दरवाजे पर बजी बेल ने, पत्थर पर बैठी माई की आँखें खोल दी हैं। वो उठती हैं और श्री को अपने कमरे में जाने को कहकर, दरवाजे की ओर चल जाती हैं। श्री भी उठकर, अपने कमरे में आ गई है और श्री के अपने कमरे में जाते ही, माई दरवाजा खोलती हैं।
“पता चला?”, माई दबी आवाज में पूछती हैं।
“हूँ..”, सामने खड़ा आदमी जवाब देता है।
“कहाँ है वो? कैसा है?”
“पैसों की जरूरत है उसे.. बोला कि जासूसी कर ही रहा है तो बता दे जाकर पैसों की जरूरत है।”
माई को ये सुनकर बहुत बुरा लगता है और वो जाकर अपने कमरे में अपने बैग में से कुछ रुपये निकाल कर ले आती हैं, फिर वो रुपये उस आदमी को देते हुए उससे पूछती हैं, “तुम जासूस हो, फिर भी पकड़े गए पर अच्छा ही है कि पकड़े गए.. कम से कम मैं पैसों से ही सही पर उसकी कुछ तो मदद कर सकूँगी।”
अब माई दरवाजा बंद करके मुड़ती ही हैं कि सामने श्री को खड़ा पाती हैं। माई एकदम से उसे ऐसे देखकर घबर जाती हैं, “बिटिया तुम.. तुम यहाँ?”
श्री - “वो मैं तो पानी लेने आई थी.. आपको अब तक यहाँ खड़े देखा तो सोचा पूछ लूँ.. सब ठीक है न?”
माई - “हां हां, सब ठीक है बिटिया.. अब तो हम थक गए हैं। जाकर सोएँगे। तुम भी जाकर सो जाओ।”
माई अपने कमरे में चली गई हैं। श्री अपने कमरे में चली आई है और आकर बेड पर लेट गई है, “पता नहीं किस को पैसे भिजवाए हैं माई ने.. कहीं मदद के नाम पर कोई माई का फायदा तो नहीं उठा रहा?.. क्या मुझे इस सब में पड़ना चाहिए?.. कुछ समझ नहीं आ रहा है.. जाकर माई से पूछूँ? पर ऐसे अच्छा नहीं लगेगा न अगर उन्हें पता चल जाएगा कि मैंने उनकी बातें सुनी.. मैं तो कहां उनसे वो दरबार की बातें पूछने वाली थी और अब ये सब पूछूंगी तो.."आई शुड टेक सम टाइम बिफोर आस्किंग हर एनीथिंग।"
खुद से ही बातें करते-करते श्री सो जाती है और अगली सुबह की शुरुआत होती है जोर-जोर से आने वाली आवाजों से।
गर्ल - “साला मुझे सिखाएगा तू..”
बॉय - “हां सिखाऊँगा.. तू समझती क्या है अपने आप को। तेरे तो घर पर फोन करके बता दूँगा मैं कि क्या किया तूने आज..”
गर्ल - “ये घर की धमकी किसी और को देना.. समझे। बोल रही हूँ कि मैंने नहीं लिया.. कुछ मिसअंडरस्टैंडिंग हुई है..”
