट पर।"
ये सुनकर वसन भी श्री के साथ भागकर आगे आता है और उन बाबा को देखता है और उनके पास जाता है.. आगे चल रहे पंडित पंडिताइन.. थोड़ा ज्यादा ही आगे निकल गए हैं इसलिए यहां जो कुछ भी हो रहा है.. उन्हें इसका कोई अंदाजा नहीं है।
वसन - "प्रणाम बाबा.."
बाबा कुछ नहीं बोलते और आंखें बंद कर लेते हैं।
वसन - "पहचाना आपने? मैं वही हूं.. जिसे आपने नमो घाट पर देख कर कहा था कि मेरे साथ कुछ बड़ा होने वाला है… बताइए ना बाबा क्या होने वाला है मेरे साथ.."
बाबा कुछ देर के लिए चुप रहते हैं और फिर आंखें खोलकर श्री की ओर देखने लगते हैं..
बाबा - "जिसके दर्शन करने आया है.. उसके पास जा। वो करता है सब, मैं नहीं… ध्यान रखना धीरज रखना है… भोले बम बोलिए, हम पूरे तेरे हो लिए.."
और बाबा उठकर चले जाते हैं।
श्री - "देखो, तुम ज्यादा इस सब के बारे में सोच रहे हो तो … अब मत सोचो ज्यादा और चलो, हम मंदिर में जाकर दर्शन करते हैं।"
वसन कुछ नहीं बोलता और श्री के साथ चलने लगता है। दोनों अब मंदिर के दरवाजे के बाहर खड़े होकर अपनी बारी आने का इंतजार करते हैं।
पंडित जी जब श्री और वसन को देखते हैं तो आवाज देकर आगे बुला लेते हैं,
पंडित जी - "आ जाओ.. आ जाओ। अंदर आ जाओ। पुजारी जी.. हमारे साथ आए हैं ये दोनों बच्चे। आने दीजिए।"
इस तरह श्री और वसन अब मंदिर के अंदर आ गए हैं और पंडित जी के साथ भैरव बाबा के दर्शन करने मूर्ति के सामने जाकर खड़े हो गए हैं। वसन मूर्ति को देख रहा है.. और उसकी आंखों से आंसू निकले जा रहे हैं जैसे कोई उसके अंदर का सारा दर्द बाहर निकाल रहा हो। श्री वसन को देखती है और फिर पंडित जी को उसे देखने को कहती है… पंडित जी, श्री को दर्शन करके आगे बढ़ जाने के लिए कहते हैं और खुद वसन के पास खड़े हो जाते हैं।
श्री - "पता नहीं काकी वसन को क्या हो गया है.. वो बस वहां खड़ा रोए जा रहा है.."
श्री पंडिताइन के पास जाकर उन्हें बताती है।
पंडिताइन - "अच्छा है ना.. रो लेने दो"
श्री - "ये क्या बोल रही हैं काकी आप.."
पंडिताइन - "हां यही बोल रही हूं कि रो लेने दो… कबसे मन भारी किए रह रहा होगा.."
श्री को काकी की बातें समझ नहीं आती और वो मंदिर में मौजूद पुजारी जी से मंदिर के बारे में पूछने चली जाती है।
आखिर क्यों वसन की आंखों में इतने सारे आंसू आ गए हैं? क्यों वही सन्यासी बाबा फिर उसे मिल गए हैं? आगे अब और क्या - क्या होगा ये जानने के लिए पढ़ते रहिए श्री वसन ।
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