बॉय - “अच्छा.. और जरा बता सकती है कि कैसे होती है ये मिसअंडरस्टैंडिंग कि पूरा का पूरा वॉलेट ही तेरे बैग में चला गया।”
आवाज़ें सुनकर श्री की नींद खुल जाती है और वो कमरे से बाहर आती है। माई , ऋधिमा और बाकी सभी कमरों में रहने वाले लोग भी बाहर मौजूद हैं। श्री ऋधिमा से पूछती है कि हुआ क्या है और वो उसे यश और कीर्ति के बीच हुए इस झगड़े की पूरी कहानी बताती है, “यश का वॉलेट मिल नहीं रहा था तो वो अपने कमरे में देख लेने के बाद, बाहर आकर देखने लगा.. बगिया, किचन, और पीछे जाकर भी देखा.. कहीं नहीं मिला तो वो आकर उदास होकर यहाँ बैठ गया। बैठा-बैठा माई को सब बता ही रहा था कि कीर्ति का, कमरे से निकलकर, बाहर जाना हुआ.. और कीर्ति के बैग की चैन खुली होने की वजह से उसका कुछ सामान नीचे गिर गया , उस सामान में यश का वॉलेट भी था.. बस तब से ही दोनों इस बात पर झगड़ रहे हैं कि वॉलेट गलती से आया या चोरी किया।”
सब जानने के बाद श्री जोर से चिल्लाकर यश और कीर्ति को शांत करती है, “बस। चुप हो जाओ दोनों…”
सब श्री की ओर देखने लगते हैं।
“यश को लग रहा है कि कीर्ति ने उसका वॉलेट चोरी किया और कीर्ति कह रही है कि उसने नहीं किया.. दोनों अपनी-अपनी जगह पर सही हैं क्योंकि देखने में ये ऐसा ही लग रहा है.. पर सच कुछ और है। कल रात जब मैं पानी लेने के लिए किचन की ओर जा रही थी तब मैं कीर्ति के कमरे के बाहर से निकली तो मेरा पैर इस वॉलेट पर पड़ा था… ये हुआ कीर्ति के कमरे के बाहर था इसलिए मुझे लगा कि ये कीर्ति का है.. मैंने दरवाजा नॉक किया.. फिर थोड़ा सा खोलकर देखा तो म्यूजिक प्लेयर ऑन था और कीर्ति वॉशरूम में थी। फिर मैंने उसे आवाज देकर बताया कि कीर्ति तुम्हारा वॉलेट बाहर गिरा मिला.. उसने कहा कि मैं वहीं बेड पर रख दूँ पर मैंने बेड की जगह बेड पर रखे, उसके बैग में रख दिया… फिर हो सकता है कि उसे याद न रहा हो और उसने चेक न किया हो।”
जैसे ही श्री अपनी बात पूरी करती है, माई बोलती हैं, “हो गया सब क्लियर, चल गया पता कि क्या हुआ था.. तो अब सब जाकर तैयार हो और आकर अपना-अपना नाश्ता लेकर जाएँ..”
सब अपने-अपने कमरे में लौट जाते हैं पर कीर्ति, श्री के पीछे-पीछे उसके कमरे में आ जाती है और हाथ जोड़कर उसके सामने खड़ी हो जाती है, “थैंक यू !!”
श्री - “अरे.. ये क्या कर रही हो तुम कीर्ति.. आओ बैठो यहाँ। और अब बताओ क्यों किया तुमने वो सब?”
अपने आँसू पोंछते हुए कीर्ति बताती है, “दरअसल, मेरे घर पर आज मुझे पैसे भेजना बहुत जरूरी है.. माँ की तबियत ठीक नहीं है, उनकी दवाइयाँ खरीदनी हैं, अगर आज नहीं खरीदेंगी तो तबियत और बिगड़ जाएगी और तबियत बिगड़ गई तो… (अगैन स्टार्टस क्राइइंग ).. तो फिर मैं नहीं जानती कि कैसे संभालूँगी सब..”
श्री उसकी ओर टिशू बॉक्स बढ़ाते हुए पूछती है,
श्री - “तो तुम अपनी मम्मी के साथ क्यों नहीं रहती?.. आइ मीन यहाँ अलग रहती हो तो खर्चा डबल ही होता होगा.. साथ रहकर तो तुम उनका ख्याल भी रख सकती हो।”
कीर्ति - “मेरी जॉब है यहाँ.. बिजली विभाग में.. कोशिश कर रही हूँ कि ट्रांसफर हो जाए.. इस महीने मम्मी की रिपोर्ट्स वगैरह निकली तो सब पैसे खत्म हो गए और महीने की आखिरी तारीख आने में भी बहुत वक्त है… और रही बात मेरे खर्चों की तो ऐसा है कि माई मुझसे यहाँ रहने और खाने का एक भी रुपया नहीं लेती… पर अब तो मैं उनसे आँखें मिलाने के भी काबिल नहीं, पता नहीं माई यहाँ रहने देंगी भी या नहीं.. मुझे पता है कि माई समझ गईं थी कि मैंने ही चोरी की थी।”
श्री गिलास में पानी भरती है और कीर्ति को देते हुए कहती है,
श्री - “माना कि तुम्हारी मजबूरी थी पर चोरी करना कभी सही नहीं होता कीर्ति। बताओ.. कितने रुपये की जरूरत है तुम्हें?.. मैं अभी दे देती हूँ और जब तुम्हारे पास आ जाएँ तुम मुझे लौटा देना.. पर प्रॉमिस करो कि तुम अब कभी चोरी नहीं करोगी..”
कीर्ति - "थैंक यू सो मच श्री.. यू सेव्ड मी टुडे।"मैं प्रॉमिस करती हूँ कि अब कभी ऐसा कुछ नहीं करूँगी.. और मेरी सैलरी आते ही तुम्हारे रुपये लौटा दूँगी..”
इन सब बातों के बाद कीर्ति चली जाती है और श्री नहा धोकर नाश्ता करने कमरे के बाहर आ जाती है। माई आकर उसे एक प्लेट थमा जाती हैं और पौधों की गुड़ाई करने लग जाती हैं.. श्री को माई का बर्ताव आज कुछ अलग लग रहा है। वो चुपचाप नाश्ता करती है और आकर माई के पास बैठ जाती है और गुड़ाई करने लगती है।
“ऐसे नहीं .. ऐसे चलाओ हाथ..”, माई करके दिखाती हैं।
श्री - “आप मुझसे नजरें क्यों नहीं मिला रहीं?”
माई अब श्री की आँखों में देखने लगती हैं और श्री देखती है कि माई की आँखों में पानी है.. श्री हाथ झाड़कर खड़ी हो जाती है और माई को भी खड़ा कर लेती है, फिर उनका हाथ पकड़कर उन्हें उनके कमरे में ले आती है।
श्री - “आप इतने उदास हो माई . क्या हुआ?.. देखो अगर आप कीर्ति के बारे में सोच रहे हो तो मैंने अभी उससे बात की.. उसे समझाया.. अब वो ऐसा कुछ नहीं करेगी।”
माई की आँख से एक आंसू बाहर आ जाता है और श्री उसे अपनी उंगली पर ले लेती है, “आपको यूँ नहीं देख सकती माई . प्लीज़ मत रोइए। प्लीज़ माई ।”
माई - “हम जानते थे कि कीर्ति ने ही किया है वो सब.. पर जिस तरह तुमने पूरी परिस्थिती को संभाला बिटिया.. तुमने तो हमारा विश्वास और पक्का कर दिया। हम कीर्ति से भी बात करेंगे उस सबके बारे में…”
श्री - “जैसे आप मेरी माई हो, मैं भी तो अब हूँ न आपकी बेटी..”,
श्री माई को कुर्सी पर बैठाकर, खुद नीचे बैठ जाती है और अपना सिर उनकी गोदी में रख देती है…- “हम कुछ और भी जानते हैं..”, माई श्री के सिर पर हाथ फेरते हुए बताती हैं.. और ये सुनते ही श्री सिर उठाकर उनकी आँखों में देखने लगती है।
श्री - “क्या माँ.. क्या जानती हैं आप?”
माई - “कल तुमने हमें दरवाजे पर बात करते सुन लिया था न बिटिया?”
श्री सिर झुका कर हाँ बोलती है… और माई अपने हाथों से उसका सिर ऊपर करते हुए उसे बताना शुरू करती हैं,
माई - “हम कुछ भी गलत नहीं कर रहे बिटिया.. किसी अपने के लिए ही सब कर रहे हैं.. वैसे तो अब ये पूरा संसार ही अपना है पर उससे जन्म का संबंध है। तुम हम पर बड़ा विश्वास करती हो, बाकी सभी लोग भी करते हैं पर कल जब तुमने वो सब जाना होगा तो न जाने क्या सोचा होगा… सच कहें तो हमें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई हमारे बारे में क्या सोचता है.. पर तुमसे एक अलग सा ही लगाव हो गया है। कई दिनों बाद हमें ऐसा लगा कि कोई हमारे लिए भी फिक्र करता है, हमें भी प्यार करता है… और फिर जब कल…”
श्री माई के होंठों पर अपना हाथ रख देती है,
श्री- “कल कुछ नहीं हुआ.. और मैंने कुछ भी गलत नहीं सोचा। आपको मैं अब भी उतने ही प्यार और आदर से देखती हूँ जितना कल रात से पहले देखती थी। देखिए माई .. कुछ बातें ऐसी होती हैं जो बाहर आने में समय लेती हैं और कई बार बाहर आती भी नहीं। कुछ बातें ऐसी भी होती हैं जो हम खुद तक ही रखना चाहते हैं… तो आपके पास भी ऐसी कुछ बातें हो सकती हैं न… आपको याद है मैंने उस रात आपसे आपके बारे में पूछा था.. तब आपने उस बात के सही समय आने की बात कही थी.. बस इस बात का भी सही समय आ जाएगा। जब आप सहज महसूस करें, आपका मन हो तब बता देना.. पर हाँ अभी मुझे आपसे कुछ और चाहिए।”
माई - “कहो न बिटिया, क्या चाहिए?”
श्री -“आपकी वो प्यारी वाली मुस्कान।”
माई श्री की ओर देखकर मुस्कुरा देती हैं। अब माई और श्री कमरे के बाहर आ गई हैं.. फिर श्री अपना बैग ले आती है और पंडित जी के घर जाने के लिए निकल जाती है।
ऑटो में बैठकर श्री ने अब वसन का नंबर डायल कर दिया है।
पहले वसन श्री का फोन नहीं उठाता और फिर कुछ देर बाद जब वो सामने से उसे फोन लगाता है तब श्री पिक करते ही उसे सुनाना शुरू कर देती है, “पहले क्यों नहीं उठाया? मम्म्म सोच रहे होंगे न कि क्या बहाना बनाऊ न आने का? मुझे तो पता ही था.. तुम सिर्फ बातों के दोस्त हो। वैरी बैड वसन ..”
वसन - “तुम किसी को कुछ बोलने क्यों नहीं देती हो… मैं पहुँच गया हूँ और पंडित जी से ही बात कर रहा था इसलिए फोन नहीं उठाया। तो अब मुझे जज न करते हुए.. तुम ऐसा करो कि जल्दी आ जाओ यहाँ।”
वसन को सुनने के बाद श्री की बोलती बंद हो जाती है और वो बस ओके करके फोन कट कर देती है और ऑटो वाले को जल्दी चलाने को कहती है..
“अब चला तो रहा हूँ न मैडम . ऑटो है, कोई हवाई जहाज नहीं जो उड़ा ले जाऊँ..”, ऑटो वाला गुस्से में जवाब देता है।
श्री - “अरे आप ऐसे गुस्सा क्यों कर रहे हैं भाई जी..”
औटोवाला - “अच्छा हम ऑटो चलाते हैं तो क्या गुस्सा भी नहीं कर सकते?”
श्री समझ गई है कि ऑटो वाले का घर पर पक्का कोई झगड़ा हुआ है इसलिए वह अब आगे कुछ नहीं बोलती और जैसे ही पंडित जी के घर पहुँचती है तो ऑटो वाले को रुपये देने के साथ पानी की अपनी बोतल भी पकड़ाती है, “मैं समझ सकती हूँ कि आपकी सुबह आज थोड़ी गर्म शुरू हुई है.. थोड़ा सा ठंडा पानी पी लीजिए और यदि घर पर झगड़ा हुआ है तो फोन करके बात कर लीजिए.. सब सही हो जाएगा..”
ऑटो वाले को तो श्री ने ठंडा पानी पिला दिया है पर क्या वो वासन के गुस्से को शांत कर पाएगी? वासन और श्री की ये मुलाकात अब कौनसा नया मोड़ लेगी ये जानने के लिए पढ़ते रहिए ~ श्री वसन।
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